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उत्तराखंड में सियासी समीकरण बदल सकते हैं हरक सिंह रावत, क्या दोहराएंगे इतिहास

विधानसभा चुनाव 2022 के नजदीक आते ही उत्तराखंड में सियासी समीकरण लगातार बदल रहे हैं. इन दिनों उत्तराखंड सरकार में मंत्री हरक सिंह रावत बीजेपी के लिए किसी पहेली से कम नहीं हैं. कयास लगाए जा रहे हैं कि हरक सिंह रावत बीजेपी को कोई बड़ा झटका दे सकते हैं.

Cabinet Minister Harak Singh Rawat
Cabinet Minister Harak Singh Rawat
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Published : Sep 9, 2021, 3:05 PM IST

Updated : Sep 9, 2021, 5:23 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड की राजनीति में इन दिनों हरक सिंह रावत ही छाए हुए हैं. हरक सिंह रावत के बगावती बयानों पर न केवल भाजपा बल्कि अन्य दलों की भी नजर है. दअरसल, अंदेशा जताया जा रहा है कि हरक सिंह रावत भाजपा को कोई बड़ा झटका देने के मूड में हैं. वैसे यह कोई कोरी कल्पना नहीं है, बल्कि कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत से जुड़ा वह इतिहास है, जो भविष्य में किसी बड़े राजनीतिक घटनाक्रम की तरफ इशारा कर रहा है.

दरअसल, बीते शनिवार को विधायक उमेश शर्मा काऊ और भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच हुई तू-तू मैं-मैं को लेकर उन्होंने कड़ी आपत्ति जताई है. साथ ही उन्होंने इसे कांग्रेस से बीजेपी में आए नेताओं के साथ बदसलूकी करार दिया है. बागियों के अपमान को लेकर वन मंत्री ने ईटीवी भारत पर बड़ी बेबाकी से अपनी बात रखी थी. हरक सिंह रावत ने कहा है कि कांग्रेस के बागी नेताओं को भाजपा छोड़ने के लिए प्रेशर बनाया जा रहा है. 2016 में कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हुए सभी नेताओं का सम्मान नहीं हो रहा है.

उत्तराखंड में सियासी समीकरण बदल सकते हैं हरक सिंह रावत.

इस बयान के बाद कयास लगाए जा रहे हैं कि हरक सिंह रावत चुनाव से पहले बीजेपी को बड़ा झटका दे सकते हैं. हालांकि, उनके अब तक के राजनीतिक इतिहास को लेकर भी एक बात साफ है कि उन्होंने अपना मंत्री पद का कार्यकाल कभी पूरा नहीं किया है.

कद्दावर नेता हरक सिंह रावत और उनका मंत्री पद एक अजीब से संयोग से गुजरता रहा है. उत्तराखंड के सबसे अनुभवी नेताओं में से एक हरक सिंह रावत कुछ ऐसी स्थितियों से दो-चार होते रहे हैं, जो उनके बुरे वक्त से भी जुड़ा है और उनकी सफलता से भी. दरअसल, हरक सिंह रावत के साथ उनके मंत्री पद को लेकर एक ऐसा इतिहास जुड़ा हुआ है, जिससे इन दिनों भारतीय जनता पार्टी भी घबराई हुई है.

बीजेपी का 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले इस इतिहास को देखकर घबराना लाजिमी भी है. दरअसल, हरक सिंह रावत उत्तर प्रदेश के समय से ही मंत्री पद संभालते रहे हैं. उत्तराखंड में मौजूदा नेताओं में देखें तो राज्य में मंत्री बनने का सबसे ज्यादा अनुभव फिलहाल उन्हीं को है. लेकिन इस अनुभव के साथ उनकी कुछ कड़वी यादें भी हैं, जो हरक सिंह रावत के मंत्री पद को लेकर कार्यकाल पूरा न करने से जुड़ी है.

4 सरकारों में मंत्री रहे हरक सिंह रावत: हरक सिंह रावत के अब तक के राजनीतिक सफर में देखें तो हरक 4 सरकारों में मंत्री रह चुके हैं. लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि अब तक इन चारों सरकारों में वह अपने मंत्री पद के कार्यकाल को कभी पूरा नहीं कर सके. बस उनका यही इतिहास और हरक सिंह रावत के बगावती तेवर के चलते बीजेपी की चिंता का सबब बने हुए हैं. जानिए कब-कब हरक सिंह रावत पूरा नहीं कर पाये अपना कार्यकाल.

