देहरादून: आज हम आपको एक ऐसी शक्ति पीठ के बारे में बताने जा रहे हैं, जो उत्तराखंड और उत्तरप्रदेश के बॉर्डर पर स्थित है. यह शक्ति पीठ माता सती के 9 शक्ति पीठों में से एक है, जिसे मां डाटकाली मंदिर के नाम से जाना जाता है. मां डाटकाली के मंदिर को भगवान शिव की पत्नी सती का अंश माना गया है. यह मंदिर देहरादून शहर से 14 किलोमीटर दूर देहरादून-सहारनपुर हाइवे पर स्थित है. इस मंदिर का निर्माण 13 जून 1804 में करवाया गया था.
यहां सुरंग की खुदाई में मिली थी मां काली की मूर्ति, आज दूर-दूर से दर्शन करने आते हैं श्रद्धालु
बताया जाता है कि जब अंग्रेज दून घाटी आ रहे थे, तब अंग्रेजों को दून घाटी में प्रवेश करने के लिए सुरंग बनाने की जरूरत पड़ी थी. जिसके बाद अंग्रेजो ने यहां सुरंग बनाना शुरू किया. सुरंग बनाने के लिए खुदाई करते समय यहां मां काली की मूर्ति निकली थी. मूर्ति निकलने के बाद सुरंग बनाने का काम शुरू कर दिया गया.
देहरादून: आज हम आपको एक ऐसी शक्ति पीठ के बारे में बताने जा रहे हैं, जो उत्तराखंड और उत्तरप्रदेश के बॉर्डर पर स्थित है. यह शक्ति पीठ माता सती के 9 शक्ति पीठों में से एक है, जिसे मां डाटकाली मंदिर के नाम से जाना जाता है. मां डाटकाली के मंदिर को भगवान शिव की पत्नी सती का अंश माना गया है. यह मंदिर देहरादून शहर से 14 किलोमीटर दूर देहरादून-सहारनपुर हाइवे पर स्थित है. इस मंदिर का निर्माण 13 जून 1804 में करवाया गया था.
Datkali Temple in dehradun
यहां सुरंग की खुदाई में मिली थी मां काली की मूर्ति, मंदिर बना लोगों के आस्था का केन्द्र
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देहरादून: आज हम आपको एक ऐसी शक्ति पीठ के बारे में बताने जा रहे हैं, जो उत्तराखंड और उत्तरप्रदेश के बॉर्डर पर स्थित है. यह शक्ति पीठ माता सती के 9 शक्ति पीठों में से एक है, जिसे मां डाटकाली मंदिर के नाम से जाना जाता है. मां डाटकाली के मंदिर को भगवान शिव की पत्नी सती का अंश माना गया है. यह मंदिर देहरादून शहर से 14 किलोमीटर दूर देहरादून-सहारनपुर हाइवे पर स्थित है. इस मंदिर का निर्माण 13 जून 1804 में करवाया गया था.
बताया जाता है कि जब अंग्रेज दून घाटी आ रहे थे, तब अंग्रेजों को दून घाटी में प्रवेश करने के लिए सुरंग बनाने की जरूरत पड़ी थी. जिसके बाद अंग्रेजो ने यहां सुरंग बनाना शुरू किया. सुरंग बनाने के लिए खुदाई करते समय यहां मां काली की मूर्ति निकली थी. मूर्ति निकलने के बाद सुरंग बनाने का काम शुरू कर दिया गया.
बताया जाता है कि दिन भर सुरंग बनाने के बाद जब मजदूर रात को सो जाते थे तो सुरंग का दिन में किया गया पूरा कार्य रात को फिर से टूट जाता था. जिस वजह से सुरंग का काम पूरा नहीं हो पा रहा था. कहते हैं कि इसके बाद एक रात मां काली ने एक इंजीनियर के सपने में आकर मंदिर की स्थापना करने को कहा. जिसके बाद सुरंग के पास ही मां काली का मंदिर बनवाया गया. जिसमें खुदाई में निकली मां काली की मूर्ति को मंदिर में स्थापित किया गया. मंदिर स्थापित करने के साथ ही सुरंग का काम भी पूरा हो गया.
मान्यता है कि लोग आज भी कोई नया काम शुरू करने से पहले डाटकाली मंदिर में माथा टेकने जरूर आते हैं. साथ ही जो लोग नया वाहन खरीदते हैं वे लोग वाहन खरीदने के बाद सबसे पहले मां काली के दर्शन करने आते हैं.
गढ़वाली भाषा मे सुरंग को डाट कहते हैं. जिस वजह से मां काली के इस मंदिर को मां डाटकाली मंदिर के नाम से जाना जाने लगा.
राज्य सरकार ने साल 2018 में यहां नयी सुरंग बनाई है. लेकिन आज भी भक्त पुरानी सुरंग से ही जाते है क्योंकि मां काली की मूर्ति इसी सुरंग को बनाने के दौरान मिली थी.
Conclusion: