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हिंदी दिवस विशेष: पद्मश्री जगूड़ी बोले- 'हिंदी बिन नहीं हिंदुस्तान की कल्पना'

हिंदी साहित्य जगत में अपनी अनोखी पहचान रखने वाले पद्मश्री 70 वर्षीय लीलाधर जगूड़ी ने Etv भारत से हिंदी दिवस पर खास बातचीत में कहा यह हिंदुस्तान की भाषा है, हिंदी ही हिंदुस्तान की पहचान है. उन्होंने कहा कि हिंदी बिन हिंदुस्तान की कल्पना नहीं की जा सकती.

leedhar jagudi
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Published : Sep 14, 2019, 4:10 PM IST

Updated : Sep 14, 2019, 5:08 PM IST

देहरादून: 14 सितंबर पूरे देश में हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है. इस मौके पर ईटीवी भारत आपको मिलाने जा रहा है एक ऐसी शख्सियत से जिन्होंने हिंदी साहित्य में अपने कार्य के लिये पद्मश्री सम्मान के अलावा कई पुरस्कार प्राप्त किए हैं. उत्तराखंड के टिहरी जनपद में जन्मे 70 वर्षीय लीलाधर जगूड़ी के नाम कई गद्य व काव्य संग्रह हैं.

पद्मश्री जगूड़ी बोले- 'हिंदी बिन नहीं हिंदुस्तान की कल्पना'.

भारतीयता से बनी है हिंदी
साहित्यकार लीलाधर जगूड़ी ने ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए बताया कि एक दौर वो भी था जब हिंदी को क्षेत्र विशेष से जोड़कर देखा जाता था, लेकिन आज हिंदी भाषा केवल अवधि और ब्रजभाषा का मिश्रण मात्र नहीं रह गई है बल्कि अब यह हिंदुस्तान की भाषा है, हिंदुस्तान की पहचान है.

हिंदी का देश की आजादी में था अहम योगदान
साहित्यकार लीलाधर जगूड़ी ने देश के इतिहास में हिंदी के भूमिका को बताते हुए कहा कि हिंदी की असल ताकत देश के स्वतंत्र आंदोलन में देखने को मिली, जहां खुद गुजरात से होने के बावजूद भी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने हिंदी भाषा को तवज्जो दी और इसकी सबसे बड़ी वजह थी कि हिंदी पूरे देश को जोड़ती थी.

मौजूदा दौर में हिंदी और अंग्रेजी के बीच चल रही जद्दोजहद को साहित्यकार लीलाधर जगूड़ी बिल्कुल गलत मानते हैं. उन्होंने कहा कि भाषाएं किसी दायरे में सीमित रहने वाली नहीं हैं. भाषा में शब्द भी यात्रा करते हैं और सहूलियत के हिसाब से वह अपनी जगह बनाते हैं. ऐसे में हमें भाषा को बंदिशों में रखने की जरूरत नहीं है और न ही किसी पर थोपने की जरूरत है.

उन्होंने कहा कि भाषा खुद अपनी जगह बनाती है बशर्ते भाषाओं के लिए केवल खिड़की ही नहीं बल्कि दरवाजे भी खुले होने चाहिए यानी भाषा को हम क्षेत्र और व्यक्ति विशेष न देकर उसे भाव से जोड़कर देखें.

पढ़ें- हिंदी दिवस विशेष: देवभूमि के इस लाल को मिली थी हिन्दी में डी.लिट की प्रथम उपाधि

हिंदी समझने वालों में कमी
जगूड़ी का मानना है कि हिंदी को गहराई से समझने वालों में जरूर थोड़ा कमी जरूर आई है लेकिन हिंदी ने अपना अस्तित्व नहीं खोया है. अंग्रेजी और हिंदी बोलने वालों के बीच अंतर हमारी उपनिवेशवादी मानसिक गुलामी को दर्शाता है.

