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बेजुबानों के 'घर' में मानव दस्तक छीन रही निवाला, 14 साल में 571 की गई जान - Wildlife

उत्तराखंड में 70 फीसदी भू-भाग जंगल है. वहीं यहां सघन वन क्षेत्र में लगातार गिरावट आ रही है. उत्तराखंड में सबसे समृध जैव विविधता पाई जाती है. पूरे देश में कई प्रजातियां ऐसी हैं जो उत्तराखंड के जगंलों में सुरक्षित हैं.

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Published : Apr 29, 2019, 3:19 PM IST

Updated : Apr 29, 2019, 7:40 PM IST

देहरादून: भोजन की तलाश में वन्यजीव आबादी की ओर रुख करने लगे हैं, जिससे मानव संघर्ष हाल के वर्षों में बढ़ा है. जो प्रकृतिप्रमियों और लोगों के लिए चिंता का सबक बना हुआ. इसकी तस्दीक प्रदेश में वन्यजीव और मानव संघर्ष के आंकड़े कर रहे हैं. जिसकी स्थिति भयावह बनती जा रही है. अब तक प्रदेश में वन्यजीव और मानव संघर्ष में 571 लोग अपनी जान गवां चुके हैं और 30 हजार से ज्यादा मवेशी वन्यजीवों का शिकार बने हैं.

जंगली जानवर आबादी की ओर कर रहे रुख.

उत्तराखंड में 70 फीसदी भू-भाग जंगल है. वहीं यहां सघन वन क्षेत्र में लगातार गिरावट आ रही है. उत्तराखंड में सबसे समृध जैव विविधता पाई जाती है. पूरे देश में कई प्रजातियां ऐसी हैं जो उत्तराखंड के जगंलों में सुरक्षित हैं. वहीं कुछ समय से उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्र के पारिस्थितिकी तंत्र में असमान्य रुप से बदलाव आया है. वहीं जंगलों में इंसानी दखल से जंगली जानवर आबादी का रुख करने लगे हैं. सूबे में जंगलों की सुरक्षा की जिम्मेदारी वन बीट अधिकारी/आरक्षी, वन दरोगा, निरीक्षक, डिप्टी रेंजर, रेंजर के कंधों पर होता है. जिनके आगे भौगोलिक स्थिति हमेशा चुनौती बनी रहती है.

लोगों का कहना है कि राज्य में पहले मानव-वन्यजीव के बीच संघर्ष उतना नहीं था. लेकिन जंगलों के अत्याधुनिक कटान इसके लिए जिम्मेदार है. जिससे वन्यजीव का घर सुरक्षित नहीं रहा. फलस्वरूप वन्य जीव-मानव संघर्ष की घटनाओं में भी लगातार इजाफा हो रहा है. राज्य गठने के बाद से अब तक वन्य जीव और इंसानों के संघर्ष में स्थिति बद से बदतर होते जा रहे हैं. वहीं सूबे में मानव-वन्यजीव के बीच संघर्षों का आंकड़ा चौंकाने वाला है. वहीं वन महकमे के पास 2005 से पहले का कोई आंकड़ा रिकॉर्ड में मौजूद नहीं है.

