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अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस: अपनों के इंतजार में पथराई आंखें, उम्र के आखिरी पड़ाव पर मदद की दरकार

देहरादून में अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस के अवसर पर वृद्ध लोगों की आपबीती और हाल जानने के लिए ईटीवी भारत की टीम ने रुख किया.

अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस.
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Published : Oct 1, 2019, 5:50 PM IST

Updated : Oct 2, 2019, 4:42 PM IST

देहरादून: विश्व में बुजुर्गों के प्रति होने वाले दुर्व्यवहार को रोकने के लिए अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस की शुरुआत की गई. पूरे विश्व में 1 अक्टूबर के दिन अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस मनाया जाता है. इस दिन की शुरुआत साल 1990 में यूनाइटेड जनरल असेम्बली द्वारा की गई थी. अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस के मौके पर ईटीवी भारत की टीम ने देहरादून के डालनवाला स्थित एक वृद्ध आश्रम में रह रहे कई बुजुर्गों से बात कर उनके दिल का हाल जाना.

अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस.

'जैसे सबकुछ खामोश पड़ा है. निश्चल, निश्चेष्ट और शांत...सोफे पर गर्माहट नहीं है...बच्चों के लड़ने झगड़ने, रोने, खिलखिलाने की आवाज नहीं है...बर्तनों के गिरने टूटने का स्वर नहीं है, क्योंकि बर्तन इस्तेमाल करने वाले ही कहां हैं, क्योंकि वो बर्तन अब गंदे ही नहीं होते...ये वेदना भरी कविता सुनकर शायद आपके रोंगटे खड़े हो जाएं...ये शब्द उस मां के हैं जो जिंदगी के आखिरी पड़ाव में अपने बच्चों से दूर वृद्धाश्रम में रहने को मजबूर है.

ये भी पढ़ें: मसूरी: बिजली और पानी की समस्या से जूझ रहे ग्रामीण, अधिकारी नहीं ले रहे सुध

जिस उम्र में इंसान को अपने परिवार का सबसे ज्यादा प्यार और अपनापन चाहिये वो उम्र अगर दरवाजे पर टकटकी लगाए उन्हीं अपनों के इंतजार में कट जाए तो आंसू शब्दों का रूप लेंगे ही. ऐसी ही कई दर्दभरी कहानियां खुद में सालों से समेटे हैं देहरादून का ये ओल्ड एज होम.

अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस पर इन बुजुर्गों का हाल जानने के लिए ईटीवी भारत की टीम ने इस ओल्ड एज होम का रुख किया. यहां पहुंचकर एहसास हुआ कि जिनके लिए इन्होंने अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया, उस परिवार ने ही उनसे किनारा कर लिया और जिनसे कोई वास्ता नहीं था, वहीं, अब अपने बन गए हैं. कई तो दुनिया में सब कुछ होने के बाद भी अकेले हैं.

ये भी पढ़ें: उत्तराखंडः त्रिशूल पर्वत पर गए दो विदेशी पर्वतारोही लापता, रेस्क्यू के लिए SDRF रवाना

वृद्ध आश्रम में रहने वाले बुजुर्गों ने हमें बताया कि वो यहां अपने हम उम्र लोगों के बीच काफी खुश महसूस करते हैं. लेकिन, हर दिन उन्हें अपने बच्चों की अपने घर की याद जरूर सताती है. लेकिन, उनके बच्चे अब अपनी नौकरियों में इतने व्यस्त हैं कि उनके पास वृद्धाश्रम में रहने के अलावा और कोई दूसरा विकल्प नहीं है.

बीते कई सालों से ज्वाइंट फैमिली का स्थान एकल परिवार ने ले लिया है. इस व्यवस्था से न केवल परिवारों की नींव हिली है बल्कि सामाजिक तानाबाना भी बिखर गया है. यही कारण है कि अगली पीढ़ी में जाने वाले संस्कारों में भी कमी आई है. इसे आधुनिकता की देन की कहेंगे कि अब शहरों में बच्चे क्रेच में पलते हैं और बुजुर्ग ओल्ड एज होम्स में. ऐसे में न तो उन बच्चों को बड़े-बूढ़ों का प्यार मिल पाता है और न ही बुजुर्गों को उनको दुलारने का मौका.

देहरादून: विश्व में बुजुर्गों के प्रति होने वाले दुर्व्यवहार को रोकने के लिए अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस की शुरुआत की गई. पूरे विश्व में 1 अक्टूबर के दिन अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस मनाया जाता है. इस दिन की शुरुआत साल 1990 में यूनाइटेड जनरल असेम्बली द्वारा की गई थी. अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस के मौके पर ईटीवी भारत की टीम ने देहरादून के डालनवाला स्थित एक वृद्ध आश्रम में रह रहे कई बुजुर्गों से बात कर उनके दिल का हाल जाना.

अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस.

'जैसे सबकुछ खामोश पड़ा है. निश्चल, निश्चेष्ट और शांत...सोफे पर गर्माहट नहीं है...बच्चों के लड़ने झगड़ने, रोने, खिलखिलाने की आवाज नहीं है...बर्तनों के गिरने टूटने का स्वर नहीं है, क्योंकि बर्तन इस्तेमाल करने वाले ही कहां हैं, क्योंकि वो बर्तन अब गंदे ही नहीं होते...ये वेदना भरी कविता सुनकर शायद आपके रोंगटे खड़े हो जाएं...ये शब्द उस मां के हैं जो जिंदगी के आखिरी पड़ाव में अपने बच्चों से दूर वृद्धाश्रम में रहने को मजबूर है.