खुद अंग्रेजी भाषा में बात करने के माहिर हिंदी साहित्यकार लीलाधर जगूड़ी ने कहा कि हिंदी बोलने वाले और अंग्रेजी बोलने वाले के बीच अंतर देखने वाली जो धारणा है वह उपनिवेशवादी है. उन्होंने कहा कि व्यक्ति की पहचान उसके विचारों से होनी चाहिए, भाषा केवल माध्यम है और माध्यम कभी भी किसी व्यक्ति के विचार और भाव में अंतर नहीं डालता है.

पढ़ें- हिंदी दिवस: देहरादून के युवाओं को कितना है हिंदी का ज्ञान, देखिए वीडियो

पीएम मोदी ने दिलाया ऊंचा दर्जा
पद्मश्री लीलाधर जगूड़ी ने इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ करते हुये कहा कि पीएम मोदी के हिंदी बोलने से भाषा को ऊंचा दर्जा मिला है. आज के दौर में हिंदी को अगर किसी ने सबसे ज्यादा तवज्जो दी है तो वह देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दी है. पीएम मोदी को देश के भीतर ही नहीं अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी कई बार हिंदी बोलते हुए देखा गया है. वह एक राजनेता होने के नाते जानते हैं कि किस तरह से वह अपने देश के लोगों की भावना तक पहुंच सकते हैं और हिंदी इसका एकमात्र सबसे बड़ा माध्यम है.

कौन हैं साहित्यकार लीलाधर जगूड़ी

  • पद्मश्री सम्मान व साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित प्रसिद्ध कवि व साहित्यकार लीलाधर जगूड़ी बीती एक जुलाई को 70 वसंत देख चुके हैं.
  • टिहरी गढ़वाल के धगड़ गांव में 1940 को जन्मे जगूड़ी का जीवन संघर्षों से भरा हुआ है.
  • एक आम परिवार में जन्मे लीलाधर जगूड़ी ने सेना में नौकरी करने से शुरुआत की थी, इसके बाद चौकीदारी का काम भी देखा.
  • साहित्यकार बनने तक जगूड़ी की यात्रा काफी संघर्षपूर्ण रही. इस सफर में लीलाधर जगूड़ी ने अपने 15 काव्य संग्रहों के साथ-साथ कई गद्य संग्रह भी लिखे, जिनमें उन्हें कई सुप्रसिद्ध रचनाओं के लिए सम्मानित किया गया.
  • लीलाधर जगूड़ी को वर्ष 2004 में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम द्वारा पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा गया.
  • उन्हें 1997 में केंद्रीय साहित्य अकादमी का सर्वोच्च पुरस्कार उनके काव्य खंड "अनुभव के आकाश में चांद" के लिए मिल चुका है.
  • साल 2018 में जगूड़ी द्वारा रचित सबसे लोकप्रिय काव्य खंड "जितने लोग उतने प्रेम" के लिए उन्हें व्यास सम्मान भी मिल चुका है.
  • इसके अलावा उनके काव्य खंड "भय भी शक्ति देता है" के लिए उन्हें पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा सतदल पुरस्कार भी दिया गया है.

देहरादून: 14 सितंबर पूरे देश में हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है. इस मौके पर ईटीवी भारत आपको मिलाने जा रहा है एक ऐसी शख्सियत से जिन्होंने हिंदी साहित्य में अपने कार्य के लिये पद्मश्री सम्मान के अलावा कई पुरस्कार प्राप्त किए हैं. उत्तराखंड के टिहरी जनपद में जन्मे 70 वर्षीय लीलाधर जगूड़ी के नाम कई गद्य व काव्य संग्रह हैं.

पद्मश्री जगूड़ी बोले- 'हिंदी बिन नहीं हिंदुस्तान की कल्पना'.

भारतीयता से बनी है हिंदी
साहित्यकार लीलाधर जगूड़ी ने ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए बताया कि एक दौर वो भी था जब हिंदी को क्षेत्र विशेष से जोड़कर देखा जाता था, लेकिन आज हिंदी भाषा केवल अवधि और ब्रजभाषा का मिश्रण मात्र नहीं रह गई है बल्कि अब यह हिंदुस्तान की भाषा है, हिंदुस्तान की पहचान है.

