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कोर्ट कचहरी में रहा ज्योतिष पीठ का मामला, जानिए शंकाचार्य एवं उत्तराधिकारी बनने की प्रक्रिया - शंकाचार्य व उत्तराधिकारी बनने की प्रक्रिया

स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद को ज्योतिष पीठ बदरीनाथ का प्रमुख घोषित किया गया है. जबकि, स्वामी सदानंद को द्वारका शारदा पीठ का प्रमुख घोषित किया गया है, लेकिन ज्योतिष पीठ का विवादों से नाता रहा है. इतना ही नहीं ये मामला कोर्ट कचहरी तक गया.

Jyotish Peeth
ज्योतिष पीठ का मामला
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Published : Sep 12, 2022, 6:22 PM IST

देहरादूनः शारदापीठ और ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती (Shankaracharya Swami Swaroopanand Saraswati) के ब्रह्मलीन हो चुके हैं. अब उनके देह को समाधि देने से पहले पूरे विधि विधान के साथ उनके उत्तराधिकारी की भी घोषणा हो गई है. स्वामी स्वरूपानंद जो विल छोड़कर गए, उसके अनुसार ज्योतिष पीठ (ज्योतिर पीठ) के नए शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती होंगे. जबकि, शारदा पीठ के नए शंकराचार्य सदानंद सरस्वती को बनाया गया है. उत्तराखंड की ज्योतिष पीठ (Jyotish Peeth in Uttarakhand) हमेशा से ही विवादों में रही है.

क्या है ज्योतिष पीठ पर विवाद? ये विवाद साल 1989 में शुरू हुई, जब वासुदेवानंद महाराज ने बदरी पीठ पर अपना अधिकार जमाया था. उन्होंने ये दावा किया कि ज्योतिष पीठ जिसे बदरीनाथ पीठ (Badrinath Peeth) भी कहते हैं, उसके शंकराचार्य वो खुद हैं. ये मामला कोर्ट में भी पंहुचा. जिस पर कोर्ट ने ज्यादा कुछ नहीं कहा और इस पूरे मामले को धार्मिक संस्थाओं के हवाले कर दिया. साथ ही कहा कि वो ये तय करें कि कौन संत किस का शंकराचार्य है? लेकिन कोर्ट ने ये जरूर अपनी बयान में कहा था कि ये सभी प्रक्रिया 1041 के तहत होनी चाहिए. बात तब शुरू हुई, जब ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य विष्णु देवानंद का निधन हो गया.
ये भी पढ़ेंः शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती हुए ब्रह्मलीन, CM धामी सहित संतों ने जताया दुख

8 अप्रैल 1989 को ज्योतिष पीठ (Jyotish Peeth) के संत कृष्ण बोधश्रम की वसीयत के आधार पर स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने खुद को शंकराचार्य घोषित कर दिया. ये सब इतना अचानक हुआ कि किसी को कुछ समझने और जानने का मौका तक नहीं मिला, लेकिन उसके बाद अचानक से शांतानंद महाराज ने 15 अप्रैल 1989 को स्वामी वासुदेवानंद (Swami Vasudevananda) को भी शंकराचार्य की उपाधि से नवाज दिया. मामला उलझा हुआ था, लिहाजा वासुदेवानंद महाराज कोर्ट चले गए, लेकिन पुख्ता कागज और गवाहों की वजह से कोर्ट ने 5 मई 2015 को स्वरूपानंद के पक्ष में फैसला सुनाया.
ये भी पढ़ेंः शंकराचार्य स्वरूपानंद के उत्तराधिकारी घोषित, अविमुक्तेश्वरानंद ज्योतिष पीठ के प्रमुख बने

स्वरूपानंद के पक्ष में फैसला आया तो वासुदेवानंद खफा थे. लिहाजा, उन्होंने नैनीताल हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और इसके बाद लंबी बहस चली. हाईकोर्ट ने भी वासुदेवानंद को संत मानने से इंकार लिया. क्योंकि कोर्ट ने कहा कि वो साल 1989 तक सरकारी नौकरी से वेतन ले रहे थे. मामला लंबा खिंचता चला गया. लिहाजा, धर्मसंसद में एक बार सभी ने स्वामी स्वरूपानंद के पक्ष में फैसला सुनाया और उन्हें ही ज्योतिष पीठ का शंकराचार्य बताया. इस बीच दोनों संतों एक दूसरे के खिलाफ बहुत बयानबाजी करते रहे. इतना ही नहीं अविमुक्तेश्वरानंद ने तो अपने ऊपर हमले का भी आरोप दूसरे पक्ष के संत पर लगाया था.

