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देहरादून: 6000 से 11 एकड़ में सिमट गई बासमती की खेती, जानिए वजह - Global Warming News

किसी दौर में देहरादून जिले की 6000 एकड़ कृषि भूमि में बासमती की पैदावार हुआ करती थी. लेकिन समय के साथ यह मात्र 11 एकड़ कृषि भूमि में सिमट कर रह गई है. विशेषज्ञों के अनुसार, जनसंख्या वृद्धि और ग्लोबल वार्मिंग दो ऐसे बढ़े कारण हैं. जिसके चलते बासमती की खेती में इतनी भारी गिरावट आई है.

दून बासमती चावल न्यूज Global Warming News
दून बासमती की फसल.
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Published : Dec 10, 2019, 4:44 PM IST

Updated : Dec 10, 2019, 4:52 PM IST

देहरादून: बासमती चावल के लिए अलग पहचान रखने वाली दून नगरी अपनी ये पहचान खोती जा रही है. जब दून की अधिकतर जमीन में बासमती चावल की फसल लहलहाया करती थी. लेकिन बदलते मौसम के साथ दून घाटी से बासमती की खेती गायब होती जा रही है.

बता दें कि बीज प्रमाणीकरण कंपनियों की सर्वे रिपोर्ट के अनुसार साल 1981 तक देहरादून जिले में 6000 एकड़ कृषि भूमि में बासमती की पैदावार हुआ करती थी. लेकिन साल 1990 में यह घटकर 200 एकड़ रह गई. वहीं, साल 2010 के आते-आते यह केवल 55 एकड़ में सिमट कर रह गई है. जिसके बाद साल 2019 में मात्र 11 एकड़ कृषि भूमि में ही दून बासमती उगाई जा रही है. जिसमें टाइप थ्री दून बासमती की पैदावार काफी कम है.

देहरादून में सिमटती जा रही बासमती की खेती.

कृषि विशेषज्ञ एके सक्सेना ने बताया कि देहरादून से बासमती की खेती कम होने का एक बहुत बड़ा कारण ग्लोबल वार्मिंग है. बासमती की पैदावार के लिए 25 से 28 डिग्री सेल्सियस तक के निर्धारित तापमान की जरूरत है. लेकिन वर्तमान में घाटी का तापमान कई गुना बढ़ गया है. साथ ही बताया कि साल दर साल दून घाटी में बढ़ती जनसंख्या भी बासमती की पैदावार कम होने का एक कारण है. दरअसल, जनसंख्या बढ़ने के साथ ही कृषि भूमि घटती जा रही है. जिसके चलते बासमती की पैदावार काफी कम हो चुकी है.

ये भी पढ़े: शॉर्ट सर्किट से दुकान में लगी आग, बाजार में मची अफरा-तफरी

गौरतलब है कि हाल ही में गोविंद बल्लभ पंत कृषि विश्वविद्यालय पंतनगर के वैज्ञानिकों ने दून की प्रसिद्ध बासमती का जैविक प्रजनक बीज तैयार कर लिया है. साथ ही इस बीज को एक निजी कंपनी को भी उपलब्ध करा दिया है.

देहरादून: बासमती चावल के लिए अलग पहचान रखने वाली दून नगरी अपनी ये पहचान खोती जा रही है. जब दून की अधिकतर जमीन में बासमती चावल की फसल लहलहाया करती थी. लेकिन बदलते मौसम के साथ दून घाटी से बासमती की खेती गायब होती जा रही है.

बता दें कि बीज प्रमाणीकरण कंपनियों की सर्वे रिपोर्ट के अनुसार साल 1981 तक देहरादून जिले में 6000 एकड़ कृषि भूमि में बासमती की पैदावार हुआ करती थी. लेकिन साल 1990 में यह घटकर 200 एकड़ रह गई. वहीं, साल 2010 के आते-आते यह केवल 55 एकड़ में सिमट कर रह गई है. जिसके बाद साल 2019 में मात्र 11 एकड़ कृषि भूमि में ही दून बासमती उगाई जा रही है. जिसमें टाइप थ्री दून बासमती की पैदावार काफी कम है.

देहरादून में सिमटती जा रही बासमती की खेती.

कृषि विशेषज्ञ एके सक्सेना ने बताया कि देहरादून से बासमती की खेती कम होने का एक बहुत बड़ा कारण ग्लोबल वार्मिंग है. बासमती की पैदावार के लिए 25 से 28 डिग्री सेल्सियस तक के निर्धारित तापमान की जरूरत है. लेकिन वर्तमान में घाटी का तापमान कई गुना बढ़ गया है. साथ ही बताया कि साल दर साल दून घाटी में बढ़ती जनसंख्या भी बासमती की पैदावार कम होने का एक कारण है. दरअसल, जनसंख्या बढ़ने के साथ ही कृषि भूमि घटती जा रही है. जिसके चलते बासमती की पैदावार काफी कम हो चुकी है.

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गौरतलब है कि हाल ही में गोविंद बल्लभ पंत कृषि विश्वविद्यालय पंतनगर के वैज्ञानिकों ने दून की प्रसिद्ध बासमती का जैविक प्रजनक बीज तैयार कर लिया है. साथ ही इस बीज को एक निजी कंपनी को भी उपलब्ध करा दिया है.

Intro:देहरादून- दून के बासमती का नाम सुनते ही वह वक्त याद आ जाता है जब दून के बड़े-बड़े खेतों में बासमती चावल की महकती खेती लहलहाया करती थी । लेकिन आज स्थिति कुछ यह है की दून घाटी से ही दून बासमती कहीं खो गई है।

कृषि विशेषज्ञ ऐके सक्सेना बताते हैं कि आज देहरादून से गायब हो चुकी दून बासमती का एक बहुत बड़ा कारण ग्लोबल वार्मिंग भी है । दरअसल बासमती की पैदावार के लिए 25 से 28 डिग्री सेल्सियस तक का एक निर्धारित तापमान जरूरी है । लेकिन वर्तमान में जून माह में दून घाटी का तापमान इससे कई गुना ज्यादा ऊपर चला जाता है ।

वहीं दूसरी तरफ साल दर साल दून घाटी में बढ़ती जनसंख्या भी दून बासमती की पैदावार कम होने का एक बड़ा कारण है । दरअसल जनसंख्या बढ़ने के साथ ही कृषि भूमि घटती जा रही है जिसकी वजह से आज बासमती की पैदावार काफी कम हो चूकी है ।

गुरतलब है कि हालही में गोविंद बल्लभ पंत कृषि विश्वविद्यालय पंतनगर की और से दून बासमती का जैविक प्रजनक बीज तैयार कर लिया है । वहीं इस बीज को ओपन मार्केट में एक निजी कंपनी को भी उपलब्ध करवा दिया गया है ।






Body:गौरतलब है कि बीज प्रमाणीकरण कंपनियों की सर्वे रिपोर्ट के अनुसार साल 1981 तक देहरादून जिले में 6000 एकड़ कृषि भूमि में बासमती की पैदावार हुआ करती थी । लेकिन साल 1990 में यह घटकर 200 एकड़ रह गई । वही बात साल 2010 की करें तो साल 2010 आते-आते यह केवल 55 एकड़ में सिमट कर रह गई । वहीं अब यानी साल 2019 में मात्र 11 एकड़ कृषि भूमि में ही दून बासमती उगाई जा रही है। इसमें भी टाइप थ्री दून बासमती की पैदावार काफी कम है ।




Conclusion:
Last Updated : Dec 10, 2019, 4:52 PM IST
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