देहरादूनः मशहूर शायर डॉ. राहत इंदौरी के निधन पर उत्तराखंड में भी शोक की लहर है. राहत इंदौरी मुशायरों और महफिलों के लिये कई दफा देहरादून आए थे. आखिरी बार 15 अप्रैल को ई-कवि सम्मेलन के रूप में आयोजित ग्राफिक एरा की सालाना महफिल में डॉ. राहत इंदौरी ने 'रोज तारों की नुमाइश में खलल पड़ता है, चांद पागल है अंधेरे में निकल पड़ता है..' सुनाकर दुनिया भर में उनके चाहने वाले श्रोताओं पर अपने शब्दों और अंदाज का जादू चलाया. उन्होंने ई-कवि सम्मेलन में कई शेर सुनाए थे. कोरोना के कारण इस बार ई-सम्मेलन रखा गया था.
ग्राफिक एरा एजुकेशनल ग्रुप के अध्यक्ष डॉ. कमल घनशाला ने शोक व्यक्त हुए कहा कि उन्हें ग्राफिक एरा बहुत भाता था. वर्ष 2018 में उन्हें ग्राफिक एरा काव्य गौरव सम्मान से भी नवाजा गया था. कोरोना काल में डॉ. राहत इंदौरी ने ग्राफिक एरा के ई-कवि सम्मेलन में शामिल होकर लाखों लोगों को भावमुग्ध कर दिया था. बता दें कि राहत इंदौरी कोरोना संक्रमित थे. उनकी हृदय गति रुकने से मौत हो गई.
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इससे पहले वर्ष 2018 में ग्राफिक एरा काव्य गौरव सम्मान की घोषणा से पहले डॉ. राहत इंदौरी ने जमकर तालियां बटोरी थीं. जोरदार करतल ध्वनि के बीच फरमाइशें होती रही और राहत साहब बार-बार माइक संभालते रहे. उन्होंने किसी को निराश नहीं किया और हर फरमाइश पर कुछ अलग सुनाया. इंदौरी साहब ने देश के मिजाज को अलग अंदाज में पेश किया, 'हम अपनी जान के दुश्मन को अपनी जान कहते हैं, मोहब्बत की इसी मिट्टी को हिंदुस्तान कहते हैं, फिर उसके बाद चाहे ये जुबान कटती है... कट जाए, हमने जो कुछ भी कहना है, एलाल ऐलान कहते हैं'.
राहत साहब को देहरादून से काफी लगाव था. उनका यूं चले जाना अदब की एक अपूरणीय क्षति है.