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Mahashivratri 2022: उत्तराखंड के शिवालयों में भक्तों की भीड़, भोले से कर रहे सुख समृद्धि की कामना - Rishikesh Virbhadra Mahadev Temple

महाशिवरात्रि पर्व पर पूरी देवभूमि के शिवालयों में सुबह से ही भक्तों का भारी तांता लगा हुआ है. देहरादून स्थिति टपकेश्वर महादेव मंदिर में रात साढ़े 12.30 बजे से कपाट खुलते ही महाशिवरात्रि पर्व का आगाज हो गया. मंदिर में पहुंच रहे श्रद्धालुओं की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए पुलिस के 200 जवान तैनात किये हैं.

Mahashivratri 2022
महाशिवरात्रि 2022
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Published : Mar 1, 2022, 2:12 PM IST

देहरादून/हरिद्वार/लक्सर/पौड़ी/ऋषिकेश/उत्तकाशी: महाशिवरात्रि पर्व पर द्रोणागिरी में चारों ओर हर-हर महादेव की गूंज सुनाई दे रही है. गढ़ी कैंट स्थित टपकेश्वर महादेव मंदिर में रात से ही जलाभिषेक करने के लिए श्रद्धालुओं की भारी उमड़ पड़ी है. देवों के देव कहे जाने वाले महादेव की उपासना का पर्व महाशिवरात्रि का पर्व ग्रह नक्षत्रों के शुभ संयोग के बीच मनाया जा रहा है. टपकेश्वर महादेव मंदिर में रात 12:30 बजे से जलाभिषेक करने के लिए मंदिर के कपाट खोल दिए गए थे. इससे पहले मंदिर में शिवलिंग का विशेष श्रृंगार करने के बाद जलाभिषेक किया गया और पूजा अर्चना कर विश्व शांति की कामना की गई.

इस मौके पर मंदिर के महंत कृष्ण गिरि महाराज ने बताया कि शिवरात्रि के दिन श्रद्धालुओं में खासा उत्साह देखने को मिल रहा है. उन्होंने कहा कि महाशिवरात्रि पर्व पर वह विश्व शांति की कामना करते हैं. कोरोना काल के 2 साल बाद इस बार भक्तों में खासा उत्साह और आनंद देखने को मिल रहा है.

टपकेश्वर मंदिर में मेले का आयोजन: टपकेश्वर मंदिर में कोरोना प्रोटोकॉल को देखते हुए मास्क की अनिवार्यता रखी गई है. मंदिर में श्रद्धालुओं की उमड़ी भारी भीड़ को देखते हुए वॉलिंटियर व्यवस्थाएं बनाने में जुटे हुए हैं. वहीं, पुलिस की ओर से सुरक्षा के चाक-चौबंद इंतजाम किए गए हैं. इस मौके पर आयोजकों की ओर से हर वर्ष की भांति टपकेश्वर मेले का भी आयोजन किया गया है.

देहरादून के शिवालयों में भक्तों की भीड़: देहरादून के शिवालयों में सुबह से ही शिव भक्तों का तांता लगा हुआ है. नेहरू कॉलोनी स्थित सनातन धर्म मंदिर, आराघर स्थित पंचमुखी हनुमान मंदिर, गढ़ी कैंट स्थित नवग्रह मंदिर, कैनाल रोड, स्थित प्राचीन शिव मंदिर, धर्मपुर चौक स्थित प्राचीन शिव मंदिर, जाखन स्थित शिव मंदिर, समेत शहर के विभिन्न मंदिरों में भारी तादाद में श्रद्धालु भगवान भोलेनाथ को जल चढ़ाने पहुंच रहे हैं. शिव पुराण के अनुसार, महाशिवरात्रि के दिन ही देशभर में द्वादश ज्योतिर्लिंग प्रकट हुए थे. मान्यता है कि इस महापर्व पर शिव और पार्वती का विवाह हुआ था और भोलेनाथ ने वैराग्य जीवन त्यागकर गृहस्थ जीवन अपनाया था.
पढ़ें- महाशिवरात्रि 2022 : 'बम-बम भोले' से गूंज उठा देश, शिव मंदिरों में लगा भक्तों का तांता

