देहरादून: विश्व विख्यात केदारनाथ मंदिर की गर्भगृह की दीवार पर सोने की परत चढ़ाए जाने का विरोध शुरू हो गया है. केदारनाथ धाम के तीर्थ पुरोहितों का आरोप है कि मंदिर की पौराणिक परंपराओं के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है. मंदिर के भीतर किसी भी हाल में सोना नहीं लगाने दिया जायेगा. अगर जबरन सोना लगाया जाता है, तो इसका कड़ा विरोध किया जाएगा और जरूरत पड़ने पर भूख हड़ताल भी की जायेगी.
ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि क्या केदारनाथ मंदिर का स्वरूप बदल रहा है? क्या केदारनाथ मंदिर के मुख्य मंदिर से छेड़छाड़ हो रही है? क्या आदिगुरु शंकरायचार्य के द्वारा स्थापित किए गए भगवान शिव के गर्भगृह में कुछ भी बदलाव शास्त्रों के विपरीत है? ये कुछ ऐसे सवाल हैं, जो बीते दो से तीन दिनों में केदारनाथ मंदिर को लेकर उठ रहे हैं.
दरअसल, बाबा के धाम को आपदा के बाद से संवारा जा रहा है. लेकिन अब मंदिर के अंदर भी कुछ ऐसा हो रहा है, जिसका विरोध और समर्थन दोनों हो रहे है. भगवान के धाम में सोने की परत चढ़ाई जा रही है, ये परत पूरे मंदिर के अंदर गुंबद तक चढ़ाई जाएगी.
मंदिर के अंदर सोना लगाने की वजह: मंदिर समिति ने शासन से अनुमति के बाद ये कार्य शुरू करवा दिया है. बताया जा रहा है की महाराष्ट्र के एक भक्त ने कुछ महीने पहले बीकेटीसी से सोना दान करने की इच्छा जताई थी. इसके लिए समिति के अध्यक्ष अजेंद्र अजय से बीते अगस्त में धर्मस्व एवं संस्कृति सचिव हरीश चंद्र सेमवाल को पत्र लिखकर शासन से अनुमति मांगी थी.
पढ़ें- केदारनाथ मंदिर के गर्भ गृह में सोने की परत चढ़ाने का विरोध, तीर्थ पुरोहित दे रहे पहरा
बताया जा रहा है कि अब अनुमति मिलने के बाद सर्वे ऑफ इंडिया और संबंधित एजेंसी से सर्वे करवाने के बाद मंदिर के अंदर सोने की परत चढ़ाने का काम शुरू कर दिया गया है. इस काम को पूरा होने में वैसे तो समय लगेगा. लेकिन अभी ये काम मंदिर के कपाट बंद होने तक होगा और दूसरा चरण कपाट खुलने के बाद होगा. इस कार्य में मंदिर के अंदर गर्भगृह के साथ-साथ मंदिर की दीवारों और गुंबद में भी सोने की परत चढ़ाई जाएगी.
भक्त ने नाम ना उजागर की अपील की: दान देने वाले भक्त ने अपना नाम ना उजागर करने का मंदिर समिति से आग्रह किया है. साथ ही ये भी कहा है की इस काम में जरा भी संकोच ना किया जाए, जितना सोना लगे उतना मंदिर में लगाया जाएगा. फिलहाल मंदिर के अंदर सोने की परत लगाने से पहले एक तांबे की परत चढ़ाई जा रही है, ताकि पहले ये तय कर लिया जाए की सोना कितना और किस हिसाब से लगेगा. बताया जा रहा है की मंदिर में पहले भी कुछ हिस्से तक चांदी की परत थी, जो काली हो जाने की वजह से हटानी भी थी.
तीर्थपुरोहितों का धार्मिक मान्यताओं से छेड़छाड़ का आरोप: तीर्थ पुरोहितों का आरोप है कि मंदिर की पौराणिक परंपराओं के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है. मंदिर के भीतर किसी भी हाल में सोना नहीं लगाने दिया जाएगा. पुरोहितों का कहना है कि मंदिर के अंदर सोने की परत लगेगी और नुकीली चीजें भी ठोकी जाएंगी और साथ ही कई तरह के कार्य होंगे. ऐसे में मंदिर की प्राचीनता से ये खिलवाड़ हो रहा है.
पढ़ें- केदारघाटी की पवित्रता पर अवैध शराब और मांस का दाग, गौरीकुंड में आस्था से खिलवाड़
तीर्थ पुरोहित दे रहे धार्मिक तर्क: तीर्थ पुरोहित इसके साथ ही धार्मिक तर्क भी दे रहे हैं. उनका कहना है कि केदारनाथ मोक्ष धाम है. राजा परीक्षित ने जब कलियुग को बंदी बनाया था तो कलियुग ने अपने लिये सोने और चांदी स्थान को मांगा था. केदारनाथ मोक्ष धाम है और इस मोक्ष धाम के गर्भगृह में यदि कलियुग को बैठाया जायेगा, तो कैसे यहां आने वाले यात्रियों को मोक्ष धाम की प्राप्ति होगी. इस मोक्ष धाम के दरवाजे पर भी चांदी लगाया गया है, जो कि सरासर गलत है. ये हमारे सनातन धर्म के खिलाफ है. सभी हिंदुओं को एकजुट होकर मंदिर के अंदर लगाये जाने वाले सोने का विरोध आगे भी किया जायेगा.
क्या कहते है जानकार: उत्तराखंड के जानकार भगीरथ शर्मा भी इस कार्य को सही नहीं बता रहे है. उनका कहना है की वैसे तो बीकेटीसी जो कर रही है, वो उसका अधिकार हो सकता है. लेकिन मंदिर के साथ इस तरह से छेड़छाड़ करना सही नहीं है. मंदिर किस शैली से बना है? कैसे बना है? ये सब को पता है और उसकी खूबसूरती प्राचीनता में ही है, ना की सोने चांदी के आभूषणों के जड़ने से.
केदारनाथ मंदिर की शैली: केदारनाथ मंदिर छह फीट ऊंचे चौकोर चबूतरे पर बना हुआ है. मंदिर में मुख्य भाग मंडप और गर्भगृह के चारों ओर प्रदक्षिणा पथ है. बाहर नंदी विराजमान है. कहा जाता है कि इस मंदिर का जीर्णोद्धार आदि गुरु शंकराचार्य ने करवाया था. केदारनाथ धाम की छत विशालकाय कमलनुमा आकृति पर टिकी हुई है.
ज्योतिर्लिंग के पश्चिम में एक अखंड दीपक है, जो कई हजारों सालों से निरंतर जलता रहता है. गर्भगृह की दीवारों पर सुंदर आकर्षक फूलों और कलाकृतियों को उकेर कर सजाया गया है. गर्भगृह में स्थित चारों विशालकाय खंभों के पीछे से स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान केदारेश्वर की परिक्रमा की जाती है.