ETV Bharat / state

शिवालिक एलिफेंट कॉरिडोर डी-नोटिफाइड केस, सरकार बोली- वन विभाग से मिली NOC

मामले की सुनवाई मुख्य न्यायधीश आरएस चौहान व न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ में हुई थी. अब मामले की अगली सुनवाई 11 अगस्त को होगी.

Nainital High Court
Nainital High Court
author img

By

Published : Aug 6, 2021, 4:14 PM IST

Updated : Aug 6, 2021, 7:38 PM IST

नैनीताल: हाईकोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा उत्तराखंड में हाथियों का एकमात्र अभयारण्य शिवालिक एलिफेंट रिजर्व कॉरिडोर को डी-नोटिफाइड करने के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की. कोर्ट ने इस मामले में अगली सुनवाई के लिए 11 अगस्त की तिथि नियत की है. सुनवाई के दौरान सरकार द्वारा कोर्ट को बताया गया कि इस पर उन्हें वन विभाग से नो ऑब्जेक्शन (अनापत्ति प्रमाण पत्र) मिला हुआ है.

पिछली तारीख को सदस्य सचिव राज्य वन्य जीव बोर्ड जे. सुहाग व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में पेश हुए थे. उनसे कोर्ट ने पूछा था कि केंद्र सरकार व जैव विविधता पर्यावरण को संरक्षित करने के लिए क्या कदम उठा रही है? कोर्ट ने यह भी कहा कि क्या वहां पर प्रस्तावित एयरपोर्ट का विस्तार अन्य जगह की तरफ किया जा सकता है? कोर्ट ने सुहाग से यह भी पूछा था कि जो संस्थान वन्य जीवों के संरक्षक हैं वे ही ऐसा निर्णय कैसे ले सकते हैं?

पढ़ें- ध्वस्त किया जाएगा नीलगिरी एलिफेंट कॉरिडोर, जानिए क्या है मामला

मामले की सुनवाई मुख्य न्यायधीश आरएस चौहान व न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ में हुई. बता दें कि देहरादून निवासी रेनू पाल ने नैनीताल हाईकोर्ट ने जनहित याचिका दायर की थी. याचिका में उन्होंने कहा था कि 24 नवंबर 2020 को स्टेट वाइल्ड लाइफ बोर्ड की बैठक में देहरादून जौलीग्रांट एयरपोर्ट के विस्तार करने लिए शिवालिक एलिफेंट रिजर्व फॉरेस्ट को डी-नोटिफाइड करने का निर्णय लिया गया.

बैठक ने बताया गया था कि शिवालिक एलिफेंट रिजर्व के डी-नोटिफाइड नहीं करने से राज्य की कई महत्वपूर्ण परियोजनाएं प्रभावित हो रही हैं, लिहाजा इसे डी-नोटिफाइड करना अति आवश्यक है. इस नोटिफिकेशन को याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. कोर्ट ने सरकार के इस डी-नोटिफिकेशन के आदेश पर रोक लगा रखी है.

याचिकाकर्ता का यह भी कहना है कि रिजर्व शिवालिक एलीफेंट कॉरिडोर 2002 से रिजर्व एलिफेंट कॉरिडोर की श्रेणी में शामिल है, जो करीब 5405 स्क्वायर वर्ग किलोमीटर में फैला है. यह वन्य जीव बोर्ड द्वारा ही नोटिफाइड किया गया एरिया है. इसके बाद भी बोर्ड इसे डी-नोटिफाइड करने की अनुमति कैसे दे सकता है जबकि एलिफेंट इस एरिया से नेपाल तक जाते हैं.

क्या है मामला: शिवालिक एलिफेंट रिजर्व उत्तराखंड में हाथियों का एकमात्र अभ्यारण्य है. उत्तराखंड का ये क्षेत्र करीब पांच हजार वर्ग किलोमीटर का है, जहां एशियाई हाथियों की मौजूदगी है. 28 अक्टूबर 2002 को तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने अधिसूचना जारी कर इसे एलिफेंट रिजर्व घोषित किया था. प्रदेश के 17 वन प्रभागों में से 14 प्रभाग इस रिजर्व में शामिल हैं. प्रदेश सरकार के मुताबिक इस शिवालिक रिजर्व की अधिसूचना निरस्त करने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा. अधिकतर क्षेत्र अब भी संरक्षित वन क्षेत्र का हिस्सा है.

दरअसल, 24 नवंबर 2020 को तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की अध्यक्षता में स्टेट वाइल्ड लाइफ बोर्ड की एक बैठक हुई थी. बैठक में स्टेट वाइल्ड लाइफ बोर्ड ने एलिफेंट रिजर्व खत्म करने का प्रस्ताव पास कर दिया यानि एलिफेंट रिजर्व को डि-नोटिफाई कर दिया गया. ऐसा इसलिए भी किया गया क्योंकि इस जगह से तमाम बड़े प्रोजेक्ट होकर गुजरने थे. वहीं, जौलीग्रांट एयरपोर्ट के विस्तारीकरण के रास्ते में भी ये एलिफेंट रिजर्व आ रहा था.

क्या होता है नोटिफाई/डि-नोटिफाई करना: नोटिफाई करने का मतलब होता है कि किसी जमीन को सरकार द्वारा अपने अधिकार में लेना या आरक्षित कर लेना ताकि सरकारी निर्देश के मुताबिक ही उस जमीन पर काम हो सके. 2002 में कांग्रेस की सरकार ने यही किया. 5405 वर्ग किमी जमीन को एलिफेंट रिजर्व के लिए नोटिफाई कर दिया. अब 2020 में बीजेपी सरकार ने इस जमीन को डि-नोटिफाई कर दिया यानि कि इस जमीन पर विकास कार्यों के लिए इसे खुला छोड़ दिया गया.