उत्तरकाशी में शिवायलों में शिव की गूंज: उत्तरकाशी जनपद के काशी विश्वनाथ मंदिर समेत जिले के शिवालयों में जलाभिषेक के लिए श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी हुई है. सुबह से ही शिवालयों में श्रद्धालुओं की कतारें लगीं हैं. इस दौरान शिवालयों में श्रद्धालु विशेष पूजा अर्चना कर अपने व क्षेत्र की खुशहाली के लिए मन्नत मांग रहे हैं. सुबह से ही लोग मणिकर्णिका घाट पर गंगा स्नान कर जलाभिषेक के लिए शिवालयों में पहुंच रहे हैं.

इसके साथ ही जिला मुख्यालय पर गोपेश्वर महादेव, एकादश रुद्र, कालेश्वर महादेव, कीर्तश्वर महादेव, वरुणावत के शीर्ष पर शिखरेश्वर एवं विमलेश्वर, भटवाड़ी स्थित भाष्करेश्वर, पुरोला में कमलेश्वर महादेव, नौगांव में नागेश्वर, पुजारगांव चिन्यालीसौड़ में भड़ेश्वर, बड़कोट में चंद्रेश्वर एवं नागेश्वर, खरसाली में भूतेश्वर महादेव, थाती में धनेश्वर आदि जिले के शिवालयों में श्रद्धालुओं ने जलाभिषेक कर भगवान शिव की पूजा कर रहे हैं. इस दौरान मंदिरों में भजन कीर्तन के साथ धार्मिक अनुष्ठान भी किए हैं.
पढ़ें- 6 मई को खुलेंगे केदारनाथ धाम के कपाट, महाशिवरात्रि पर पंचांग की गणना से हुई घोषणा

वीरभद्र महादेव का सिद्ध पीठ मंदिर: तीर्थनगरी ऋषिकेश के पौराणिक वीरभद्र महादेव मंदिर में महाशिवरात्रि पर्व पर बड़ी संख्या में शिव भक्त पहुंच रहे हैं. सुबह से ही तीर्थनगरी के शिवालयों में भक्तों की भारी भीड़ जुटी है. शिवलिंग पर जलाभिषेक करने के लिए भक्तों की लम्बी-लम्बी लाइन लगी हैं. चारों ओर बम-बम की गूंज सुनाई दे रही है.

वीरभद्र महादेव का सिद्ध पीठ मंदिर है, जिसके दर्शन मात्र से ही भक्तों की मुराद पूरी हो जाती है. वीरभद्र महादेव का वर्णन केदारखंड में भी मिलता है. वीरभद्र की उत्पत्ति शिव की जटाओं से हुई थी. कहा जाता है की जब राजा दक्ष ने माता सती का अपमान किया, तो माता सती ने हवन कुंड में अग्नि समाधि ले ली, जिसके बाद क्रोधित होकर भगवान भोलेनाथ ने अपनी जटाओं को जोर से धरती पर पटका, जिससे वीरभद्र की उत्पत्ति हुई.

