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CM पुष्कर धामी की भू-कानून कमेटी पर त्रिवेंद्र को एतराज

उत्तराखंड में भू-कानून (land law) के मुद्दे को युवा जोरशोर से उठा रहे. मामले को संज्ञान में लेते हुए खुद सीएम पुष्कर सिंह धामी ने भू-कानून को लेकर अधिकारियों को एक कमेटी गठित करने के निर्देश दिए हैं. जिसके खिलाफ पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह आवाज उठाई है.

उत्तराखंड में भू-कानून
उत्तराखंड में भू-कानून
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Published : Aug 2, 2021, 7:01 AM IST

Updated : Aug 2, 2021, 3:04 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड में इन दिनों भू-कानून (land law) पर जोरदार चर्चा चल रही है. सोशल मीडिया पर कई युवा इस मुद्दे को जोरशोर से उठा रहे. यही कारण है कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी (Chief Minister Pushkar Singh Dhami) ने खुद इस मामले का संज्ञान लेते हुए इस पर एक कमेटी गठित करने के निर्देश दिए हैं. खास बात यह है कि पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत (Former Chief Minister Trivendra Singh Rawat) में कमेटी गठित होने का निर्णय होने के फौरन बाद इस कानून पर अपनी असहमति जाहिर कर दी है.

उत्तराखंड में भू-कानून को लेकर राज्य स्थापना के बाद से ही कई बार लोगों की तरफ से राय दी जाती रही है. जिसमें खंडूड़ी सरकार के दौरान इसको लेकर कुछ खास नियम भी बनाए गए. लेकिन इन्वेस्टर्स को देखते हुए बाद में इस नियम में बदलाव भी किया गया. इस बार एक बार फिर भू कानून की मांग बड़े जोर-शोर से प्रदेशभर के विभिन्न क्षेत्रों से दिखाई देने लगी है. खास तौर पर युवाओं की तरफ से सोशल मीडिया पर इसे खूब ट्रेड किया जा रहा है. युवाओं की तरफ से शुरू किए गए इस आंदोलन पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने संज्ञान लेते हुए हाल ही में भू-कानून समेत कुछ दूसरे मुद्दों पर कमेटी बनाने के निर्देश अधिकारियों को दिए हैं.

CM पुष्कर धामी की भू-कानून कमेटी पर त्रिवेंद्र को एतराज.

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के फैसले के एक दिन बाद ही पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह ने भू-कानून के खिलाफ पूरे दम के साथ अपनी बात रखी है. उन्होंने भू-कानून के खिलाफ अपना मत भी दिया.

पढ़ें: 'टोपीवार' के बीच हरदा की बलूनी को खुली चुनौती, रोजगार और विकास पर करें बहस

पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि यह भावात्मक मुद्दा है और चुनाव से पहले भावनात्मक रूप से लोगों को इसको लेकर गलत संदेश दिया जा रहा है. उन्होंने कहा कि जो लोग भू-कानून की बात कर रहे हैं उनको इस कानून को लेकर अपना खाका तैयार कर सरकार को देना चाहिए, ताकि यह पता चल सके कि यह लोग भू-कानून पर क्या चाहते हैं?.

क्यों चाहिए हिमाचल जैसा कानूनः पहचान का संकट सभ्यता का सबसे बड़ा संकट होता है. उत्तराखंड की पहाड़ी संस्कृति भी अपनी पहचान बनाए रखना चाहती है. देश के विभिन्न हिस्सों से आए लोग यदि उत्तराखंड में बेरोट-टोक जमीन खरीद करते रहेंगे तो यहां के सीमांत व छोटे किसान भूमिहीन हो सकते हैं. हिमाचल ने इस संकट को अपने अस्तित्व में आने पर ही पहचान लिया था. प्रदेश निर्माता और पहले मुख्यमंत्री डॉ. वाईएस परमार ने ऐसे कानूनों की नींव रखी कि हिमाचल की भूमि बाहरी लोग न ले पाएं. यहां बाहरी राज्यों के लोग जमीन नहीं खरीद सकते.

