देहरादून: ग्रामीण क्षेत्रों में होने वाले विकास कार्यों को लेकर के अक्सर लोगों के मन में कई तरह की शंकाएं होती हैं. ये शंकाएं काम की गुणवत्ता, कार्यप्रणाली और विकास कार्यों से मानकों से जुड़ी होती हैं. इसका अलावा सरकारी विकास कार्यों में भ्रष्टाचार को लेकर सबसे ज्यादा शंका लोगों के मन में होती है. अक्सर लोगों को इन सवालों का जवाब नहीं मिल पाता है. या यूं कहें की उन्हें इसकी जानकारी नहीं होती की इस बारे में कहां से जानकारी जुटाई जाए, या कहां शिकायत की जाए. मगर अब सोशल ऑडिट के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में होने वाले विकास कार्यों की जांच खुद ग्रामीण कर सकते हैं. सोशल ऑडिट एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें गांव के लाभार्थी से ही गांव की विकास योजनाओं की रिपोर्ट ली जाती है. उसकी रिपोर्ट के बाद ही योजनाओं की पेमेंट या उससे जुड़े काम पूरे होते हैं.
क्या है सोशल ऑडिट: विकास कार्यों की जांच जब किसी सरकारी एजेंसी से ना करवा कर उस विकास कार्य के लाभार्थी से ही करवा दी जाए तो इसे सोशल ऑडिट कहा जाता है. यह खासतौर से ग्रामीण क्षेत्रों में मनरेगा सहित तमाम अन्य ऐसी योजनाएं जो कि ग्रामीणों के लिए केंद्र या फिर राज्य सरकार द्वारा चलाई जाती है उनके लिए सोशल ऑडिट का प्रावधान है. उत्तराखंड में उत्तराखंड सोशल ऑडिट अकाउंटेबिलिटी एंड ट्रांसपेरेंसी एजेंसी (USAATA) इस ऑडिट को करवाती है, जिसमें गांव के ही किसी एक व्यक्ति को ऑडिट के लिए अधिकृत किया जाता है.
सरकारी योजना के बजट का शत फीसदी धरातल पर ना पहुंचना बहुत पुरानी समस्या थी, जिसमें जनभागीदारी को शामिल करने के लिए सबसे पहले भारत सरकार द्वारा मनरेगा के कार्यों के लिए सोशल ऑडिट शुरू किया. वीके जोशी, निदेशक, USAATA
सोशल ऑडिट को बारीकी से समझने के लिए ईटीवी भारत की टीम देहरादून सहसपुर विधानसभा की शंकरपुर ग्राम पंचायत पहुंची. जहां हमने विकास कार्य और उसमें सोशल ऑडिट की भूमिका को जानने की कोशिश की.
कैसे होता है सोशल ऑडिट: ग्रामीण क्षेत्रों में मनरेगा सहित तमाम अन्य सरकारी योजनाओं की जांच के लिए होने वाले सोशल ऑडिट के लिए ग्रामीण क्षेत्र से ही एक व्यक्ति को चुना जाता है. सोशल ऑडिट के लिए पहली प्राथमिकता महिला को दी जाती है. ग्रामीण क्षेत्रों में मौजूद महिला स्वयं सहायता समूह के किसी सदस्य को USAATA सोशल ऑडिट के लिए चुनता है.
निदेशक वीके जोशी बताते हैं कि सोशल ऑडिट की मूल अवधारणा ग्रामीण क्षेत्रों के लाभार्थियों द्वारा ही सरकार की योजनाओं की जांच करवाना है. साथ ही उसकी गुणवत्ता के साथ-साथ मानकों को सोशल ऑडिट के जरिए आंका जाता है. ये सब आंकलन लाभार्थी ही करता है. उत्तराखंड में उत्तराखंड सोशल ऑडिट अकाउंटेबिलिटी एंड ट्रांसपेरेंसी एजेंसी (USAATA) सोशल ऑडिट के लिए गांव से ही किसी महिला को चुनता है. उसे सरकारी योजनाओं के मानकों की जांच करने से संबंधित प्रशिक्षण दिया जाता है. सोशल ऑडिट के लिए उसे पूरी तरह से तैयार किया जाता है.
