ऋषिकेश: उत्तराखंड का कोई भी सेना का जवान जब शहीद होता है तब सरकार उनके परिजनों को मुआवजा और ख्याल रखने का आश्वासन देती है. लेकिन सरकार अपने बातों पर कितना खड़ा उतरती है. ये देखने लायक है.
दरअसल, एक वर्ष पहले 13 अक्टूबर धनतेरस के दिन ऋषिकेश स्थित गंगा नगर निवासी जवान राकेश डोभाल जम्मू-कश्मीर के पुंछ सेक्टर में दुश्मनों से लोहा लेते हुए शहीद हो गए थे. उनके पार्थिव शरीर के ऋषिकेश पहुंचने पर तमाम राजनीतिक दलों के नेताओं सहित राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत भी अपनी शोक संवेदना लेकर शहीद के घर पहुंचे थे. मौके पर त्रिवेंद्र ने घोषणा करते हुए कहा था कि शहीद के परिजनों का पूरा ख्याल रखा जाएगा. शहीद परिवार से एक सदस्यों को सरकारी नौकरी दी जाएगी.
इस घोषणा के बाद शहीद के परिजनों को उम्मीद थी कि जल्दी ही सरकार की तरफ से यह घोषणा पूरी की जाएगी. लेकिन घोषणा करने के बाद सरकार ने पलटकर शहीद के परिजनों की सुध तक नहीं ली. ऐसे में परिजन खुद को असहाय महसूस कर रहे हैं.
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शहीद राकेश डोभाल की माता विमला का कहना है कि घर का गुजारा तो उनके दो बेटे चला रहे हैं. मगर दोनों ही बेटे शहर से बाहर रहते हैं. इसलिए सारी जिम्मेदारी इस बुजुर्ग कंधों पर आन पड़ी है. सरकार ने शहीद बेटे की चिता शांत होने के बाद से कोई सुध नहीं ली है.
तत्कालीन मुख्यमंत्री ने नौकरी देने की घोषणा की थी उस पर भी अभी तक कोई अमल नहीं हुआ है. ऐसे में सरकार की कथनी और करनी का फर्क साफ दिखाई दे रहा है. जिस बेटे ने देश की आन बान और शान के लिए अपनी जान की बाजी लगा दी शहीद के परिजन किस अवस्था में रहने को मजबूर हैं. यह जानना भी सरकार मुनासिब नहीं समझ रही है.
वहीं, सरकार के शहीद परिवार से किये वादों पर विपक्ष भी सरकार पर जमकर निशाना साध रही है. विपक्ष का कहना है कि सरकार की कथनी और करनी में फर्क है या सिर्फ शहीदों और सैनिकों के नाम पर वोट की राजनीति करते हैं.