देहरादून: उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं. ऐसे में सभी राजनीतिक दल सत्ता पर काबिज होने के लिए पुरजोर कोशिश में लगे हुए हैं. हाल ही में कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने उत्तर प्रदेश में बड़ा बयान देकर राजनीतिक गलियारों में भूचाल ला दिया है. प्रियंका गांधी ने एक सभा को संबोधित करते हुए उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव में 40 फीसदी सीटें महिलाओं को दिए जाने की बात कही है. ऐसे में प्रियंका गांधी के बयान का उत्तराखंड के चुनाव पर कितना असर होगा ? और उत्तराखंड की राजनीति में अभी महिलाओं की भागीदारी की क्या स्थिति है, समझते हैं...
समय-समय पर राजनीति में महिलाओं की भागीदारी को लेकर सवाल उठते रहे हैं. खुद राजनीतिक दलों से जुड़ी महिलाएं इस बात को लेकर आवाज बुलंद करती रही हैं कि उन्हें भी बराबरी का हक मिलना चाहिए. क्योंकि देश की आधी आबादी, महिलाओं की ही है, जो प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला करती है. बावजूद इसके चुनाव में महिलाओं को बराबरी का हक नहीं मिल पाता है. इसकी बड़ी वजह राष्ट्रीय दलों का महिलाओं को टिकट देने में कंजूसी बरतना भी है. स्थिति यह है कि विधानसभा चुनाव में राज्य स्थापना के बाद से अबतक महिलाओं के प्रतिनिधित्व का आंकड़ा 8% भी नहीं पहुंचा है. वहीं, राष्ट्रीय दलों ने महिलाओं को टिकट देने में 12% से ज्यादा हिम्मत नहीं दिखाई.
वहीं, वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत ने कहते हैं कि प्रियंका गांधी का बयान भले ही राजनीतिक स्टैंड हो लेकिन उनके बयान को एक पहल के रूप में भी समझा जाना चाहिए. क्योंकि, बुनियादी स्तर पर महिलाओं को ज्यादा अधिकार देने के लिए सबसे पहले पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने कदम उठाया था. उस दौरान पंचायत चुनावों में महिलाओं के लिए 33 फीसदी आरक्षण कर दिया था. फिर साल 2009 में 33% आरक्षण को बढ़ाकर 50 फीसदी कर दिया गया. ऐसे में प्रियंका गांधी ने जो घोषणा की है, वह भले ही चुनावी फायदे के लिए हो लेकिन इसके दूरगामी नतीजे होंगे. अगर ऐसा होता है तो अन्य राजनीतिक दलों पर भी इसका दबाव देखने को मिलेगा.
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वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत ने कहा कि उत्तराखंड की राजनीति में प्रियंका गांधी के इस बयान का असर जरूर पड़ेगा क्योंकि उत्तराखंड राज्य के निर्माण का आंदोलन महिलाओं के ही नेतृत्व में लड़ा गया था. वर्तमान समय में पहाड़ का सारा बोझ महिलाओं के ही कंधों पर है. बावजूद इसके विधानसभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व महज कुछ ही है. इक्का-दुक्का महिला विधायकों को ही मंत्री बनाया जाता है. ऐसे में अगर प्रियंका गांधी महिलाओं को चुनाव में आरक्षण की बात कह रही हैं तो फिर महिला आरक्षण विधेयक पर भी राजनीतिक दलों को ध्यान देना चाहिए. जय सिंह रावत ने कहा कि महिलाओं को वोट बैंक की तरह देखा जाता है. यही वजह है कि विधानसभा में उनका प्रतिनिधित्व बेहद कम है.
महिलाओं के प्रतिनिधित्व से भ्रष्टाचार घटेगा: जय सिंह रावत ने कहा कि अगर राजनीतिक दल महिलाओं को अधिक संख्या में टिकट देते हैं, तो उससे कई फायदे मिलेंगे क्योंकि महिलाएं न सिर्फ निष्कपट भाव से काम करती हैं, बल्कि उन्हें लोक लाज का भी डर होता है, जिससे भ्रष्टाचार भी कम होने की संभावना होती है. ऐसे ही पहल होती रहे तो धीरे-धीरे महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ेगा. लिहाजा, राजनीतिक दलों को इस ओर और पहल करने की जरूरत है.
