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कोरोना का डरः ढाबे से नहीं उठ रहे अंगीठी के धुएं, संचालकों को सता रही देनदारी की चिंता - lockdown dhaba operator chairman story

राज्य में लॉकडाउन के बाद से ही सभी छोटी-बड़ी दुकानें बंद हैं. सड़क किनारे छोटे होटल और ढाबा संचालक इन्हीं में शामिल हैं, जो कि आज परेशानियों के दौर से गुजर रहे हैं. इन ढाबों में काम करने वाले इससे न सिर्फ अपने परिवारों का पेट भरते थे, बल्कि राज्य में आने वाले पर्यटकों को भी खाना उपलब्ध करवाते थे.

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लॉकडाउन के आगे ढाबा संचालकों ने टेके घुटने
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Published : May 30, 2020, 7:16 PM IST

Updated : Jun 2, 2020, 7:34 PM IST

देहरादून: वैश्विक महामारी कोरोना और लॉकडाउन का असर समाज के हर तबके पर पड़ रहा है. सड़क किनारे ढाबा चलाने वाले भी इसकी मार से नहीं बचे हैं. आम तौर पर यात्रियों, गाड़ी और ट्रक चालकों-परिचालकों से गुजलार रहने वाले ढाबों पर इन दिन खामोशी छाई हुई है. लॉकडाउन के बाद से ही इन ढाबा संचालकों पर ऐसी मार पड़ी कि अब इनकी परेशानियां कम होने का नाम नहीं ले रही हैं. जिसके कारण राज्य के ढाबा संचालक मदद के लिए राज्य सरकार से गुहार लगा रहे हैं.


राज्य में लॉकडाउन के बाद से ही सभी छोटी-बड़ी दुकानें बंद हैं. सड़क किनारे के छोटे होटल और ढाबा संचालक इन्हीं में शामिल हैं, जो कि आज परेशानियों के दौर से गुजर रहे हैं. इन ढाबों में काम करने वाले इससे न सिर्फ अपने परिवारों का पेट भरते थे, बल्कि राज्य में आने वाले पर्यटकों को भी खाना उपलब्ध करवाते थे. मगर कोरोना के कारण लगाये गये लॉकडाउन की वजह से इनका कामकाज पूरी तरह से ठप हो गया है. ऐसे में अब इन ढाबा संचालकों को देनदारी की चिंता सता रही है.

लॉकडाउन के आगे ढाबा संचालकों ने टेके घुटने

पढ़ें- कोरोना के लिए दान हुई सबसे बड़ी राशि, PCB ने किया 50 करोड़ का सहयोग

दुकान के किराए और बिजली बिल की सता रही चिंता

राजधानी देहरादून में अधिकतर ढाबा संचालक किराए की दुकानों में ढाबा चलाते हैं. ऐसे में अब बीते कुछ महीनों से लॉकडाउन लागू होने के बाद ढाबा संचालकों की बिक्री तो दूर, दुकान ही नहीं खुल पाई है. लिहाजा अब इन दुकानदारों को चिंता सता रही है कि वह दुकान का किराया, बिजली का बिल कैसे भरेंगे. लिहाजा अब उनके सामने देनदारी का बड़ा संकट खड़ा हो गया है. जिसके कारण ढाबा संचालक राज्य सरकार से गुहार लगा रहे हैं कि उनके लिए कुछ वैकल्पिक व्यवस्था की जाये.

पढ़ें- जीबी पंत पर्यावरण संस्थान ने बनाया हैंड सैनिटाइजर, बताया पूरी तरह सुरक्षित

पर्यटन सीजन में होती है कमाई
ढाबा संचालकों ने बताया कि उनका पर्यटन सीजन में उनके ढाबे पर ज्यादातर ग्राहक आते हैं. पर्यटन सीजन में जो कमाई होती है, उसी कमाई से उनकी रोजी-रोटी पूरे साल चलती है. इस बार पर्यटन पर भी लॉकडाउन की मार पड़ी है. जिसके कारण उनका काम धंधा भी पूरी तरह बर्बाद हो गया है. जिसके कारण अब उनके सामने परिवार की रोजी रोटी के साथ ही बच्चों की फीस की समस्या खड़ी हो गई है.

पढ़ें- करोड़ों रुपए की जीएसटी चोरी मामले में 34 फर्मों के खिलाफ मुकदमा दर्ज


हर महीने 50 हजार से अधिक का नुकसान
वहीं ढाबा संचालकों ने बताया कि इस लॉकडाउन के दौरान करीब हर महीने 50,000 का नुकसान हो रहा है. यही नहीं इसमें ऊपर से ढाबे में काम करने वाले कर्मचारियों का खर्चा, दुकान का किराया, बिजली का बिल समेत अन्य खर्चे अलग से हैं. जिसके कारण उनकी कमर टूट गई है. अब उन्हें समस्या यह भी सता रही है कि न तो वह इस बीच दुकान छोड़ सकते हैं और न घर बैठ सकते हैं.

