ETV Bharat / state

युवाओं के लिए घातक साबित हो रहा 'साइलेंट किलर' हैप्पी हाइपोक्सिया, जानिए क्या है - 'Silent killer' Happy hypoxia

उत्तराखंड के युवाओं के लिए हैप्पी हाइपोक्सिया घातक साबित हो रहा है. अधिकतर युवा जानकारी के अभाव और लापरवाही के चलते इसके शिकार हो रहे हैं.

'साइलेंट किलर' हैप्पी हाइपोक्सिया
'साइलेंट किलर' हैप्पी हाइपोक्सिया
author img

By

Published : May 11, 2021, 7:27 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड में कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर में 'साइलेंट किलर' हैप्पी हाइपोक्सिया से भी लोगों की मौत हो रही है. इसमें ज्यादातर संख्या युवाओं की है. कोरोना के लक्षण न दिखने और सही समय पर इलाज न मिलने के कारण ऐसे युवा आमतौर पर मौत का शिकार हो रहे हैं. दून मेडिकल कॉलेज चिकित्सालय और कोरोनेशन अस्पताल में भी इस तरह के मरीज सामने आ रहे हैं, जिनकी मौत की वजह हैप्पी हाइपोक्सिया से हो रही है.

हैप्पी हाइपोक्सिया कोरोना की जानलेवा स्थिति है और इसका पता मरीज को समय पर नहीं चल पाता है. विशेषज्ञ कहते हैं कि यह कहना अतिशयोक्ति होगी कि हैप्पी हाइपोक्सिया युवाओं में ज्यादा अटैक कर रहे हैं. क्योंकि इस संबंध में अभी तक कोई श्वेत पत्र प्रकाशित नहीं हुआ है. दून मेडिकल कॉलेज चिकित्सालय के वरिष्ठ कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. अमर उपाध्याय के मुताबिक इस बीमारी में ब्लड में ऑक्सीजन की कमी होने पर एक खास तरह की दिक्कत सांस के मरीजों को होने लगती है.

कोविड मरीजों के खून में ऑक्सीजन की कमी रहती है. लेकिन हीमोग्लोबिन का सेचेरेशन कम नहीं होता. ऐसा हीमोग्लोबिन कर्व के लेफ्ट लिफ्ट होने और वायरस का असर हीमोग्लोबिन पर पड़ने की वजह से होता है. हैप्पी हाइपोक्सिया की स्थिति में मरीज के शरीर में ऑक्सीजन की कमी होने लगती है. लेकिन दम घुटने का एहसास नहीं होता है.

पढ़ें: बच्चों को भी घेर रही कोरोना की दूसरी लहर, एक साल से कम उम्र के बच्चों को खतरा

उन्होंने बताया कि युवाओं की इम्यूनिटी यानी रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होती है और अन्य लोगों के मुकाबले उनकी सहनशक्ति भी ज्यादा होती है. ऐसे में ऑक्सीजन सेचुरेशन नगर 80-85 प्रतिशत तक भी आ जाए तो उन्हें कुछ महसूस नहीं होता है. लेकिन यदि यही कंडीशन बुजुर्गों के साथ हो जाए तो उन्हें काफी परेशानियां होने लगती हैं.

डॉक्टर अमर उपाध्याय के मुताबिक युवा इसी भ्रम में रहते कि उन्हें कोरोना नहीं होगा. अचानक उनका ऑक्सीजन स्तर घटता रहता है और उन्हें सांस लेने और अन्य कई तरीके की दिक्कत होने लगती हैं. उन्होंने कहा कि 60 साल से ऊपर के सीनियर सिटीजन समेत करीब 18 से 20 लाख लोगों को टीके लग चुके हैं. जबकि युवाओं का टीकाकरण अब आरंभ हुआ है. इसलिए अधिकतर केसों में हैप्पी हाइपोक्सिया युवाओं के लिए घातक साबित हो रहा है.

क्या है हैप्पी हाइपोक्सिया

डॉक्टरों का कहना है कि 'हैप्पी हाइपोक्सिया' ऐसी मेडिकल कंडीशन है जिसमें ऑक्सिजन लेवल 30 फीसदी तक या इससे भी ज्यादा गिर जाता है. शरीर के किसी विशेष हिस्से को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिलती है. बावजूद इसके मरीज को अपनी रोजाना की गतिविधियों के चलते इसका पता नहीं चलता और वो इसे नजरअंदाज कर जाते हैं. जिसका सीधा असर उनके स्वास्थ्य पर नजर आता है, ऐसे मरीजों को तुरंत ही ऑक्सीजन या फिर वेंटिलेटर सपोर्ट की आवश्यकता होती है.

