देहरादून: हरीश रावत उस राजनीतिज्ञ का नाम है जो जब कुछ भी नहीं करते तो भी चर्चा में रहना जानते हैं. इन दिनों कांग्रेस में नेता प्रतिपक्ष और प्रदेश अध्यक्ष को लेकर खींचतान चल रही है. दिल्ली दरबार में छोटे-बड़े नेता रोज हाजिरी लगा रहे हैं. ऐसे में हरदा ने अलग ही तराना छेड़ दिया है.
हरदा ने अपनी साथ घटी दो घटनाओं को शीर्षक दिया है 'संकल्प की डोर'. हरदा लिखते हैं- 'मैंने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के रूप में 1 फरवरी 2014, शनिवार को शाम 5 बजे शपथ ली. पंडित जी द्वारा शपथ हेतु निर्धारित समय में, मैं शपथ नहीं ले पाया. दिन भर राजनैतिक घटनाक्रम ऐसा उलझा कि सायंकाल ही शपथ हो पाई.'
-
#संकल्प_की_डोर
— Harish Rawat (@harishrawatcmuk) July 1, 2021 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data="
व्यक्ति के जीवन में कुछ तिथियां व समय अत्यधिक महत्वपूर्ण हो जाते हैं, जिसको वो भूलना नहीं चाहता है। कुछ ऐसे घटनाक्रम समय विशेष में घटित होते हैं, जिसका व्यक्ति के #जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। मेरे जीवन में ऐसे बहुत सारे
1/2 pic.twitter.com/whXJte0oxK
">#संकल्प_की_डोर
— Harish Rawat (@harishrawatcmuk) July 1, 2021
व्यक्ति के जीवन में कुछ तिथियां व समय अत्यधिक महत्वपूर्ण हो जाते हैं, जिसको वो भूलना नहीं चाहता है। कुछ ऐसे घटनाक्रम समय विशेष में घटित होते हैं, जिसका व्यक्ति के #जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। मेरे जीवन में ऐसे बहुत सारे
1/2 pic.twitter.com/whXJte0oxK#संकल्प_की_डोर
— Harish Rawat (@harishrawatcmuk) July 1, 2021
व्यक्ति के जीवन में कुछ तिथियां व समय अत्यधिक महत्वपूर्ण हो जाते हैं, जिसको वो भूलना नहीं चाहता है। कुछ ऐसे घटनाक्रम समय विशेष में घटित होते हैं, जिसका व्यक्ति के #जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। मेरे जीवन में ऐसे बहुत सारे
1/2 pic.twitter.com/whXJte0oxK
हरदा आगे लिखते हैं- 'मुख्यमंत्री के रूप में जीवन का क्रम बहुत व्यवस्थित ढंग से चल रहा था. चुनौतियों का मुझे अनुमान था और मैं उनका अपने तरीके से निष्पादन भी कर रहा था. दिनांक 6 फरवरी 2014 को हमने वार्षिक बजट प्रस्तुत किया. हमारा बजट अपने आप में, एक आपदाग्रस्त राज्य के लिए स्फूर्ति पैदा करने वाला बजट था. मैं आपदा के बाद चीजों को ढर्रे पर आता देखकर बहुत खुश था. राज्य की व्यवस्था विशेषत: अर्थव्यवस्था पटरी पर लौट रही थी. इसी दौरान मुझे विधानसभा का चुनाव लड़ना भी आवश्यक था. मैं डोईवाला से चुनाव लड़ना चाहता था. सोमेश्वर के लिए भी हम उम्मीदार का चयन कर चुके थे.'
यहां से हरीश रावत की कहानी में रोचकता बढ़ जाती है. वो लिखते हैं- 'धारचूला के विधायक हरीश धामी जी ने गैरसैंण में हुए विधानसभा सत्र के दौरान विधानसभा में अपनी सदस्यता से त्यागपत्र की घोषणा कर दी. स्पीकर महोदय ने उसको स्वीकार कर लिया. जानकारी होने पर मैं हड़बड़ाहट में विधानसभा पहुंचा. तब तक मेरे साथियों ने आपसी विमर्श से सब कुछ तय कर लिया था. मेरे सामने धारचूला से चुनाव लड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं रह गया था.'
आगे हरदा जो लिखते हैं वो उनके साथ दिल्ली के लिए चुनाव आयोग से मिलने जाते समय हेलीकॉप्टर में हुआ हादसा है. खराब मौसम के कारण हेलीकॉप्टर ने बहुत हिचकोले खाए. हरीश रावत ने लिखा कि कैसे उनका सिर हेलीकॉप्टर की छत से टकराया और असहनीय पीड़ा में वो दिल्ली चुनाव आयोग से मिलने पहुंचे. कैसे चुनाव आयोग ने उन्हें तत्काल एम्स जाने की सलाह दी.
ये भी पढ़िए: हरदा ने CM रहते तोड़े हवाई यात्रा के रिकॉर्ड, 5 महीने में इतनी बार हरिद्वार के लिए भरी उड़ान
हरीश रावत ने इसके बाद उनके इलाज और एम्स में बिताए गए समय का जिक्र किया है. कैसे वो अस्पताल के बेड से ही सरकारी काम निपटा रहे थे. कैसे वो अनिवार्य रूप से की जाने वाली पूजा-पाठ बिस्तर पर लेटे-लेटे ही कर रहे थे. डॉक्टरों ने जब उनके सामने दो विकल्प रखे कि वो अपना इलाज एम्स में ही कराना चाहेंगे या अमेरिका जाना चाहेंगे. हरदा लिखते हैं उन्होंने एम्स में ही इलाज कराना उचित समझा.
उत्तराखंड में आए राजनीतिक भूचाल के बीच हरदा की ये कहानी लोगों को उनके द्वारा झेले गए कष्ट के बारे में तो बताएगी ही साथ ही उनके चेहरे पर मुस्कान भी लाएगी कि हरदा राजनीति के कठिन समय में भी उसे हल्के-फुल्के अंदाज में ही लेना जानते हैं.