यदि किसी को जमीन खरीदनी हो तो उसे भू-सुधार कानून की धारा-118 के तहत सरकार से अनुमति लेनी होती है. यही कारण हैं कि हिमाचल में बाहरी राज्यों के धन्नासेठ या फिर प्रभावशाली लोग न के बराबर जमीन खरीद पाए हैं. प्रियंका वाड्रा जैसे केस न के बराबर हैं. ऐसे प्रभावशाली लोगों को धारा-118 के तहत अनुमति मिलने में खास रुकावट नहीं आती. फिर भी प्रभावशाली से प्रभावशाली व्यक्ति को भी हिमाचल में कृषि योग्य जमीन खरीदने की अनुमति नहीं मिलती.

इंडस्ट्री के लिए चाहते हैं मनमानी जमीनः उत्तराखंड में उद्योग स्थापित करने वाले मनमानी जमीन चाहते हैं. वहां जमीन आवंटन में कोई खास पचड़े नहीं हैं. ऐसे में सरकार और स्थानीय प्रशासन का जमीन लेने वालों पर कोई खास नियंत्रण नहीं होता है. इस मनमानी के कारण कई तरह की समस्याएं पैदा हो रही हैं. उत्तराखंड में अब युवाओं की आवाज हिमाचल जैसे कानून के लिए उठ रही है.

ये भी पढ़ेंः उत्तराखंड में बेशकीमती जमीनों को बचाने की जद्दोजहद, हिमाचल की तर्ज पर भू-कानून की मांग तेज

हिमाचल में गठन के बाद ही लागू हो गए भू-सुधार कानूनः हिमाचल को 1971 में पूर्ण राज्य का दर्जा मिला और यहां अगले ही साल भूमि सुधार कानून लागू हो गया. कानून की धारा 118 के तहत कोई भी बाहरी व्यक्ति कृषि की जमीन निजी उपयोग के लिए नहीं खरीद सकता. फिर लैंड सीलिंग एक्ट में कोई भी व्यक्ति 150 बीघा जमीन से अधिक नहीं रख सकता. हिमाचल में बागवानी और खेती के कारण यहां की प्रति व्यक्ति आय देश में टॉप के राज्यों पर है. ये बात अलग है कि उद्योगों के लिए सरकार जमीन देती है.

वरिष्ठ पत्रकार अर्चना फुल्ल कहती हैं कि हिमाचल ने अपनी जमीन बचाने के लिए शुरू से ही काम किया है. धारा-118 के साथ छेड़छाड़ की कोई भी राजनीतिक दल सोच भी नहीं सकता. यहां की जनता जागरुक है और भूमि सुधार कानून के साथ कोई भी छेड़छाड़ बर्दाश्त नहीं करती. वहीं, उत्तराखंड में ग्रामीण इलाकों में साधनहीन लोग धन के अभाव में अपनी जमीन बेच देते हैं. फिर वे लैंडलेस हो जाते हैं.

सख्त भूमि कानून के अभाव में उत्तराखंड के जंगल भी खतरे में हैं. पलायन का कारण भी उत्तराखंड में यही रहा कि खेती से वहां रोजगार के खास प्रयास नहीं हुए. उत्तराखंड में इन्हीं कारणों से गांव बचाओ यात्रा जैसे आंदोलन भी हो रहे हैं

सोशल मीडिया में ट्रेंड कर रहा भू-कानूनः उत्तराखंड में भू कानून की मांग लगातार तेज हो रही है. युवा बड़ी संख्या में इसे अभियान के तौर पर चला रहे हैं. सोशल मीडिया के माध्यम से इस अभियान को धार दी जा रही है. बड़ी संख्या में युवाओं ने सड़कों पर उतर कर भू-कानून को लेकर अपनी बात रख रहे हैं.