कल्याण सिंह की सरकार में युवा मंत्री बनने का अनुभव: कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत अविभाजित उत्तर प्रदेश के समय साल 1991 में पौड़ी विधानसभा से चुनाव लड़कर विधायक बने. इस दौरान वह बीजेपी में थे और कल्याण सिंह सरकार में उन्हें सबसे युवा मंत्री बनने का मौका मिला था. इस दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने उन्हें पर्यटन राज्यमंत्री का जिम्मा सौंपा था. इसे संयोग कहें या कुछ और कि मंत्री बनने के बाद राम मंदिर आंदोलन के बीच बाबरी मस्जिद विध्वंस के कारण मुख्यमंत्री के इस्तीफे हो गया और हरक अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए.

पढ़ें- चुनावी मौसम में शुरू हुई सेंधमारी की सियासत, दलों ने किये दल-बदल के बड़े-बड़े दावे

हरक ने मनमुटाव के कारण BSP का दामन थामा: भाजपा से ही अपनी राजनीति की शुरुआत करने वाले हरक सिंह रावत ने मनमुटाव के कारण साल 1996 में भाजपा छोड़कर बसपा का दामन थाम लिया. इसके बाद मायावती ने उन्हें कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां भी दीं. लेकिन इसके बाद वे यहां भी ज्यादा समय तक नहीं ठहर सके और साल 1998 में उन्होंने कांग्रेस का हाथ थाम लिया. उत्तराखंड के अलग राज्य के रूप में स्थापित होने के बाद साल 2002 के पहले चुनाव में उन्होंने लैंसडाउन से चुनाव लड़ा और विधायक के रूप में विधानसभा पहुंचे.

एनडी तिवारी सरकार में भी रहे मंत्री: इस दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने उन्हें राजस्व, खाद्य और आपदा प्रबंधन जैसे मंत्रालयों में कैबिनेट मंत्री बनाया. उनके मंत्री बनने के बाद करीब 1 से डेढ़ साल में ही उन पर एक महिला के यौन उत्पीड़न के आरोप लगे और उन्हें अपना मंत्री पद त्यागना पड़ा. हालांकि, बाद में वे सीबीआई जांच के बाद आरोप मुक्त हुए.

विजय बहुगुणा की सरकार में भी अहम जिम्मेदारी: साल 2012 में फिर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार आई और विजय बहुगुणा के नेतृत्व वाली सरकार में उन्हें कृषि, चिकित्सा शिक्षा और सैनिक कल्याण विभाग का कैबिनेट मंत्री बनाया गया. इस बार कार्यकाल पूरा करने की उम्मीद थी लेकिन हरीश रावत से हुई अनबन के बाद उन्होंने 4 साल बाद यानी 2016 में अधूरे कार्यकाल में ही कांग्रेस को छोड़ भाजपा का दामन थाम लिया.

पढ़ें- दो बड़ी परियोजनाओं का होना है 'श्रीगणेश', PM मोदी को हरक सिंह रावत ने भेजा न्योता

अब 2017 से हरक सिंह रावत राज्य में भाजपा के विधायक के रूप में सरकार में ऊर्जा मंत्री हैं और उनके जिस तरह के बयान आ रहे हैं, उससे एक बार फिर यह कयास लगाए जाने लगे हैं कि क्या इस बार हरक सिंह रावत फिर इतिहास दोहराने जा रहे हैं. हरक सिंह रावत फिलहाल ऐसा नहीं करने की बात कह रहे हैं. लेकिन उनके इतिहास और राजनीति करने के तरीके से लगता है कि वह इस संयोग को बरकरार रख सकते हैं.

ईटीवी भारत से हरक सिंह रावत ने कहा कि अगर संयोग से उन्हें मंत्री पद से हटना पड़ता है, तो यह उनकी गलती नहीं है. कुछ घटनाएं ऐसी हो जाती हैं कि उन्हें मंत्री पद को त्यागना होता है.

