देहरादूनः मोदी सरकार ने आगामी 2047 तक देश को नशा मुक्त करने का लक्ष्य रखा है तो उत्तराखंड में धामी सरकार 2025 तक राज्य को नशा मुक्त करने का प्लान तैयार कर रही है. इसके लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय के निर्देश पर उत्तराखंड पुलिस ने भी विशेष अभियान चलाया हुआ है. लेकिन उत्तराखंड को ड्रग फ्री करना बड़ी चुनौती है. इसके पीछे कई वजहें हैं, जिससे आपको रूबरू कराते हैं.
सामाजिक रूप से नशे को बुरी नजरों से तो देखा जाता है, लेकिन इसके बावजूद इसकी स्वीकार्यता में तेजी से बढ़ोत्तरी हुई है. आलम ये है कि नशे का ये कारोबार फलता फूलता गया. अब इस पर काबू पाना बेहद मुश्किल दिखाई देता है. शायद यही कारण है कि भारत सरकार को नशे के खिलाफ राष्ट्रीय स्तर पर अभियान छेड़ना पड़ा. देशभर में नशे का अवैध कारोबार हजारों करोड़ों रुपए का है. जिस पर लगाम लगाना आसान नहीं है.
वैसे तो नशा तस्करों के निशाने पर हर वर्ग होता है, लेकिन इसमें खासतौर पर युवा वर्ग सबसे ज्यादा फंसता हुआ नजर आता है. उत्तराखंड में भी नशे का यह कारोबार काफी तेजी से बढ़ा है. तस्करों का निशाना खासतौर पर वो शहर रहे हैं, जहां युवाओं की संख्या ज्यादा है. जिसमें राजधानी देहरादून भी शामिल है.
देहरादून शिक्षा का हब माना जाता है और उत्तराखंड ही नहीं बल्कि, देशभर से युवा देहरादून में पहुंचकर स्कूली शिक्षा के साथ ही प्रोफेशनल कोर्स करते हैं. लिहाजा, ऐसे छात्र ही इन नशा कारोबारियों के सबसे ज्यादा निशाने पर होते हैं. उत्तराखंड में नशे को लेकर अब तक की गई पुलिस की कार्रवाई के आंकड़े क्या कहते हैं? आप भी गौर करिए.
उत्तराखंड में नशे के कारोबार पर कार्रवाई
- साल 2022 में उत्तराखंड में 1,531 किलो मादक पदार्थ जब्त किया गया.
- 1,05,390 नशे के कैप्सूल और 17,506 इंजेक्शन भी बरामद किए गए.
- नशा विरोधी अभियान में 586 मुकदमे दर्ज किए गए.
- प्रदेश भर में 742 लोगों की गिरफ्तारी की गई.
- पुलिस ने त्रिस्तरीय टास्क फोर्स का गठन किया.
- एंटी नारकोटिक्स टास्क फोर्स दोनों रेंज में काम रही है.
- नार्को कोऑर्डिनेशन सेंटर की निगरानी में टास्क फोर्स काम करती है.
- फोर्स को आरोपियों की संपत्ति जब्त करने का अधिकार भी दिया गया.
उत्तराखंड में पुलिस ने केंद्रीय गृह मंत्रालय के निर्देश के क्रम में अपने अभियान को तेजी से आगे बढ़ाया है. इसके लिए संबंधित एजेंसियों को मजबूत करने की दिशा में भी काम किया जा रहा है. इसके अलावा आम लोगों के साथ तमाम स्कूल प्रबंधन, छात्रों और नशा मुक्ति केंद्र समेत एनजीओ को भी साथ लेकर पुलिस काम कर रही है.
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उत्तराखंड पुलिस महानिदेशक अशोक कुमार कहते हैं कि लोगों को जागरूक करने के साथ ही इससे संबंधित फोर्स को मजबूत करने की दिशा में काम किया जा रहा है. उत्तराखंड में ऐसे कई क्षेत्र हैं, जहां लगातार पुलिस को नशा करते छात्रों की मौजूदगी मिलती है और उन पर कार्रवाई भी की जाती है.
