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जोशीमठ आपदा: ठंड के मौसम में नहीं टूटते हैं ग्लेशियर, वैज्ञानिकों ने जताई चिंता

वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के डायरेक्टर कालाचंद साईं ने जोशीमठ में ग्लेशियर के टूटने पर चिंता जाहिर की है. उन्होंने कहा है कि अभी तक की स्टडी में इस क्षेत्र में लेक की जानकारी नहीं है. ऐसे में यह आपदा कैसे आई है. इसकी सच्चाई जानने के लिए सोमवार को वैज्ञानिकों की दो टीमें रवाना होंगी.

Chamoli Glacier Disaster
Chamoli Glacier Disaster
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Published : Feb 7, 2021, 7:32 PM IST

देहरादून: चमोली जिले के जोशीमठ में आई आपदा के वजह की स्थिति अभी स्पष्ट नहीं हो पाई है, लेकिन वैज्ञानिकों की प्राथमिक स्टडी के अनुसार ग्लेशियर का कोई टुकड़ा टूटने की वजह से आपदा आने की संभावना है. हालांकि, जोशीमठ में जो आपदा आई है वह साल 2013 में केदारघाटी में आई आपदा से बिल्कुल अलग है. वैज्ञानिकों के अनुसार जोशीमठ में आपदा आने के कई कारण हो सकते हैं. इस क्षेत्र में पहले की गई स्टडी के मुताबिक फिलहाल वहां ऐसा ग्लेशियर मौजूद नहीं है, जो टूट सकता हो और ऐसी कोई लेक भी मौजूद नहीं है.

ईटीवी भारत से एक्सक्लूसिव बातचीत में वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के डायरेक्टर कालाचंद साईं ने बताया कि अभी तक जो जानकारी मिली है, उसके अनुसार उस क्षेत्र में कोई लेक की जानकारी नहीं मिल पाई है. इसके साथ ही उत्तराखंड रीजन में सार्स टाइप ग्लेशियर का पता नहीं चला है. लिहाजा, जोशीमठ में जो आपदा आयी है उसको ग्लेशियर लेक रिलेटेड फिनोमिना और ग्लेशियर सार्स रिलेटेड फिनोमिना को अभी जोड़ नहीं सकते हैं. इस क्षेत्र में आपदा के आने का कारण क्या है ? इसकी जानकारी के लिए सोमवार को वैज्ञानिकों की 2 टीम भेजी जा रही हैं, जिसके बाद सटीक जानकारी मिल पाएगी.

Chamoli Glacier Disaster
वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी.

ग्लेशियर का कोई टुकड़ा टूटने से आई आपदा- कालाचंद साईं

डायरेक्टर ने बताया कि मौजूदा स्थिति को देखकर यही लगता है कि ग्लेशियर का कोई टुकड़ा टूटने की वजह से आपदा आयी है, लेकिन इस आपदा के आने का वास्तविक वजह वैज्ञानिकों के स्टडी के बाद ही पता चल पाएगी. साथ ही बताया कि ठंड के मौसम में ग्लेशियर के टूटने की घटना नहीं होती है, बल्कि ऐसी घटनाएं आम तौर पर गर्मियों के मौसम में या फिर बादल फटने की घटना होने की वजह से ही होतीं हैं.

चमोली आपदा साल 2013 की आपदा से अलग

डायरेक्टर कालाचंद साईं ने बताया कि हर तरह के ग्लेशियर नहीं टूटते हैं, बल्कि एक स्पेशल टाइप का जो ग्लेशियर यानी सार्स ग्लेशियर के टूटने की संभावना अधिक रहती है, लेकिन अभी तक जो स्टडी की गई है. उस स्टडी के अनुसार उत्तराखंड के इस रीजन में ऐसे ग्लेशियर मौजूद नहीं है. क्योंकि साल 2013 में जो आपदा आई थी. उस आपदा की वजह केदार घाटी में बादल फटने की वजह से चोराबारी झील टूट गई थी. चमोली में आपदा की स्थिति साल 2013 में आई आपदा से काफी अलग है.

ग्लेशियर टूटने पर वैज्ञानिकों के जताई चिंता.