विधायक उमेश शर्मा काऊ के सार्वजनिक विरोध के बाद हरक सिंह रावत ने जिस तरह से मोर्चा संभाला है, उसके बाद माना जा रहा है कि हरक सिंह रावत कुछ विधायकों के साथ लगातार बातचीत कर रहे हैं. स्थितियां नहीं सुधरने पर वह एक बार फिर कांग्रेस का दामन थाम सकते हैं. फिलहाल तो यह एक राजनीतिक कयासबाजी है.

देहरादून: उत्तराखंड की राजनीति में इन दिनों हरक सिंह रावत ही छाए हुए हैं. हरक सिंह रावत के बगावती बयानों पर न केवल भाजपा बल्कि अन्य दलों की भी नजर है. दअरसल, अंदेशा जताया जा रहा है कि हरक सिंह रावत भाजपा को कोई बड़ा झटका देने के मूड में हैं. वैसे यह कोई कोरी कल्पना नहीं है, बल्कि कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत से जुड़ा वह इतिहास है, जो भविष्य में किसी बड़े राजनीतिक घटनाक्रम की तरफ इशारा कर रहा है.

दरअसल, बीते शनिवार को विधायक उमेश शर्मा काऊ और भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच हुई तू-तू मैं-मैं को लेकर उन्होंने कड़ी आपत्ति जताई है. साथ ही उन्होंने इसे कांग्रेस से बीजेपी में आए नेताओं के साथ बदसलूकी करार दिया है. बागियों के अपमान को लेकर वन मंत्री ने ईटीवी भारत पर बड़ी बेबाकी से अपनी बात रखी थी. हरक सिंह रावत ने कहा है कि कांग्रेस के बागी नेताओं को भाजपा छोड़ने के लिए प्रेशर बनाया जा रहा है. 2016 में कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हुए सभी नेताओं का सम्मान नहीं हो रहा है.

उत्तराखंड में सियासी समीकरण बदल सकते हैं हरक सिंह रावत.

इस बयान के बाद कयास लगाए जा रहे हैं कि हरक सिंह रावत चुनाव से पहले बीजेपी को बड़ा झटका दे सकते हैं. हालांकि, उनके अब तक के राजनीतिक इतिहास को लेकर भी एक बात साफ है कि उन्होंने अपना मंत्री पद का कार्यकाल कभी पूरा नहीं किया है.

कद्दावर नेता हरक सिंह रावत और उनका मंत्री पद एक अजीब से संयोग से गुजरता रहा है. उत्तराखंड के सबसे अनुभवी नेताओं में से एक हरक सिंह रावत कुछ ऐसी स्थितियों से दो-चार होते रहे हैं, जो उनके बुरे वक्त से भी जुड़ा है और उनकी सफलता से भी. दरअसल, हरक सिंह रावत के साथ उनके मंत्री पद को लेकर एक ऐसा इतिहास जुड़ा हुआ है, जिससे इन दिनों भारतीय जनता पार्टी भी घबराई हुई है.

बीजेपी का 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले इस इतिहास को देखकर घबराना लाजिमी भी है. दरअसल, हरक सिंह रावत उत्तर प्रदेश के समय से ही मंत्री पद संभालते रहे हैं. उत्तराखंड में मौजूदा नेताओं में देखें तो राज्य में मंत्री बनने का सबसे ज्यादा अनुभव फिलहाल उन्हीं को है. लेकिन इस अनुभव के साथ उनकी कुछ कड़वी यादें भी हैं, जो हरक सिंह रावत के मंत्री पद को लेकर कार्यकाल पूरा न करने से जुड़ी है.

4 सरकारों में मंत्री रहे हरक सिंह रावत: हरक सिंह रावत के अब तक के राजनीतिक सफर में देखें तो हरक 4 सरकारों में मंत्री रह चुके हैं. लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि अब तक इन चारों सरकारों में वह अपने मंत्री पद के कार्यकाल को कभी पूरा नहीं कर सके. बस उनका यही इतिहास और हरक सिंह रावत के बगावती तेवर के चलते बीजेपी की चिंता का सबब बने हुए हैं. जानिए कब-कब हरक सिंह रावत पूरा नहीं कर पाये अपना कार्यकाल.

