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किसके पेट में अड़ीं हरदा के दावत की काफल की राजनैतिक गुठलियां ?

लॉकडाउन की वजह से हरीश रावत जनता के बीच नहीं जा पा रहे हैं. ऐसे में सोशल मीडिया पर ज्यादा समय बिता रहे हैं. अपनी पोस्ट से हरदा अपने विरोधियों को जवाब दे रहे हैं.

हरीश रावत
हरीश रावत
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Published : Apr 9, 2020, 11:51 AM IST

देहरादून: कोरोना वायरस ने लोगों की गति थाम ली है. लोग घरों में रहकर सोशल मीडिया पर ही ज्यादा सक्रिय हैं. उत्तराखंड के तेज-तर्रार नेता हरीश रावत भी सोशल मीडिया के माध्यम से ही लोगों तक अपनी बात पहुंचा रहे हैं. कोरोना को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत भी चिंता जता रहे हैं. इसके अलावा भी हरीश रावत बहुत कुछ कहते हैं. अपनी पोस्ट में हरीश रावत लिखते हैं...

'लॉकडाउन के दौरान पहाड़ी फलों की सबसे ज्यादा याद आ रही है. कोरोना वायरस के सम्मुख निरीह पड़ते इंसान को देख रहा हूं. विश्व मानचित्र में शक्तिशाली देशों के हालात पर भी मन उलझ रहा है. अपने देश की अर्थव्यवस्था, गरीब, मजदूर व मजबूर, सब पर मन चिंतन करता है. पार्टी ने असम का दायित्व सौंपा है. वहां की भी खोज-खबर लेता रहता हूँ. अपने पुराने दोस्तों की कुशलक्षेम पूछता हूं.'

पढ़ें- पहाड़ में कोरोना का कहर: तीन संदिग्ध मरीजों को किया गया आइसोलेट

काफल विक्रेताओं के लिए धड़क रहा हरदा का दिल

हरीश रावत ने कहा कि गांव के आस-पास व जंगल में काफल के दानों से पेड़ लदे पड़े होंगे. बचपन से आज तक मेरी काफल से अटूट मित्रता बनी हुई है. मैंने तो काफल पार्टियां भी देनी प्रारंभ कर दी थीं. दोस्तों के पेट में काफल की राजनैतिक गुठलियां अड़ गई. पार्टी देना छोड़ना पड़ा. काफल के छोटे भाई हिंसालु व किल्मोड़े की भी बहुत याद आ रही है. नाश हो इस मूये कोरोना का. इस बार इन दोस्तों से शायद ही भेंट होगी. इस समय मेरा मन काफल बेचने वालों के लिये धड़क रहा है. बड़ी कोशिशों से काफल 200 रुपए किलो बिकने लगा था, लेकिन इस बार काफल बेचने वालों पर कोरोना की काली नजर पड़ गई है.

सीएम त्रिवेंद्र पर टिप्पणी

हरीश रावत ने सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत को लेकर भी टिप्पणी की है. उन्होंने लिखा कि त्रिवेंद्र सिंह जी ने यदि मेरी तरह काफल खाये होते और तांबे के घड़े का पानी पिया होता, तो उनका दिल भी मेरी तरह काफल वालों के लिये धक-धक करता. ट्रंप, जिनपिंग, पुतिन और पीएम मोदी सभी शक्तिशाली गदाधारी छटपटा रहे हैं. लेकिन हरीश रावत काफल, बुरांस, किल्मोड़ा, केरूआ, गुड़, मडुवा, भट, नींबू और तांबे के बर्तनों का भजन करने में लगा पड़ा है. क्या करूं मेरी तो दशा ही निराली है.

मेरो मन अनत कहां सुख पावै, जैसे उड़ि जहाज कौ पंछी, पुनि जहाज पै आवै, मेरो मन अनत

देहरादून: कोरोना वायरस ने लोगों की गति थाम ली है. लोग घरों में रहकर सोशल मीडिया पर ही ज्यादा सक्रिय हैं. उत्तराखंड के तेज-तर्रार नेता हरीश रावत भी सोशल मीडिया के माध्यम से ही लोगों तक अपनी बात पहुंचा रहे हैं. कोरोना को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत भी चिंता जता रहे हैं. इसके अलावा भी हरीश रावत बहुत कुछ कहते हैं. अपनी पोस्ट में हरीश रावत लिखते हैं...

'लॉकडाउन के दौरान पहाड़ी फलों की सबसे ज्यादा याद आ रही है. कोरोना वायरस के सम्मुख निरीह पड़ते इंसान को देख रहा हूं. विश्व मानचित्र में शक्तिशाली देशों के हालात पर भी मन उलझ रहा है. अपने देश की अर्थव्यवस्था, गरीब, मजदूर व मजबूर, सब पर मन चिंतन करता है. पार्टी ने असम का दायित्व सौंपा है. वहां की भी खोज-खबर लेता रहता हूँ. अपने पुराने दोस्तों की कुशलक्षेम पूछता हूं.'

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काफल विक्रेताओं के लिए धड़क रहा हरदा का दिल

हरीश रावत ने कहा कि गांव के आस-पास व जंगल में काफल के दानों से पेड़ लदे पड़े होंगे. बचपन से आज तक मेरी काफल से अटूट मित्रता बनी हुई है. मैंने तो काफल पार्टियां भी देनी प्रारंभ कर दी थीं. दोस्तों के पेट में काफल की राजनैतिक गुठलियां अड़ गई. पार्टी देना छोड़ना पड़ा. काफल के छोटे भाई हिंसालु व किल्मोड़े की भी बहुत याद आ रही है. नाश हो इस मूये कोरोना का. इस बार इन दोस्तों से शायद ही भेंट होगी. इस समय मेरा मन काफल बेचने वालों के लिये धड़क रहा है. बड़ी कोशिशों से काफल 200 रुपए किलो बिकने लगा था, लेकिन इस बार काफल बेचने वालों पर कोरोना की काली नजर पड़ गई है.

सीएम त्रिवेंद्र पर टिप्पणी

हरीश रावत ने सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत को लेकर भी टिप्पणी की है. उन्होंने लिखा कि त्रिवेंद्र सिंह जी ने यदि मेरी तरह काफल खाये होते और तांबे के घड़े का पानी पिया होता, तो उनका दिल भी मेरी तरह काफल वालों के लिये धक-धक करता. ट्रंप, जिनपिंग, पुतिन और पीएम मोदी सभी शक्तिशाली गदाधारी छटपटा रहे हैं. लेकिन हरीश रावत काफल, बुरांस, किल्मोड़ा, केरूआ, गुड़, मडुवा, भट, नींबू और तांबे के बर्तनों का भजन करने में लगा पड़ा है. क्या करूं मेरी तो दशा ही निराली है.

मेरो मन अनत कहां सुख पावै, जैसे उड़ि जहाज कौ पंछी, पुनि जहाज पै आवै, मेरो मन अनत

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