देहरादून: उत्तराखंड विधानसभा चुनाव के 10 मार्च को नतीजे आने हैं. अब चुनावी परिणाम आने में सात दिन ही शेष बचे हुए हैं. चुनाव परिणाम से पहले भाजपा-कांग्रेस में घमासान मचा हुआ है. राजनीतिक पार्टियों के साथ-साथ जनता भी चुनावी परिणाम का इंतजार कर रही है. प्रदेश में किसकी सरकार बनेगी इसका फैसला 10 मार्च को ईवीएम खुलने के बाद ही पता चलेगा. हालांकि राजनीतिक जानकारों के मुताबिक विगत चुनावों की अपेक्षा इस बार बेहद चौंकाने वाले परिणाम सामने आ सकते हैं. क्योंकि इस बार राज्य का कोई लहर नहीं थी और मतदाता ने शांतिपूर्ण ढंग से मतदान किया है.
632 उम्मीदवारों की किस्मत का फैसला: इस बार उत्तराखंड विधानसभा चुनाव-2022 में दोनों राष्ट्रीय पार्टियों के अलावा अन्य दलों के 632 उम्मीदवार चुनावी मैदान में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं. वहीं दूसरी ओर राज्य में नई सरकार गठन से पहले ही शासन-प्रशासन में निचले स्तर के अधिकारियों से लेकर उच्च अधिकारी सरकारी तंत्र के कामकाज और योजनाओं की रिपोर्ट तैयार कर रहे हैं. वहीं, दोनों ही पार्टियों के कार्यकर्ता सरकार बनने के बाद के चुनावी एजेंडे में काम करने की योजना बना रहे हैं.
चौंकाने वाले हो सकते हैं परिणाम: उत्तराखंड राज्य के वरिष्ठ राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना हैं कि 2017 के मुकाबले 2022 के चुनाव में शांतिपूर्ण ढंग से मतदान हुआ है. ऐसा माना जा रहा है कि विगत चुनावों की अपेक्षा इस बार परिणाम बेहद चौंकाने वाले सामने आ सकते हैं. हालांकि भाजपा और कांग्रेस प्रदेश में बहुमत से अपनी सरकार बनाने का दावा कर रही हैं. दोनों ही पार्टियां अलग-अलग सीटों में अपना समीकरण और गुणा भाग करके बहुमत वाली सरकार बनाने का दावा कर रही हैं.
महंगाई, पलायन, बेरोजगारी रहे मुद्दा: इस चुनाव में कार्यकर्ता जनता को महंगाई और बेरोजगारी सहित पलायन जैसे मुद्दों पर ध्यान देने की अपील कर रहे थे. इन मुद्दों पर कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने काफी हद तक चुनाव को लपेटने की कोशिश की. वहीं दूसरी ओर भाजपा के स्टार प्रचारकों ने जनसभा या वर्चुअल तरीके से चुनाव प्रचार-प्रसार किया. भाजपा के नेता सभी जनसभाओं में महंगाई, बेरोजगारी और पलायन जैसे खास मुद्दों पर बातचीत करती हुए दिखाई दिए थे.
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मुस्लिम विवि का मुद्दा उछालने से हुआ था ध्रुवीकरण का प्रयास: जानकार मानते हैं कि 2022 के चुनाव में धार्मिक भावनाएं जिसमें मुस्लिम यूनिवर्सिटी जैसे मुद्दे उठाकर मतदान ध्रुवीकरण का प्रयास भी किया गया. भाजपा ने दोनों ही मुद्दों पर मतों का ध्रुवीकरण करने का प्रयास किया. हालांकि इस तरह के चुनावी वायदे के जुमले को जनता समझती है. वहीं, कांग्रेस नेता हरीश रावत ने मुस्लिम यूनिवर्सिटी बनाने के मामले को उछाल मुस्लिम क्षेत्र में वोटरों को लुभाने की कोशिश की. वहीं दूसरी तरफ भाजपा ने इसी मुद्दे को लेकर हिंदू मतदाताओं को अपने पाले में लाने की कोशिश की.
राजनीतिक जानकार ये कह रहे हैं: राजनीतिक जानकार भागीरथ शर्मा के मुताबिक भाजपा हो या कांग्रेस दोनों ही पार्टियों को बड़ा बहुमत नहीं मिल रहा है. ऐसे में गठबंधन वाली सरकार आती है तो राज्य को शायद पहले के मुकाबले फायदा मिल सकता है. क्योंकि 2017 चुनाव में भाजपा को प्रचंड बहुमत 57 सीटें मिलने से कई तरह के राजनीतिक नुकसान भी देखने को मिले. जहां एक तरफ प्रचंड बहुमत सरकार में शामिल मंत्री विधायक की सुनवाई न होने की शिकायतें सामने आई तो वहीं दूसरी तरफ विपक्ष कम सीटों की वजह से विपक्ष की भूमिका नहीं निभा सका.