देहरादून: पिछले दिनों हरिद्वार में विश्व हिंदू परिषद की दो दिवसीय बैठक के दौरान साधु-संतों का जुटना उत्तराखंड की राजनीति में बड़ी बहस की वजह बन गया है. एक तरफ भाजपा सनातन धर्म के अनुयायी के रूप में साधु संतों का समर्थन होने का दावा कर रही है तो दूसरी तरफ कांग्रेस ने इसे कुछ एक साधु संतों के समर्थन से जोड़ते हुए साधुओं का आशीर्वाद मिलने का भरोसा जताया है.
कर्नाटक विधानसभा चुनाव में जीत के बाद कांग्रेस के नेताओं का मनोबल काफी बढ़ा है. इस बीच भाजपा आगामी लोकसभा चुनाव में कर्नाटक जैसे परिणामों को नहीं दोहराना चाहती. लिहाजा सभी समाज और वर्ग को पार्टी से जुड़ने के लिए संपर्क अभियान चलाए जा रहे हैं. इस कड़ी में उत्तराखंड के हरिद्वार में पिछले दिनों हुई विश्व हिंदू परिषद की दो दिवसीय बैठक के दौरान साधु संतों का जुटना सियासत की ओर साफ इशारे कर रहा है.वैसे तो हिंदूवादी विचारधारा के रूप में भारतीय जनता पार्टी संत समाज को अपने पक्ष में ही खड़ा देखती है, लेकिन लोकसभा चुनाव से पहले साधु-संतों को सनातन के साथ भाजपा के प्रचार में भी पार्टी संतों का सहयोग चाहती है.
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माना जा रहा है कि भारतीय जनता पार्टी ने इसके लिए तमाम साधु-संतों का पक्ष जानकर इस दिशा में होमवर्क भी शुरू कर दिया है. हालांकि कांग्रेस ऐसा नहीं सोचती. कांग्रेस पार्टी का मानना है कि कुछ एक साधु संत ही भाजपा के समर्थन में उतरने का दावा कर रहे हैं. जबकि कर्नाटक चुनाव के परिणाम यह साफ करते हैं कि साधु संत समाज कांग्रेस की नीतियों को लेकर पारदर्शिता देखते हैं और इसलिए आगामी लोकसभा चुनाव में संतों का समर्थन कांग्रेस के पक्ष में ही होगा. विश्व हिंदू परिषद की दो दिवसीय बैठक में कई संतों ने ऐसा भी लिया था और इस दौरान आगामी लोकसभा चुनाव 2024 पर सनातन धर्म की रक्षा से जुड़े विषयों पर भी चर्चा हुई थी.
इस दौरान को संतों ने खुले रूप से भाजपा को समर्थन देने की अपनी इच्छा भी जाहिर की थी. यही नहीं प्रधानमंत्री मोदी के पक्ष में चुनाव प्रचार करने तक के लिए भी कुछ संत तैयार दिख रहे थे. लेकिन कांग्रेस इस पूरे हालात को चुनिंदा संतों से जोड़कर देख रही है. वैसे भाजपा पिछले लोकसभा चुनाव में सनातन और हिंदू विचारधारा की सोच को भी भुलाने में कामयाब रही है और आगामी चुनाव में भी अपनी इसी छवि के चलते संतों के आशीर्वाद को पाने की कोशिश भाजपा कर रही है.
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इसपर पार्टी के वरिष्ठ नेता सुरेश जोशी कहते हैं कि यह तो तय है कि संत समाज भाजपा के साथ हैं. लेकिन कांग्रेस को अक्सर यह बात पसंद नहीं आती. जबकि संतों का यह समर्थन मोदी सरकार के बेहतर कार्यों के कारण मिल रहा है. लोकसभा चुनाव 2024 के लिए अभी करीब 10 महीने से ज्यादा का समय बचा है, लेकिन अभी से संतों पर भी संग्राम शुरू हो चुका है. हालांकि साधु संतों का आशीर्वाद किसे मिलेगा यह तो आगामी चुनाव ही तय करेगा. लेकिन इतना जरूर है कि भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दल संतों के महत्व को अच्छी तरह से समझते हैं. शायद इसीलिए कर्नाटक चुनाव की तरह आने वाले लोकसभा चुनाव में बजरंगबली हनुमान और श्री राम के साथ संतों के आशीर्वाद को पाने की कोशिश भी हो रही है.