कैसे तय हुआ अगले उत्तराधिकारी और शंकराचार्य का नाम? स्वामी स्वरूपानंद के जाने के बाद वो पहले ही अपने उत्तराधिकारी का नाम तय कर गए थे. लिहाजा, ऐसा नहीं है कि सिर्फ नाम तय करने से शंकाचार्य बन जाता है. उसके लिए कई तरह की परीक्षा से गुजरना पड़ता है. जिसमें वो त्यागी ब्राह्मण हो, ब्रह्मचारी हो, दंडी संन्यासी हो, चतुर्वेद-वेदांत व पुराण का ज्ञाता हो. किसी भी राजनीतिक पार्टी या विचार से न जुड़ा हो. स्वामी अविमुक्तस्वरानंद (Swami Avimukteshwaranand Jyotish Peeth Head) बेहद ज्ञानी और निडर संतों में से एक हैं. उनके नाम की पहले ही घोषणा हो चुकी थी, जिसकी मुहर पहले ही काशी विद्वत परिषद लगा चुका है.
ये भी पढ़ेंः हरिद्वार के संतों ने की शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती को भारत रत्न देने की मांग

देहरादूनः शारदापीठ और ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती (Shankaracharya Swami Swaroopanand Saraswati) के ब्रह्मलीन हो चुके हैं. अब उनके देह को समाधि देने से पहले पूरे विधि विधान के साथ उनके उत्तराधिकारी की भी घोषणा हो गई है. स्वामी स्वरूपानंद जो विल छोड़कर गए, उसके अनुसार ज्योतिष पीठ (ज्योतिर पीठ) के नए शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती होंगे. जबकि, शारदा पीठ के नए शंकराचार्य सदानंद सरस्वती को बनाया गया है. उत्तराखंड की ज्योतिष पीठ (Jyotish Peeth in Uttarakhand) हमेशा से ही विवादों में रही है.

क्या है ज्योतिष पीठ पर विवाद? ये विवाद साल 1989 में शुरू हुई, जब वासुदेवानंद महाराज ने बदरी पीठ पर अपना अधिकार जमाया था. उन्होंने ये दावा किया कि ज्योतिष पीठ जिसे बदरीनाथ पीठ (Badrinath Peeth) भी कहते हैं, उसके शंकराचार्य वो खुद हैं. ये मामला कोर्ट में भी पंहुचा. जिस पर कोर्ट ने ज्यादा कुछ नहीं कहा और इस पूरे मामले को धार्मिक संस्थाओं के हवाले कर दिया. साथ ही कहा कि वो ये तय करें कि कौन संत किस का शंकराचार्य है? लेकिन कोर्ट ने ये जरूर अपनी बयान में कहा था कि ये सभी प्रक्रिया 1041 के तहत होनी चाहिए. बात तब शुरू हुई, जब ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य विष्णु देवानंद का निधन हो गया.
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8 अप्रैल 1989 को ज्योतिष पीठ (Jyotish Peeth) के संत कृष्ण बोधश्रम की वसीयत के आधार पर स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने खुद को शंकराचार्य घोषित कर दिया. ये सब इतना अचानक हुआ कि किसी को कुछ समझने और जानने का मौका तक नहीं मिला, लेकिन उसके बाद अचानक से शांतानंद महाराज ने 15 अप्रैल 1989 को स्वामी वासुदेवानंद (Swami Vasudevananda) को भी शंकराचार्य की उपाधि से नवाज दिया. मामला उलझा हुआ था, लिहाजा वासुदेवानंद महाराज कोर्ट चले गए, लेकिन पुख्ता कागज और गवाहों की वजह से कोर्ट ने 5 मई 2015 को स्वरूपानंद के पक्ष में फैसला सुनाया.
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स्वरूपानंद के पक्ष में फैसला आया तो वासुदेवानंद खफा थे. लिहाजा, उन्होंने नैनीताल हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और इसके बाद लंबी बहस चली. हाईकोर्ट ने भी वासुदेवानंद को संत मानने से इंकार लिया. क्योंकि कोर्ट ने कहा कि वो साल 1989 तक सरकारी नौकरी से वेतन ले रहे थे. मामला लंबा खिंचता चला गया. लिहाजा, धर्मसंसद में एक बार सभी ने स्वामी स्वरूपानंद के पक्ष में फैसला सुनाया और उन्हें ही ज्योतिष पीठ का शंकराचार्य बताया. इस बीच दोनों संतों एक दूसरे के खिलाफ बहुत बयानबाजी करते रहे. इतना ही नहीं अविमुक्तेश्वरानंद ने तो अपने ऊपर हमले का भी आरोप दूसरे पक्ष के संत पर लगाया था.

कैसे तय हुआ अगले उत्तराधिकारी और शंकराचार्य का नाम? स्वामी स्वरूपानंद के जाने के बाद वो पहले ही अपने उत्तराधिकारी का नाम तय कर गए थे. लिहाजा, ऐसा नहीं है कि सिर्फ नाम तय करने से शंकाचार्य बन जाता है. उसके लिए कई तरह की परीक्षा से गुजरना पड़ता है. जिसमें वो त्यागी ब्राह्मण हो, ब्रह्मचारी हो, दंडी संन्यासी हो, चतुर्वेद-वेदांत व पुराण का ज्ञाता हो. किसी भी राजनीतिक पार्टी या विचार से न जुड़ा हो. स्वामी अविमुक्तस्वरानंद (Swami Avimukteshwaranand Jyotish Peeth Head) बेहद ज्ञानी और निडर संतों में से एक हैं. उनके नाम की पहले ही घोषणा हो चुकी थी, जिसकी मुहर पहले ही काशी विद्वत परिषद लगा चुका है.
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