अब तक इतना हो चुका है नुकसान

  • साल 2005 में - मृतकों की संख्या 6, वितरित धनराशि 1.5 लाख, घायलों की संख्या 6, वितरित धनराशि 0.9 लाख.
  • साल 2006 में- मृतकों की संख्या 21, वितरित धनराशि 5.5 लाख, घायलों की संख्या 25, वितरित धनराशि3.75 लाख.
  • साल 2007 में- मृतकों की संख्या 41, वितरित धनराशि10 लाख, घायलों की संख्या 1, वितरित धनराशि 1 लाख.
  • साल 2008 में- मृतकों की संख्या 30, वितरित धनराशि7.42 लाख, घायलों की संख्या 0.
  • साल 2009 में- मृतकों की संख्या 47, वितरित धनराशि 9 लाख, घायलों की संख्या 0.
  • साल 2010 में - मृतकों की संख्या 31, वितरित धनराशि 31 लाख, घायलों की संख्या 4, वितरित धनराशि 0.6 लाख.
  • साल 2011 में - मृतकों की संख्या 42, वितरित धनराशि 42 लाख,घायलों की संख्या 76, वितरित धनराशि10.14 लाख.
  • साल 2012 में- मृतकों की संख्या 31, वितरित धनराशि 31 लाख, घायलों की संख्या 20, वितरित धनराशि 2.87 लाख.
  • साल 2012 में- वन्य जीवों से होने वाले नुकसान को लेकर बनी मानव वन्य जीव संघर्ष निवारण निधि नियमावली 2012.
  • 2012 तक वन्य जीवों से मृत कुल लोगों की संख्या 249, वितरित धनराशि136.42 लाख, कुल घायल 132, घायलों को वितरित राशि 19.26 लाख.
  • मानव वन्यजीव संघर्ष वितरण निधि नियमावली 2012 बनने के बाद की 2012 में वन्यजीवों से मवेशियों फसलों और मकानों के नुकसान को भी आंका गया, तो वहीं वन्यजीवों में बाघ और तेंदुए से हुई क्षति और अन्य वन्य जीवों से हुई क्षति का भी वर्गीकृत किया गया.
  • 2012-13 में मानव क्षती- मृतक- 47, घायल-218, पशु क्षति- 5144, फसल क्षति- 374.32 हेक्टियर, मकान क्षति- 16.
  • 2013-14 में मानव क्षती- मृतक- 34, घायल-220, पशु क्षति- 3157,फसल क्षति- 145.11 हेक्टियर,मकान क्षति- 52.
  • 2014-15 में मानव क्षती- मृतक- 32, घायल-193, पशु क्षति- 2583, फसल क्षति- 167.51 हेक्टियर, मकान क्षति- 17.
  • 2015-16 में मानव क्षती- मृतक- 42, घायल-170, पशु क्षति- 3244, फसल क्षति- 307.390 हेक्टियर,मकान क्षति- 45.
  • 2016-17 में मानव क्षती बाघ और तेंदुए से मृतक- 25, अन्य जानवरों से 44 कुल 69 और घायल-463,पशु क्षति-8187, फसल क्षति- 486.348 हेक्टियर,मकान क्षति- 66.
  • 2017-18 में मानव क्षती बाघ और तेंदुए से- 16, अन्य जानवरों से- 23 कुल मृतक-39 और घायल-285,पशु क्षति- 4773,फसल क्षति- 270.764 हेक्टियर,मकान क्षति- 51.
  • 2018-19 में मानव क्षती बाघ और तेंदुए से- 23, अन्य जानवरों से- 36 कुल मृतक-59 और घायल-219,पशु क्षति- 3225,फसल क्षति- 224.020 हेक्टियर, मकान क्षति- 77.

बता दें कि 2012 में नियमावली बनने से अब तक कुल वन्यजीवों द्वारा मृत कुल व्यक्तियों की संख्या 325 है और घायलों लोगों की संख्या 1768 है. इसके अलावा अबतक 30313 मवेशियों को वन्यजीव नुकसान पहुंचा चुके हैं, 1975.462 हेक्टेयर फसल का नुकसान हुआ है और 324 माकान वन्यजिवों द्वारा क्षतिग्रस्त किये जा चुके हैं. अगर राज्य बनने के बाद से अब तक का कुल नुकसान देंखे तो कुल मानव क्षति में 571 यानि 600 के करीब लोगों को वन्यजीव अपना निवाला बना चुकें हैं. वहीं आज सरकार को वन्यजीव और मानव संघर्ष को कम करने के लिए कारगर कार्ययोजना बनाने की जरूरत है. जिससे आने वाले दिनों में मौत के आंकड़ों पर लगाम लग सकें.