युवा सोशल मीडिया के इंस्टाग्राम, फेसबुक और ट्विटर पर युवा बढ़-चढ़कर इस मुहिम को आगे बढ़ा रहे हैं. वे यहां एक दूसरे से संवाद स्थापित कर लोगों में इसे लेकर अलख जगा रहे हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि ये लोग किसी भी राजनीतिक दल से नहीं जुड़े हैं, ये सभी केवल भू कानून के मुद्दे पर एकजुट हैं.

देहरादून: उत्तराखंड में इन दिनों भू-कानून (land law) पर जोरदार चर्चा चल रही है. सोशल मीडिया पर कई युवा इस मुद्दे को जोरशोर से उठा रहे. यही कारण है कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी (Chief Minister Pushkar Singh Dhami) ने खुद इस मामले का संज्ञान लेते हुए इस पर एक कमेटी गठित करने के निर्देश दिए हैं. खास बात यह है कि पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत (Former Chief Minister Trivendra Singh Rawat) में कमेटी गठित होने का निर्णय होने के फौरन बाद इस कानून पर अपनी असहमति जाहिर कर दी है.

उत्तराखंड में भू-कानून को लेकर राज्य स्थापना के बाद से ही कई बार लोगों की तरफ से राय दी जाती रही है. जिसमें खंडूड़ी सरकार के दौरान इसको लेकर कुछ खास नियम भी बनाए गए. लेकिन इन्वेस्टर्स को देखते हुए बाद में इस नियम में बदलाव भी किया गया. इस बार एक बार फिर भू कानून की मांग बड़े जोर-शोर से प्रदेशभर के विभिन्न क्षेत्रों से दिखाई देने लगी है. खास तौर पर युवाओं की तरफ से सोशल मीडिया पर इसे खूब ट्रेड किया जा रहा है. युवाओं की तरफ से शुरू किए गए इस आंदोलन पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने संज्ञान लेते हुए हाल ही में भू-कानून समेत कुछ दूसरे मुद्दों पर कमेटी बनाने के निर्देश अधिकारियों को दिए हैं.

CM पुष्कर धामी की भू-कानून कमेटी पर त्रिवेंद्र को एतराज.

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के फैसले के एक दिन बाद ही पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह ने भू-कानून के खिलाफ पूरे दम के साथ अपनी बात रखी है. उन्होंने भू-कानून के खिलाफ अपना मत भी दिया.

पढ़ें: 'टोपीवार' के बीच हरदा की बलूनी को खुली चुनौती, रोजगार और विकास पर करें बहस

पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि यह भावात्मक मुद्दा है और चुनाव से पहले भावनात्मक रूप से लोगों को इसको लेकर गलत संदेश दिया जा रहा है. उन्होंने कहा कि जो लोग भू-कानून की बात कर रहे हैं उनको इस कानून को लेकर अपना खाका तैयार कर सरकार को देना चाहिए, ताकि यह पता चल सके कि यह लोग भू-कानून पर क्या चाहते हैं?.

क्यों चाहिए हिमाचल जैसा कानूनः पहचान का संकट सभ्यता का सबसे बड़ा संकट होता है. उत्तराखंड की पहाड़ी संस्कृति भी अपनी पहचान बनाए रखना चाहती है. देश के विभिन्न हिस्सों से आए लोग यदि उत्तराखंड में बेरोट-टोक जमीन खरीद करते रहेंगे तो यहां के सीमांत व छोटे किसान भूमिहीन हो सकते हैं. हिमाचल ने इस संकट को अपने अस्तित्व में आने पर ही पहचान लिया था. प्रदेश निर्माता और पहले मुख्यमंत्री डॉ. वाईएस परमार ने ऐसे कानूनों की नींव रखी कि हिमाचल की भूमि बाहरी लोग न ले पाएं. यहां बाहरी राज्यों के लोग जमीन नहीं खरीद सकते.