कल्याण सिंह की सरकार में युवा मंत्री बनने का अनुभव: कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत अविभाजित उत्तर प्रदेश के समय साल 1991 में पौड़ी विधानसभा से चुनाव लड़कर विधायक बने. इस दौरान वह बीजेपी में थे और कल्याण सिंह सरकार में उन्हें सबसे युवा मंत्री बनने का मौका मिला था. इस दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने उन्हें पर्यटन राज्यमंत्री का जिम्मा सौंपा था. इसे संयोग कहें या कुछ और कि मंत्री बनने के बाद राम मंदिर आंदोलन के बीच बाबरी मस्जिद विध्वंस के कारण मुख्यमंत्री के इस्तीफे हो गया और हरक अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए.

पढ़ें- चुनावी मौसम में शुरू हुई सेंधमारी की सियासत, दलों ने किये दल-बदल के बड़े-बड़े दावे

हरक ने मनमुटाव के कारण BSP का दामन थामा: भाजपा से ही अपनी राजनीति की शुरुआत करने वाले हरक सिंह रावत ने मनमुटाव के कारण साल 1996 में भाजपा छोड़कर बसपा का दामन थाम लिया. इसके बाद मायावती ने उन्हें कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां भी दीं. लेकिन इसके बाद वे यहां भी ज्यादा समय तक नहीं ठहर सके और साल 1998 में उन्होंने कांग्रेस का हाथ थाम लिया. उत्तराखंड के अलग राज्य के रूप में स्थापित होने के बाद साल 2002 के पहले चुनाव में उन्होंने लैंसडाउन से चुनाव लड़ा और विधायक के रूप में विधानसभा पहुंचे.

एनडी तिवारी सरकार में भी रहे मंत्री: इस दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने उन्हें राजस्व, खाद्य और आपदा प्रबंधन जैसे मंत्रालयों में कैबिनेट मंत्री बनाया. उनके मंत्री बनने के बाद करीब 1 से डेढ़ साल में ही उन पर एक महिला के यौन उत्पीड़न के आरोप लगे और उन्हें अपना मंत्री पद त्यागना पड़ा. हालांकि, बाद में वे सीबीआई जांच के बाद आरोप मुक्त हुए.

विजय बहुगुणा की सरकार में भी अहम जिम्मेदारी: साल 2012 में फिर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार आई और विजय बहुगुणा के नेतृत्व वाली सरकार में उन्हें कृषि, चिकित्सा शिक्षा और सैनिक कल्याण विभाग का कैबिनेट मंत्री बनाया गया. इस बार कार्यकाल पूरा करने की उम्मीद थी लेकिन हरीश रावत से हुई अनबन के बाद उन्होंने 4 साल बाद यानी 2016 में अधूरे कार्यकाल में ही कांग्रेस को छोड़ भाजपा का दामन थाम लिया.

पढ़ें- दो बड़ी परियोजनाओं का होना है 'श्रीगणेश', PM मोदी को हरक सिंह रावत ने भेजा न्योता

अब 2017 से हरक सिंह रावत राज्य में भाजपा के विधायक के रूप में सरकार में ऊर्जा मंत्री हैं और उनके जिस तरह के बयान आ रहे हैं, उससे एक बार फिर यह कयास लगाए जाने लगे हैं कि क्या इस बार हरक सिंह रावत फिर इतिहास दोहराने जा रहे हैं. हरक सिंह रावत फिलहाल ऐसा नहीं करने की बात कह रहे हैं. लेकिन उनके इतिहास और राजनीति करने के तरीके से लगता है कि वह इस संयोग को बरकरार रख सकते हैं.

ईटीवी भारत से हरक सिंह रावत ने कहा कि अगर संयोग से उन्हें मंत्री पद से हटना पड़ता है, तो यह उनकी गलती नहीं है. कुछ घटनाएं ऐसी हो जाती हैं कि उन्हें मंत्री पद को त्यागना होता है.

विधायक उमेश शर्मा काऊ के सार्वजनिक विरोध के बाद हरक सिंह रावत ने जिस तरह से मोर्चा संभाला है, उसके बाद माना जा रहा है कि हरक सिंह रावत कुछ विधायकों के साथ लगातार बातचीत कर रहे हैं. स्थितियां नहीं सुधरने पर वह एक बार फिर कांग्रेस का दामन थाम सकते हैं. फिलहाल तो यह एक राजनीतिक कयासबाजी है.

Last Updated : Sep 9, 2021, 5:23 PM IST
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