देहरादून: भोजन की तलाश में वन्यजीव आबादी की ओर रुख करने लगे हैं, जिससे मानव संघर्ष हाल के वर्षों में बढ़ा है. जो प्रकृतिप्रमियों और लोगों के लिए चिंता का सबक बना हुआ. इसकी तस्दीक प्रदेश में वन्यजीव और मानव संघर्ष के आंकड़े कर रहे हैं. जिसकी स्थिति भयावह बनती जा रही है. अब तक प्रदेश में वन्यजीव और मानव संघर्ष में 571 लोग अपनी जान गवां चुके हैं और 30 हजार से ज्यादा मवेशी वन्यजीवों का शिकार बने हैं.

जंगली जानवर आबादी की ओर कर रहे रुख.

उत्तराखंड में 70 फीसदी भू-भाग जंगल है. वहीं यहां सघन वन क्षेत्र में लगातार गिरावट आ रही है. उत्तराखंड में सबसे समृध जैव विविधता पाई जाती है. पूरे देश में कई प्रजातियां ऐसी हैं जो उत्तराखंड के जगंलों में सुरक्षित हैं. वहीं कुछ समय से उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्र के पारिस्थितिकी तंत्र में असमान्य रुप से बदलाव आया है. वहीं जंगलों में इंसानी दखल से जंगली जानवर आबादी का रुख करने लगे हैं. सूबे में जंगलों की सुरक्षा की जिम्मेदारी वन बीट अधिकारी/आरक्षी, वन दरोगा, निरीक्षक, डिप्टी रेंजर, रेंजर के कंधों पर होता है. जिनके आगे भौगोलिक स्थिति हमेशा चुनौती बनी रहती है.

लोगों का कहना है कि राज्य में पहले मानव-वन्यजीव के बीच संघर्ष उतना नहीं था. लेकिन जंगलों के अत्याधुनिक कटान इसके लिए जिम्मेदार है. जिससे वन्यजीव का घर सुरक्षित नहीं रहा. फलस्वरूप वन्य जीव-मानव संघर्ष की घटनाओं में भी लगातार इजाफा हो रहा है. राज्य गठने के बाद से अब तक वन्य जीव और इंसानों के संघर्ष में स्थिति बद से बदतर होते जा रहे हैं. वहीं सूबे में मानव-वन्यजीव के बीच संघर्षों का आंकड़ा चौंकाने वाला है. वहीं वन महकमे के पास 2005 से पहले का कोई आंकड़ा रिकॉर्ड में मौजूद नहीं है.