हिंदी का देश की आजादी में था अहम योगदान
साहित्यकार लीलाधर जगूड़ी ने देश के इतिहास में हिंदी के भूमिका को बताते हुए कहा कि हिंदी की असल ताकत देश के स्वतंत्र आंदोलन में देखने को मिली, जहां खुद गुजरात से होने के बावजूद भी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने हिंदी भाषा को तवज्जो दी और इसकी सबसे बड़ी वजह थी कि हिंदी पूरे देश को जोड़ती थी.

मौजूदा दौर में हिंदी और अंग्रेजी के बीच चल रही जद्दोजहद को साहित्यकार लीलाधर जगूड़ी बिल्कुल गलत मानते हैं. उन्होंने कहा कि भाषाएं किसी दायरे में सीमित रहने वाली नहीं हैं. भाषा में शब्द भी यात्रा करते हैं और सहूलियत के हिसाब से वह अपनी जगह बनाते हैं. ऐसे में हमें भाषा को बंदिशों में रखने की जरूरत नहीं है और न ही किसी पर थोपने की जरूरत है.

उन्होंने कहा कि भाषा खुद अपनी जगह बनाती है बशर्ते भाषाओं के लिए केवल खिड़की ही नहीं बल्कि दरवाजे भी खुले होने चाहिए यानी भाषा को हम क्षेत्र और व्यक्ति विशेष न देकर उसे भाव से जोड़कर देखें.

पढ़ें- हिंदी दिवस विशेष: देवभूमि के इस लाल को मिली थी हिन्दी में डी.लिट की प्रथम उपाधि

हिंदी समझने वालों में कमी
जगूड़ी का मानना है कि हिंदी को गहराई से समझने वालों में जरूर थोड़ा कमी जरूर आई है लेकिन हिंदी ने अपना अस्तित्व नहीं खोया है. अंग्रेजी और हिंदी बोलने वालों के बीच अंतर हमारी उपनिवेशवादी मानसिक गुलामी को दर्शाता है.

खुद अंग्रेजी भाषा में बात करने के माहिर हिंदी साहित्यकार लीलाधर जगूड़ी ने कहा कि हिंदी बोलने वाले और अंग्रेजी बोलने वाले के बीच अंतर देखने वाली जो धारणा है वह उपनिवेशवादी है. उन्होंने कहा कि व्यक्ति की पहचान उसके विचारों से होनी चाहिए, भाषा केवल माध्यम है और माध्यम कभी भी किसी व्यक्ति के विचार और भाव में अंतर नहीं डालता है.

पढ़ें- हिंदी दिवस: देहरादून के युवाओं को कितना है हिंदी का ज्ञान, देखिए वीडियो

पीएम मोदी ने दिलाया ऊंचा दर्जा
पद्मश्री लीलाधर जगूड़ी ने इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ करते हुये कहा कि पीएम मोदी के हिंदी बोलने से भाषा को ऊंचा दर्जा मिला है. आज के दौर में हिंदी को अगर किसी ने सबसे ज्यादा तवज्जो दी है तो वह देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दी है. पीएम मोदी को देश के भीतर ही नहीं अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी कई बार हिंदी बोलते हुए देखा गया है. वह एक राजनेता होने के नाते जानते हैं कि किस तरह से वह अपने देश के लोगों की भावना तक पहुंच सकते हैं और हिंदी इसका एकमात्र सबसे बड़ा माध्यम है.