क्रोध से उत्पन्न वीरभद्र ने राजा दक्ष का वध कर हवन कुंड को तहस नहस कर दिया. जब क्रोधित वीरभद्र लगातार विध्वंस कर रहे थे तब उन्होंने भगवान भोलेनाथ की स्तुति कर उन्हें प्रसन्न किया. प्रसन्न होकर भोलेनाथ स्वयं यहां पर शिवलिंग के रूप में स्थापित हुए, जहां पर वीरभद्र ने भगवान भोलेनाथ की आराधना की, वो स्थान वीरभद्र के नाम से जाना जाता है.
पढ़ें- Maha Shivratri: यहां भगवान शिव ने दिए थे द्रोणाचार्य को दर्शन, जानिए टपकेश्वर महादेव मंदिर का रहस्य

कंकालेश्वर/क्यूंकालेश्वर महादेव मंदिर: पौड़ी जनपद में भी मृत्यु के देवता यमराज की तपस्थली के नाम से पहचाने जाने वाले कंकालेश्वर या क्यूंकालेश्वर महादेव मंदिर में सुबह से भक्तों भारी उमड़ी है. मान्यता है कि जो भी भक्त सच्चे मन से शिव की पूजा करते हैं, उनकी सभी मनोकामना अवश्य पूर्ण होती हैं. यह प्राचीन शिव मंदिर 8वीं शताब्दी का माना जाता है. हर शिवरात्रि को श्रद्धालु यहां शिव दर्शन को पहुंचकर अपनी मनोकामना पूर्ण करते हैं.

क्यूंकालेश्वर महादेव मंदिर जिला मुख्यालय पौड़ी के शीर्ष पर करीब 2200 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. स्कन्दपुराण के केदारखंड के अनुसार यह मंदिर पौड़ी के किनाश पर्वत पर स्थित है. इस मंदिर तक पहुंचने के लिए देवदार, बांज, बुरांस, काफल आदि के घने जंगलों को पार करना पड़ता है. मान्यता है कि इस पौराणिक मंदिर की स्थापना अद्वैत वेदांत के संस्थापक व आदिगुरु शंकराचार्य ने की थी.

क्यूंकालेश्वर मंदिर की मान्यता: कहा जाता है कि कंकालेश्वर या क्यूंकालेश्वर मंदिर की नींव नेपाल से आये मित्र शर्मा और मुनि शर्मा नामक दो तपस्वियों ने की थी. वे इसी जगह पर कुटिया बनाकर रहते थे. कहा जाता है कि अपने सपने में इन दो मुनियों ने इसी स्थान पर यम को शिव की तपस्या करते देखा. तभी उन्होंने यहां छोटा सा मंदिर स्थापित किया. तब पूरा गढ़वाल क्षेत्र ब्रिटिश सरकार के आधीन था. तपस्वियों के तप व ईश्वर में भक्ति को देख ब्रिटिश सरकार ने इस मंदिर के निर्माण में योगदान दिया. आज भी मंदिर के प्रांगण में ब्रिटिश सरकार के तत्कालीन सम्राट किंग जॉर्ज पंचम का नाम लिखा शिलापट मौजूद है.

पछवादून के शिवालयों में भक्तों की भारी भीड़: राजधानी देहरादून के पछवादून के शिवालयों में सुबह से ही श्रद्धालुओं की लंबी कतारें लगी हैं. सभी श्रद्धालु शिवलिंग पर जलाभिषेक कर सुख-समृद्धि की कामना कर रहे हैं. बाढ़वाला स्थित शिव मंदिर की मान्यता है कि त्रेता युग में अज्ञातवास के समय पांडव पछवादून के बाढ़वाला में पहुंचे थे, जहां पर अश्वमेघ स्थल भी स्थित है. प्राचीन महत्व का स्वयंभू शिवलिंग भी बाढ़वाला के शिव मंदिर में स्थित है.

बिल्केश्वर महादेव मंदिर में हर-हर महादेव: महाशिवरात्रि पर हरिद्वार के बिल्व पर्वत पर स्थित बिल्केश्वर महादेव मंदिर पर सुबह से ही भक्त पहुंच रहे हैं. माना जाता है कि शिव को मात्र याद कर लेने से ही वह प्रसन्न हो जाते हैं. शिव को पाने के लिए पार्वती को भी कठोर तपस्या करनी पड़ी थी. कहा जाता है कि जब सती ने भगवान राम की परीक्षा लेने के लिए सीता का रूप लिया तो शिव ने इसे मर्यादा का उल्लघंन मानते हुए सती का त्याग कर दिया था. बाद में सती ने राजा दक्ष के यज्ञ कुंड में अपने शरीर को दाह कर दिया था.