अब तक इतना हो चुका है नुकसान

  • साल 2005 में - मृतकों की संख्या 6, वितरित धनराशि 1.5 लाख, घायलों की संख्या 6, वितरित धनराशि 0.9 लाख.
  • साल 2006 में- मृतकों की संख्या 21, वितरित धनराशि 5.5 लाख, घायलों की संख्या 25, वितरित धनराशि3.75 लाख.
  • साल 2007 में- मृतकों की संख्या 41, वितरित धनराशि10 लाख, घायलों की संख्या 1, वितरित धनराशि 1 लाख.
  • साल 2008 में- मृतकों की संख्या 30, वितरित धनराशि7.42 लाख, घायलों की संख्या 0.
  • साल 2009 में- मृतकों की संख्या 47, वितरित धनराशि 9 लाख, घायलों की संख्या 0.
  • साल 2010 में - मृतकों की संख्या 31, वितरित धनराशि 31 लाख, घायलों की संख्या 4, वितरित धनराशि 0.6 लाख.
  • साल 2011 में - मृतकों की संख्या 42, वितरित धनराशि 42 लाख,घायलों की संख्या 76, वितरित धनराशि10.14 लाख.
  • साल 2012 में- मृतकों की संख्या 31, वितरित धनराशि 31 लाख, घायलों की संख्या 20, वितरित धनराशि 2.87 लाख.
  • साल 2012 में- वन्य जीवों से होने वाले नुकसान को लेकर बनी मानव वन्य जीव संघर्ष निवारण निधि नियमावली 2012.
  • 2012 तक वन्य जीवों से मृत कुल लोगों की संख्या 249, वितरित धनराशि136.42 लाख, कुल घायल 132, घायलों को वितरित राशि 19.26 लाख.
  • मानव वन्यजीव संघर्ष वितरण निधि नियमावली 2012 बनने के बाद की 2012 में वन्यजीवों से मवेशियों फसलों और मकानों के नुकसान को भी आंका गया, तो वहीं वन्यजीवों में बाघ और तेंदुए से हुई क्षति और अन्य वन्य जीवों से हुई क्षति का भी वर्गीकृत किया गया.
  • 2012-13 में मानव क्षती- मृतक- 47, घायल-218, पशु क्षति- 5144, फसल क्षति- 374.32 हेक्टियर, मकान क्षति- 16.
  • 2013-14 में मानव क्षती- मृतक- 34, घायल-220, पशु क्षति- 3157,फसल क्षति- 145.11 हेक्टियर,मकान क्षति- 52.
  • 2014-15 में मानव क्षती- मृतक- 32, घायल-193, पशु क्षति- 2583, फसल क्षति- 167.51 हेक्टियर, मकान क्षति- 17.
  • 2015-16 में मानव क्षती- मृतक- 42, घायल-170, पशु क्षति- 3244, फसल क्षति- 307.390 हेक्टियर,मकान क्षति- 45.
  • 2016-17 में मानव क्षती बाघ और तेंदुए से मृतक- 25, अन्य जानवरों से 44 कुल 69 और घायल-463,पशु क्षति-8187, फसल क्षति- 486.348 हेक्टियर,मकान क्षति- 66.
  • 2017-18 में मानव क्षती बाघ और तेंदुए से- 16, अन्य जानवरों से- 23 कुल मृतक-39 और घायल-285,पशु क्षति- 4773,फसल क्षति- 270.764 हेक्टियर,मकान क्षति- 51.
  • 2018-19 में मानव क्षती बाघ और तेंदुए से- 23, अन्य जानवरों से- 36 कुल मृतक-59 और घायल-219,पशु क्षति- 3225,फसल क्षति- 224.020 हेक्टियर, मकान क्षति- 77.

बता दें कि 2012 में नियमावली बनने से अब तक कुल वन्यजीवों द्वारा मृत कुल व्यक्तियों की संख्या 325 है और घायलों लोगों की संख्या 1768 है. इसके अलावा अबतक 30313 मवेशियों को वन्यजीव नुकसान पहुंचा चुके हैं, 1975.462 हेक्टेयर फसल का नुकसान हुआ है और 324 माकान वन्यजिवों द्वारा क्षतिग्रस्त किये जा चुके हैं. अगर राज्य बनने के बाद से अब तक का कुल नुकसान देंखे तो कुल मानव क्षति में 571 यानि 600 के करीब लोगों को वन्यजीव अपना निवाला बना चुकें हैं. वहीं आज सरकार को वन्यजीव और मानव संघर्ष को कम करने के लिए कारगर कार्ययोजना बनाने की जरूरत है. जिससे आने वाले दिनों में मौत के आंकड़ों पर लगाम लग सकें.