कौन हैं साहित्यकार लीलाधर जगूड़ी

  • पद्मश्री सम्मान व साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित प्रसिद्ध कवि व साहित्यकार लीलाधर जगूड़ी बीती एक जुलाई को 70 वसंत देख चुके हैं.
  • टिहरी गढ़वाल के धगड़ गांव में 1940 को जन्मे जगूड़ी का जीवन संघर्षों से भरा हुआ है.
  • एक आम परिवार में जन्मे लीलाधर जगूड़ी ने सेना में नौकरी करने से शुरुआत की थी, इसके बाद चौकीदारी का काम भी देखा.
  • साहित्यकार बनने तक जगूड़ी की यात्रा काफी संघर्षपूर्ण रही. इस सफर में लीलाधर जगूड़ी ने अपने 15 काव्य संग्रहों के साथ-साथ कई गद्य संग्रह भी लिखे, जिनमें उन्हें कई सुप्रसिद्ध रचनाओं के लिए सम्मानित किया गया.
  • लीलाधर जगूड़ी को वर्ष 2004 में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम द्वारा पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा गया.
  • उन्हें 1997 में केंद्रीय साहित्य अकादमी का सर्वोच्च पुरस्कार उनके काव्य खंड "अनुभव के आकाश में चांद" के लिए मिल चुका है.
  • साल 2018 में जगूड़ी द्वारा रचित सबसे लोकप्रिय काव्य खंड "जितने लोग उतने प्रेम" के लिए उन्हें व्यास सम्मान भी मिल चुका है.
  • इसके अलावा उनके काव्य खंड "भय भी शक्ति देता है" के लिए उन्हें पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा सतदल पुरस्कार भी दिया गया है.
Intro:Note- इस ख़बर की फीड FTP में (uk_deh_02_hindi_divas_special_jagudi_pkg_7205800) नाम से हैं। साथ मे Feed Live U से भी भेजी गई है। एंकर- 14 सितंबर पूरे देश में हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस मौके पर ईटीवी भारत आपको मिलाने जा रहा है एक ऐसी शख्सियत से जिन्होंने हिंदी साहित्य में पदम श्री सम्मान के अलावा कई पुरस्कार प्राप्त किए हैं। उत्तराखंड के टिहरी जनपद में जन्मे 70 वर्षीय लीलाधर जगूड़ी अब तक गद्य संग्रहों के साथ-साथ कई काव्य संग्रह हिंदी साहित्य में समर्पित कर चुके हैं। हिंदी दिवस के मौके पर साहित्यकार लीलाधर जगूड़ी से हमने जाना है कि आज हिंदी हमारे जीवन में किस भूमिका में है और साहित्य इस समय हिंदी को किस नजरिए से देख रहा है देखिए पदम श्री लीलाधर जगूड़ी के साथ ईटीवी भारत की खास बातचीत।