नशे का काला कारोबार देहरादून तक ही सीमित नहीं है, बल्कि मैदानी जिले हरिद्वार और उधम सिंह नगर के साथ ही उत्तरकाशी, टिहरी, नैनीताल, अल्मोड़ा, बागेश्वर और पिथौरागढ़ तक भी इसका जाल बिछा हुआ है. देहरादून में प्रेम नगर क्षेत्र नशे को लेकर बेहद संवेदनशील माना जाता है. इसकी एक वजह ये भी है कि इस क्षेत्र में काफी संख्या में कई प्रोफेशनल कोर्स कराने वाले संस्थान मौजूद हैं. इसके कारण यहां काफी संख्या में छात्र भी रहते हैं.
उधर, तमाम प्रोफेशनल कोर्स कराने वाले विश्वविद्यालय और संस्थानों में भी अक्सर इस तरह के मामले सामने आते हैं. नशा तस्करों के निशाने पर ऐसे ही संस्थान में रहने वाले छात्र होते हैं. वैसे यह स्थिति केवल उत्तराखंड की नहीं है. देशभर में भी काफी मात्रा में नशा तस्कर इस कारोबार में संलिप्त हैं. इस बात की गवाही राष्ट्रीय स्तर के आंकड़े देते हैं. पंजाब में नशे को लेकर तो उड़ता पंजाब फिल्म ही बन गई.
देशभर में नशा कारोबार के आंकड़े
- जून 2022 में 75 दिन के लिए राष्ट्रीय स्तर पर नशा विरोधी अभियान शुरू किया गया.
- अभियान के दौरान 1,235 करोड़ का 9,298 किलो मादक पदार्थ जब्त किया गया.
- साल 2014 से 2022 के बीच इससे जुड़े 3,172 मुकदमे दर्ज किए गए.
- इसी समयावधि में 4,888 लोगों की गिरफ्तारियां भी की गई.
- इन 8 सालों में 3.30 लाख किलो मादक पदार्थ जब्त किया गया.
- इनकी कीमत 20,000 करोड़ रुपए आंकी गई.
- उत्तराखंड में उत्तर प्रदेश से भी नशा तस्करी होती है.
- बड़े तस्करों के दूसरे राज्य से ऑपरेट करने से पुलिस का उन तक पहुंचना मुश्किल रहता है.
उत्तराखंड में इस कारोबार के हत्थे अब स्कूली छात्र भी चढ़ रहे हैं. नशा मुक्ति केंद्र पर पहुंचने वाले ऐसे कई छात्र भी हैं, जिनकी उम्र 12 से 18 साल के बीच में है. नशा मुक्ति को लेकर काम करने वाली जागृति फाउंडेशन के निदेशक प्रीत मोहन सिंह कोहली बताते हैं कि शराब छुड़ाने वालों की संख्या से ज्यादा अब ड्रग और दूसरे तरह के नशा करने वालों की बढ़ रही है. यानी युवा अब शराब की जगह सूखा नशा करने के ज्यादा आदी होते हुए दिखाई दे रहे हैं.
प्रीत मोहन सिंह कोहली कहते हैं कि इसमें ज्यादातर ऐसे छात्र आते हैं, जो नशे के कारण अपनी मानसिक बीमारी की तरफ बढ़ चले हैं. यानी नशे के कारण अब युवाओं को मानसिक बीमारी हो रही है. जिससे चिंताएं और भी ज्यादा बढ़ गई हैं. ऐसे में धामी सरकार के सामने 2025 तक यानी सरकार के तय लक्ष्य यानी 22 साल पहले प्रदेश को ड्रग फ्री करना काफी चुनौती भरा रहने वाला है.