Note- खबर स्पेशल में है और व्युजवल, बाइट, पीटीसी MOJO1165 से (उत्तराखंड में बढ़ता मानव-वन्यजीव संघर्ष, चौकाने वाले आंकडे) नाम से भेजी गई है।


Special- Man Animal Conflict 

समय के साथ बढ़ता जा रहा है मानव- वन्य जीव संघर्ष, अब तक 1768 लोगों की गई है जान 30 हजार से ज्यादा मवेशियों का नुकसान

एंकर- जैव विविधता में समृध देवभूमी में मानव और वन्य जीवों के बीच संघर्ष की कहानी पूरानी है लेकिन मौजूदा दौर के बदलते हालतों में इस संघर्ष की तस्वीर और स्याह होती जा रही है। राज्य बनने के बाद से अब तक के सालों में उत्तराखंड के लोगों और वन्य जीवों के बीच चली आ रही इस अस्तित्व की लड़ाई में अब तक का पूरा ब्योरा हम आपके सामने लाये हैं और इस ब्योरे को देख कर आप भी अंदाजा लगा सकते हैं कि आज अस्तित्व की ये लड़ाई किस दिशा में जा रही है।

वीओ- 70 फीसदी वनों से आच्छादित उत्तराखंड राज्य में हिमालय से लेकर यहां से निकलने वाली नदियों पहड़ो और जंगलों में देश की सबसे समृध जैव विविधता पाई जाती है। पूरे देश में से कई प्रजातियां एसी है जो केवल उत्तराखंड के जगंलों में सुरक्षित है लेकिन पिछले कुछ दशकों में हिमालय के इस समृध पारिस्थितिकी तंत्र पर ना जाने किस की नजर लग है और समय दर समय हिमालय के ईको सिस्टम में असमान्य रुप से बदलाव आया है। समाज के एक वर्ग का कहना है कि पृक्रती में बेतहाशा इंसानी दखलअंदाजी इसका सबसे बड़ा कारण है लेकिन अफसोस कि इंसाल की जंगल में इस दखल से ईसानी जीवन भी अछूता नही है या फिर हम कहें कि लगातार बदल रहे उत्तराखंड के इस ईकोसिस्टम में सबसे ज्यादा इंसान की भेंट चढ़ी है तो लगत नही होगा। 
  आंकड़े और पुराने लोग बताते हैं कि उत्तराखंड राज्य बनने से पहले उत्तराखंड में मानव-वन्यजीव के बीच संघर्ष उतना नही है था लेकिन उत्तराखंड राज्य बनने के बाद लगातार पैर पसारते कंक्रीट के जंगल ने हरे भरे जंगल को निगला है लेकिन जंगल के कानून से इंसानी आबादी अधूती नही रह पायी। राज्य बनने के बाद से अब तक वन्य जीवों से हुए इंसानी नुकसान पर नजर दौड़ाएं तो हालात बद से बद्तर होते जा रहे हैं। दरअसल राज्य बनने के बाद उत्तराखंड के वन विभाग के स्थाई रूप से जम जाने तक के बाद आंकड़े जुटाने की कमकश शुरु हुई।

वन विभाग के पास साल 2005 से पहले वन जीवों से हुई मानव क्षति का नही है कोई आंकड़ा

साल 2005 में -  मृतकों की संख्या 6, वितरित धनराशी 1.5 लाख
                         घायलों की संख्या 6, वितरित धनराशी 0.9 लाख

साल 2006 में-  मृतकों की संख्या 21, वितरित धनराशी 5.5 लाख
                        घायलों की संख्या 25, वितरित धनराशी 3.75 लाख

साल 2007 में-  मृतकों की संख्या 41, वितरित धनराशी 10 लाख
                          घायलों की संख्या 1, वितरित धनराशी 1 लाख

साल 2008 में-  मृतकों की संख्या 30, वितरित धनराशी 7.42 लाख
                         घायलों की संख्या 0,

साल 2009 में-  मृतकों की संख्या 47, वितरित धनराशी 9 लाख
                         घायलों की संख्या 0

साल 2010 में  -  मृतकों की संख्या 31, वितरित धनराशी 31 लाख
                        घायलों की संख्या 4, वितरित धनराशी 0.6 लाख

साल 2011 में  -  मृतकों की संख्या 42, वितरित धनराशी 42 लाख
                          घायलों की संख्या 76, वितरित धनराशी 10.14 लाख