नैनीताल: हाईकोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा उत्तराखंड में हाथियों का एकमात्र अभयारण्य शिवालिक एलिफेंट रिजर्व कॉरिडोर को डी-नोटिफाइड करने के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की. कोर्ट ने इस मामले में अगली सुनवाई के लिए 11 अगस्त की तिथि नियत की है. सुनवाई के दौरान सरकार द्वारा कोर्ट को बताया गया कि इस पर उन्हें वन विभाग से नो ऑब्जेक्शन (अनापत्ति प्रमाण पत्र) मिला हुआ है.

पिछली तारीख को सदस्य सचिव राज्य वन्य जीव बोर्ड जे. सुहाग व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में पेश हुए थे. उनसे कोर्ट ने पूछा था कि केंद्र सरकार व जैव विविधता पर्यावरण को संरक्षित करने के लिए क्या कदम उठा रही है? कोर्ट ने यह भी कहा कि क्या वहां पर प्रस्तावित एयरपोर्ट का विस्तार अन्य जगह की तरफ किया जा सकता है? कोर्ट ने सुहाग से यह भी पूछा था कि जो संस्थान वन्य जीवों के संरक्षक हैं वे ही ऐसा निर्णय कैसे ले सकते हैं?

पढ़ें- ध्वस्त किया जाएगा नीलगिरी एलिफेंट कॉरिडोर, जानिए क्या है मामला

मामले की सुनवाई मुख्य न्यायधीश आरएस चौहान व न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ में हुई. बता दें कि देहरादून निवासी रेनू पाल ने नैनीताल हाईकोर्ट ने जनहित याचिका दायर की थी. याचिका में उन्होंने कहा था कि 24 नवंबर 2020 को स्टेट वाइल्ड लाइफ बोर्ड की बैठक में देहरादून जौलीग्रांट एयरपोर्ट के विस्तार करने लिए शिवालिक एलिफेंट रिजर्व फॉरेस्ट को डी-नोटिफाइड करने का निर्णय लिया गया.

बैठक ने बताया गया था कि शिवालिक एलिफेंट रिजर्व के डी-नोटिफाइड नहीं करने से राज्य की कई महत्वपूर्ण परियोजनाएं प्रभावित हो रही हैं, लिहाजा इसे डी-नोटिफाइड करना अति आवश्यक है. इस नोटिफिकेशन को याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. कोर्ट ने सरकार के इस डी-नोटिफिकेशन के आदेश पर रोक लगा रखी है.

याचिकाकर्ता का यह भी कहना है कि रिजर्व शिवालिक एलीफेंट कॉरिडोर 2002 से रिजर्व एलिफेंट कॉरिडोर की श्रेणी में शामिल है, जो करीब 5405 स्क्वायर वर्ग किलोमीटर में फैला है. यह वन्य जीव बोर्ड द्वारा ही नोटिफाइड किया गया एरिया है. इसके बाद भी बोर्ड इसे डी-नोटिफाइड करने की अनुमति कैसे दे सकता है जबकि एलिफेंट इस एरिया से नेपाल तक जाते हैं.

क्या है मामला: शिवालिक एलिफेंट रिजर्व उत्तराखंड में हाथियों का एकमात्र अभ्यारण्य है. उत्तराखंड का ये क्षेत्र करीब पांच हजार वर्ग किलोमीटर का है, जहां एशियाई हाथियों की मौजूदगी है. 28 अक्टूबर 2002 को तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने अधिसूचना जारी कर इसे एलिफेंट रिजर्व घोषित किया था. प्रदेश के 17 वन प्रभागों में से 14 प्रभाग इस रिजर्व में शामिल हैं. प्रदेश सरकार के मुताबिक इस शिवालिक रिजर्व की अधिसूचना निरस्त करने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा. अधिकतर क्षेत्र अब भी संरक्षित वन क्षेत्र का हिस्सा है.

दरअसल, 24 नवंबर 2020 को तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की अध्यक्षता में स्टेट वाइल्ड लाइफ बोर्ड की एक बैठक हुई थी. बैठक में स्टेट वाइल्ड लाइफ बोर्ड ने एलिफेंट रिजर्व खत्म करने का प्रस्ताव पास कर दिया यानि एलिफेंट रिजर्व को डि-नोटिफाई कर दिया गया. ऐसा इसलिए भी किया गया क्योंकि इस जगह से तमाम बड़े प्रोजेक्ट होकर गुजरने थे. वहीं, जौलीग्रांट एयरपोर्ट के विस्तारीकरण के रास्ते में भी ये एलिफेंट रिजर्व आ रहा था.

क्या होता है नोटिफाई/डि-नोटिफाई करना: नोटिफाई करने का मतलब होता है कि किसी जमीन को सरकार द्वारा अपने अधिकार में लेना या आरक्षित कर लेना ताकि सरकारी निर्देश के मुताबिक ही उस जमीन पर काम हो सके. 2002 में कांग्रेस की सरकार ने यही किया. 5405 वर्ग किमी जमीन को एलिफेंट रिजर्व के लिए नोटिफाई कर दिया. अब 2020 में बीजेपी सरकार ने इस जमीन को डि-नोटिफाई कर दिया यानि कि इस जमीन पर विकास कार्यों के लिए इसे खुला छोड़ दिया गया.

Last Updated : Aug 6, 2021, 7:38 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.