ऐसी घटनाएं रात में होने से होती है ज्यादा तबाही

उन्होंने बताया कि ग्लेशियर उच्च हिमालई क्षेत्रों में पाए जाते हैं. जहां का तापमान माइनस डिग्री सेल्सियस में होता है. अगर ग्लेशियर में बनी किसी लेक से अगर पानी नीचे आता है तो बहुत ही तेजी से आएगा. ऐसे में उस पानी के बहाव के सामने आने वाली हर चीज बह जाएगी. उन्होंने बताया कि ऐसी घटनाएं अगर रात में होती हैं, तो उससे काफी नुकसान होता है. साल 2013 में केदारघाटी में आई आपदा भी रात में आई थी, जिसके चलते लोगों को बचने का मौका ही नहीं मिला. लिहाजा, अगर उच्च हिमालयी क्षेत्रों से आपदा आती है तो हिमालय क्षेत्र या फिर उससे नीचे क्षेत्रों में रहने वाले लोगों पर इसका काफी असर पड़ता है.

पढ़ें- जोशीमठ आपदा LIVE: मृतकों के परिजनों को चार लाख रुपए के मुआवजे का एलान

क्या होते हैं ग्लेशियर ?

दरअसल ग्लेशियर पहाड़ों की ऊंची चोटियों पर सालों तक भारी मात्रा में एक ही जगह बर्फ जमने से बनता है. ग्लेशियर दो तरह के होते हैं अल्पाइन और आइस शीट्स. पहाड़ों के ग्लेशियर को अल्पाइन श्रेणी में रखा जाता है.

क्यों टूटता है ग्लेशियर ?

ग्लेशियर टूटने के कई कारण होते हैं, लेकिन सबसे प्रमुख कारण गुरुत्वाकर्षण बल होता है. वहीं ग्लेशियर के टूटने का दूसरा बड़ा कारण ग्लेशियर के किनारे पर टेंशन और ग्लोबल वॉर्मिंग है. ग्लोबल वार्मिंग की वजह से ग्लेशियर का बर्फ तेजी से पिघलने लगता है और उसका एक हिस्सा टूट कर अलग हो जाता है. ग्लेशियर का जब कोई बड़ा टुकड़ा टूटता है तो उसे काल्विंग कहते हैं.

ग्लेशियर फटने के बाद उसके भीतर ड्रेनेज ब्लॉक में मौजूद पानी अपना रास्ता ढूंढ लेता है और जब यह ग्लेशियर के बीच से बहता है तो बर्फ के पिघलने का रेट भी बढ़ जाता है. इससे उसका रास्ता बड़ा हो जाता है और पानी का एक सैलाब आता है. इससे नदियों में अचानक बहुत तेजी से जलस्तर बढ़ने लगता है. नदियों के बहाव में भी तेजी आती है, जिससे उसके आसपास के इलाके में तबाही आ जाती है.

देहरादून: चमोली जिले के जोशीमठ में आई आपदा के वजह की स्थिति अभी स्पष्ट नहीं हो पाई है, लेकिन वैज्ञानिकों की प्राथमिक स्टडी के अनुसार ग्लेशियर का कोई टुकड़ा टूटने की वजह से आपदा आने की संभावना है. हालांकि, जोशीमठ में जो आपदा आई है वह साल 2013 में केदारघाटी में आई आपदा से बिल्कुल अलग है. वैज्ञानिकों के अनुसार जोशीमठ में आपदा आने के कई कारण हो सकते हैं. इस क्षेत्र में पहले की गई स्टडी के मुताबिक फिलहाल वहां ऐसा ग्लेशियर मौजूद नहीं है, जो टूट सकता हो और ऐसी कोई लेक भी मौजूद नहीं है.

ईटीवी भारत से एक्सक्लूसिव बातचीत में वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के डायरेक्टर कालाचंद साईं ने बताया कि अभी तक जो जानकारी मिली है, उसके अनुसार उस क्षेत्र में कोई लेक की जानकारी नहीं मिल पाई है. इसके साथ ही उत्तराखंड रीजन में सार्स टाइप ग्लेशियर का पता नहीं चला है. लिहाजा, जोशीमठ में जो आपदा आयी है उसको ग्लेशियर लेक रिलेटेड फिनोमिना और ग्लेशियर सार्स रिलेटेड फिनोमिना को अभी जोड़ नहीं सकते हैं. इस क्षेत्र में आपदा के आने का कारण क्या है ? इसकी जानकारी के लिए सोमवार को वैज्ञानिकों की 2 टीम भेजी जा रही हैं, जिसके बाद सटीक जानकारी मिल पाएगी.

Chamoli Glacier Disaster
वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी.