इसके बाद सती ने हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया पर भगवान शिव सती के वियोग में दुखी थे और समाधि में लीन थे. हिमालय पुत्री पार्वती ने ठान लिया था कि विवाह करना है, तो शिव से ही. इसके लिए उन्हें नारद जी ने सलाह दी कि शिव आपको स्वीकार नहीं करेंगे. अगर शिव को पाना है तो उसके लिए आपको कठोर तपस्या करनी पड़ेगी. तभी शिव को प्रसन्न किया जा सकता है. तब नारद जी ने पृथ्वी का भ्रमण कर हरिद्वार में बिल्व पर्वत के इसी स्थान को पार्वती की तपस्या के लिए सबसे उपयुक्त पाया और पार्वती से कहा कि वह यहां पर बेल पत्र खाकर रहें और शिव को पाने के लिए दिन-रात तप करें.

नैनीताल का गुफा महादेव मंदिर: महाशिवरात्रि पर नैनीताल जनपद के गुफा महादेव मंदिर में सुबह से ही भक्तों की भारी भीड़ उमड़ रही है. मान्यता है कि भगवान इस गुफा में साक्षात रूप में विराजमान हैं. यहां शिवलिंग पर साल भर प्राकृतिक रूप से जल धारा अभिषेक करती रहती है. यही कारण है कि शिवरात्रि के मौके पर भगवान शिव के इस गुफा रूपी मंदिर में भक्तों का तांता लगा रहता है. शिवरात्रि के मौके पर शहर के कृष्णापुर में स्थित गुफा महादेव मंदिर में भक्तों के तांता लग जाता है.

श्रीनगर गढ़वाल में भी महाशिवरात्रि के अवसर पर शिवालयों में भक्तों का तांता लगा हुआ है. सबसे ज्यादा श्रद्धालुओं ने प्राचीन सिद्धपीठ कमलेश्वर महादेव मन्दिर मे दर्शन किए. सुबह चार बजे से श्रद्धालु भोलेनाथ को जल चढ़ाने के लिये लंबी-लंबी कतारों में लगे रहे. ऐतिहासिक सिद्वपीठ कमलेश्वर महादेव मंदिर में सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालुओं ने दर्शन किए और दूध, बेलपत्री आदि चढ़ाकर भगवान शिव की पूजा की. कहा जाता है कि भगवान विष्णु 1000 कमलों से शिव आराधना कर रहे थे. तभी भगवान शिव ने एक कमल का फूल छुपा दिया लेकिन भगवान विष्णु ने अपने नेत्र शिव को अर्पित किए. तभी से भगवान शिव के इस मंदिर को कमलेश्वर महादेव मंदिर कहा जाने लगा.

काशीपुर के शिवालयों में सुबह से भक्त कर रहे जलाभिषेक: महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर हरिद्वार से जल भरकर लाने के बाद बम भोले के जयकारों के बीच काशीपुर, जसपुर और बाजपुर और दूरदराज के शिवभक्तों ने देर रात से मोटेश्वर महादेव मंदिर पर जलाभिषेक किया. इसी के साथ-साथ शिवभक्तों ने काशीपुर के विभिन्न शिव मंदिरों और शिवालयों में जाकर पूजा अर्चना की. हजारों की संख्या कांवड़ियों ने काशीपुर में चैती मंदिर और मोटेश्वर महादेव मंदिर में जलाभिषेक किया.

