देहरादून: देवभूमि में हरेला पर्व का बहुत ही महत्व है. इस अवसर पर पौधा रोपण करने का रिवाज है, जिसकी तैयारियां प्रदेश सरकार की ओर से शुरू कर दी गई हैं. सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने सभी विभागों के कर्मचारियों को निर्देशित कर दिया है कि वो लोगों को हरेला पर्व पर पौधे लगाने के लिए प्रेरित करें.
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने हरेला पर प्रदेशभर में व्यापक रूप से वृक्षारोपण करने के आदेश दिए हैं. इसके लिए सीएम ने वन विभाग को 55 लाख रुपए का बजट स्वीकृत किया है. साथ ही विभाग को आदेशित किया है, कि राज्य के विभिन्न सार्वजनिक स्थलों, नदियों के किनारों और सड़क के किनारों पर भारी तादाद में वृक्षारोपण किया जाए.
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मुख्यमंत्री का कहना है कि पूर्व में कोसी और रिस्पना नदियों के पुनर्जीवीकरण के लिए वृक्षारोपण किया गया था, जिसका लाभ जमीनी स्तर पर दिखने लगा है. उन्होंने कहा कि वृक्षारोपण पर्यावरण संरक्षण के साथ ही जल श्रोतों के संवर्धन और संरक्षण में भी काफी कारगर उपाय है. इसके लिए सीएम ने वन विभाग को संबंधित सभी विभागों से समन्वय स्थापित कर कार्ययोजना बनाने में भागीदारी सुनिश्चित करने के निर्देश दिए हैं.
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सीएम का कहना है, कि हरेला पर्व प्रकृति और पर्यावरण से जुड़ा है. ये पर्व हमारी सांस्कृतिक परम्परा का भी प्रतीक है. इसलिए हम सभी को इस त्योहार के महत्व को समझते हुए अधिक से अधिक वृक्षारोपण करना होगा जिससे ये पर्व यादगार बन सके.
16 जुलाई को है हरेला
इस साल हरेला पर्व 16 जुलाई को है. इस दिन उत्तराखंड में सार्वजनिक अवकाश रहेगा. सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने फरवरी में जब वार्षिक छुट्टियों का कैलेंडर जारी किया था तो उसमें हरेला पर निर्बंधित अवकाश घोषित किया था. हरेला उत्तराखंड की संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. ये पर्व लोगों को प्रकृति और पर्यावरण से जोड़ता है.
उत्तराखंड की संस्कृति की पहचान है हरेला
सावन लगने से 9 दिन पहले आषाढ़ में हरेला बोने के लिए थालीनुमा पात्र या टोकरी लेते हैं. इसमें मिट्टी डालकर गेहूं, जौ, धान, गहत, भट्ट, उड़द, सरसों आदि 5 से 7 प्रकार के बीजों को बो दिया जाता है. 9 दिन तक इस पात्र में रोज सुबह-शाम पानी छिड़कते हैं. दसवें दिन इसे काटा जाता है. 4 से 6 इंच लम्बे इन पौधों को ही हरेला कहा जाता है. घर के सदस्य इन्हें बहुत आदर के साथ अपने शीश पर रखते हैं. घर में सुख-समृद्धि के प्रतीक के रूप में हरेला बोया व काटा जाता है. इसके मूल में यह मान्यता है कि हरेला जितना बड़ा होगा उतनी ही समृद्ध फसल होगी. ईश्वर से अच्छी फसल होने और सुख-समृद्धि की कामना भी की जाती है.