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त्रिवेंद्र सरकार में क्यों तय नहीं होती मंत्रियों की जिम्मेदारी? 'वन मैन आर्मी' नजर आते हैं CM

त्रिवेंद्र सरकार के दौरान यूं तो शुरू से ही कांग्रेस से भाजपा में आये नेताओं की दूरी बनी रही है. मगर समय के साथ-साथ मंत्रियों का मुख्यमंत्री से सही तालमेल नहीं होना और अंदरूनी नाराजगी के होने से विकास कार्यों पर भी इसका असर पड़ रहा है.

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त्रिवेंद्र सरकार में क्यों तय नहीं होती मंत्रियों की जिम्मेदारी?
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Published : Feb 17, 2021, 7:21 PM IST

Updated : Feb 17, 2021, 7:58 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड में त्रिवेंद्र सरकार अपने 4 साल का कार्यकाल पूरा करने जा रही है. यूं तो इन 4 सालों में पार्टी के अंदर मनमुटाव के कई मामले सामने आए, लेकिन चुनावी वर्ष में भी मंत्रियों का सरकार से तालमेल न होना बड़े सवाल खड़े कर रहा है. राज्य में विभागीय बैठकों से लेकर महत्वपूर्ण जन मुद्दों पर आधारित मामलों में भी मंत्री गायब रहते हैं. सभी जगह अकेले मुख्यमंत्री ही कमान संभालते हुए दिखाई देते हैं.

त्रिवेंद्र सरकार में क्यों तय नहीं होती मंत्रियों की जिम्मेदारी?

राज्य में नियोजित विकास के लिए जरूरी है कि न केवल मुख्यमंत्री बल्कि तमाम मंत्री और अधिकारी भी एक साथ मिलकर विकास कार्यों को आगे बढ़ाएं. मगर त्रिवेंद्र सरकार में ऐसे ही समन्वय की भारी कमी दिखाई देती है. हाल ही में टिहरी महोत्सव में पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज का न पहुंचना और वनाग्नि से जुड़ी बड़ी बैठक में हरक सिंह रावत का वन मुख्यालय में ना होना इस बात को जाहिर करता है. यही नहीं चमोली त्रासदी के दौरान मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत और राज्यमंत्री धन सिंह के अलावा त्रासदी क्षेत्र से मंत्रियों का दूरी बनाना भी सरकार में सब ठीक नहीं होने के संकेत देता है.

पढ़ें- आज से शुरू हुआ कुंभ वर्ष, फरवरी में सरकार जारी करेगी SOP

कांग्रेस भी लगातार इन बातों का आकलन करते हुए राज्य में मुख्यमंत्री के वन मैन आर्मी की तरह काम करने को विकास के लिए खतरा मान रही है. उत्तराखंड कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष जोत सिंह बिष्ट के मुताबिक राज्य में सरकार नाम की चीज ही नहीं रह गई है. विभागों में मंत्री की जगह मुख्यमंत्री दिखाई देते हैं. चमोली जैसी आपदा में भी मंत्रियों का न पहुंचना बड़ी चिंता का विषय है.

पढ़ें- महाकुंभ 2021: लोक परंपरा और संस्कृति के रंगों से सराबोर हुआ हरिद्वार, देखें तस्वीरें

त्रिवेंद्र सरकार के दौरान यूं तो शुरू से ही कांग्रेस से भाजपा में आये नेताओं की दूरी बनी रही है. मगर समय के साथ-साथ मंत्रियों का मुख्यमंत्री से सही तालमेल नहीं होना और अंदरूनी नाराजगी के होने से विकास कार्यों पर भी इसका असर पड़ रहा है. प्रकाश पंत के निधन के बाद आठ मंत्री सरकार में हैं. इसमें से पांच वे हैं जो कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए थे. इन मंत्रियों में सतपाल महाराज, हरक सिंह रावत, यशपाल आर्य, सुबोध उनियाल और रेखा आर्य शामिल हैं. जबकि बाकी तीन मंत्री मदन कौशिक अरविंद पांडे और धन सिंह रावत है, जो कि अक्सर मुख्यमंत्री के साथ दिखाई देते हैं.

