देहरादून: उत्तराखंड के हल्द्वानी में वन अनुसंधान केंद्र में तैनात आईएफएस अधिकारी संजीव चतुर्वेदी को आखिरकार कौन नहीं जानता? आईएफएस संजीव चतुर्वेदी एक ऐसा नाम हैं जिनके बारे में कहा जाता है कि कोई भी सरकार यह नहीं चाहती कि उनकी पोस्टिंग उनके राज्य में हो. उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ ऐसी लड़ाई लड़ी जिससे न केवल बड़े पदों पर बैठे अधिकारियों बल्कि सरकार में शामिल नेताओं की भी नींद उड़ गई.
अपनी पहली पोस्टिंग में हरियाणा में वन्य जीव जंतु की तस्करी के मामले में अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर जेल भेजने का मामला रहा हो या फिर एम्स जैसे संस्थान में 200 से ज्यादा घोटालों को चंद दिनों में उजागर करना. अब संजीव चतुर्वेदी नए मिशन पर हैं.
ईटीवी भारत से खास बातचीत करते हुए संजीव चतुर्वेदी ने देश में फैले भ्रष्टाचार पर बेबाकी से राय रखी. गौरतलब है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे आईएफएस अधिकारी संजीव चतुर्वेदी इससे पूर्व एम्स अस्पताल के सीवीओ पद पर तैनात रहे हैं. संजीव चतुर्वेदी ने बताया कि एम्स में ड्यूटी के दौरान उनका एक ही मकसद था कि किस तरह से उस कॉकस को तोड़ा जाए जिसमें ऊपर से नीचे तक सभी लोग शामिल हैं. संजीव चतुर्वेदी ने बताया कि 2014-15 में भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई करने के बाद से वे मुश्किल दौर से गुजर रहे हैं.
एम्स में काम करने के दौरान भ्रष्टाचारियों पर नकेल कसने से पहले ही उनका ट्रांसफर कर दिया गया. तत्कालीन सरकार में बैठे मंत्रियों और अधिकारियों को शायद ये रास नहीं आया कि वे भ्रष्टाचार में बड़े अधिकारियों और नेताओं के नाम शामिल करें. वे आगे कहते हैं कि लोगों को ये समझना होगा कि इस समय देश में भ्रष्टाचार को लेकर एक बड़ा गिरोह काम कर रहा है. जिसमें सर्वोच्च पदों पद बैठे सफेदपोश लोग शामिल हैं. कॉर्पोरेट हस्तियों का भी इन्हें समर्थन है.
डर लगने के सवाल पर संजीव चतुर्वेदी कहते हैं कि मेरे खिलाफ 20 से ज्यादा मुकदमे हैं, लेकिन इससे फर्क नहीं पड़ता, लेकिन भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई आगे भी जारी रहेगी. वो कहते हैं कि एम्स में जिम्मेदारियों से बाहर करने के बाद भी कई लोगों की गिरफ्तारी हुई और आज भी कई लोगों पर गिरफ्तारी की तलवार लटक रही है.
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जानिए कौन हैं आईएफएस अधिकारी संजीव चतुर्वेदी
संजीव चतुर्वेदी 2002 बैच के हरियाणा कैडर से पासआउट अफसर हैं. संजीव चतुर्वेदी को रेमन मैग्सेसे अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है. उन्होंने साल 1995 में मोतीलाल नेहरू इंस्टीट्यूट इलाहाबाद से बीटेक की पढ़ाई पूरी की थी. साल 2002 में इनकी पहली पोस्टिंग हरियाणा के कुरुक्षेत्र में बतौर डीएफओ हुई थी. एम्स में रहते हुए संजीव ने 200 से ज्यादा भ्रष्टाचार के मामले उजागर किए थे.
इतना ही नहीं, साल 2014 में स्वास्थ्य सचिव ने उन्हें सबसे ईमानदार अधिकारी का तबका भी दिया था. ये बात अलग है कि सरकार बदलने के बाद उन्हें स्वास्थ्य सचिव ने एम्स से जाने का निर्देश भी जारी किया था. संजीव को एम्स में 4 साल गुजारने थे लेकिन 2 सालों में ही उनको वहां से हटा दिया गया.