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सोशल ऑडिटर को मिलता है भत्ता: देहरादून शंकरपुर ग्राम पंचायत की सोशल ऑडिटर नीलम हैं. नीलम स्वयं सहायता समूह की सदस्य भी हैं. उनसे हमने उनके काम के बारे में पूछा. जिसमें उन्होंने गांव में होने वाले तमाम विकास कार्यों और उसकी जांच के बारे में जानकारी दी. इन विकास कार्यों की जांच में वह विकास कार्यों से संबंधित मेजरमेंट बुक, विकास कार्य के मानकों को भी चेक करती हैं. उसके आधार वह रिपोर्ट तैयार करती हैं. ऑडिट एजेंसी द्वारा गांव से ही चुने जाने वाले इस सोशल ऑडिटर को ₹500 प्रति दिन के हिसाब से भत्ता भी देती है. इसके अलावा अन्य अलाउंस भी ऑडिटर को दिए जाते हैं.
क्यों जरूरी है सोशल ऑडिट, क्या हैं इसके फायदे: उत्तराखंड में उत्तराखंड सोशल ऑडिट अकाउंटेबिलिटी एंड ट्रांसपेरेंसी एजेंसी (USAATA) के निदेशक वीके जोशी बताते हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों के सर्वांगीण विकास और योजनाओं के क्रियान्वयन और गुणवत्ता की जांच करने और कार्यदाई संस्थाओं को पारदर्शी तरीके से योजनाओं को धरातल पर उतारने के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से सोशल ऑडिट शुरू किया गया है. यही नहीं सोशल ऑडिट विकास कार्यों के प्रति ग्रामीण क्षेत्रों में एक प्रतिस्पर्धा भी स्थापित करती है.
खुद देहरादून शंकरपुर ग्राम पंचायत की प्रधान बेबी रानी और उनके पति संजय कुमार ने बताया सोशल ऑडिट से उन्हें उनके कामों का फीडबैक मिलता है. शंकरपुर ग्राम पंचायत के प्रधान का कहना है कि जब उनका काम सोशल ऑडिट में बेहतर आता है तो उनके ऊपर किसी भी तरह की कोई अन्य आरोप की आशंका नहीं बचती. उन्होंने कहा सोशल ऑडिट के माध्यम से उनके प्रयासों और विकास कार्यों पर भी मुहर लगती है. साथ ही जो व्यक्ति काम नहीं करता है या फिर गड़बड़ी करता है उसकी भी पहचान हो जाती है. शंकरपुर ग्राम पंचायत के प्रधान परिवार का कहना है कि उनके द्वारा गांव में पंचायती भवन, तालाब, सामुदायिक भवन, आंगनबाड़ी सहित तमाम ऐसी विकास योजनाएं धरातल पर उतारी गई हैं. ये सभी आज सोशल ऑडिट के माध्यम से पारदर्शी साबित हुई हैं.
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उत्तराखंड में सोशल ऑडिट की स्थिति: उत्तराखंड में सोशल ऑडिट की मौजूदा स्थिति की बात करें तो साल 2018 में जब पहली दफा सोशल ऑडिट के नाम पर ग्रामीण क्षेत्रों में विकास कार्यों की जांच शुरू हुई तो USAATA के सामने कई बड़ी चुनौती आई. ग्रामीण क्षेत्रों में कार्यदायी एजेंसियों और जनप्रतिनिधियों द्वारा किए जाने वाले विकास कार्यों पर जांच हर किसी को नागवार गुजर रही थी. धीरे-धीरे अब राज्य में सोशल ऑडिट का माहौल बन रहा है. इसका असर विकास कार्यों पर भी दिख रहा है.
सोशल ऑडिट के आंकड़े
- पहले साल वर्ष 2017-18 में केवल 131 ग्राम पंचायतों का सोशल ऑडिट हो पाया.
- वर्ष 2018-19 में यह बढ़कर 610 ग्राम पंचायतों में हुआ.
- वर्ष 2019-20 में 2346 ग्राम पंचायतों का सोशल ऑडिट किया गया.