लक्सर के पावर हाउस शिव मंदिर धर्मशाला मंदिर पतलेश्वर मंदिर और पंचेश्वर महादेव मंदिर में भक्त जलाभिषेक करने पहुंच रहे हैं. मंदिर के पुजारी ने बताया कि फाल्गुन मास के दौरान महाशिवरात्रि को सुबह रुद्राभिषेक किया जाता है. फाल्गुन मास शिवरात्रि पर भगवान शिव की पूजा का विशेष महत्व होता है, जो भी भक्त भगवान शिव की श्रद्धापूर्वक पूजा अर्चना करता है, भगवान भोलेनाथ उसकी हर मनोकामना को पूर्ण करते हैं. पुजारी ने बताया पंचेश्वर महादेव में अज्ञातवास के दौरान पांडव यहां ठहरे थे. इस स्थान का महत्व विशेष माना जाता है.

देहरादून/हरिद्वार/लक्सर/पौड़ी/ऋषिकेश/उत्तकाशी: महाशिवरात्रि पर्व पर द्रोणागिरी में चारों ओर हर-हर महादेव की गूंज सुनाई दे रही है. गढ़ी कैंट स्थित टपकेश्वर महादेव मंदिर में रात से ही जलाभिषेक करने के लिए श्रद्धालुओं की भारी उमड़ पड़ी है. देवों के देव कहे जाने वाले महादेव की उपासना का पर्व महाशिवरात्रि का पर्व ग्रह नक्षत्रों के शुभ संयोग के बीच मनाया जा रहा है. टपकेश्वर महादेव मंदिर में रात 12:30 बजे से जलाभिषेक करने के लिए मंदिर के कपाट खोल दिए गए थे. इससे पहले मंदिर में शिवलिंग का विशेष श्रृंगार करने के बाद जलाभिषेक किया गया और पूजा अर्चना कर विश्व शांति की कामना की गई.

इस मौके पर मंदिर के महंत कृष्ण गिरि महाराज ने बताया कि शिवरात्रि के दिन श्रद्धालुओं में खासा उत्साह देखने को मिल रहा है. उन्होंने कहा कि महाशिवरात्रि पर्व पर वह विश्व शांति की कामना करते हैं. कोरोना काल के 2 साल बाद इस बार भक्तों में खासा उत्साह और आनंद देखने को मिल रहा है.

टपकेश्वर मंदिर में मेले का आयोजन: टपकेश्वर मंदिर में कोरोना प्रोटोकॉल को देखते हुए मास्क की अनिवार्यता रखी गई है. मंदिर में श्रद्धालुओं की उमड़ी भारी भीड़ को देखते हुए वॉलिंटियर व्यवस्थाएं बनाने में जुटे हुए हैं. वहीं, पुलिस की ओर से सुरक्षा के चाक-चौबंद इंतजाम किए गए हैं. इस मौके पर आयोजकों की ओर से हर वर्ष की भांति टपकेश्वर मेले का भी आयोजन किया गया है.

देहरादून के शिवालयों में भक्तों की भीड़: देहरादून के शिवालयों में सुबह से ही शिव भक्तों का तांता लगा हुआ है. नेहरू कॉलोनी स्थित सनातन धर्म मंदिर, आराघर स्थित पंचमुखी हनुमान मंदिर, गढ़ी कैंट स्थित नवग्रह मंदिर, कैनाल रोड, स्थित प्राचीन शिव मंदिर, धर्मपुर चौक स्थित प्राचीन शिव मंदिर, जाखन स्थित शिव मंदिर, समेत शहर के विभिन्न मंदिरों में भारी तादाद में श्रद्धालु भगवान भोलेनाथ को जल चढ़ाने पहुंच रहे हैं. शिव पुराण के अनुसार, महाशिवरात्रि के दिन ही देशभर में द्वादश ज्योतिर्लिंग प्रकट हुए थे. मान्यता है कि इस महापर्व पर शिव और पार्वती का विवाह हुआ था और भोलेनाथ ने वैराग्य जीवन त्यागकर गृहस्थ जीवन अपनाया था.
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उत्तरकाशी में शिवायलों में शिव की गूंज: उत्तरकाशी जनपद के काशी विश्वनाथ मंदिर समेत जिले के शिवालयों में जलाभिषेक के लिए श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी हुई है. सुबह से ही शिवालयों में श्रद्धालुओं की कतारें लगीं हैं. इस दौरान शिवालयों में श्रद्धालु विशेष पूजा अर्चना कर अपने व क्षेत्र की खुशहाली के लिए मन्नत मांग रहे हैं. सुबह से ही लोग मणिकर्णिका घाट पर गंगा स्नान कर जलाभिषेक के लिए शिवालयों में पहुंच रहे हैं.