इस बीमारी से कैसे बचें

कोरोना मरीजों को समय-समय पर शरीर के ऑक्सीजन लेवल की जांच करते रहनी चाहिए. खासकर युवाओं को इस गलतफहमी में नहीं रहना चाहिए कि सांस लेने में कोई दिक्कत महसूस नहीं हो रही है. ऐसे में ऑक्सीजन लेवल की जांच क्यों करें? इसलिए जरूरी है कि किसी भी तरह की समस्या होने पर चिकित्सक से अवश्य सलाह लें.

देहरादून: उत्तराखंड में कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर में 'साइलेंट किलर' हैप्पी हाइपोक्सिया से भी लोगों की मौत हो रही है. इसमें ज्यादातर संख्या युवाओं की है. कोरोना के लक्षण न दिखने और सही समय पर इलाज न मिलने के कारण ऐसे युवा आमतौर पर मौत का शिकार हो रहे हैं. दून मेडिकल कॉलेज चिकित्सालय और कोरोनेशन अस्पताल में भी इस तरह के मरीज सामने आ रहे हैं, जिनकी मौत की वजह हैप्पी हाइपोक्सिया से हो रही है.

हैप्पी हाइपोक्सिया कोरोना की जानलेवा स्थिति है और इसका पता मरीज को समय पर नहीं चल पाता है. विशेषज्ञ कहते हैं कि यह कहना अतिशयोक्ति होगी कि हैप्पी हाइपोक्सिया युवाओं में ज्यादा अटैक कर रहे हैं. क्योंकि इस संबंध में अभी तक कोई श्वेत पत्र प्रकाशित नहीं हुआ है. दून मेडिकल कॉलेज चिकित्सालय के वरिष्ठ कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. अमर उपाध्याय के मुताबिक इस बीमारी में ब्लड में ऑक्सीजन की कमी होने पर एक खास तरह की दिक्कत सांस के मरीजों को होने लगती है.

कोविड मरीजों के खून में ऑक्सीजन की कमी रहती है. लेकिन हीमोग्लोबिन का सेचेरेशन कम नहीं होता. ऐसा हीमोग्लोबिन कर्व के लेफ्ट लिफ्ट होने और वायरस का असर हीमोग्लोबिन पर पड़ने की वजह से होता है. हैप्पी हाइपोक्सिया की स्थिति में मरीज के शरीर में ऑक्सीजन की कमी होने लगती है. लेकिन दम घुटने का एहसास नहीं होता है.

पढ़ें: बच्चों को भी घेर रही कोरोना की दूसरी लहर, एक साल से कम उम्र के बच्चों को खतरा

उन्होंने बताया कि युवाओं की इम्यूनिटी यानी रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होती है और अन्य लोगों के मुकाबले उनकी सहनशक्ति भी ज्यादा होती है. ऐसे में ऑक्सीजन सेचुरेशन नगर 80-85 प्रतिशत तक भी आ जाए तो उन्हें कुछ महसूस नहीं होता है. लेकिन यदि यही कंडीशन बुजुर्गों के साथ हो जाए तो उन्हें काफी परेशानियां होने लगती हैं.

डॉक्टर अमर उपाध्याय के मुताबिक युवा इसी भ्रम में रहते कि उन्हें कोरोना नहीं होगा. अचानक उनका ऑक्सीजन स्तर घटता रहता है और उन्हें सांस लेने और अन्य कई तरीके की दिक्कत होने लगती हैं. उन्होंने कहा कि 60 साल से ऊपर के सीनियर सिटीजन समेत करीब 18 से 20 लाख लोगों को टीके लग चुके हैं. जबकि युवाओं का टीकाकरण अब आरंभ हुआ है. इसलिए अधिकतर केसों में हैप्पी हाइपोक्सिया युवाओं के लिए घातक साबित हो रहा है.

क्या है हैप्पी हाइपोक्सिया

डॉक्टरों का कहना है कि 'हैप्पी हाइपोक्सिया' ऐसी मेडिकल कंडीशन है जिसमें ऑक्सिजन लेवल 30 फीसदी तक या इससे भी ज्यादा गिर जाता है. शरीर के किसी विशेष हिस्से को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिलती है. बावजूद इसके मरीज को अपनी रोजाना की गतिविधियों के चलते इसका पता नहीं चलता और वो इसे नजरअंदाज कर जाते हैं. जिसका सीधा असर उनके स्वास्थ्य पर नजर आता है, ऐसे मरीजों को तुरंत ही ऑक्सीजन या फिर वेंटिलेटर सपोर्ट की आवश्यकता होती है.

इस बीमारी से कैसे बचें

कोरोना मरीजों को समय-समय पर शरीर के ऑक्सीजन लेवल की जांच करते रहनी चाहिए. खासकर युवाओं को इस गलतफहमी में नहीं रहना चाहिए कि सांस लेने में कोई दिक्कत महसूस नहीं हो रही है. ऐसे में ऑक्सीजन लेवल की जांच क्यों करें? इसलिए जरूरी है कि किसी भी तरह की समस्या होने पर चिकित्सक से अवश्य सलाह लें.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.