यदि किसी को जमीन खरीदनी हो तो उसे भू-सुधार कानून की धारा-118 के तहत सरकार से अनुमति लेनी होती है. यही कारण हैं कि हिमाचल में बाहरी राज्यों के धन्नासेठ या फिर प्रभावशाली लोग न के बराबर जमीन खरीद पाए हैं. प्रियंका वाड्रा जैसे केस न के बराबर हैं. ऐसे प्रभावशाली लोगों को धारा-118 के तहत अनुमति मिलने में खास रुकावट नहीं आती. फिर भी प्रभावशाली से प्रभावशाली व्यक्ति को भी हिमाचल में कृषि योग्य जमीन खरीदने की अनुमति नहीं मिलती.

इंडस्ट्री के लिए चाहते हैं मनमानी जमीनः उत्तराखंड में उद्योग स्थापित करने वाले मनमानी जमीन चाहते हैं. वहां जमीन आवंटन में कोई खास पचड़े नहीं हैं. ऐसे में सरकार और स्थानीय प्रशासन का जमीन लेने वालों पर कोई खास नियंत्रण नहीं होता है. इस मनमानी के कारण कई तरह की समस्याएं पैदा हो रही हैं. उत्तराखंड में अब युवाओं की आवाज हिमाचल जैसे कानून के लिए उठ रही है.

ये भी पढ़ेंः उत्तराखंड में बेशकीमती जमीनों को बचाने की जद्दोजहद, हिमाचल की तर्ज पर भू-कानून की मांग तेज

हिमाचल में गठन के बाद ही लागू हो गए भू-सुधार कानूनः हिमाचल को 1971 में पूर्ण राज्य का दर्जा मिला और यहां अगले ही साल भूमि सुधार कानून लागू हो गया. कानून की धारा 118 के तहत कोई भी बाहरी व्यक्ति कृषि की जमीन निजी उपयोग के लिए नहीं खरीद सकता. फिर लैंड सीलिंग एक्ट में कोई भी व्यक्ति 150 बीघा जमीन से अधिक नहीं रख सकता. हिमाचल में बागवानी और खेती के कारण यहां की प्रति व्यक्ति आय देश में टॉप के राज्यों पर है. ये बात अलग है कि उद्योगों के लिए सरकार जमीन देती है.

वरिष्ठ पत्रकार अर्चना फुल्ल कहती हैं कि हिमाचल ने अपनी जमीन बचाने के लिए शुरू से ही काम किया है. धारा-118 के साथ छेड़छाड़ की कोई भी राजनीतिक दल सोच भी नहीं सकता. यहां की जनता जागरुक है और भूमि सुधार कानून के साथ कोई भी छेड़छाड़ बर्दाश्त नहीं करती. वहीं, उत्तराखंड में ग्रामीण इलाकों में साधनहीन लोग धन के अभाव में अपनी जमीन बेच देते हैं. फिर वे लैंडलेस हो जाते हैं.

सख्त भूमि कानून के अभाव में उत्तराखंड के जंगल भी खतरे में हैं. पलायन का कारण भी उत्तराखंड में यही रहा कि खेती से वहां रोजगार के खास प्रयास नहीं हुए. उत्तराखंड में इन्हीं कारणों से गांव बचाओ यात्रा जैसे आंदोलन भी हो रहे हैं

सोशल मीडिया में ट्रेंड कर रहा भू-कानूनः उत्तराखंड में भू कानून की मांग लगातार तेज हो रही है. युवा बड़ी संख्या में इसे अभियान के तौर पर चला रहे हैं. सोशल मीडिया के माध्यम से इस अभियान को धार दी जा रही है. बड़ी संख्या में युवाओं ने सड़कों पर उतर कर भू-कानून को लेकर अपनी बात रख रहे हैं.

युवा सोशल मीडिया के इंस्टाग्राम, फेसबुक और ट्विटर पर युवा बढ़-चढ़कर इस मुहिम को आगे बढ़ा रहे हैं. वे यहां एक दूसरे से संवाद स्थापित कर लोगों में इसे लेकर अलख जगा रहे हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि ये लोग किसी भी राजनीतिक दल से नहीं जुड़े हैं, ये सभी केवल भू कानून के मुद्दे पर एकजुट हैं.

Last Updated : Aug 2, 2021, 3:04 PM IST
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