इसके साथ ही जिला मुख्यालय पर गोपेश्वर महादेव, एकादश रुद्र, कालेश्वर महादेव, कीर्तश्वर महादेव, वरुणावत के शीर्ष पर शिखरेश्वर एवं विमलेश्वर, भटवाड़ी स्थित भाष्करेश्वर, पुरोला में कमलेश्वर महादेव, नौगांव में नागेश्वर, पुजारगांव चिन्यालीसौड़ में भड़ेश्वर, बड़कोट में चंद्रेश्वर एवं नागेश्वर, खरसाली में भूतेश्वर महादेव, थाती में धनेश्वर आदि जिले के शिवालयों में श्रद्धालुओं ने जलाभिषेक कर भगवान शिव की पूजा कर रहे हैं. इस दौरान मंदिरों में भजन कीर्तन के साथ धार्मिक अनुष्ठान भी किए हैं.
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वीरभद्र महादेव का सिद्ध पीठ मंदिर: तीर्थनगरी ऋषिकेश के पौराणिक वीरभद्र महादेव मंदिर में महाशिवरात्रि पर्व पर बड़ी संख्या में शिव भक्त पहुंच रहे हैं. सुबह से ही तीर्थनगरी के शिवालयों में भक्तों की भारी भीड़ जुटी है. शिवलिंग पर जलाभिषेक करने के लिए भक्तों की लम्बी-लम्बी लाइन लगी हैं. चारों ओर बम-बम की गूंज सुनाई दे रही है.

वीरभद्र महादेव का सिद्ध पीठ मंदिर है, जिसके दर्शन मात्र से ही भक्तों की मुराद पूरी हो जाती है. वीरभद्र महादेव का वर्णन केदारखंड में भी मिलता है. वीरभद्र की उत्पत्ति शिव की जटाओं से हुई थी. कहा जाता है की जब राजा दक्ष ने माता सती का अपमान किया, तो माता सती ने हवन कुंड में अग्नि समाधि ले ली, जिसके बाद क्रोधित होकर भगवान भोलेनाथ ने अपनी जटाओं को जोर से धरती पर पटका, जिससे वीरभद्र की उत्पत्ति हुई.

क्रोध से उत्पन्न वीरभद्र ने राजा दक्ष का वध कर हवन कुंड को तहस नहस कर दिया. जब क्रोधित वीरभद्र लगातार विध्वंस कर रहे थे तब उन्होंने भगवान भोलेनाथ की स्तुति कर उन्हें प्रसन्न किया. प्रसन्न होकर भोलेनाथ स्वयं यहां पर शिवलिंग के रूप में स्थापित हुए, जहां पर वीरभद्र ने भगवान भोलेनाथ की आराधना की, वो स्थान वीरभद्र के नाम से जाना जाता है.
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कंकालेश्वर/क्यूंकालेश्वर महादेव मंदिर: पौड़ी जनपद में भी मृत्यु के देवता यमराज की तपस्थली के नाम से पहचाने जाने वाले कंकालेश्वर या क्यूंकालेश्वर महादेव मंदिर में सुबह से भक्तों भारी उमड़ी है. मान्यता है कि जो भी भक्त सच्चे मन से शिव की पूजा करते हैं, उनकी सभी मनोकामना अवश्य पूर्ण होती हैं. यह प्राचीन शिव मंदिर 8वीं शताब्दी का माना जाता है. हर शिवरात्रि को श्रद्धालु यहां शिव दर्शन को पहुंचकर अपनी मनोकामना पूर्ण करते हैं.

