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उत्तराखंड की इस करोड़ों की जड़ी के लिए चीन बैचैन, देवभूमि के पहाड़ों पर ड्रैगन की नजर - ड्रैगन की नजर

चीन अपने आर्थिक लाभ के लिए किसी भी हद तक जा सकता है, ये पूरी दुनिया देख रही है. चीन की नजर हिमालय की बर्फीली चोटियों पर पाई जाने वाली हिमालयन वियाग्रा (Himalayan Viagra) के नाम से प्रसिद्ध कीड़ा-जड़ी पर भी है. चीन कीड़ा जड़ी का हजारों करोड़ का व्यापार करता है. उत्तराखंड के उत्तरकाशी, चमोली, बागेश्वर, पिथौरागढ़ और चंपावत की ऊंची हिमालयी चोटियों पर भी कीड़ा जड़ी पाई जाती है. चीन की नजर इन जिलों पर भी हो सकती है. ऐसा इसलिए अनुमान लग रहा है क्योंकि अरुणाचल प्रदेश में चीनी सैनिकों की हालिया घुसपैठों की वजह का आईपीसीएससी की रिपोर्ट में खुलासा हुआ. जिसकी वजह हिमालयी क्षेत्रों में पाई जाने वाली कीड़ा जड़ी पर एकाधिकार करना ही बताई गई है. कीड़ा जड़ी सेक्स वर्धक के रूप में पूरी दुनिया में जानी जाती है.

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Published : Jan 9, 2023, 8:28 AM IST

Updated : Jan 9, 2023, 9:50 AM IST

उत्तराखंड की कीड़ा जड़ी के लिए बेचैन चीन

देहरादून: देवभूमि उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्रों में बेशुमार बेशकीमती जड़ी बूटियां का भंडार है. जिसका दोहन अब तेजी से होने लगा है. वहीं हिमालयन वियाग्रा के नाम से मशहूर कीड़ा जड़ी (Keeda Jadi in Uttarakhand) की काफी मांग है. इसे कई बीमारियों में रामबाण माना जाता है. इस कीड़ा जड़ी पर ड्रैगन की नजर बनी हुई है. ड्रैगन इस जड़ी बूटी को हासिल करने के लिए भारतीय सीमाओं में घुसपैठ तक करने लगा है. दरअसल, कीड़ा जड़ी की अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमत बेहद ज्यादा है और चीन में ही इसकी सबसे ज्यादा डिमांड भी है. देखिये रिपोर्ट.

ड्रैगन की घुसपैठ की वजह: चीन अपनी विस्तारवादी नीति और प्राकृतिक संपदाओं के दोहन को लेकर दुनिया भर में आलोचना झेलता रहा है. लेकिन इस बार बात एक ऐसी बहुमूल्य जड़ी की है, जिसके लिए उसने भारत में घुसपैठ करने तक की हिमाकत कर दी है. इंडो-पेसिफिक सेंटर फॉर स्ट्रैटेजिक कम्युनिकेशन यानी IPCSC की एक रिपोर्ट (IPCSC report on Chinese intrusion) के अनुसार चीन के सैनिकों का हाल ही में अरुणाचल के तवांग में घुसपैठ करने का कारण हिमालयन गोल्ड को चुराना भी था. इस रिपोर्ट ने उत्तराखंड के उन पहाड़ी क्षेत्रों के लिए चिंताएं बढ़ा दी हैं, जहां ये जड़ी बहुतायत मात्रा में मौजूद है.
पढ़ें-हिमालयी वियाग्रा पर मंडरा रहा खतरा, ये है वजह

