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भारत-नेपाल सीमा पर विवाद क्यों? जानें हर सवाल का जवाब - Why India Nepal Border Dispute

भारत नेपाल सीमा पर विवाद क्यों है इसे लेकर ईटीवी भारत के रीजनल एडिटर ब्रजमोहन ने सुरेंद्र सिंह पांगती से बात की, जो बोर्ड ऑफ रेवेन्यू, उत्तरप्रदेश के रिटायर्ड अधिकारी हैं.

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भारत-नेपाल सीमा पर विवाद क्यों?
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Published : May 29, 2020, 6:50 PM IST

हैदराबाद: भारत-नेपाल के बीच लिपुलेख बॉर्डर और कालापानी को लेकर हुये विवाद का पर नेपाल ने अपने कदम पीछे खींच लिये हैं. 8 मई को चीन सीमा पर घटियाबगड़ से लिपु पास सड़क का रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए उद्घाटन किया तभी से नेपाल लगातार इस मामले में आपत्ति जता रहा था.

22 मई को नेपाल ने अपने नए राजनीतिक मानचित्र पर लिपुलेख और कालापानी को अपना हिस्सा बताकर विवाद खड़ा कर दिया. भारत ने नेपाल के इस फैसले पर नाखुशी जताकर नेपाल के नए राजनीतिक मानचित्र को सिरे से खारिज कर दिया है. भारतीय राजनयिक दबाव के बाद नेपाल को अपने दावे से हाथ पीछे खींचने पड़े हैं. आखिर भारत नेपाल सीमा पर विवाद क्यों है इसे लेकर ईटीवी भारत के रीजनल एडिटर ब्रजमोहन ने सुरेंद्र सिंह पांगती से बात की, जो बोर्ड ऑफ रेवेन्यू, उत्तरप्रदेश के रिटायर्ड अधिकारी हैं.

भारत-नेपाल सीमा पर विवाद क्यों?

सवाल: नेपाल और भारत के बीच तल्खी की तात्कालिक वजह क्या है?

जवाब: सुरेंद्र सिंह पांगती ने बताया भारत और नेपाल के बीच इस तात्कालिक तल्खी का वजह वहां की कम्युनिस्ट सरकार है. उन्होंने बताया नेपाल में पुरानी सरकार और नई सरकार के बीच राजनीति गतिरोध है. जिससे ध्यान भटकाने के लिए भी इस मुद्दे को उठाया गया है. उन्होंने बताया नेपाल की वर्तमान सरकार का चीन के साथ अच्छा तालमेल भी इसका कारण है, उन्होंने कहा ऐसा भी हो सकता है कि चीन की ओर से उन्हें कुछ कहा गया हो.

सवाल: सुगौली की संधि क्या है, भारत और नेपाल में इसे लेकर क्या मत है?

जवाब: 4 मार्च 1816 को ईस्ट इंडिया कंपनी और नेपाल के राजा ने सुगौली संधि का अनुमोदन कर दिया, जो 2 दिसम्बर 1815 को हस्ताक्षरित था. उससे पहले नेपाल का दखल गढ़वाल, कुमाऊं, हिमाचल और सिक्किम के कुछ इलाकों तक इन दबदबा हो गया था. इस संधि के बाद ब्रिटिश और नेपाल शासन के बीच युद्ध विराम की घोषणा हुई थी.

सवाल: सामरिक दृष्टि से लिपुलेख का भारत के लिए क्या महत्व है?

जवाब: लिपुलेख इस इलाके का सबसे आसान दर्रा है. तिब्बत की ओर से भी इस ओर उन्होंने काफी लंबी सड़क बना दी है. इससे पहले डोकलान, लद्दाख में चीन ने दखल दिया है, इसलिए यहां भी चीन का दखल देना लाजमि है. इस कारण भारत के लिए इसका महत्व और भी बढ़ जाता है.

उन्होंने बताया उत्तराखंड में ही बाड़ाहोती का क्षेत्र है जो चीन और भारत के बीच एक विवादित भूमि है. इस कारण ऐसे में इस क्षेत्र में जितने भी दर्रे हैं उन सभी को सुरक्षा की दृष्टि से मजबूत करने की जरुरत है. उसी परिपेक्ष में लिपुलेख में भी मोटरमार्ग की निर्माण किया गया. इसके अलावा कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए भी इस रूट का इस्तेमाल किया जाना है, जिसका चीन की सरकार ने भी स्वागत किया है

सवाल: लिपुलेख में सड़क मार्ग बन जाने से कैलाश मानसरोवर यात्रा कितनी आसान होगी?

जवाब: कैलाश मानसरोवर की यात्रा लिपुलेख से ही होती थी. लिपुलेख और इसके पश्चिम में कई दर्रें हैं जिससे कैलाश मान सरोवर की यात्रा होती थी. सबसे अधिक यात्री लिपुलेख से ही जाते हैं. ये सभी यात्री भारत के कोने-कोने से आते हैं. पहले ये रास्ता पैदल था, अब इस सड़क मार्ग के बन जाने से यात्रियों को राहत मिलेगी. चीन सरकार भी यात्रियों और अपनी सुविधा के लिए लिपुलेख और उसके नजदीकी दर्रों तक सड़क बना चुका है

आगे उन्होंने कहा नेपाल सरकार की ओर से अचानक 200 साल बाद इस मामले पर एतराज आ रहा है उसका कारण यहां की राजनीतिक उथल-पुथल है. सत्ता दल और विपक्ष में जनता को अपनी ओर आकर्षित करने की होड़ और राष्ट्रवाद के चलते इस मुद्दे को उठाया जा रहा है.