क्यूंकालेश्वर महादेव मंदिर जिला मुख्यालय पौड़ी के शीर्ष पर करीब 2200 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. स्कन्दपुराण के केदारखंड के अनुसार यह मंदिर पौड़ी के किनाश पर्वत पर स्थित है. इस मंदिर तक पहुंचने के लिए देवदार, बांज, बुरांस, काफल आदि के घने जंगलों को पार करना पड़ता है. मान्यता है कि इस पौराणिक मंदिर की स्थापना अद्वैत वेदांत के संस्थापक व आदिगुरु शंकराचार्य ने की थी.

क्यूंकालेश्वर मंदिर की मान्यता: कहा जाता है कि कंकालेश्वर या क्यूंकालेश्वर मंदिर की नींव नेपाल से आये मित्र शर्मा और मुनि शर्मा नामक दो तपस्वियों ने की थी. वे इसी जगह पर कुटिया बनाकर रहते थे. कहा जाता है कि अपने सपने में इन दो मुनियों ने इसी स्थान पर यम को शिव की तपस्या करते देखा. तभी उन्होंने यहां छोटा सा मंदिर स्थापित किया. तब पूरा गढ़वाल क्षेत्र ब्रिटिश सरकार के आधीन था. तपस्वियों के तप व ईश्वर में भक्ति को देख ब्रिटिश सरकार ने इस मंदिर के निर्माण में योगदान दिया. आज भी मंदिर के प्रांगण में ब्रिटिश सरकार के तत्कालीन सम्राट किंग जॉर्ज पंचम का नाम लिखा शिलापट मौजूद है.

पछवादून के शिवालयों में भक्तों की भारी भीड़: राजधानी देहरादून के पछवादून के शिवालयों में सुबह से ही श्रद्धालुओं की लंबी कतारें लगी हैं. सभी श्रद्धालु शिवलिंग पर जलाभिषेक कर सुख-समृद्धि की कामना कर रहे हैं. बाढ़वाला स्थित शिव मंदिर की मान्यता है कि त्रेता युग में अज्ञातवास के समय पांडव पछवादून के बाढ़वाला में पहुंचे थे, जहां पर अश्वमेघ स्थल भी स्थित है. प्राचीन महत्व का स्वयंभू शिवलिंग भी बाढ़वाला के शिव मंदिर में स्थित है.

बिल्केश्वर महादेव मंदिर में हर-हर महादेव: महाशिवरात्रि पर हरिद्वार के बिल्व पर्वत पर स्थित बिल्केश्वर महादेव मंदिर पर सुबह से ही भक्त पहुंच रहे हैं. माना जाता है कि शिव को मात्र याद कर लेने से ही वह प्रसन्न हो जाते हैं. शिव को पाने के लिए पार्वती को भी कठोर तपस्या करनी पड़ी थी. कहा जाता है कि जब सती ने भगवान राम की परीक्षा लेने के लिए सीता का रूप लिया तो शिव ने इसे मर्यादा का उल्लघंन मानते हुए सती का त्याग कर दिया था. बाद में सती ने राजा दक्ष के यज्ञ कुंड में अपने शरीर को दाह कर दिया था.

