देहरादून: प्रदेश में हैम्प (भांग) को पॉलिसी परवान चढ़ाने की कोशिश जारी है. उत्तराखंड भले ही 2016 से औद्योगिक एवं औषधीय हैम्प के लिए नीति बनाने में जुट गया हो, लेकिन पिछले करीब 7 सालों में राज्य सरकारें नीति को धरातल पर नहीं उतर पाई हैं. अब डर इस बात का है कि कहीं हिमाचल उत्तराखंड से पहले हैम्प पॉलिसी पर काम शुरू न कर दे. अगर ऐसा हुआ तो इस क्षेत्र में रुचि दिखाने वाले बड़े प्लेयर्स उत्तराखंड की जगह हिमाचल को तरजीह दे सकते हैं. इस कारण राज्य को निवेश को लेकर बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है.
भांग की खेती को लीगलाइज करने की मंजूरी: औद्योगिक एवं औषधीय हैम्प की खेती उत्तराखंड में कई हजार करोड़ की आय को पैदा कर सकती है. इससे न केवल राज्य के निवेश में भारी उफान आ सकता है, बल्कि रोजगार को लेकर भी राज्य की कुछ हद तक परेशानियां दूर हो सकती हैं. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसकी डिमांड और बड़े उद्योगों की इसको लेकर रुचि कुछ ऐसे ही संकेत दे रही है. उत्तराखंड में राज्य सरकार भी इस बात को महसूस कर रही है. शायद इसीलिए 2016 में इसके लिए नीति बनाने की कसरत शुरू कर दी गई थी. उत्तराखंड देश का पहला राज्य था, जिसने हैम्प की खेती को लीगलाइज करने की मंजूरी दी थी. इसके बावजूद उत्तराखंड में पिछले 7 सालों के दौरान इसे धरातल पर नहीं उतारा जा सका है.
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खेती के लिए हिमाचल में प्रयास तेज: खास बात यह है कि इस क्षेत्र में जहां पहले ही उत्तर प्रदेश समेत पंजाब और कुछ दूसरे राज्य अपनी रुचि दिखा रहे हैं, वहीं पड़ोसी राज्य हिमाचल ने तो इस पर नीति बनाने के लिए गंभीरता के साथ प्रयास तेज कर दिए हैं. इन हालातों में अब डर इस बात का है कि उत्तराखंड में इस नीति को लेकर सरकारी सिस्टम की कछुआ गति राज्य के लिए बड़े नुकसान का कारण बन सकती है.
दरअसल उत्तराखंड में औद्योगिक एवं औषधीय हैम्प की खेती पर काम शुरू होते ही देश के ऐसे कई उद्योग हैं जो उत्तराखंड में इस पॉलिसी पर नजर बनाए हुए हैं और इसको लेकर रुचि भी रखते हैं. लेकिन जिस तरह हिमाचल भी अब इस प्रयास में जुट गया है, उसके बाद यदि उत्तराखंड इस प्रोजेक्ट को शुरू करने में हिमाचल से पिछड़ जाता है, तो देश के बड़े उद्योग उत्तराखंड की जगह हिमाचल में निवेश करने पर विचार कर सकते हैं.
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क्या कह रहे जिम्मेदार: जाहिर है कि इन हालातों में उत्तराखंड को बड़े प्लेयर्स की जगह छोटे प्लेयर्स के सहारे रहना पड़ सकता है. बता दें कि उत्तराखंड में इस नीति के लिए ड्राफ्ट तैयार कर लिया गया है और तमाम औपचारिकताएं भी पूरी कर ली गई हैं. माना जा रहा है कि अगली कैबिनेट में इस नीति के प्रस्ताव को मंजूरी के लिए लाया जा सकता है. फिलहाल सचिव कृषि बीवीआरसी पुरुषोत्तम ने बताया कि मुख्य सचिव के निर्देश के बाद इस पॉलिसी को अंतिम रूप देने से पहले उद्योगपतियों के साथ ही किसानों से भी सुझाव लिए गए हैं. इन सुझाव को ड्राफ्ट में शामिल करते हुए जल्द ही प्रस्ताव को कैबिनेट के समक्ष रखा जाएगा.
दवाई बनाने में आता है काम: औद्योगिक एवं औषधीय हैम्प की खेती दुनिया के कई देशों में की जाती है. इसका इस्तेमाल कैंसर, शुगर और ग्लूकोमा जैसी गंभीर बीमारियों की दवाइयों के साथ ही दूसरी दवाइयों में भी किया जाता है. यही नहीं इस पौधे के फाइबर से कपड़ों से लेकर फर्नीचर तक भी बनाए जाते हैं. साथ ही हैंडलूम प्रोडक्ट भी इसके द्वारा तैयार किए जाते हैं. कुल मिलाकर यह पौधा अपनी उपयोगिता के कारण बेहद खास माना जाता है. लेकिन इसमें पाई जाने वाली टेट्रा हाइड्रोकार्बन विनोल यानी टीएचसी की मात्रा अधिक होने पर इसका नशे के रूप में भी उपयोग होता है. लिहाजा इसकी खेती के दौरान सरकार नीति बनाकर खेती में कम टीएचसी वाले पौधों के उत्पाद को मंजूरी दे रही है. हालांकि नीति में हैम्प की खेती के दौरान इसकी निगरानी, जांच और लाइसेंस समेत बेचे जाने तक के नियम तैयार कर रही है.