देहरादून: मनुष्य लगातार अपने स्वार्थ की वजह से जिस तरह वनों को नुकसान पहुंचा रहा है. उसी तेजी के साथ हर साल मानव और वन्यजीवों के बीच संघर्ष बढ़ता जा रहा है. उत्तराखंड में हर साल जंगल काटे जा रहे हैं. जिसके कारण वन्य जीव रिहायशी इलाकों का रुख कर रहे हैं. जिसकी वजह से अब तक कई लोग जंगली जानवरों का शिकार बन चुके हैं. विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर अपनी ईटीवी भारत आपको उत्तराखंड के मानव और वन्यजीव संघर्ष के चौकाने वाले आंकड़ों से रूबरू करा रहा है, जिसमें बीते 3 सालों में लगातार इजाफा देखने को मिला है.
वन विभाग से मिले आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में साल 2017-18 में बाघ-तेंदुए और अन्य वन्य जीवों के हमले में कुल 85 लोग मारे गए है. इसके साथ ही वन्यजीवों ने 436 लोगों को घायल भी किया है. जंगली जानवरों ने इस दौरान 1497.779 हेक्टेयर क्षेत्र में फसलों को भी नुकसान पहुंचाया है. इसी तरह साल 2018-2019 में वन्यजीवों के हमले से 89 लोगों की मौत हुई, जबकि 357 लोग इसमें घायल हुए. इस साल वन्यजीवों ने 1346.848 हेक्टेयर क्षेत्र में ग्रामीणों की फसलों को भारी नुकसान पहुंचाया.
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बात अगर साल 2019 से लेकर मार्च 2020 तक की करें तो अभी तक जंगली जानवरों के हमले में 89 लोगों की मौत हो चुकी है. वहीं 374 लोग इसमें घायल हुए हैं. साथ ही साथ वन्यजीवों ने 738.068 हेक्टेयर क्षेत्र में ग्रामीणों की फसलों को नुकसान पहुंचाया है.
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प्रदेश में साल दर साल बढ़ते मानव और वन्यजीव संघर्ष के बारे में हमने उत्तराखंड वन पंचायत सलाहकार परिषद के अध्यक्ष वीरेंद्र सिंह बिष्ट से बात की. उन्होंने बताया कि प्रदेश में मानव-वन्यजीव संघर्ष के बढ़ते मामलों के मुख्य वजह खुद इंसान है. वह खुद के स्वार्थ के लिए जंगलों को काट रहा है जिसके कारण जंगली जानवर आबादी वाले इलाकों की ओर आ रहे हैं. इसके अलावा भोजन की तलाश में भी जंगली जानवर रिहायशी इलाकों की ओर रुख कर रहे हैं.
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उत्तराखंड वन पंचायत सलाहकार परिषद के अध्यक्ष वीरेंद्र सिंह बिष्ट बताते हैं कि मानव और वन्यजीव संघर्ष पर लगाम लगाने के लिए राज्य सरकार के साथ ही वन विभाग लगातार लोगों को वन संरक्षण और वन्य जीव संरक्षण के प्रति जागरूक करने में जुटा हुआ है. जब तक लोग वन संरक्षण और वन्यजीवों के संरक्षण के प्रति जागरूक नहीं हो जाते तब तक मानव और वन्यजीव संघर्ष का सिलसिला यूं ही जारी रहेगा.