देहरादून: भोजन की तलाश में वन्यजीव आबादी की ओर रुख करने लगे हैं, जिससे मानव संघर्ष हाल के वर्षों में बढ़ा है. जो प्रकृतिप्रमियों और लोगों के लिए चिंता का सबक बना हुआ. इसकी तस्दीक प्रदेश में वन्यजीव और मानव संघर्ष के आंकड़े कर रहे हैं. जिसकी स्थिति भयावह बनती जा रही है. अब तक प्रदेश में वन्यजीव और मानव संघर्ष में 571 लोग अपनी जान गवां चुके हैं और 30 हजार से ज्यादा मवेशी वन्यजीवों का शिकार बने हैं.
उत्तराखंड में 70 फीसदी भू-भाग जंगल है. वहीं यहां सघन वन क्षेत्र में लगातार गिरावट आ रही है. उत्तराखंड में सबसे समृध जैव विविधता पाई जाती है. पूरे देश में कई प्रजातियां ऐसी हैं जो उत्तराखंड के जगंलों में सुरक्षित हैं. वहीं कुछ समय से उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्र के पारिस्थितिकी तंत्र में असमान्य रुप से बदलाव आया है. वहीं जंगलों में इंसानी दखल से जंगली जानवर आबादी का रुख करने लगे हैं. सूबे में जंगलों की सुरक्षा की जिम्मेदारी वन बीट अधिकारी/आरक्षी, वन दरोगा, निरीक्षक, डिप्टी रेंजर, रेंजर के कंधों पर होता है. जिनके आगे भौगोलिक स्थिति हमेशा चुनौती बनी रहती है.
लोगों का कहना है कि राज्य में पहले मानव-वन्यजीव के बीच संघर्ष उतना नहीं था. लेकिन जंगलों के अत्याधुनिक कटान इसके लिए जिम्मेदार है. जिससे वन्यजीव का घर सुरक्षित नहीं रहा. फलस्वरूप वन्य जीव-मानव संघर्ष की घटनाओं में भी लगातार इजाफा हो रहा है. राज्य गठने के बाद से अब तक वन्य जीव और इंसानों के संघर्ष में स्थिति बद से बदतर होते जा रहे हैं. वहीं सूबे में मानव-वन्यजीव के बीच संघर्षों का आंकड़ा चौंकाने वाला है. वहीं वन महकमे के पास 2005 से पहले का कोई आंकड़ा रिकॉर्ड में मौजूद नहीं है.
अब तक इतना हो चुका है नुकसान
- साल 2005 में - मृतकों की संख्या 6, वितरित धनराशि 1.5 लाख, घायलों की संख्या 6, वितरित धनराशि 0.9 लाख.
- साल 2006 में- मृतकों की संख्या 21, वितरित धनराशि 5.5 लाख, घायलों की संख्या 25, वितरित धनराशि3.75 लाख.
- साल 2007 में- मृतकों की संख्या 41, वितरित धनराशि10 लाख, घायलों की संख्या 1, वितरित धनराशि 1 लाख.
- साल 2008 में- मृतकों की संख्या 30, वितरित धनराशि7.42 लाख, घायलों की संख्या 0.
- साल 2009 में- मृतकों की संख्या 47, वितरित धनराशि 9 लाख, घायलों की संख्या 0.
- साल 2010 में - मृतकों की संख्या 31, वितरित धनराशि 31 लाख, घायलों की संख्या 4, वितरित धनराशि 0.6 लाख.
- साल 2011 में - मृतकों की संख्या 42, वितरित धनराशि 42 लाख,घायलों की संख्या 76, वितरित धनराशि10.14 लाख.
- साल 2012 में- मृतकों की संख्या 31, वितरित धनराशि 31 लाख, घायलों की संख्या 20, वितरित धनराशि 2.87 लाख.
- साल 2012 में- वन्य जीवों से होने वाले नुकसान को लेकर बनी मानव वन्य जीव संघर्ष निवारण निधि नियमावली 2012.
- 2012 तक वन्य जीवों से मृत कुल लोगों की संख्या 249, वितरित धनराशि136.42 लाख, कुल घायल 132, घायलों को वितरित राशि 19.26 लाख.
- मानव वन्यजीव संघर्ष वितरण निधि नियमावली 2012 बनने के बाद की 2012 में वन्यजीवों से मवेशियों फसलों और मकानों के नुकसान को भी आंका गया, तो वहीं वन्यजीवों में बाघ और तेंदुए से हुई क्षति और अन्य वन्य जीवों से हुई क्षति का भी वर्गीकृत किया गया.
- 2012-13 में मानव क्षती- मृतक- 47, घायल-218, पशु क्षति- 5144, फसल क्षति- 374.32 हेक्टियर, मकान क्षति- 16.
- 2013-14 में मानव क्षती- मृतक- 34, घायल-220, पशु क्षति- 3157,फसल क्षति- 145.11 हेक्टियर,मकान क्षति- 52.
- 2014-15 में मानव क्षती- मृतक- 32, घायल-193, पशु क्षति- 2583, फसल क्षति- 167.51 हेक्टियर, मकान क्षति- 17.
- 2015-16 में मानव क्षती- मृतक- 42, घायल-170, पशु क्षति- 3244, फसल क्षति- 307.390 हेक्टियर,मकान क्षति- 45.
- 2016-17 में मानव क्षती बाघ और तेंदुए से मृतक- 25, अन्य जानवरों से 44 कुल 69 और घायल-463,पशु क्षति-8187, फसल क्षति- 486.348 हेक्टियर,मकान क्षति- 66.
- 2017-18 में मानव क्षती बाघ और तेंदुए से- 16, अन्य जानवरों से- 23 कुल मृतक-39 और घायल-285,पशु क्षति- 4773,फसल क्षति- 270.764 हेक्टियर,मकान क्षति- 51.
- 2018-19 में मानव क्षती बाघ और तेंदुए से- 23, अन्य जानवरों से- 36 कुल मृतक-59 और घायल-219,पशु क्षति- 3225,फसल क्षति- 224.020 हेक्टियर, मकान क्षति- 77.
बता दें कि 2012 में नियमावली बनने से अब तक कुल वन्यजीवों द्वारा मृत कुल व्यक्तियों की संख्या 325 है और घायलों लोगों की संख्या 1768 है. इसके अलावा अबतक 30313 मवेशियों को वन्यजीव नुकसान पहुंचा चुके हैं, 1975.462 हेक्टेयर फसल का नुकसान हुआ है और 324 माकान वन्यजिवों द्वारा क्षतिग्रस्त किये जा चुके हैं. अगर राज्य बनने के बाद से अब तक का कुल नुकसान देंखे तो कुल मानव क्षति में 571 यानि 600 के करीब लोगों को वन्यजीव अपना निवाला बना चुकें हैं. वहीं आज सरकार को वन्यजीव और मानव संघर्ष को कम करने के लिए कारगर कार्ययोजना बनाने की जरूरत है. जिससे आने वाले दिनों में मौत के आंकड़ों पर लगाम लग सकें.