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कोरोना महामारी की मार, बेरोजगारी के बोझ तले दबा 'पहाड़' - Corona epidemic

देश-दुनिया में कोरोना महामारी ने कहर बरपा रखा है. कोरोना काल में सभी जगहों पर काम धंधे ठप पड़ गए हैं. लोगों को अपना काम धंधा छोड़कर अपने घर वापस लौटना पड़ा है. अब पहाड़ लौटे इन प्रवासियों के सामने रोजी-रोटी का संकट गहराने लगा है. ऐसे में पहले से बेरोजगारी की मार झेल रहे पहाड़ में अब बेरोजगारों की फौज खड़ी हो गई है.

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बेरोजगारी के बोक्ष तले 'पहाड़'
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Published : Jun 12, 2020, 2:32 PM IST

Updated : Jun 12, 2020, 2:54 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड में बेरोजगारी दर अपने चरम पर है. पहले से ही प्रदेश में लाखों बेरोजगार युवाओं की फौज थी. अब कोरोना महामारी के इस दौर में हजारों नए बेरोजगारों की संख्या बढ़ गई है. हालात ये हैं कि निजी क्षेत्रों की कंपनियां वित्तीय संकट के चलते कर्मचारियों की तनख्वाह काटने और छंटनी करने को मजबूर हो गई हैं. उधर, सरकार ने आर्थिक नुकसान और बेरोजगारों की स्थिति को लेकर कैबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल की अध्यक्षता में कमेटी का गठन भी किया है. देखिये स्पेशल रिपोर्ट...

13 में से सिर्फ 3 जिलों में ही हैं उद्योग

राज्य के 13 जिलों में से मात्र 3 जिलों में ही उद्योग स्थापित हैं. MSME यानी सूक्ष्म, लघु और मध्यम वर्ग के उद्योगों से लेकर बड़े उद्योग तक मैदानी जिलों में ही स्थापित हैं. पहाड़ी जिले पर्यटन और खेती पर ही निर्भर दिखाई देते हैं. वहीं, कोरोना वायरस की मार ने देवभूमि के युवाओं के लिए दोनों ही जगहों पर नौकरियों का संकट पैदा कर दिया है.

छंटनी बढ़ाएगी बेरोजगारी

दरअसल, पर्यटन क्षेत्र में ही करीब 2 लाख से ज्यादा लोग प्रभावित हुए हैं. इसी तरह मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स में 1 लाख से ज्यादा युवाओं को छंटनी का शिकार होना पड़ सकता है. हालांकि, छंटनी की शुरुआत तमाम सेक्टर्स में दिखाई भी देने लगी है. चिंता की बात तो ये है कि आने वाले वक्त में निजी सेक्टर्स में आर्थिक कठिनाइयों से हालात और बिगड़ेंगे. जानकार बताते हैं कि स्थितियां कठिन हैं और हमें और मुश्किल हालातों के लिए तैयार रहना होगा.

MSME में काम करते हैं 4 लाख युवा

प्रदेश में करीब 56 हजार लघु, सूक्ष्म और मध्यम वर्ग के उद्योग हैं. इनमें 4 लाख से ज्यादा युवा काम करते हैं और इसमें 20 हजार करोड़ की पूंजी निवेश हुई है. इसी तरह सूबे में 300 के करीब बड़े उद्योग हैं जिसमें लाखों युवा नौकरी कर रहे हैं. कुल रोजगार के लिहाज से देखा जाए तो करीब 31 प्रतिशत लोग उद्योगों में काम कर रहे हैं. वहीं, सेवा क्षेत्र से 64 प्रतिशत लोग राज्य में अपनी जीविका चला रहे हैं. कृषि में मात्र 6 प्रतिशत लोग ही काम कर रहे हैं.

ये भी पढ़ें: गांव लौटे युवाओं ने पेश की आत्मनिर्भरता की मिसाल, अपने दम पर बना रहे रोड

सबसे ज्यादा खतरा सेवा और उद्योग के कर्मचारियों को

सबसे ज्यादा बेरोजगार होने का खतरा सेवा क्षेत्र और उद्योगों में काम करने वालों पर मंडरा रहा है. आपको बता दें कि उत्तराखंड में पहले ही बेरोजगारी दर अपने सर्वोच्च स्तर पर है. एक आकलन के अनुसार बेरोजगारी दर करीब 14 फीसदी पहुंच गई है, जबकि कोरोना के चलते यह आंकड़ा 20 फीसदी तक पहुंचने की आशंका है. उत्तराखंड के लिए मुश्किलें इसलिए भी ज्यादा हैं क्योंकि यहां छोटे उद्योगों, काम-धंधों में ज्यादा रोजगार के अवसर हैं और यही क्षेत्र वित्तीय संकट को झेलने में सबसे ज्यादा कमजोर हैं.

10 लाख पार कर गई बेरोजगारों की संख्या

प्रदेश में सरकारी आंकड़ों में ही बेरोजगारों की संख्या करीब 9 लाख है. जबकि, करीब तीन लाख प्रवासियों के उत्तराखंड आने के बाद यह आंकड़ा 10 लाख को पार कर चुका है. इधर, नौकरियों में छंटनी से भी बेरोजगारों की संख्या बढ़ेगी. इसके लिए काम धंधों को वित्तीय मदद ही एकमात्र रास्ता है ताकि, उद्योग धंधे बच सकें. केंद्र सरकार ने एक बड़े बजट को भी इसी उद्देश्य से जारी किया है. लेकिन इस बजट का कमजोर उद्योग धंधों तक पहुंचना जरूरी है. यही नहीं बाजारों में भी फिर से हालात सामान्य होने बेहद जरूरी हैं. वहीं, बैंकों में लोन देने की प्रक्रिया को और सरल करने की जरूरत है.

