देहरादून: वैश्विक महामारी कोरोना के दौर में फरवरी में पेश होने वाले केंद्रीय बजट को लेकर उत्तराखंड के आर्थिक जानकार और बाजार जगत के लोग काफी उम्मीदें लगाए बैठे हैं. जानकारों के मुताबिक कोरोना महामारी के कारण देशभर के बाजार और रोजगार की हालत सबसे दयनीय है. उसको देखते हुए इस साल का बजट हर तबके के लिए वित्तमंत्री को राहत भरा देना चाहिए. ताकि कोरोना महामारी की जंग से पार पाकर बाजार और रोजगार एक बार फिर पहले की तरह पटरी पर आ सकें.
उत्तराखंड के मुख्य आर्थिक साधन पर्यटन को सबसे बड़ा नुकसान: जानकार
बैंकिंग क्षेत्र के जानकारों के मुताबिक उत्तराखंड जैसे छोटे राज्य की आर्थिक स्थिति मुख्य तौर पर पर्यटन सेक्टर से जुड़ी हैं. वहीं, साल 2020 कोरोना महामारी की भेंट चढ़ चुका है. राज्य में चारधाम यात्रा से लेकर होटल, रेस्टोरेंट सहित पर्यटकों वाले तमाम व्यवसाय को सबसे बड़ा नुकसान हुआ है. ऐसे में इस पहाड़ी राज्य को अपने पैरों पर चलाने के लिए केंद्रीय बजट से राहत पैकेज बेहद आवश्यक है.
होटल व्यवसाय को बूस्ट करने करने के लिए स्पेशल इंसेंटिव की आवश्यकता: जानकार
आर्थिक जानकारों के मुताबिक उत्तराखंड के हॉस्पिटैलिटी यानी होटल व्यवसाय को बूस्ट करने के लिए सरकार को केंद्रीय बजट में एक स्पेशल इंसेंटिव देना चाहिए. ताकि पर्यटन व्यवसायी आर्थिक तंगी से बाहर आ सकें. राज्य को आत्मनिर्भर बनाने के लिए ऑल वेदर रोड की तर्ज पर अन्य सड़कें व हाईवे जैसे निर्माण पर भी केंद्रीय बजट से मदद मिलनी चाहिए. अगर ऐसा होता है तो न सिर्फ उत्तराखंड का मुख्य पर्यटन व्यवसाय ट्रैक पर आ जाएगा, बल्कि कोरोना से जो रोजगार के साधन पीछे छूट गए हैं, वह भी पटरी पर लौट सकेंगे.
बैंकिंग और पब्लिक सेक्टर को उबारने का बेहतर विकल्प है प्राइवेटाइजेशन: जानकार
बैंकिंग क्षेत्र में इन्वेस्टमेंट के जानकार जितेंद्र डीडोन का मानना है कि लंबे समय से घाटे से जूझ रहे बैंकिंग सेक्टर को अब सरकार पूरी तरह प्राइवेटाइजेशन की तरफ ले जाने का प्रयास रही है. क्योंकि काफी समय से कई बैंक लगातार 'कैपिटल इन्फ्यूजन' की समस्या से संकट में पड़ते जा रहे हैं. यानी कर्ज देने के बाद बड़ी-बड़ी रिकवरी लंबे समय से ना के बराबर है. ऐसे में इन बैंकों के पास पर्याप्त कैपिटल न होने से ना आगे कुछ करने को बचा है और ना ही सरकार के पास इतना बजट है कि "कैपिटल इन्फ्यूजन" से जूझ रहे बैंकों को उबार सके.
जितेंद्र डीडोन यह भी मानते हैं कि न सिर्फ बैंक बल्कि अब पब्लिक सेक्टर भी जो लंबे समय से घाटे वाले संकट में चल रहे हैं, उनको भी निजीकरण की तर्ज पर चलाया जा सकता है. ताकि किसी तरह से डूबने वाले इन जहाजों को जीवन दान दिया जा सके. ऐसा होने से लगातार बढ़ती महंगाई पर भी काबू पाया जा सकता है. डीडोन के मुताबिक बैंकिंग और पब्लिक सेक्टर को ग्रोथ में उबारने का प्राइवेटाइजेशन बहुत अच्छा विकल्प है. अगर इस समय भी इस निर्णय से चूके तो आगे का समय काफी कठिन हो सकता है.