रिपोर्ट में चीनी घुसपैठ का खुलासा: चीन के सैनिकों की भारत में घुसपैठ की कोशिशें करना कोई नई बात नहीं है. माना जाता है कि चीन अपनी विस्तारवादी नीति और भारत को उकसाने के इरादे से ऐसी हिमाकत करता है. लेकिन इस बार एक रिपोर्ट ने सभी को चौंका कर रख दिया है. इंडो-पेसिफिक सेंटर फॉर स्ट्रैटेजिक कम्युनिकेशन की रिपोर्ट ने अरुणाचल में चीनी घुसपैठ के पीछे का कारण कीड़ा जड़ी को बताया है. एक ऐसी जड़ी जो बेशकीमती है, और चीन में इसकी भारी डिमांड है. हैरानी की बात यह है कि हिमालयन गोल्ड के नाम से जानी जाने वाली ये जड़ी दक्षिण और पश्चिमी चीन के साथ उत्तराखंड में भी पाई जाती है. सभी जानते हैं कि उत्तराखंड का एक बड़ा भूभाग नेपाल और चीन से लगा हुआ है और ऐसे ही कुछ हिमालयी क्षेत्रों में कीड़ा जड़ी का भंडार भी है.

उत्तराखंड के सीमांत जिलों में पाई जाती है कीड़ा जड़ी: कीड़ा जड़ी उत्तराखंड में उत्तरकाशी, पिथौरागढ़, बागेश्वर, चंपावत और चमोली जनपदों में उच्च हिमालयी क्षेत्र में पाई जाती है. चिंता की बात यह है कि पिथौरागढ़ और चमोली दोनों ही जिले चीन से अंतरराष्ट्रीय सीमा साझा करते हैं. लिहाजा इन दोनों जिलों में चीनी सैनिकों की घुसपैठ की संभावनाएं बनी रहती हैं. चमोली के बाड़ाहोती में तो चीन के सैनिक कई बार घुसपैठ करने की कोशिश कर चुके हैं. उत्तराखंड का करीब 625 किलोमीटर का हिस्सा अंतरराष्ट्रीय सीमा से जुड़ा है. जिसमें करीब 350 किलोमीटर का हिस्सा अकेले चीन की सीमा से लगा हुआ है. 275 किलोमीटर क्षेत्र नेपाल की सीमा से जुड़ा है.
पढ़ें-पहाड़ों में कीड़ा जड़ी की जोरदार मांग, खोजने के लिए बर्फीले तूफान से हो रही 'जंग'

नेपाल से होती है तस्करी: खास बात यह है कि न केवल चीन से लगे हुए हिस्से पर चीनी सेना की घुसपैठ कीड़ा जड़ी को लेकर हो सकती है, बल्कि नेपाल से भी भारी मात्रा में इसकी तस्करी की खबरें सामने आती रहती हैं. इस लिहाज से देखा जाए तो उत्तराखंड के उच्च हिमालय में मौजूद यह बेशकीमती संपदा चीन के निशाने पर हो सकती है और उत्तराखंड के इन पहाड़ी क्षेत्रों से चीन कीड़ा जड़ी को चुराने की कोशिश कर सकता है. कीड़ा जड़ी को कई नामों से जाना जाता है, अंग्रेजी में इसे कैटरपिलर फंगस (Caterpillar fungus) कहते हैं तो नेपाल और चीन में इसे यार्सागुंबा के नाम से जाना जाता है. यही नहीं इसे भारत में कीड़ा जड़ी के साथ-साथ हिमालयन गोल्ड और हिमालयन वियाग्रा के नाम से भी पुकारा जाता है.

कीड़ा जड़ी की दो इंच होती है लंबाई: कीड़ा जड़ी उच्च हिमालय क्षेत्र में करीब 3500 मीटर से लेकर 5000 मीटर की ऊंचाई तक पर मिलती है. इसकी लंबाई करीब 2 इंच तक होती है और यह स्वाद में मीठी होती है. पश्चिमी और दक्षिणी चीन के साथ उत्तराखंड के उत्तरकाशी, चमोली बागेश्वर, चंपावत और पिथौरागढ़ के उच्च हिमालयी क्षेत्र में इसकी मौजूदगी मिलती है. यह आधा कीड़ा और आधा जड़ी के रूप में होता है. इसलिए इसे कीड़ा जड़ी कहते हैं. इस कीड़े की उम्र करीब 6 महीने की होती है जिस पर फंगस लगने के बाद जमीन के नीचे दम तोड़ देता है. उधर फंगस कीड़े के मुंह से निकलकर जमीन के बाहर बढ़ती है. इसी हिस्से को देखकर लोग इसे बाहर निकालते हैं. कीड़ा जड़ी में मौजूद प्रचुर मात्रा में प्रोटीन और कॉपर जैसे खनिज इसे कई बीमारियों के लिए मेडिसिनल रूप में उपयोगी बनाते हैं. इसके अलावा यौन शक्ति बढ़ाने और रोग वर्धक क्षमता बढ़ाने के लिए भी इसका महत्व माना जाता है. इन्हीं सभी खूबियों के कारण चीन को इसकी तलाश होती है और चीन में इसकी भारी डिमांड भी है.

