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उत्तराखंड में बढ़ रही भूस्खलन की घटनाएं, पर्यावरणविदों ने जताई चिंता - Environmentalists concern over landslide incidents in Uttarakhand

प्रदेश के पर्वतीय जिलों में बारिश के कारण भूस्खलन और फ्लैश फ्लड की घटनाएं बढ़ रही है. जिसको लेकर पर्यावरणविदों ने चिंता जताई है.

पर्यावरणविद् डॉ अनिल जोशी
पर्यावरणविद् डॉ अनिल जोशी
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Published : Sep 8, 2021, 7:43 AM IST

देहरादून: उत्तराखंड में बारिश जमकर कहर बरपा रही है. बारिश के कारण जगह-जगह पहाड़ियों से भूस्खलन हो रहा है, जिससे लोगों को तो परेशानियों का सामना करना ही पड़ रहा है. वहीं, इससे हमारे पर्यावरण को भी भारी नुकसान पहुंच रहा है. जिसको लेकर पर्यावरणविदों ने भी अपनी चिंता जाहिर की है.

इससे उत्तराखंड में जलवायु परिवर्तन का असर साफ तौर पर देखा जा रहा है. प्रदेश के पर्वतीय जिलों में बारिश के कारण भूस्खलन और फ्लैश फ्लड की घटनाएं बढ़ रही है. हिमालय में वर्तमान में जो कुछ भी हो रहा है, उसमें इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (Intergovernmental Panel on Climate Change) की रिपोर्ट में भी यह पूर्वानुमान लगाया गया है कि ग्लेशियर आगामी वर्षों में हट जाएंगे, जिससे भूस्खलन और बाढ़ की घटनाओं में बढ़ोत्तरी होगी. इससे पर्यावरणविद् भी चिंतित हैं.

भूस्खलनों पर पर्यावरणविदों ने जताई चिंता

बता दें कि, उत्तराखंड में बीते 10 सालों से लगातार भूस्खलन और फ्लैश फ्लड की घटनाएं होती आ रही है. इसका कारण यह है कि दुनिया का तापक्रम किसी भी रूप में जरा सा भी कहीं पर बढ़ता है तो उसका पहला और सबसे बड़ा असर हिमालय पर पड़ता है. इस पूरी ग्लोबल वार्मिंग और क्लाइमेट चेंज (Global warming and climate change) की वजह से हिमालय और संवेदनशील होता जा रहा है.

वहीं, बीते एक दशक में उत्तराखंड में कई फ्लैश फ्लड आ चुके हैं. इसका मुख्य कारण तापक्रम की अनियमितता और बारिश का रुख बदला होना लगता है. इस परिस्थिति में जब कार्बन एमिशन ज्यादा होता है तो यह तापक्रम को औसतन बढ़ा देता है और जब तापक्रम बढ़ जाता है तो उसका सीधा असर मॉनसून की गति और दिशा में भी पड़ता है.

इसके साथ ही जब मैदानी इलाकों में उमस बढ़ती है तो यह उमस हवा के साथ पहाड़ों में जाती है और जैसी तापक्रम नीचे आता है वहां एक साथ बारिश होने लगती है, जिससे पहाड़ों में भूस्खलन और फ्लैश फ्लड की घटनाएं बढ़ रही हैं.

पढ़ें: समुद्र तक दिख रहा है हिमालय से छेड़छाड़ का असर, पर्यावरण पर बछेंद्री पाल ने जताई चिंता

प्रसिद्ध पर्यावरणविद् डॉ. अनिल जोशी ने पहाड़ों में भूस्खलन की बढ़ती घटनाओं पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि आईपीसीसी की हालिया रिपोर्ट से उन्हें बहुत ज्यादा आश्चर्य नहीं हुआ, क्योंकि जो उन्होंने कहा है वो उत्तराखंड में बीते 10 सालों से लगातार होता आ रहा है. दुनिया का तापक्रम कहीं पर भी अगर बढ़ रहा है तो उसका पहला और बड़ा असर हिमालय पर पड़ रहा है. इस वजह से हिमालय और संवेदनशील हो गया है. उन्होंने आईपीसीसी की रिपोर्ट को आधार बनाते हुए कहा कि यदि आने वाले सालों की कल्पना करें तो सबसे ज्यादा नुकसान प्रकृति, पर्यावरण को होगा और यह डिजास्टर हिमालय में ही होगा और इसके चिन्ह भी दिखाई देने लग गए हैं.