पढ़ें- रुद्रपुर बाजार में सोशल डिस्टेंसिंग की उड़ीं धज्जियां, व्यापारियों में रोष

ढाबा संचालकों के पास नहीं है ऑनलाइन डिलीवरी की सुविधा
राज्य सरकार ने रेस्टोरेंट संचालकों को राहत देते हुए ऑनलाइन होम डिलीवरी की अनुमति तो दे दी है, लेकिन इसमें भी एक बड़ी समस्या इन ढाबा संचालकों के पास है. क्योंकि इनका ढाबा गरीब, मजदूरों और अन्य राज्यों से आने वाले पर्यटकों के ऊपर निर्भर होता है. ऐसे में अब इन ढाबा संचालकों के पास ऑनलाइन की कोई सुविधा भी नहीं है.

देहरादून: वैश्विक महामारी कोरोना और लॉकडाउन का असर समाज के हर तबके पर पड़ रहा है. सड़क किनारे ढाबा चलाने वाले भी इसकी मार से नहीं बचे हैं. आम तौर पर यात्रियों, गाड़ी और ट्रक चालकों-परिचालकों से गुजलार रहने वाले ढाबों पर इन दिन खामोशी छाई हुई है. लॉकडाउन के बाद से ही इन ढाबा संचालकों पर ऐसी मार पड़ी कि अब इनकी परेशानियां कम होने का नाम नहीं ले रही हैं. जिसके कारण राज्य के ढाबा संचालक मदद के लिए राज्य सरकार से गुहार लगा रहे हैं.


राज्य में लॉकडाउन के बाद से ही सभी छोटी-बड़ी दुकानें बंद हैं. सड़क किनारे के छोटे होटल और ढाबा संचालक इन्हीं में शामिल हैं, जो कि आज परेशानियों के दौर से गुजर रहे हैं. इन ढाबों में काम करने वाले इससे न सिर्फ अपने परिवारों का पेट भरते थे, बल्कि राज्य में आने वाले पर्यटकों को भी खाना उपलब्ध करवाते थे. मगर कोरोना के कारण लगाये गये लॉकडाउन की वजह से इनका कामकाज पूरी तरह से ठप हो गया है. ऐसे में अब इन ढाबा संचालकों को देनदारी की चिंता सता रही है.

लॉकडाउन के आगे ढाबा संचालकों ने टेके घुटने

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दुकान के किराए और बिजली बिल की सता रही चिंता

राजधानी देहरादून में अधिकतर ढाबा संचालक किराए की दुकानों में ढाबा चलाते हैं. ऐसे में अब बीते कुछ महीनों से लॉकडाउन लागू होने के बाद ढाबा संचालकों की बिक्री तो दूर, दुकान ही नहीं खुल पाई है. लिहाजा अब इन दुकानदारों को चिंता सता रही है कि वह दुकान का किराया, बिजली का बिल कैसे भरेंगे. लिहाजा अब उनके सामने देनदारी का बड़ा संकट खड़ा हो गया है. जिसके कारण ढाबा संचालक राज्य सरकार से गुहार लगा रहे हैं कि उनके लिए कुछ वैकल्पिक व्यवस्था की जाये.

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पर्यटन सीजन में होती है कमाई
ढाबा संचालकों ने बताया कि उनका पर्यटन सीजन में उनके ढाबे पर ज्यादातर ग्राहक आते हैं. पर्यटन सीजन में जो कमाई होती है, उसी कमाई से उनकी रोजी-रोटी पूरे साल चलती है. इस बार पर्यटन पर भी लॉकडाउन की मार पड़ी है. जिसके कारण उनका काम धंधा भी पूरी तरह बर्बाद हो गया है. जिसके कारण अब उनके सामने परिवार की रोजी रोटी के साथ ही बच्चों की फीस की समस्या खड़ी हो गई है.

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हर महीने 50 हजार से अधिक का नुकसान
वहीं ढाबा संचालकों ने बताया कि इस लॉकडाउन के दौरान करीब हर महीने 50,000 का नुकसान हो रहा है. यही नहीं इसमें ऊपर से ढाबे में काम करने वाले कर्मचारियों का खर्चा, दुकान का किराया, बिजली का बिल समेत अन्य खर्चे अलग से हैं. जिसके कारण उनकी कमर टूट गई है. अब उन्हें समस्या यह भी सता रही है कि न तो वह इस बीच दुकान छोड़ सकते हैं और न घर बैठ सकते हैं.

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ढाबा संचालकों के पास नहीं है ऑनलाइन डिलीवरी की सुविधा
राज्य सरकार ने रेस्टोरेंट संचालकों को राहत देते हुए ऑनलाइन होम डिलीवरी की अनुमति तो दे दी है, लेकिन इसमें भी एक बड़ी समस्या इन ढाबा संचालकों के पास है. क्योंकि इनका ढाबा गरीब, मजदूरों और अन्य राज्यों से आने वाले पर्यटकों के ऊपर निर्भर होता है. ऐसे में अब इन ढाबा संचालकों के पास ऑनलाइन की कोई सुविधा भी नहीं है.

Last Updated : Jun 2, 2020, 7:34 PM IST
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