देहरादून: उत्तराखंड में बेरोजगारी दर अपने चरम पर है. पहले से ही प्रदेश में लाखों बेरोजगार युवाओं की फौज थी. अब कोरोना महामारी के इस दौर में हजारों नए बेरोजगारों की संख्या बढ़ गई है. हालात ये हैं कि निजी क्षेत्रों की कंपनियां वित्तीय संकट के चलते कर्मचारियों की तनख्वाह काटने और छंटनी करने को मजबूर हो गई हैं. उधर, सरकार ने आर्थिक नुकसान और बेरोजगारों की स्थिति को लेकर कैबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल की अध्यक्षता में कमेटी का गठन भी किया है. देखिये स्पेशल रिपोर्ट...

13 में से सिर्फ 3 जिलों में ही हैं उद्योग

राज्य के 13 जिलों में से मात्र 3 जिलों में ही उद्योग स्थापित हैं. MSME यानी सूक्ष्म, लघु और मध्यम वर्ग के उद्योगों से लेकर बड़े उद्योग तक मैदानी जिलों में ही स्थापित हैं. पहाड़ी जिले पर्यटन और खेती पर ही निर्भर दिखाई देते हैं. वहीं, कोरोना वायरस की मार ने देवभूमि के युवाओं के लिए दोनों ही जगहों पर नौकरियों का संकट पैदा कर दिया है.

छंटनी बढ़ाएगी बेरोजगारी

दरअसल, पर्यटन क्षेत्र में ही करीब 2 लाख से ज्यादा लोग प्रभावित हुए हैं. इसी तरह मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स में 1 लाख से ज्यादा युवाओं को छंटनी का शिकार होना पड़ सकता है. हालांकि, छंटनी की शुरुआत तमाम सेक्टर्स में दिखाई भी देने लगी है. चिंता की बात तो ये है कि आने वाले वक्त में निजी सेक्टर्स में आर्थिक कठिनाइयों से हालात और बिगड़ेंगे. जानकार बताते हैं कि स्थितियां कठिन हैं और हमें और मुश्किल हालातों के लिए तैयार रहना होगा.

MSME में काम करते हैं 4 लाख युवा

प्रदेश में करीब 56 हजार लघु, सूक्ष्म और मध्यम वर्ग के उद्योग हैं. इनमें 4 लाख से ज्यादा युवा काम करते हैं और इसमें 20 हजार करोड़ की पूंजी निवेश हुई है. इसी तरह सूबे में 300 के करीब बड़े उद्योग हैं जिसमें लाखों युवा नौकरी कर रहे हैं. कुल रोजगार के लिहाज से देखा जाए तो करीब 31 प्रतिशत लोग उद्योगों में काम कर रहे हैं. वहीं, सेवा क्षेत्र से 64 प्रतिशत लोग राज्य में अपनी जीविका चला रहे हैं. कृषि में मात्र 6 प्रतिशत लोग ही काम कर रहे हैं.

ये भी पढ़ें: गांव लौटे युवाओं ने पेश की आत्मनिर्भरता की मिसाल, अपने दम पर बना रहे रोड

सबसे ज्यादा खतरा सेवा और उद्योग के कर्मचारियों को

सबसे ज्यादा बेरोजगार होने का खतरा सेवा क्षेत्र और उद्योगों में काम करने वालों पर मंडरा रहा है. आपको बता दें कि उत्तराखंड में पहले ही बेरोजगारी दर अपने सर्वोच्च स्तर पर है. एक आकलन के अनुसार बेरोजगारी दर करीब 14 फीसदी पहुंच गई है, जबकि कोरोना के चलते यह आंकड़ा 20 फीसदी तक पहुंचने की आशंका है. उत्तराखंड के लिए मुश्किलें इसलिए भी ज्यादा हैं क्योंकि यहां छोटे उद्योगों, काम-धंधों में ज्यादा रोजगार के अवसर हैं और यही क्षेत्र वित्तीय संकट को झेलने में सबसे ज्यादा कमजोर हैं.

10 लाख पार कर गई बेरोजगारों की संख्या

प्रदेश में सरकारी आंकड़ों में ही बेरोजगारों की संख्या करीब 9 लाख है. जबकि, करीब तीन लाख प्रवासियों के उत्तराखंड आने के बाद यह आंकड़ा 10 लाख को पार कर चुका है. इधर, नौकरियों में छंटनी से भी बेरोजगारों की संख्या बढ़ेगी. इसके लिए काम धंधों को वित्तीय मदद ही एकमात्र रास्ता है ताकि, उद्योग धंधे बच सकें. केंद्र सरकार ने एक बड़े बजट को भी इसी उद्देश्य से जारी किया है. लेकिन इस बजट का कमजोर उद्योग धंधों तक पहुंचना जरूरी है. यही नहीं बाजारों में भी फिर से हालात सामान्य होने बेहद जरूरी हैं. वहीं, बैंकों में लोन देने की प्रक्रिया को और सरल करने की जरूरत है.

Last Updated : Jun 12, 2020, 2:54 PM IST
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