क्या होता है फ्लैश फ्लड: बिना किसी बरसात के तटबंध टूटने या मीलों दूर से पहाड़ों में हुई बरसात से अचानक आई बाढ़ को फ्लैश फ्लड कहते हैं. पर्यावरणविदों के अनुसार इसका एक संभावित कारण है कि हिमालय और संवेदनशील होता जा रहा है.

देहरादून: उत्तराखंड में बारिश जमकर कहर बरपा रही है. बारिश के कारण जगह-जगह पहाड़ियों से भूस्खलन हो रहा है, जिससे लोगों को तो परेशानियों का सामना करना ही पड़ रहा है. वहीं, इससे हमारे पर्यावरण को भी भारी नुकसान पहुंच रहा है. जिसको लेकर पर्यावरणविदों ने भी अपनी चिंता जाहिर की है.

इससे उत्तराखंड में जलवायु परिवर्तन का असर साफ तौर पर देखा जा रहा है. प्रदेश के पर्वतीय जिलों में बारिश के कारण भूस्खलन और फ्लैश फ्लड की घटनाएं बढ़ रही है. हिमालय में वर्तमान में जो कुछ भी हो रहा है, उसमें इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (Intergovernmental Panel on Climate Change) की रिपोर्ट में भी यह पूर्वानुमान लगाया गया है कि ग्लेशियर आगामी वर्षों में हट जाएंगे, जिससे भूस्खलन और बाढ़ की घटनाओं में बढ़ोत्तरी होगी. इससे पर्यावरणविद् भी चिंतित हैं.

भूस्खलनों पर पर्यावरणविदों ने जताई चिंता

बता दें कि, उत्तराखंड में बीते 10 सालों से लगातार भूस्खलन और फ्लैश फ्लड की घटनाएं होती आ रही है. इसका कारण यह है कि दुनिया का तापक्रम किसी भी रूप में जरा सा भी कहीं पर बढ़ता है तो उसका पहला और सबसे बड़ा असर हिमालय पर पड़ता है. इस पूरी ग्लोबल वार्मिंग और क्लाइमेट चेंज (Global warming and climate change) की वजह से हिमालय और संवेदनशील होता जा रहा है.

वहीं, बीते एक दशक में उत्तराखंड में कई फ्लैश फ्लड आ चुके हैं. इसका मुख्य कारण तापक्रम की अनियमितता और बारिश का रुख बदला होना लगता है. इस परिस्थिति में जब कार्बन एमिशन ज्यादा होता है तो यह तापक्रम को औसतन बढ़ा देता है और जब तापक्रम बढ़ जाता है तो उसका सीधा असर मॉनसून की गति और दिशा में भी पड़ता है.

इसके साथ ही जब मैदानी इलाकों में उमस बढ़ती है तो यह उमस हवा के साथ पहाड़ों में जाती है और जैसी तापक्रम नीचे आता है वहां एक साथ बारिश होने लगती है, जिससे पहाड़ों में भूस्खलन और फ्लैश फ्लड की घटनाएं बढ़ रही हैं.

पढ़ें: समुद्र तक दिख रहा है हिमालय से छेड़छाड़ का असर, पर्यावरण पर बछेंद्री पाल ने जताई चिंता

प्रसिद्ध पर्यावरणविद् डॉ. अनिल जोशी ने पहाड़ों में भूस्खलन की बढ़ती घटनाओं पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि आईपीसीसी की हालिया रिपोर्ट से उन्हें बहुत ज्यादा आश्चर्य नहीं हुआ, क्योंकि जो उन्होंने कहा है वो उत्तराखंड में बीते 10 सालों से लगातार होता आ रहा है. दुनिया का तापक्रम कहीं पर भी अगर बढ़ रहा है तो उसका पहला और बड़ा असर हिमालय पर पड़ रहा है. इस वजह से हिमालय और संवेदनशील हो गया है. उन्होंने आईपीसीसी की रिपोर्ट को आधार बनाते हुए कहा कि यदि आने वाले सालों की कल्पना करें तो सबसे ज्यादा नुकसान प्रकृति, पर्यावरण को होगा और यह डिजास्टर हिमालय में ही होगा और इसके चिन्ह भी दिखाई देने लग गए हैं.

क्या होता है फ्लैश फ्लड: बिना किसी बरसात के तटबंध टूटने या मीलों दूर से पहाड़ों में हुई बरसात से अचानक आई बाढ़ को फ्लैश फ्लड कहते हैं. पर्यावरणविदों के अनुसार इसका एक संभावित कारण है कि हिमालय और संवेदनशील होता जा रहा है.

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