कांग्रेस की दुर्दशा पर प्रियंका को याद आया आरक्षण: बीजेपी के प्रदेश प्रवक्ता विपिन कैंथला ने कांग्रेस पर हमला करते हुए कहा कि जब कांग्रेस की दुर्दशा हो गई है, तब प्रियंका गांधी को महिलाओं को आरक्षण दिए जाने की बात याद आ रही है. इतने सालों तक कांग्रेस केंद्र की सत्ता में रही उस दौरान महिला उत्थान की बात कांग्रेस ने क्यों नहीं की ? जबकि बीसी खंडूरी ने उत्तराखंड राज्य में पंचायत चुनाव में महिलाओं की भागीदारी को 33% से बढ़ाकर 50% किया था. उन्होंने कहा कि अगर कांग्रेस की तुलना बीजेपी से की जाए तो बीजेपी में कांग्रेस के मुकाबले अधिक महिला विधायक रही हैं. बीजेपी सरकार ने महिलाओं के उत्थान के लिए हमेशा ही बड़े निर्णय लिए हैं.
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मील का पत्थर साबित होगा महिला आरक्षण: कांग्रेस की प्रदेश प्रवक्ता गरिमा दसौनी ने कहा कि प्रियंका गांधी ने महिलाओं के सशक्तिकरण की दिशा में जो घोषणा की है वह भविष्य में मील का पत्थर साबित होगी. उत्तराखंड राज्य में कांग्रेस पहला ऐसा दल है जिसने हर विधानसभा चुनाव में 8 महिलाओं को उम्मीदवार घोषित किया. अन्य दल मात्र तीन या चार महिलाओं को ही उम्मीदवार घोषित करने में सिमट गए. ऐसे में आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस अपनी इस संख्या को और अधिक बढ़ाएगी.
दसौनी ने कहा कि वह हर पटल पर इसकी मांग करेंगी, ताकि आगामी विधानसभा चुनाव में भी महिलाओं की भागीदारी बढ़ाई जाए और प्रियंका गांधी की घोषणा की तर्ज पर उत्तराखंड में भी ऐसी घोषणा की जाए. उन्होंने कहा कि जब महिलाएं घर संभाल सकती हैं तो वह राज्य और देश को भी बखूबी संभाल सकती हैं.
महिला उम्मीदवारों की स्थिति: साल 2002 में बीजेपी ने 7 महिला प्रत्याशी मैदान में उतारे थे. उस दौरान कांग्रेस ने 6 महिलाओं को टिकट दिया था, जिसमे से 4 महिला प्रत्याशी जीतकर विधानसभा पहुंचीं. इसमें दो बीजेपी और दो कांग्रेस की महिला विधायक बनीं.
साल 2007 में बीजेपी ने 7 महिला प्रत्याशियों को टिकट दिया. कांग्रेस ने 5 महिलाओं पर भरोसा जताया. इस चुनाव में बीजेपी की तीन और कांग्रेस की एक महिला प्रत्याशी विधायक बनी.
2012 में बीजेपी ने 7 महिलाओं को टिकट दिया. कांग्रेस ने इस बार प्रत्याशियों की संख्या बढ़ाकर 8 कर दी. इस चुनाव में 5 महिला विधायक बनीं, जिसमें चार कांग्रेस और एक बीजेपी की महिला प्रत्याशी शामिल थी.
इसी तरह साल 2017 में दलबदल के बाद बीजेपी ने महिला प्रत्याशियों की संख्या कम कर दी. 2017 विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने जहां 5 महिलाओं को ही टिकट दिया. तो वहीं, कांग्रेस ने इस बार भी 8 महिलाओं को उम्मीदवार बनाया और इस चुनाव में 5 महिला विधायक बनीं, जिसमें दो कांग्रेस और तीन बीजेपी की महिला विधायक शामिल हैं.
महिलाओं का प्रतिनिधित्व: उत्तराखंड में साल 2002 में कुल 52,70,375 वोटर थे. तब कुल 54.34% वोटिंग हुई थी. इसमें 13,45,902 महिलाओं ने वोट डाले. इस साल कुल 72 महिलाओं ने विधानसभा का चुनाव लड़ा, जिसमें से 60 महिलाओं की जमानत जब्त हो गई थी.
साल 2007 में कुल 59,85,302 वोटर थे, जिसमें से 59.45% वोट डाले गए. इसमें 17 लाख 51 हजार 589 महिलाओं ने वोट डाले. इस साल कुल 56 महिलाओं ने विधानसभा का चुनाव लड़ा, जिसमें 42 महिलाओं की जमानत जब्त हुई.
साल 2012 में 63,77,330 वोटर्स थे, जिसमें से 66.17% वोटिंग हुई. इसमें 33,52,984 महिलाओं ने वोट डाले. इस चुनाव में 63 महिला प्रत्याशियों ने विधानसभा चुनाव लड़ा. जिसमें 47 महिलाओं की जमानत जब्त हुई.
साल 2017 में कुल 76,06,688 वोटर्स थे. जिसमें 64.72% लोगों ने वोटिंग की. इसमें 36,08,228 महिलाओं ने वोट डाले. राज्य में 62 महिलाओं ने विधानसभा चुनाव लड़ा. 42 की जमानत जब्त हुई.