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जिस उम्र में इंसान को अपने परिवार का सबसे ज्यादा प्यार और अपनापन चाहिये वो उम्र अगर दरवाजे पर टकटकी लगाए उन्हीं अपनों के इंतजार में कट जाए तो आंसू शब्दों का रूप लेंगे ही. ऐसी ही कई दर्दभरी कहानियां खुद में सालों से समेटे हैं देहरादून का ये ओल्ड एज होम.

अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस पर इन बुजुर्गों का हाल जानने के लिए ईटीवी भारत की टीम ने इस ओल्ड एज होम का रुख किया. यहां पहुंचकर एहसास हुआ कि जिनके लिए इन्होंने अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया, उस परिवार ने ही उनसे किनारा कर लिया और जिनसे कोई वास्ता नहीं था, वहीं, अब अपने बन गए हैं. कई तो दुनिया में सब कुछ होने के बाद भी अकेले हैं.

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वृद्ध आश्रम में रहने वाले बुजुर्गों ने हमें बताया कि वो यहां अपने हम उम्र लोगों के बीच काफी खुश महसूस करते हैं. लेकिन, हर दिन उन्हें अपने बच्चों की अपने घर की याद जरूर सताती है. लेकिन, उनके बच्चे अब अपनी नौकरियों में इतने व्यस्त हैं कि उनके पास वृद्धाश्रम में रहने के अलावा और कोई दूसरा विकल्प नहीं है.

बीते कई सालों से ज्वाइंट फैमिली का स्थान एकल परिवार ने ले लिया है. इस व्यवस्था से न केवल परिवारों की नींव हिली है बल्कि सामाजिक तानाबाना भी बिखर गया है. यही कारण है कि अगली पीढ़ी में जाने वाले संस्कारों में भी कमी आई है. इसे आधुनिकता की देन की कहेंगे कि अब शहरों में बच्चे क्रेच में पलते हैं और बुजुर्ग ओल्ड एज होम्स में. ऐसे में न तो उन बच्चों को बड़े-बूढ़ों का प्यार मिल पाता है और न ही बुजुर्गों को उनको दुलारने का मौका.

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Folder Name- day of older home

देहरादून- पूरे विश्व में 1 अक्टूबर के दिन अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस मनाया जाता है। इसकी शुरुआत साल 1990 में यूनाइटेड जनरल असेम्बली द्वारा की गई थी । दरअसल विश्व में बुजुर्गों के प्रति होने वाले दुर्व्यवहार को रोकने के लिए इस दिन की शुरुआत की गई थी । लेकिन आज 21वीं सदी में हम जी रहे हैं और सवाल यही है कि आख़िर हम हमारे घर के बुजुर्गों या अपने बूढ़े माता-पिता के प्रति कितने जिम्मेदार और संवेदनशील है ।

अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस के मौके पर आज ईटीवी भारत की टीम देहरादून के डालनवाला स्थित एक वृद्ध आश्रम पहुंची जहां हमने वृद्धाश्रम में सालों से रह रहे कई बुजुर्गों से बात की और उनके ज़हन में हर रोज उठने वाले कई सवालों को जाना।





Body:बता दे की शुरुआत में जब हमने यहां रह रहे कुछ बुजुर्गों से बात की तो सभी हमें काफी खुश नजर आए । लेकिन जब हमने उनसे यह जानने का प्रयास किया कि आखिर किस परिस्थिति में और कब से वह यहां रह रहे हैं तो सभी के पास अपने अलग जवाब थे।

हमारे द्वारा पूछा गया यह सवाल वृद्धाश्रम में रह रहे इन बुजुर्गों के लिए एक ऐसा सवाल था जिसे सुनकर कई बुजुर्गों की आंखें नम हो गई । जहां कुछ बुजुर्ग अपने बच्चों की व्यस्त जिंदगी के चलते इस वृद्ध आश्रम में रहने को मजबूर हैं । वहीं कुछ ऐसे भी हैं जो अकेलेपन की वजह से यहां रह रहे हैं ।

ईटीवी भारत से बात करते हुए बीते कई महीनों और सालों से इस वृद्ध आश्रम में रहने वाले बुजुर्गों ने हमें बताया कि वह यहां अपने हम उम्र लोगो के बीच काफी खुश महसूस करते हैं । लेकिन हर दिन उन्हें अपने बच्चों की अपने घर की याद जरूर सताती है । लेकिन उनके बच्चे अब अपनी नौकरियों में इतने व्यस्त हैं कि उनके पास वृद्ध आश्रम में रहने के अलावा और कोई दूसरा विकल्प नहीं है।




Conclusion:बहरहाल देहरादून के डालनवाला के इस वृद्धाश्रम में पहुंच कर हमारे जहन में कई सवाल खड़े हुए । सबसे अहम सवाल यही था कि आखिर जिन बच्चों को पाल पोस कर बड़ा करने में मां बाप अपने सभी जमा पूंजी लगा देते हैं । आखिर यही मां-बाप इन बच्चों के लिए बोझ क्यों बन जाते हैं । क्या बच्चों की अपने माँ-बाप के प्रति कोई ज़िम्मेदारी नही होती ?
Last Updated : Oct 2, 2019, 4:42 PM IST
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