देहरादून: उत्तराखंड का एक बड़ा हिस्सा वन क्षेत्र के रूप में आच्छादित है और इस हिमालयी क्षेत्र में ग्लेशियर्स के कारण कई नदियों का उद्गम भी होता है. देखा जाए तो प्राकृतिक रूप से उत्तराखंड बेहद धनाढ्य राज्यों में शुमार है, लेकिन इसका राज्य को फायदा होने की बजाय नुकसान ही झेलना पड़ता है. बस इसी बात को समझते हुए धामी सरकार पहली बार कुछ ऐसा करने जा रही है, जिसे नकारना केंद्र सरकार के लिए भी मुश्किल होगा. यही नहीं उत्तराखंड अपने पानी, जंगल और संपदा का भी हिसाब केंद्र से ले सकेगा.
उत्तराखंड भले ही आर्थिक रूप से कमजोर हालात में दिखाई दे, लेकिन प्रदेश में प्राकृतिक संपदा के भंडार यहां की समृद्धि को बयां करते हैं. स्थिति ये है कि प्रदेश के 71 फीसदी क्षेत्र में जंगल मौजूद हैं और हिमालयी क्षेत्र होने के कारण ग्लेशियर्स के साथ तमाम नदियां भी यहां बहती हैं. लेकिन इन सबका बड़ा नुकसान भी राज्य को झेलना पड़ता है. शायद यही कारण है कि राज्य सरकार पिछले एक दशक से भी ज्यादा वक्त से ग्रीन बोनस की मांग कर रही है.
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विकास कार्यों में बड़ी बाधा: दरअसल, राज्य में पलायन से लेकर विकास कार्यों में बाधा के लिए भी यही प्राकृतिक संपदा कई बार जिम्मेदार बनती है. परेशानी यह रही है कि अब तक इनका मूल्यांकन वैज्ञानिक ढंग से पूरी तरह नहीं हो पाया. नतीजा यह रहा कि तमाम मंचों पर राज्य सरकारों की तरफ से ग्रीन बोनस की बात तो रखी गई, लेकिन इसका पूरा हर्जाना कभी नहीं मिला.
प्राकृतिक संपदा का आकलन: इस प्लानिंग पर काम कर रहे ACEO मनोज पंत ने ईटीवी भारत के साथ बात की. उन्होंने बताया कि राज्य की तरफ से प्रदेश के प्राकृतिक संसाधनों और संपदा को वेलुएट करने के लिए प्रयास किया जा रहे हैं. प्राकृतिक संपदा का आकलन करने के लिए निजी कंपनियां भी निविदा में शामिल हो सकती हैं. शर्त यही है कि इन कंपनियों को किसी सरकारी संस्थान को भी इस कार्य में खुद के साथ जोड़ना होगा.
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ग्रीन बोनस को लेकर अब तक ऐसे हुए प्रयास: उत्तराखंड को ग्रीन बोनस के तहत केंद्र सरकार से बड़ी राशि दिए जाने की पहली बार मांग निशंक सरकार के दौरान मजबूती के साथ रखी गई. हालांकि निशंक सरकार के यह प्रयास असफल हुए और केंद्र की तरफ से इस मद में कोई पैसा राज्य को नहीं मिल पाया. इसके बाद गाहे बगाहे राज्य सरकारों की तरफ से समय-समय पर ग्रीन बोनस की बात कही गई, लेकिन परिणाम ढाक के तीन पात जैसा रहा.
हालांकि धामी सरकार के दौरान पहली बार इस मामले में वैज्ञानिक तर्कों के साथ अपनी बात को प्रस्तुत किया गया और इसका फायदा भी राज्य को मिला. उधर अब प्रदेश की प्राकृतिक समृद्धि को वैज्ञानिक तरीके से आंकने के लिए किसी संस्था को काम देने की तैयारी सरकार कर रही है.
उम्मीद की जा रही है कि पहली बार जंगलों के साथ ग्लेशियर्स और पूरे इको सिस्टम की वेल्यू निकाली जाएगी और वैज्ञानिक आधार पर होने वाले इस आकलन को नकार पाना केंद्र के लिए भी आसान नहीं होगा.