हैदराबाद: भारत-नेपाल के बीच लिपुलेख बॉर्डर और कालापानी को लेकर हुये विवाद का पर नेपाल ने अपने कदम पीछे खींच लिये हैं. 8 मई को चीन सीमा पर घटियाबगड़ से लिपु पास सड़क का रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए उद्घाटन किया तभी से नेपाल लगातार इस मामले में आपत्ति जता रहा था.

22 मई को नेपाल ने अपने नए राजनीतिक मानचित्र पर लिपुलेख और कालापानी को अपना हिस्सा बताकर विवाद खड़ा कर दिया. भारत ने नेपाल के इस फैसले पर नाखुशी जताकर नेपाल के नए राजनीतिक मानचित्र को सिरे से खारिज कर दिया है. भारतीय राजनयिक दबाव के बाद नेपाल को अपने दावे से हाथ पीछे खींचने पड़े हैं. आखिर भारत नेपाल सीमा पर विवाद क्यों है इसे लेकर ईटीवी भारत के रीजनल एडिटर ब्रजमोहन ने सुरेंद्र सिंह पांगती से बात की, जो बोर्ड ऑफ रेवेन्यू, उत्तरप्रदेश के रिटायर्ड अधिकारी हैं.

भारत-नेपाल सीमा पर विवाद क्यों?

सवाल: नेपाल और भारत के बीच तल्खी की तात्कालिक वजह क्या है?

जवाब: सुरेंद्र सिंह पांगती ने बताया भारत और नेपाल के बीच इस तात्कालिक तल्खी का वजह वहां की कम्युनिस्ट सरकार है. उन्होंने बताया नेपाल में पुरानी सरकार और नई सरकार के बीच राजनीति गतिरोध है. जिससे ध्यान भटकाने के लिए भी इस मुद्दे को उठाया गया है. उन्होंने बताया नेपाल की वर्तमान सरकार का चीन के साथ अच्छा तालमेल भी इसका कारण है, उन्होंने कहा ऐसा भी हो सकता है कि चीन की ओर से उन्हें कुछ कहा गया हो.

सवाल: सुगौली की संधि क्या है, भारत और नेपाल में इसे लेकर क्या मत है?

जवाब: 4 मार्च 1816 को ईस्ट इंडिया कंपनी और नेपाल के राजा ने सुगौली संधि का अनुमोदन कर दिया, जो 2 दिसम्बर 1815 को हस्ताक्षरित था. उससे पहले नेपाल का दखल गढ़वाल, कुमाऊं, हिमाचल और सिक्किम के कुछ इलाकों तक इन दबदबा हो गया था. इस संधि के बाद ब्रिटिश और नेपाल शासन के बीच युद्ध विराम की घोषणा हुई थी.

सवाल: सामरिक दृष्टि से लिपुलेख का भारत के लिए क्या महत्व है?

जवाब: लिपुलेख इस इलाके का सबसे आसान दर्रा है. तिब्बत की ओर से भी इस ओर उन्होंने काफी लंबी सड़क बना दी है. इससे पहले डोकलान, लद्दाख में चीन ने दखल दिया है, इसलिए यहां भी चीन का दखल देना लाजमि है. इस कारण भारत के लिए इसका महत्व और भी बढ़ जाता है.

उन्होंने बताया उत्तराखंड में ही बाड़ाहोती का क्षेत्र है जो चीन और भारत के बीच एक विवादित भूमि है. इस कारण ऐसे में इस क्षेत्र में जितने भी दर्रे हैं उन सभी को सुरक्षा की दृष्टि से मजबूत करने की जरुरत है. उसी परिपेक्ष में लिपुलेख में भी मोटरमार्ग की निर्माण किया गया. इसके अलावा कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए भी इस रूट का इस्तेमाल किया जाना है, जिसका चीन की सरकार ने भी स्वागत किया है

सवाल: लिपुलेख में सड़क मार्ग बन जाने से कैलाश मानसरोवर यात्रा कितनी आसान होगी?

जवाब: कैलाश मानसरोवर की यात्रा लिपुलेख से ही होती थी. लिपुलेख और इसके पश्चिम में कई दर्रें हैं जिससे कैलाश मान सरोवर की यात्रा होती थी. सबसे अधिक यात्री लिपुलेख से ही जाते हैं. ये सभी यात्री भारत के कोने-कोने से आते हैं. पहले ये रास्ता पैदल था, अब इस सड़क मार्ग के बन जाने से यात्रियों को राहत मिलेगी. चीन सरकार भी यात्रियों और अपनी सुविधा के लिए लिपुलेख और उसके नजदीकी दर्रों तक सड़क बना चुका है

आगे उन्होंने कहा नेपाल सरकार की ओर से अचानक 200 साल बाद इस मामले पर एतराज आ रहा है उसका कारण यहां की राजनीतिक उथल-पुथल है. सत्ता दल और विपक्ष में जनता को अपनी ओर आकर्षित करने की होड़ और राष्ट्रवाद के चलते इस मुद्दे को उठाया जा रहा है.

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