देहरादून: उत्तराखंड में लगातार मृत्यु दर बढ़ रही है. कोरोना के मामले भी तेजी से बढ़ रहे हैं. उधर चिकित्सकों की चिंता राज्य में मिल रहे डबल म्यूटेंट ने और भी ज्यादा बढ़ा दी है. चिकित्सकों का मानना है कि होम आइसोलेशन पर चल रहे मरीजों का अचानक ऑक्सीजन लेवल तेजी से कम हो रहा है. जिसके कारण मौत का आंकड़ा बढ़ रहा है.
राज्य में मृत्यु दर बढ़ने से आम लोगों में खौफ बढ़ने लगा है. यूं तो पूरे प्रदेश में ही मरने वालों का आंकड़ा पिछले एक हफ्ते में काफी ज्यादा हुआ है, लेकिन इसका सबसे ज्यादा असर राजधानी देहरादून में हुआ है. देहरादून जिले में 50% से ज्यादा मौतें हो रही हैं. आंकड़ों पर गौर करें तो राज्य में अब तक 1919 मौत हो चुकी हैं. इनमें से 1098 मौत अकेले देहरादून जिले में ही हुई हैं. यानी मौत का आंकड़ा 50% से अधिक राजधानी देहरादून में ही है.
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आज की बात करें तो प्रदेश भर में आज कोरोना से 34 लोगों की मौत हुई है. जिसमें 7 लोगों की मौत देहरादून में हुई है, वहीं अगर पिछले 2 दिन के रिकॉर्ड देखें तो 20 अप्रैल को 24 मरीजों की मौत हुई. इसमें से 22 अकेले देहरादून जिले में हुईं. इससे पहले 19 अप्रैल को कुल 27 मौतें हुई थीं, जिसमें से 13 मौतें अकेले देहरादून जिले में हुई. राज्य में मौत का आंकड़ा हर दिन इसी तरह बढ़ रहा है. उधर लोगों में इस बात को लेकर डर बढ़ रहा है कि संक्रमण के साथ मौतें भी ज्यादा हो रही हैं. इस पर दून मेडिकल कॉलेज के सीएमएस केसी पंत बताते हैं कि प्रदेश में मौत का आंकड़ा अचानक से बढ़ा है. इसकी वजह ज्यादातर लोगों के अस्पताल में देरी से पहुंचना है.
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सीएमएस डॉक्टर केसी पंत के अनुसार होम आइसोलेशन में अचानक लोगों का आक्सीजन लेवल गिर रहा है. जिसके बाद लोग अस्पताल पहुंच रहे हैं. अस्पताल में बेड, वेंटिलेटर और आक्सीजन पर्याप्त मात्रा में नहीं है. मरीजों की संख्या ज्यादा होने के कारण चिकित्सक भी सही से अटेंशन नहीं दे पा रहे हैं, जिसका खामियाजा मरीजों को भुगतना पड़ रहा है.
देहरादून में बढ़ी ऑक्सीजन की खपत
कोरोना के बढ़ते मामलों और डबल म्यूटेंट अटैक के बाद देहरादून में ऑक्सीजन की खपत बढ़ गई है. दस दिन में ये मांग चार गुना तक बढ़ी है, जिसके आने वाले दिनों में और बढ़ने का अनुमान है. दरअसल, कोरोना वायरस से सबसे ज्यादा एसर फेफड़ों पर पड़ता है. इससे मरीजों की श्वास संबंधी समस्याएं बढ़ जाती हैं. ऐसे में ऑक्सीजन का स्तर कम होने पर चिकित्सक तुरंत मरीजों को ऑक्सीजन लगाने की सलाह दे रहे हैं, मगर इसकी कमी ही सरकार और स्वास्थ्य विभाग की परेशानियां बढ़ा रहा है.
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चिकित्सकों की दूसरी चिंता प्रदेश में डबल म्यूटेंट को लेकर भी है. राज्य में वायरस के अलग-अलग स्ट्रेन मिलने से वायरस को लेकर खतरा और भी ज्यादा बढ़ गया है. दरअसल कोरोना के अलग अलग स्ट्रेन का असर भी अलग-अलग है. इसके खतरे भी, वायरस में यूके स्ट्रेन b1.1.7, बी 1.6.1.7 शामिल हैं.
क्या है कोरोना का डबल म्यूटेंट?
म्यूटेशन का मतलब ‘अचानक से हुए कुछ बदलाव’ से है. म्यूटेशन से ही नयी प्रजातियां और नए प्रकार के जीव जन्म लेते हैं. जैव विकास में म्यूटेशन एक बहुत जरूरी प्रक्रिया मानी जाती है. अब कोरोना वायरस यानी SARS-CoV-2 के बारे में बात करें तो डबल म्यूटेंट उसमें एक के बाद एक दो म्यूटेशन हुए. पहले म्यूटेशन को कहा गया E484Q और दूसरे म्यूटेशन को कहा गया L452R. इन दो म्यूटेशन के बाद डबल म्यूटेंट वायरस ने जन्म लिया, जिसे वैज्ञानिक नाम दिया गया B.1.617.
क्यों खतरनाक है यह वायरस?
नया म्यूटेशन दो म्यूटेशंस के जेनेटिक कोड (E484Q और L452R) से है. जहां ये दोनों म्यूटेशंस ज्यादा संक्रमण दर के लिए जाने जाते हैं, वहीं यह पहली बार है कि दोनों म्यूटेशन एकसाथ मिल गए हैं जिससे कि वायरस ने कई गुना ज्यादा संक्रामक और खतरनाक रूप ले लिया है.
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डबल म्यूटेंट वैरिएंट ज्यादा संक्रामक है. नया वेरिएंट पुराने वेरिएंट की तुलना में 70 फीसदी अधिक फैलने की क्षमता रखता है. इसमें इम्यूनिटी से बच निकलने की क्षमता है. हो सकता है कि इसी वजह से यह ज्यादा गंभीर रोगियों, वैक्सीनेटेड लोगों में इन्फेक्शन और अन्य में रीइन्फेक्शन का कारण बन रहा है. ये युवाओं को भी बीमार कर रहा है, जिनकी वजह से यह तेजी से फैल रहा है.
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चिकित्सक मानते हैं कि डबल म्यूटेंट वेरिएंट का लोगों में प्रसार भी काफी तेजी से होता है. खास बात यह है कि इस म्यूटेंट के मरीजों में कोई लक्षण नहीं दिखाई देते. वह इस बीमारी से बेफिक्र रहता है. लिहाजा ऐसी स्थिति में खुद को लगातार मॉनिटर करना बेहद जरूरी है.