पढ़ें- महाकुंभ 2021 के लिए तैयार हरिद्वार, भव्य और दिव्य होगा मेला इस बार

खबर के अनुसार सतपाल महाराज, हरक सिंह रावत, यशपाल आर्य, सुबोध उनियाल और रेखा आर्य समेत अरविंद पांडे भी तमाम मामलों को लेकर सरकार की कार्यप्रणाली पर कुछ खफा ही दिखाई देते हैं. इस तरह से देखा जाए तो कैबिनेट के अधिकतर मंत्री समय-समय पर अधिकारियों या दूसरे मसलों को लेकर सरकार से नाराज ही रहे हैं. हालांकि इस सबके बावजूद भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता विपिन कैंथोला कहते हैं कि त्रिवेंद्र सरकार में पूरा तालमेल है. जो भी विभागीय बैठकें होती हैं, उसमें विभागीय मंत्री नहीं आते उसका कुछ न कुछ कारण होता है. इससे यह अनुमान लगाना सही नहीं है कि सरकार में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है.

देहरादून: उत्तराखंड में त्रिवेंद्र सरकार अपने 4 साल का कार्यकाल पूरा करने जा रही है. यूं तो इन 4 सालों में पार्टी के अंदर मनमुटाव के कई मामले सामने आए, लेकिन चुनावी वर्ष में भी मंत्रियों का सरकार से तालमेल न होना बड़े सवाल खड़े कर रहा है. राज्य में विभागीय बैठकों से लेकर महत्वपूर्ण जन मुद्दों पर आधारित मामलों में भी मंत्री गायब रहते हैं. सभी जगह अकेले मुख्यमंत्री ही कमान संभालते हुए दिखाई देते हैं.

त्रिवेंद्र सरकार में क्यों तय नहीं होती मंत्रियों की जिम्मेदारी?

राज्य में नियोजित विकास के लिए जरूरी है कि न केवल मुख्यमंत्री बल्कि तमाम मंत्री और अधिकारी भी एक साथ मिलकर विकास कार्यों को आगे बढ़ाएं. मगर त्रिवेंद्र सरकार में ऐसे ही समन्वय की भारी कमी दिखाई देती है. हाल ही में टिहरी महोत्सव में पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज का न पहुंचना और वनाग्नि से जुड़ी बड़ी बैठक में हरक सिंह रावत का वन मुख्यालय में ना होना इस बात को जाहिर करता है. यही नहीं चमोली त्रासदी के दौरान मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत और राज्यमंत्री धन सिंह के अलावा त्रासदी क्षेत्र से मंत्रियों का दूरी बनाना भी सरकार में सब ठीक नहीं होने के संकेत देता है.

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कांग्रेस भी लगातार इन बातों का आकलन करते हुए राज्य में मुख्यमंत्री के वन मैन आर्मी की तरह काम करने को विकास के लिए खतरा मान रही है. उत्तराखंड कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष जोत सिंह बिष्ट के मुताबिक राज्य में सरकार नाम की चीज ही नहीं रह गई है. विभागों में मंत्री की जगह मुख्यमंत्री दिखाई देते हैं. चमोली जैसी आपदा में भी मंत्रियों का न पहुंचना बड़ी चिंता का विषय है.

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त्रिवेंद्र सरकार के दौरान यूं तो शुरू से ही कांग्रेस से भाजपा में आये नेताओं की दूरी बनी रही है. मगर समय के साथ-साथ मंत्रियों का मुख्यमंत्री से सही तालमेल नहीं होना और अंदरूनी नाराजगी के होने से विकास कार्यों पर भी इसका असर पड़ रहा है. प्रकाश पंत के निधन के बाद आठ मंत्री सरकार में हैं. इसमें से पांच वे हैं जो कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए थे. इन मंत्रियों में सतपाल महाराज, हरक सिंह रावत, यशपाल आर्य, सुबोध उनियाल और रेखा आर्य शामिल हैं. जबकि बाकी तीन मंत्री मदन कौशिक अरविंद पांडे और धन सिंह रावत है, जो कि अक्सर मुख्यमंत्री के साथ दिखाई देते हैं.

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खबर के अनुसार सतपाल महाराज, हरक सिंह रावत, यशपाल आर्य, सुबोध उनियाल और रेखा आर्य समेत अरविंद पांडे भी तमाम मामलों को लेकर सरकार की कार्यप्रणाली पर कुछ खफा ही दिखाई देते हैं. इस तरह से देखा जाए तो कैबिनेट के अधिकतर मंत्री समय-समय पर अधिकारियों या दूसरे मसलों को लेकर सरकार से नाराज ही रहे हैं. हालांकि इस सबके बावजूद भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता विपिन कैंथोला कहते हैं कि त्रिवेंद्र सरकार में पूरा तालमेल है. जो भी विभागीय बैठकें होती हैं, उसमें विभागीय मंत्री नहीं आते उसका कुछ न कुछ कारण होता है. इससे यह अनुमान लगाना सही नहीं है कि सरकार में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है.

Last Updated : Feb 17, 2021, 7:58 PM IST
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