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वन क्षेत्र की कीमत का पूर्व में भी हुआ है आकलन: राज्य के जंगलों की भूमिका और इसके फायदे को लेकर पहले भी वन क्षेत्र का वैज्ञानिक तरीके से आकलन हुआ है. इसमें वनों की भूमिका को लेकर इसकी कीमत भी आंकी गई है. 15वें वित्त आयोग के सामने इसको प्रस्तुत भी किया गया था. उत्तराखंड के प्लानिंग डिपार्टमेंट की तरफ से इकोसिस्टम सर्विस का आकलन करवाया गया.
ACEO मनोज पंत कहते हैं कि पेड़ों के स्टॉक की कीमत करीब 16 लाख करोड़ रुपए आंकी गई. उधर जंगलों में कार्बन, हर्ब्स और जैव विविधता की कीमत करीब 95 हजार करोड़ प्रति वर्ष मानी गई. उत्तराखंड के लिए यह काम इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ फॉरेस्ट मैनेजमेंट की तरफ से किया गया. इसमें सिस्टम ऑफ एनवायरमेंट इंपैक्ट एसेसमेंट के फ्रेमवर्क के आधार पर पर्यावरणीय और इकोसिस्टम समेत सोशल इंपैक्ट एसेसमेंट को भी किया गया.
15वें वित्त आयोग ने समझी परेशानी: हालांकि 15वें वित्त आयोग के सामने वैज्ञानिक आधार पर किए गए असेसमेंट को रखे जाने के बाद कुछ हद तक 15वें वित्त आयोग ने राज्य की परेशानियों को भी समझा. 15वें वित्त आयोग ने माना कि जंगलों में फारेस्ट कंजर्वेशन और इकोसिस्टम की बेहतरी के लिए ग्लेशियर और तमाम जगहों पर इको जोन स्थापित किए गए हैं, जिसकी वजह से वहां कुछ भी विकास कार्य नहीं किए जा सके और ऐसे में लोगों ने वहां से पलायन करना शुरू किया. साथ ही राज्य अपनी क्षमता का पूरा प्रयोग भी नहीं कर पा रहा है, जिसका नुकसान आर्थिक रूप से राज्य को हो रहा है और इसी भरपाई को करने के लिए राज्य ग्रीन बोनस की मांग कर रहा है.
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इस बार वैज्ञानिक आधार पर रखी जाएगी बात: 15 वित्त आयोग की तरफ से जो ग्रांट दी गई उसमें प्रदेश के इन्हीं तर्कों को देखते हुए करीब 27,000 करोड़ की अतिरिक्त बजट सहायता प्रदेश को मिल पाई. जबकि 16 वित्त आयोग के सामने राज्य सरकार और भी मजबूती के साथ वैज्ञानिक अध्ययन के जरिए अपनी बात रखना चाहती है, ताकि राज्य को ग्रीन बोनस का बड़ा फंड मिल सके.
उत्तराखंड में तमाम पर्यावरणविद ग्रीन बोनस की राज्य की मांग को सही करार देते रहे हैं. यही नहीं पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने वाले यह वैज्ञानिक इसके पीछे के कारणों को बढ़ाकर ग्रीन बोनस की मांग को और भी मजबूती के साथ सरकार द्वारा रखे जाने की बात भी कहते नजर आए हैं.
पर्यावरण पर काम करने वाले प्रोफेसर एसपी सती कहते हैं कि ग्रीन बोनस राज्य को मिलना जरूरी है और उसके पीछे के कारण यह हैं कि प्रदेश प्रकृति को सहेज कर रखने और संरक्षित रखने के लिए कई बातों में कुर्बानी दे रहा है. लिहाजा इसके लिए एक राहत के रूप में केंद्र की तरफ से राज्य को पर्याप्त बजट देना चाहिए, ताकि प्रदेश में पलायन और दूसरी तमाम दिक्कतों का हल इस बजट के जरिए निकाला जा सके.