देहरादून: कोरोना वायरस से देहरादून के दून महिला अस्पताल में तीन जिंदगियों ने हार मान ली. हरिद्वार निवासी सबा हसन संक्रमण के बेहद ज्यादा होने के बाद महिला अस्पताल पहुंची थीं. यहां उन्हें बचाने के चिकित्सकों के सारे प्रयास विफल रहे. कई हफ्तों से अस्पताल में भर्ती गर्भवती महिला अपने जुड़वा बच्चों के जन्म की चाहत लिए इस दुनिया से विदा हो गई.
कोरोना संक्रमण से मृत्यु दर में एकाएक बढ़ोत्तरी हर किसी के दिल में खौफ पैदा कर रही है. अबतक बुजुर्गों और बीमार मरीजों के लिए घातक हो रहे वायरस का प्रकोप युवा और गर्भवती महिलाओं को भी निगल रहा है. देहरादून के दून मेडिकल कॉलेज महिला अस्पताल से भी ऐसा ही एक मामला आया है. जिसको लेकर अस्पताल की चिकित्सक टीम भी खुद को भावुक होने से नहीं रोक पाई. मामला हरिद्वार निवासी सबा हसन का है, जो अपने गर्भ में जुड़वा बच्चों को पाल रही थी. लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था. करीब 6 महीने की गर्भवती सबा कोरोना से संक्रमित हो गई थी. कुछ समय गर्भवती महिला का इलाज हरिद्वार में चला. मगर जब संक्रमण लोड बढ़ गया, तब महिला को देहरादून में हायर सेंटर दून मेडिकल कॉलेज महिला अस्पताल में लाया गया.
पढ़ें- कोरोनाकाल में संवेदनहीन हुए सांसद! मिन्नत का भी असर नहीं
संक्रमण को देखते हुए न केवल महिला को बचाना चिकित्सकों के लिए एक बड़ी चुनौती था, बल्कि उसके गर्भ को भी सुरक्षित रखना एक बड़ा काम था. लिहाजा टीम ने क्लोज मॉनिटरिंग के जरिए हर घंटे गर्भवती महिला के स्वास्थ्य पर निगरानी रखी. एक बार लगा कि महिला संक्रमण को मात देते हुए सरवाइव कर लेगी. लेकिन इसके बाद उसकी हालत बिगड़ने लगी. सबा हसन की हालत बिगड़ने की स्थिति में चिकित्सकों की टीम ने उसे वेंटिलेटर पर रखकर ऑक्सीजन लेवल नार्मल करने की हर कोशिश की. मौत से लड़ाई लड़ती सबा मंगलवार को अपनी जिंदगी की जंग हार गई.
पढ़ें- ईटीवी भारत रियलिटी चेक : सांसद ने देर रात सुनी फरियाद, पेश की नजीर
बताया गया कि सबा शारीरिक रूप से बेहद कमजोर हो गई थी. गर्भ से जुड़ी भी कई पेचीदगियां सामने आने लगी थीं. इस दौरान ऑक्सीजन लेवल भी कम हो रहा था. संक्रमण से बचाने के लिए चिकित्सकों ने प्लाज्मा थेरेपी का उपयोग करना भी चाहा लेकिन अस्पताल को प्लाज्मा नहीं मिल पाया.
पढ़ें- REALITY CHECK: मरीज से बोले CMO- पहले सीएम कर लें उद्घाटन फिर करेंगे भर्ती
दून मेडिकल कॉलेज महिला अस्पताल में हर रोज करीब 20 से 25 गर्भवती महिलाएं होती हैं. खास बात यह है कि महिला चिकित्सकों के सामने न केवल इनकी सफल डिलीवरी की चुनौती होती है, बल्कि संक्रमण से जूझ रही महिलाओं को भी ठीक करने की जिम्मेदारी होती है. दून मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. आशुतोष सयाना बताते हैं कि सबा हसन को लेकर चिकित्सकों की टीम ने हर संभव प्रयास किया, लेकिन उसे बचाया नहीं जा सका. इसी तरह चिकित्सकों की टीम 24 घंटा मरीजों पर निगरानी कर रही है. संक्रमित गर्भवती महिलाओं का विशेष ध्यान रखा जा रहा है.