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इनकम टैक्स में 80-C रिबेट को बढ़ाना होगा, ताकि बैंकों को उबारा जा सके: इन्वेस्टमेंट विशेषज्ञ
बैंक इन्वेस्टमेंट हेड जितेंद्र डीडोन का मानना है कि मंदी के दौर में हाउसिंग सेक्टर यानी रियल एस्टेट की वजह से भी बैंकिंग सेक्टर को भारी नुकसान हुआ है. अधिकांश रियल एस्टेट प्रोजेक्ट में बैंकों का अपार धन लगा है. लेकिन मंदी और रोजगार की मार से हाउसिंग लोन नहीं हो रहे हैं. जिसके चलते बड़े-बड़े प्रोजेक्ट में लगा हुआ धन बैंकों के पास वापस नहीं आ रहा है. ऐसे में इस समस्या से उबरने के लिए इनकम टैक्स में 80-C रिबेट (छूट) को बढ़ाना होगा. अभी तक आयकर 80-C में प्रिंसपल वाले डेढ़ लाख के अलावा दो लाख की ब्याज में छूट मिलती है. अब मंदी की महामारी में इस इंटरेस्ट रेट को बढ़ाया जाए ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इसका लाभ उठाकर बैंक से लोन लेकर हाउसिंग सेक्टर में मकान खरीद सकें. ऐसा होने से बैंकों की आर्थिक स्थिति को सुधारने में मदद मिलेगी. क्योंकि बिल्डरों के प्रोजेक्ट से बैंक को रुपया ना आने के चलते बैंक एनपीए (नॉन परफॉर्मिंग एसेट) से लगातार घाटे और खराब दौर से गुजर रहे हैं.
कोरोना महामारी के चलते नए वित्त बजट में हेल्थ इंश्योरेंस पर भी काफी जोर रहेगा
बैंकिंग सेक्टर से जुड़े जानकार जितेंद्र का मानना है कि इस बार के केंद्रीय बजट में सबसे ज्यादा हेल्थ इंश्योरेंस स्कीम को बढ़ावा देने पर भी जोर दिया जा सकता है. क्योंकि कोरोना महामारी में ऐसा देखा गया कि जो लोग पहले से हेल्थ इंश्योरेंस से नहीं जुड़े थे, उन लोगों ने अपने जीवन को बचाने के लिए बड़े-बड़े अस्पतालों में महंगा इलाज कराया. जबकि इनमें से काफी लोगों के बजट से यह हॉस्पिटल बाहर थे. ऐसे में इस बात की भी उम्मीद जताई जा रही है कि केंद्रीय बजट में इस बार हेल्थ इंश्योरेंस की नई स्कीम आएगी, जो कम से कम ईएमआई की तर्ज पर हो सकती है.
इतना ही नहीं हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी कोविड-19 वैक्सिंग को भी अपनी स्कीम पॉलिसी में शामिल कर सकती है. क्योंकि, आने वाले दिनों में देशभर में लंबे समय तक कोरोना वैक्सीन लगाने का अभियान चलता रहेगा. ऐसा में यह भी हो सकता है कि सरकार के पास लंबे समय तक कोरोना की मुफ्त वैक्सीन देने का रास्ता ना हो, तो ऐसे में हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी कोरोना वैक्सीन की पेमेंट अपने पॉलिसी धारक को स्कीम में जोड़कर उनको दे सकती हैं.
केंद्रीय बजट में ग्राहकों के लिए स्कीम देने से बाजार भी संकट से उबर सकेगा: कारोबारी
उधर, व्यापारी भी मानते हैं कि इस बजट में सबसे ज्यादा आम और मध्यम वर्गीय लोगों को राहत देनी चाहिए. कोरोना की वजह से रोजगार और व्यापार ठप पड़ जाने से बाजार में ग्राहकों की भारी कमी है. ऐसे में केंद्र सरकार नए वित्तीय वर्ष के बजट में कोई ऐसी योजना या स्कीम लेकर आए, जिससे बाजार के खुदरा और रिटेल व्यवसाय में ग्राहकों की खरीदारी में कुछ हद तक हाथ खुल सकें. देहरादून के किताबों के पब्लिकेशन से जुड़े व्यापारी उपेंद्र अरोड़ा का मानना है कि यूरोप और अमेरिका जैसे देशों में कोरोना से आई मंदी के चलते वहां की सरकारों ने बजट में ऐसी स्कीम पब्लिक को दीं हैं, जिससे बाजारों में खरीदारी बढ़ी है.