Body:कौन है साहित्यकार लीलाधर जगूड़ी--- देश के पदमश्री सम्मान के अलावा साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत सर्वोच्च सम्मान से सम्मानित प्रसिद्ध कवि लीलाधर जगूड़ी बीती एक जुलाई को 70 साल के हो चुके हैं। उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल के धगड़ गांव में वर्ष 1940 को जन्म लेने वाले लीलाधर जगूड़ी का जीवन संघर्षों से भरा हुआ है। टेहरी गढ़वाल के दुर्गम क्षेत्र में मौजूद धगड़ गांव के एक मामूली घर में जन्मे लीलाधर जगूड़ी का जीवन सेना में नौकरी करने से शुरू होते हुए रात के चौकीदार से लेकर पदम श्री सम्मान से सम्मानित साहित्यकार तक संघर्षपूर्ण यात्रा रही। इस यात्रा में लीलाधर जगूड़ी ने अपने 15 काव्य संग्रह के साथ-साथ कई गद्य संग्रह भी लिखें जिनमें उन्हें कई सुप्रसिद्ध रचनाओं के लिए सम्मानित किया गया। लीलाधर जगूड़ी को वर्ष 2004 में उस समय के राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम द्वारा पदम श्री पुरस्कार से नवाजा गया तो वहीं इससे पहले उन्हें 1997 में केंद्रीय साहित्य अकादमी का सर्वोच्च पुरस्कार उनके काव्य खंड "अनुभव के आकाश में चांद" के लिए मिल चुका था। साहित्यकार लीलाधर जगूड़ी का इतिहास केवल पुराना नहीं हुआ बल्कि हाल ही में 2018 में उनके द्वारा हाल ही में रचित सबसे लोकप्रिय काव्य खंड "जितने लोग उतने प्रेम" के लिए व्यास सम्मान द्वारा भी नवाजा गया है। तो वहीं इसके अलावा उनके काव्य खंड "भय भी शक्ति देता है" के लिए उन्हें पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा सतदल पुरस्कार भी दिया गया हैं। अवधी और ब्रजभाषा के मिश्रण मात्र से नहीं बनी है हिंदी बनी है भारतीयता से---- साहित्यकार लीलाधर जगूड़ी ने ईटीवी से बातचीत करते हुए कहा कि वह भी एक दौर था जब हिंदी को क्षेत्र विशेष से जोड़कर देखा जाता था। लेकिन आज हिंदी भाषा केवल एक अवधी और ब्रजभाषा का मिश्रण मात्र नहीं रह गई है। बल्कि अब यह हिंदुस्तान की भाषा है, हिंदुस्तान की पहचान है। उन्होंने कहा कि पूरे देश में हिंदी अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग तरह की कही जाती थी लेकिन मौजूदा समय में हिंदी संपूर्ण राष्ट्र की एक संपर्क भाषा है और यह हमारी भारतीयता है। हिंदी का देश की आजादी में था अहम योगदान--- साहित्यकार लीलाधर जगूड़ी ने देश के इतिहास में हिंदी के भूमिका को बताते हुए कहा कि हिंदी की असल ताकत देश के स्वतंत्र आंदोलन में देखने को मिली जहां खुद गुजरात से होने के बावजूद भी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने हिंदी भाषा को तवज्जो दी और इसकी सबसे बड़ी वजह थी कि हिंदी पूरे देश को जोड़ती थी। उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी ने उस समय हिंदी कि इस ताकत को पहचाना और यही वजह है कि उस समय के तमाम आंदोलन तमाम तरह की स्वतंत्रा आंदोलन से संबंधित गतिविधियां हिंदी में की जाती थी जो कि पूरे राष्ट्र को जोड़ती थी। भाषा मैं शब्द भी करते हैं यात्रा, भाषा की समृद्धि के लिए केवल खिड़कियां नहीं बल्कि दरवाजे भी खुले होने चाहिए--- मौजूदा दौर में हिंदी और अंग्रेजी के बीच चल रही गुत्थम-गुत्था को साहित्यकार लीलाधर जगूड़ी बिल्कुल भी गलत मानते है। उन्होंने कहा कि भाषाएं किसी दायरे में सीमित रहने वाली चीज का नाम नहीं है। भाषा में शब्द भी यात्रा करते हैं और सहूलियत के हिसाब से वह अपनी जगह बनाते हैं। ऐसे में हमें भाषा को बंदिशों में रखने की जरूरत नहीं है और ना ही किसी पर थोपने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि भाषा खुद अपनी जगह बनाती है