देहरादूनः उत्तराखंड में लोकपर्व इगास बग्वाल धूमधाम से मनाया जा रहा है. ऐसे में मुख्यमंत्री आवास पर आज शाम इगास बग्वाल के मौके पर एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया. इस मौके पर सीएम धामी ने प्रदेश वासियों को इगास बग्वाल की बधाई देते हुए शुभकामनाएं दी.
लोक संस्कृति एवं लोक परंपरा के इस पर्व पर उत्साह का माहौल दिखाई दिया. इगास के मौके पर मुख्यमंत्री आवास में भी लोकगीत, लोकनृत्य एवं लोक संस्कृति के साथ लोक परंपराओं के जीवंतता की झलक देखने को मिली. मुख्यमंत्री ने भैलो पूजन कर भैलो खेला. साथ ही लोक कलाकारों के लोक नृत्य में भी शामिल हुए.
इगास के मौके पर मुख्यमंत्री धामी ने सभी को इगास की बधाई दी. सभी से अपनी लोक संस्कृति एवं लोक परंपराओं को आगे बढ़ाने में सहयोगी बनने की अपील की. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में संपूर्ण देश में सांस्कृतिक विरासत और गौरव की पुनर्स्थापना हो रही है. उसी तरह उत्तराखंडवासी अपने लोकपर्व इगास को आज बड़े उत्साह से मना रहे हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले से आजादी के अमृत काल में पंच प्रण के संकल्पों के साथ आगे बढ़ने का आह्वान किया था. जिनमें से एक संकल्प यह है कि हम अपनी विरासत और संस्कृति पर गर्व करें. इगास पर्व का आयोजन उत्तराखंडी लोक संस्कृति से नयी पीढ़ी के जुड़ाव को और प्रगाढ़ बनाएगा.
वहीं, सीएम धामी ने प्रवासी उत्तराखंडवासियों से भी अनुरोध किया कि वे भी अपने लोक पर्व को अपने गांव में मनाने का प्रयास करें और प्रदेश के विकास में सहभागी बने. सभी के सामुहिक प्रयासों से हम विकल्प रहित संकल्प के साथ उत्तराखंड को अग्रणी राज्यों में शामिल करने में सफल होंगे.
इस दौरान मुख्यमंत्री आवास पर इगास कार्यक्रम के दौरान प्रदेश के तमाम मंत्रियों समेत विधायक और अफसर भी मौजूद रहे. इस मौके पर अभिनेता हेमंत पांडे भी यहां अपने माता पिता के साथ इगास मनाने पहुंचे. हेमंत पांडे ने भी प्रदेशवासियों को इस मौके पर बधाई देते हुए विशेष संस्कृति के प्रचार प्रसार के रूप में बेहतर कदम बताया.
क्या है इगास पर्वः उत्तराखंड में बग्वाल या इगास मनाने की परंपरा है. दीपावली को यहां बग्वाल कहा जाता है, जबकि बग्वाल के 11 दिन बाद एक और दीपावली मनाई जाती है, जिसे इगास कहते हैं. पहाड़ की लोक संस्कृति से जुड़े इगास पर्व के दिन घरों की साफ-सफाई के बाद मीठे पकवान बनाए जाते हैं और देवी-देवताओं की पूजा की जाती है. साथ ही गाय व बैलों की पूजा की जाती है. शाम के वक्त गांव के किसी खाली खेत या खलिहान में भैलो खेला जाता है. भैलो एक प्रकार की मशाल होती है, जिसे नृत्य के दौरान घुमाया जाता है. इगास पर पटाखों का प्रयोग नहीं किया जाता है.
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दिवाली के 11वें दिन इसलिए मनाई जाती है इगासः एक मान्यता ये भी है कि जब मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटे तो लोगों ने घी के दीये जलाकर उनका स्वागत किया था, लेकिन गढ़वाल क्षेत्र में भगवान राम के लौटने की सूचना दीपावली के ग्यारह दिन बाद कार्तिक शुक्ल एकादशी को मिली थी, इसलिए ग्रामीणों ने खुशी जाहिर करते हुए एकादशी को दीपावली का उत्सव मनाया था.
ये है दूसरी मान्यता: दूसरी मान्यता है कि दिवाली के वक्त गढ़वाल के वीर माधो सिंह भंडारी के नेतृत्व में गढ़वाल की सेना ने दापाघाट और तिब्बत का युद्ध जीतकर विजय प्राप्त की थी और दिवाली के ठीक 11वें दिन गढ़वाल सेना अपने घर पहुंची थी. युद्ध जीतने और सैनिकों के घर पहुंचने की खुशी में उस समय दिवाली मनाई गई थी.
एक और कथा भी है: एक और ऐसी ही कथा है कि चंबा का रहने वाला एक व्यक्ति भैलो बनाने के लिए लकड़ी लेने जंगल गया था और ग्यारह दिन तक वापस नहीं आया. उसके दुख में वहां के लोगों ने दीपावली नहीं मनाई. जब वो व्यक्ति वापस लौटा तभी ये पर्व मनाया गया और लोक खेल भैलो खेला. तब से इगास बग्वाल के दिन दिवाली मनाने और भैलो खेलने की परंपरा शुरू हुई.
गढ़वाल में मनाई जाती है चार बग्वालः गढ़वाल में 4 बग्वाल होती हैं. पहली बग्वाल कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को होती है. दूसरी अमावस्या को पूरे देश की तरह गढ़वाल में भी अपनी लोक परंपराओं के साथ मनाई जाती है. तीसरी बग्वाल बड़ी बग्वाल (दिवाली) के ठीक 11 दिन बाद आने वाली कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है.
गढ़वाली में एकादशी को इगास कहते हैं. इसलिए इसे इगास बग्वाल के नाम से जाना जाता है. चौथी बग्वाल आती है दूसरी बग्वाल या बड़ी बग्वाल के ठीक एक महीने बाद मार्गशीष माह की अमावस्या तिथि को. इसे रिख बग्वाल कहते हैं. यह गढ़वाल के जौनपुर, थौलधार, प्रतापनगर, रंवाई, चमियाला आदि क्षेत्रों में मनाई जाती है.