इसके बाद सती ने हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया पर भगवान शिव सती के वियोग में दुखी थे और समाधि में लीन थे. हिमालय पुत्री पार्वती ने ठान लिया था कि विवाह करना है, तो शिव से ही. इसके लिए उन्हें नारद जी ने सलाह दी कि शिव आपको स्वीकार नहीं करेंगे. अगर शिव को पाना है तो उसके लिए आपको कठोर तपस्या करनी पड़ेगी. तभी शिव को प्रसन्न किया जा सकता है. तब नारद जी ने पृथ्वी का भ्रमण कर हरिद्वार में बिल्व पर्वत के इसी स्थान को पार्वती की तपस्या के लिए सबसे उपयुक्त पाया और पार्वती से कहा कि वह यहां पर बेल पत्र खाकर रहें और शिव को पाने के लिए दिन-रात तप करें.

नैनीताल का गुफा महादेव मंदिर: महाशिवरात्रि पर नैनीताल जनपद के गुफा महादेव मंदिर में सुबह से ही भक्तों की भारी भीड़ उमड़ रही है. मान्यता है कि भगवान इस गुफा में साक्षात रूप में विराजमान हैं. यहां शिवलिंग पर साल भर प्राकृतिक रूप से जल धारा अभिषेक करती रहती है. यही कारण है कि शिवरात्रि के मौके पर भगवान शिव के इस गुफा रूपी मंदिर में भक्तों का तांता लगा रहता है. शिवरात्रि के मौके पर शहर के कृष्णापुर में स्थित गुफा महादेव मंदिर में भक्तों के तांता लग जाता है.

श्रीनगर गढ़वाल में भी महाशिवरात्रि के अवसर पर शिवालयों में भक्तों का तांता लगा हुआ है. सबसे ज्यादा श्रद्धालुओं ने प्राचीन सिद्धपीठ कमलेश्वर महादेव मन्दिर मे दर्शन किए. सुबह चार बजे से श्रद्धालु भोलेनाथ को जल चढ़ाने के लिये लंबी-लंबी कतारों में लगे रहे. ऐतिहासिक सिद्वपीठ कमलेश्वर महादेव मंदिर में सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालुओं ने दर्शन किए और दूध, बेलपत्री आदि चढ़ाकर भगवान शिव की पूजा की. कहा जाता है कि भगवान विष्णु 1000 कमलों से शिव आराधना कर रहे थे. तभी भगवान शिव ने एक कमल का फूल छुपा दिया लेकिन भगवान विष्णु ने अपने नेत्र शिव को अर्पित किए. तभी से भगवान शिव के इस मंदिर को कमलेश्वर महादेव मंदिर कहा जाने लगा.

काशीपुर के शिवालयों में सुबह से भक्त कर रहे जलाभिषेक: महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर हरिद्वार से जल भरकर लाने के बाद बम भोले के जयकारों के बीच काशीपुर, जसपुर और बाजपुर और दूरदराज के शिवभक्तों ने देर रात से मोटेश्वर महादेव मंदिर पर जलाभिषेक किया. इसी के साथ-साथ शिवभक्तों ने काशीपुर के विभिन्न शिव मंदिरों और शिवालयों में जाकर पूजा अर्चना की. हजारों की संख्या कांवड़ियों ने काशीपुर में चैती मंदिर और मोटेश्वर महादेव मंदिर में जलाभिषेक किया.

लक्सर के पावर हाउस शिव मंदिर धर्मशाला मंदिर पतलेश्वर मंदिर और पंचेश्वर महादेव मंदिर में भक्त जलाभिषेक करने पहुंच रहे हैं. मंदिर के पुजारी ने बताया कि फाल्गुन मास के दौरान महाशिवरात्रि को सुबह रुद्राभिषेक किया जाता है. फाल्गुन मास शिवरात्रि पर भगवान शिव की पूजा का विशेष महत्व होता है, जो भी भक्त भगवान शिव की श्रद्धापूर्वक पूजा अर्चना करता है, भगवान भोलेनाथ उसकी हर मनोकामना को पूर्ण करते हैं. पुजारी ने बताया पंचेश्वर महादेव में अज्ञातवास के दौरान पांडव यहां ठहरे थे. इस स्थान का महत्व विशेष माना जाता है.

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