ग्लेशियर का कोई टुकड़ा टूटने से आई आपदा- कालाचंद साईं

डायरेक्टर ने बताया कि मौजूदा स्थिति को देखकर यही लगता है कि ग्लेशियर का कोई टुकड़ा टूटने की वजह से आपदा आयी है, लेकिन इस आपदा के आने का वास्तविक वजह वैज्ञानिकों के स्टडी के बाद ही पता चल पाएगी. साथ ही बताया कि ठंड के मौसम में ग्लेशियर के टूटने की घटना नहीं होती है, बल्कि ऐसी घटनाएं आम तौर पर गर्मियों के मौसम में या फिर बादल फटने की घटना होने की वजह से ही होतीं हैं.

चमोली आपदा साल 2013 की आपदा से अलग

डायरेक्टर कालाचंद साईं ने बताया कि हर तरह के ग्लेशियर नहीं टूटते हैं, बल्कि एक स्पेशल टाइप का जो ग्लेशियर यानी सार्स ग्लेशियर के टूटने की संभावना अधिक रहती है, लेकिन अभी तक जो स्टडी की गई है. उस स्टडी के अनुसार उत्तराखंड के इस रीजन में ऐसे ग्लेशियर मौजूद नहीं है. क्योंकि साल 2013 में जो आपदा आई थी. उस आपदा की वजह केदार घाटी में बादल फटने की वजह से चोराबारी झील टूट गई थी. चमोली में आपदा की स्थिति साल 2013 में आई आपदा से काफी अलग है.

ग्लेशियर टूटने पर वैज्ञानिकों के जताई चिंता.

ऐसी घटनाएं रात में होने से होती है ज्यादा तबाही

उन्होंने बताया कि ग्लेशियर उच्च हिमालई क्षेत्रों में पाए जाते हैं. जहां का तापमान माइनस डिग्री सेल्सियस में होता है. अगर ग्लेशियर में बनी किसी लेक से अगर पानी नीचे आता है तो बहुत ही तेजी से आएगा. ऐसे में उस पानी के बहाव के सामने आने वाली हर चीज बह जाएगी. उन्होंने बताया कि ऐसी घटनाएं अगर रात में होती हैं, तो उससे काफी नुकसान होता है. साल 2013 में केदारघाटी में आई आपदा भी रात में आई थी, जिसके चलते लोगों को बचने का मौका ही नहीं मिला. लिहाजा, अगर उच्च हिमालयी क्षेत्रों से आपदा आती है तो हिमालय क्षेत्र या फिर उससे नीचे क्षेत्रों में रहने वाले लोगों पर इसका काफी असर पड़ता है.

पढ़ें- जोशीमठ आपदा LIVE: मृतकों के परिजनों को चार लाख रुपए के मुआवजे का एलान

क्या होते हैं ग्लेशियर ?

दरअसल ग्लेशियर पहाड़ों की ऊंची चोटियों पर सालों तक भारी मात्रा में एक ही जगह बर्फ जमने से बनता है. ग्लेशियर दो तरह के होते हैं अल्पाइन और आइस शीट्स. पहाड़ों के ग्लेशियर को अल्पाइन श्रेणी में रखा जाता है.

क्यों टूटता है ग्लेशियर ?

ग्लेशियर टूटने के कई कारण होते हैं, लेकिन सबसे प्रमुख कारण गुरुत्वाकर्षण बल होता है. वहीं ग्लेशियर के टूटने का दूसरा बड़ा कारण ग्लेशियर के किनारे पर टेंशन और ग्लोबल वॉर्मिंग है. ग्लोबल वार्मिंग की वजह से ग्लेशियर का बर्फ तेजी से पिघलने लगता है और उसका एक हिस्सा टूट कर अलग हो जाता है. ग्लेशियर का जब कोई बड़ा टुकड़ा टूटता है तो उसे काल्विंग कहते हैं.

ग्लेशियर फटने के बाद उसके भीतर ड्रेनेज ब्लॉक में मौजूद पानी अपना रास्ता ढूंढ लेता है और जब यह ग्लेशियर के बीच से बहता है तो बर्फ के पिघलने का रेट भी बढ़ जाता है. इससे उसका रास्ता बड़ा हो जाता है और पानी का एक सैलाब आता है. इससे नदियों में अचानक बहुत तेजी से जलस्तर बढ़ने लगता है. नदियों के बहाव में भी तेजी आती है, जिससे उसके आसपास के इलाके में तबाही आ जाती है.

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