- वर्ष 2020-21 में 3000 से ज्यादा ग्राम पंचायतों में विकास कार्यों का सोशल ऑडिट किया गया.
- 2122 में तकरीबन 2200 ग्राम पंचायतों का सोशल ऑडिट हुआ.
- इस वर्ष 2022-23 में अब तक 1442 ग्राम पंचायतों में सोशल ऑडिट हो चुका है.
- इन 1442 ग्राम पंचायतों में पिछले 3 सालों के भी विकास कार्यों का सोशल ऑडिट किया गया है.
क्यों पड़ी सोशल ऑडिट की जरूरत? समय-समय पर कई सरकारों पर विकासकार्यों में भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं. आरोप लगे की सरकार द्वारा चलाई जाने वाली योजनाओं के ₹1 का 10 पैसा ही लाभार्थी तक पहुंच पाता है. सरकार में बैठे तमाम अधिकारी और नेता भी इस सिस्टम से परेशान थे. किस तरह से एक स्वस्थ पारदर्शी सिस्टम बनाया जाए इसको लेकर के गहन मंथन के बाद सोशल ऑडिट के कांसेप्ट को लाया गया.
दरअसल, जांचें अक्सर विभागीय होती हैं. लेकिन, जो कार्यदाई संस्था काम कर रही है या फिर सिस्टम में ही मौजूद लोगों द्वारा अगर गड़बड़ी की जा रही है तो उनकी जांच भी अगर सिस्टम करेगा तो उसमें पारदर्शिता पर सवालिया निशान खड़े होते थे. लिहाजा पहली दफा वर्ष 2011 में केंद्र सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों में होने वाले मनरेगा के कार्यो के लिए सोशल ऑडिट कॉन्सेप्ट को इंट्रोड्यूस किया.
सोशल ऑडिट के बाद इसके परिणाम भी बेहद चौंकाने वाले थे. केवल उत्तराखंड में ही अब तक कुल 68483 गड़बड़ियां पाई गई. यह गड़बड़ियां छोटी-मोटी गड़बड़ियों से लेकर के गंभीर वित्तीय अनियमितताओं वाली भी थी. धीरे-धीरे इन गड़बड़ियों में कमी आ रही है. शंकरपुर ग्राम पंचायत में ग्रामीणों ने भी इसकी पुष्टि की है. पहले जनप्रतिनिधियों के ऊपर किसी भी तरह की लगाम नहीं होती थी, लिहाजा विकास कार्य ठप्प रहते थे, लेकिन अब जैसे-जैसे शिकंजा कस रहा है विकास कार्य रफ्तार से हो रहे हैं.
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सोशल ऑडिट इतना कारगर की विभागों ने दिखाई रुचि: USAATA निदेशक वीके जोशी बताते हैं कि सोशल ऑडिट कांसेप्ट विकास योजना में पारदर्शिता और गुणवत्ता को बढ़ाने की दिशा में एक बेहतर कदम साबित हुआ है. उन्होंने कहा इस थर्ड पार्टी ऑडिट के प्रति आप सरकार की अन्य योजनाओं में भी ऑडिट के लिए विभाग रुचि दिखा रहे हैं. निदेशक वीके जोशी बताते हैं कि सोशल ऑडिट के अच्छे रिस्पॉन्स को देखते हुए बाकी अन्य विभाग भी अपनी योजनाओं में ऑडिट के लिए सोशल ऑडिट की तरफ रुख कर रहे हैं.
उन्होंने बताया यह योजना केवल मनरेगा के कामों तक सीमित नहीं रह गई है बल्कि अब शिक्षा विभाग की मिड डे मील योजना, नेशनल हेल्थ स्कीम और प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना का भी सोशल ऑडिट किया जा रहा है. ऑडिट एजेंसी से मिली जानकारी के अनुसार उत्तराखंड में अब तक 460 के करीब स्कूलों में मिड डे मील योजनाओं का सोशल ऑडिट किया जा चुका है. तकरीबन 100 मेडिकल सेंटर्स में नेशनल हेल्थ स्कीम का ऑडिट किया जा चुका है. 1000 प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजनाओं का भी अब तक सोशल आडिट किया जा चुका है.