देहरादून: कोरोना काल में जब दुनिया, बच्चों की पढ़ाई चौपट होने से चिंतित है तो वहीं राजधानी का एक स्कूल इस दौर में बच्चों को और भी ताकत के साथ शिक्षा देने में जुटा है. बात राजपुर रोड स्थित राजकीय पूर्व माध्यमिक विद्यालय की हो रही है. जहां शैक्षणिक कार्यों की ऐसी गतिविधियां चल रही हैं जैसी शायद ही कोरोनाकाल में आपने देखी हो.
राजकीय पूर्व माध्यमिक विद्यालय, जैसा कि नाम से ही जाहिर है कि यह एक सरकारी स्कूल है. यहां पढ़ने वाले छात्र गरीब परिवारों से आते हैं. मगर इस स्कूल की प्रस्तावना इतनी भर ही नहीं है. दरअसल, इस स्कूल में सैकड़ों छात्र ऐसे हैं जिनके या तो माता-पिता नहीं है या फिर उनके माता-पिता दिव्यांग हैं. मगर स्कूल का सरकारी होना और गरीब परिवारों से बच्चों का ताल्लुख रखना इनकी पढ़ाई पर कोई असर नहीं डालता.
आज जब कोरोनाकाल में सभी सरकारी स्कूल बंद हैं, निजी स्कूल ऑनलाइन क्लासेस लेकर खानापूर्ति कर रहे हैं. तब इस स्कूल के छात्र हाथों में टेबलेट लेकर अपनी पढ़ाई पूरी कर रहे हैं. यही नहीं यहां स्मार्ट टीवी के जरिए भी कक्षाएं संचालित की जाती हैं. इस स्कूल के प्रधानाचार्य हुकुम सिंह उनियाल हैं.
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दरअसल, हुकुम सिंह उनियाल ही हैं जिन्होंने इस स्कूल को 10 छात्र संख्या से आज करीब 400 से ज्यादा छात्र संख्या वाला स्कूल बना दिया है. कोरोना काल के दौरान भी ये स्कूल बंद नहीं हुआ, बल्कि सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क पहनकर छात्र हर रोज यहां पढ़ रहे हैं. बता दें कि इस स्कूल में छात्र और छात्राओं के लिए दो अलग-अलग छात्रावास बनाए गए हैं. जहां पर हर रोज बच्चों को शिक्षकों द्वारा वैसे ही पढ़ाया जा रहा है जैसे लॉकडाउन से पहले पढ़ाया जाता था. उल्टा लॉकडाउन लगने के बाद इन बच्चों की कक्षाएं और भी हाईटेक और ज्ञानवर्धक हो गई हैं.
प्रधानाचार्य हुकुम सिंह की मानें तो कोविड-19 के चलते वे बच्चों की सुरक्षा को लेकर बेहद चिंतित हैं. इसीलिए स्कूल परिसर में किसी को भी आने की इजाजत नहीं है. यही नहीं बाहर से आने वाली सब्जियां और दूसरे सामान को भी बेहद सावधानी के साथ अंदर पहुंचाया जाता है. हुकुम सिंह बताते हैं कि बच्चों के लिए स्कूल में स्मार्ट टीवी से लेकर टेबलेट तक उपलब्ध कराए गए हैं.
आपको जानकर खुशी होगी कि हुकुम सिंह को अपने शैक्षणिक कार्यों के लिए राष्ट्रपति सम्मान से भी नवाजा जा चुका है. तमाम मंचों पर प्रधानाचार्य हुकुम सिंह सम्मानित हो चुके हैं. हुकुम सिंह को मिले इन सम्मानों और कोरोनाकाल में बेहतर कामों को लेकर जब हम उनसे बात करने स्कूल पहुंचे तो हम हैरान थे. दरअसल, स्कूल में बड़ी संख्या में छात्र मौजूद थे, जो हाईटेक साधनों से पढ़ाई कर रहे थे. यही नहीं प्रधानाचार्य समेत शिक्षक भी स्कूल में पहुंच कर बच्चों को पढ़ाते हुए दिखाई दिए. यहां न केवल शैक्षणिक कार्य बल्कि सिंगिंग, डांसिंग जैसी कक्षाएं भी चलाई जा रही हैं.
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स्कूल एंट्री गेट पर ही सैनेटाइजेशन की व्यवस्था है. स्कूल की शिक्षिका संगीता तोमर बताती हैं कि प्रधानाचार्य हुकुम सिंह उनियाल बच्चों के लिए भगवान से कम नहीं. कई बच्चों को हुकुम सिंह सड़क से उठाकर छात्रावास में लाकर उन्हें शिक्षा दे रहे हैं. जिससे उन्हें प्रेरणा मिलती है.
बता दें यह स्कूल राजधानी के सबसे पुराने स्कूलों में शुमार है. साल 1816 में यह स्कूल पलटन बाजार में था. जिसे 1953 में राजपुर रोड पर शिफ्ट कर दिया गया. साल 2008 में कालसी से हुकुम सिंह का इस स्कूल में ट्रांसफर हुआ था. तब इस स्कूल में छात्रों की संख्या मात्र 16 थी. मगर हुकुम सिंह ने बस्तियों, झुग्गी झोपड़ियों में जाकर बच्चों को स्कूल तक लाने के लिए लोगों को प्रेरित किया. ऐसे कई बच्चे हैं जो निराश्रित सड़कों के किनारे भीख मांग कर अपनी दिनचर्या चलाते थे, ऐसे बच्चों को भी उन्होंने छात्रावास में लाकर पढ़ाना शुरू किया. यही नहीं स्कूल में शौचालय और राशन के साथ बच्चों के रहने की व्यवस्था बनाने के लिए उन्होंने लोगों से कर्ज तक लिया.
हुकुम सिंह ने अपने पूरे परिवार को यहां बच्चों की सेवा में लगा दिया. इसके बाद उन्होंने स्वयंसेवी संस्थाओं और दूसरे लोगों से मदद मांगकर स्कूल को आज ऐसी स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया कि यह स्कूल आज सैकड़ों बच्चों को मुफ्त खाना पीना, रहना, कपड़े, पढ़ाई का सामान सभी कुछ उपलब्ध करा रहा है. हुकुम सिंह जैसे शिक्षक ही शिक्षकों के सम्मान को कायम रखे हुए हैं.