बशर्ते भाषाओं के लिए केवल खिड़की ही नहीं बल्कि दरवाजे भी खुले होने चाहिए यानी की भाषा को हम क्षेत्र और व्यक्ति विशेष न देकर उसे भाव से जोड़ कर देखें। इंटरनेट के इस दौर में भी हिंदी बना रही है जगह--- आज के इस दौर में जहां इंटरनेट के जरिए पूरी दुनिया उंगलियों पर में है और सूचनाओं का आदान-प्रदान बहुत तेज गति से हो रहा है इस दौर में हिंदी की जद्दोजहद भी जारी है। साहित्यकार लीलाधर जगूड़ी का कहना है कि जरूरत के हिसाब से भाषा अपनी जगह बना ही लेती है जिसका उदाहरण आज हमारे सामने है इंटरनेट के इस दौर में भी हिंदुस्तान में हिंदी क्षेत्र के अखबारों से लेकर मीडिया तक में देखा है। उन्होंने कहा कि हिंदुस्तान में राज करने वाले हर किसी के लिए हिंदी को नजरअंदाज करना मुश्किल है और इसकी सबसे बड़ी वजह है कि हिंदी हिंदुस्तान के लोगों पर लोगों के दिल पर राज करती है और आज इंटरनेट ने चाहे कितनी भी तरक्की कर ली हो लेकिन हिंदी भी पीछे पीछे तरक्की से दूर नहीं है हालांकि हिंदी को गहराई से समझने वालों में जरूर थोड़ा कमी जरूर आई है लेकिन हिंदी ने अपना अस्तित्व नहीं खोया है। अंग्रेजी और हिंदी बोलने वालों के बीच अंतर हमारी उपनिवेशवादी मानसिक गुलामी को दर्शाता है।--- खुद अंग्रेजी भाषा में बात करने के माहिर हिंदी साहित्यकार लीलाधर जगूड़ी ने कहा कि हिंदी बोलने वाले और अंग्रेजी बोलने वाले के बीच अंतर देखने वाली जो धारणा है वह उपनिवेशवादी है। उन्होंने कहा कि जो लोग इस तरह की मानसिकता रखते हैं वह लोग दिखाते हैं कि वह उपनिवेशवादी मानसिकता के आज भी गुलाम है। उन्होंने कहा कि व्यक्ति की पहचान उसके विचारों से होनी चाहिए, भाषा केवल माध्यम है और माध्यम कभी भी किसी व्यक्ति के विचार और भाव में अंतर नहीं डालता है । उन्होंने कहा कि हमारे संविधान में हिंदी को हमारी राष्ट्रभाषा बनाया है उसके बावजूद भी जो लोग अंग्रेजी बोलने वालों को अलग आईने से देखते हैं वह दिखाते हैं कि आज भी वह लोग देश 25 दिनों की अंग्रेजी भाषा वाली मानसिकता के गुलाम है। मोदी के हिंदी बोलने से हिंदी को मिला ऊंचा दर्जा--- आज के दौर में हिंदी को अगर किसी ने सबसे ज्यादा तवज्जो दी है तो वह है देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। पीएम मोदी को देश के भीतर ही नहीं अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी कई बार हिंदी बोलते हुए देखा गया है जो कि अपने आप में हिंदी प्रेम की एक ऐतिहासिक पहल है। साहित्यकार लीलाधर जगूड़ी का कहना है कि पीएम मोदी हिंदी की शक्ति को जानते हैं और वह एक राजनेता होने के नाते जानते हैं कि किस तरह से वह अपने देश के लोगों की भावना तक पहुंच सकते हैं और हिंदी इसका एकमात्र सबसे बड़ा माध्यम है जिसका की फायदा उन्हें देखने को भी मिलता है। आज की पीढ़ी और हिंदी का पवित्र संगम है अलंकृता-- साहित्यकार हिंदी को लेकर एक बहुत पवित्र और आदरणीय नजरिया रखते हैं तो वहीं ऐसे में आज की पीढ़ी हिंदी को लेकर क्या सोचती है इसको लेकर साहित्यकार लीलाधर जगूड़ी ने बताया कि हिंदी को हम चाहे कितना भी नजरअंदाज करें लेकिन इसके बिना हिंदुस्तान की कल्पना करना संभव नहीं है और जहां तक बात आज की पीढ़ी की है तो उन्होंने परिचय कराया अपनी पोती अलंकृता से जिसने बहुत छोटी सी उम्र में कई कविताएं लिखी है और अलंकृता का भाषा के प्रति अभी से बेहद रुचि दिखाती है कि साहित्यकार लीलाधर जगूड़ी ने किस तरह से हिंदी को संजोया है और उसे आगे भी बढ़ाया है। लीलाधर जगूड़ी जी खास बातचीत


Conclusion:
Last Updated : Sep 14, 2019, 5:08 PM IST
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