साल 2012 में-  मृतकों की संख्या 31, वितरित धनराशी 31 लाख
                         घायलों की संख्या 20, वितरित धनराशी 2.87 लाख


साल 2012 में वन्य जीवो से होने वाले नुकसान को लेकर बनी मानव वन्य जीव संघर्ष निवारण निधी नियमावली 2012
2012 तक वन्य जीवों से मृत कुल लोगों की संख्या 249, वितरित धनराशी 136.42 लाख, कुल घायल 132, घायलों को वितरित राशी 19.26 लाख
मानव वन्यजीव संघर्ष रावत वितरण निधी नियमावली 2012 बनने के बाद की 2012 में वन्यजीवों से मवेशियों फलसो और मकानों के नुकसान को भी आंका गया तो वहीं वन्यजीवों में बाघ और तेंदुए से हुई क्षति और अन्य वन्य जीवों से हुई क्षती को भी वर्गीकृत किया गया

2012-13 में मानव क्षती-  मृतक- 47, घायल-218
                  पशु क्षति- 5144
                  फसल क्षति- 374.32 हेक्टियर
                  मकान क्षति- 16

2013-14 में मानव क्षती-  मृतक- 34, घायल-220
                  पशु क्षति- 3157
                  फसल क्षति- 145.11 हेक्टियर
                  मकान क्षति- 52

2014-15 में
 मानव क्षती-  मृतक- 32, घायल-193
                  पशु क्षति- 2583
                  फसल क्षति- 167.51 हेक्टियर
                  मकान क्षति- 17

2015-16 में
 मानव क्षती-  मृतक- 42, घायल-170
                  पशु क्षति- 3244
                  फसल क्षति- 307.390 हेक्टियर
                  मकान क्षति- 45

2016-17 में
 मानव क्षती बाघ और तेंदुए से मृतक- 25, अन्य जानवरों से 44 कुल 69 और घायल-463
                  पशु क्षति-8187
                  फसल क्षति- 486.348 हेक्टियर
                  मकान क्षति- 66

2017-18 में मानव क्षती बाघ और तेंदुए से- 16, अन्य जानवरों से- 23 कुल मृतक-39 और घायल-285
                  पशु क्षति- 4773
                  फसल क्षति- 270.764 हेक्टियर
                  मकान क्षति- 51

2018-19 में मानव क्षती बाघ और तेंदुए से- 23, अन्य जानवरों से- 36 कुल मृतक-59 और घायल-219
                  पशु क्षति- 3225
                  फसल क्षति- 224.020 हेक्टियर
                  मकान क्षति- 77

वीओ-  2012 में नियमावली बनने से अब तक कुल वन्यजीवों द्वारा मृत कुल व्यक्तियों की संख्या 325 है और घायलों लोगों की संख्या 1768 है, इसके अलावा अबतक 30313 मवेशियों को वन्यजीव नुकसान कर चुकें हैं, 1975.462 हैक्टियर फसल का नुकसान पंहुचा चुकें है और 324 माकान वन्यजिवों द्वारा क्षतिग्रस्त किये जा चुकें हैं। और अगर राज्य बनने के बाद से अब तक का कुल नुकसान देंखे तो कुल मानव क्षति में 574 यानी 600 के करीब लोगों को वन्यजीव अपना निवाला बना चुकें हैं और पालतू जानवरों और फसलों का नुकसान को आंके तो दसियों हजार की संख्या में मवेशियों का नुकसान पूरे राज्य में हुआ है और कई टन फसल का नुकसान राज्य के लोग जंगली जानवरों की वजह उठा चुके हैं। 

बाइट- रजंन काला, प्रमुख वन संरक्षक (वन्य जीव), मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक


फाइलन वीओ- पीटीसी धीरज सजवाण










Last Updated : Apr 29, 2019, 7:40 PM IST
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