क्या कह रहे जानकार: उत्तराखंड के कई जिलों में इसकी उपलब्धता रहती है. इनमें उत्तरकाशी, पिथौरागढ़, चमोली, चंपावत और बागेश्वर जिले शामिल हैं. सबसे ज्यादा पिथौरागढ़ जिले में इसकी उपलब्धता है और यहां कई गांवों की आर्थिकी भी इससे सीधे तौर पर जुड़ी हुई है. माना जाता है कि सीजन में कई गांव इसी की बदौलत अपनी रोजी-रोटी चलाते हैं. जाने-माने लेखक अनिल यादव की किताब कीड़ा जड़ी में इसके इतिहास और महत्व के बारे में भी बताया गया है. इस किताब के अनुसार चौदहवीं शताब्दी में तिब्बत में सबसे पहले इसका पता चला था. अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी कीमत करीब 30 लाख प्रति किलो तक आंकी गई है, जबकि उत्तराखंड में करीब 8 से 10 लाख रुपए प्रति किलो तक इसे बेचा जाता है.

सरकार की स्पष्ट नहीं नीति: राज्य सरकार की तरफ से इस बेशकीमती जड़ी-बूटी को लेकर कोई भी स्पष्ट नियम तय नहीं किया गया है. हालांकि भेषज संघ को इसके कलेक्शन की जिम्मेदारी दी गई थी, लेकिन स्पष्ट कार्ययोजना ना होने के कारण 2 साल कलेक्शन करने के बाद अब भेषज संघ ने भी इसको लेकर हाथ खड़े कर दिए हैं. पूर्व में पंचायतों के प्रधान और सरपंच के माध्यम से लोगों को इसके कलेक्शन के लिए अधिकृत किया जाता था. इसके बाद भेषज संघ इनसे कीड़ा जड़ी तय कीमतों पर लेता था. जबकि इसके बाद डीएफओ के जरिए इस कीड़ा जड़ी का ऑक्शन किया जाता था. लेकिन अभी व्यवस्था पूरी तरह से पटरी से उतरती हुई दिखाई देती है.

बेशकीमती जड़ी की हो रही तस्करी: एक तरफ चीन हिमालयन गोल्ड को पाने के लिए बेताब है तो दूसरी तरफ तस्करी के जरिए उत्तराखंड से कीड़ा जड़ी को बाहर ले जाया जा रहा है. इस बहुमूल्य संपदा को लेकर राज्य सरकार का कोई स्पष्ट नजरिया ना होने के कारण इस प्राकृतिक संपदा का बेतरतीब दोहन हो रहा है. लेखक अनिल यादव ने भी उत्तराखंड से स्मगलिंग हो रही कीड़ा जड़ी का जिक्र किया है. उधर वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत कहते हैं कि स्थानीय लोगों की मदद से यह कीड़ा जड़ी तस्करी के जरिए बाहर जा रही है और सरकार का इस पर कोई ध्यान नहीं है.

कीड़ा जड़ी कब आई चर्चाओं में: माना जाता है कि यूं तो 14वीं शताब्दी के बाद से ही कीड़ा जड़ी का परंपरागत रूप से तिब्बत और चीन में उपयोग होता रहा है लेकिन दुनिया भर में इसको लेकर तब चर्चाएं तेज हुई जब 1993 में चीन के कई एथलीट्स ने गोल्ड जीतकर सभी को चौंका दिया. बताया गया कि इसके बाद इनके कोच की तरफ से कीड़ा जड़ी के सेवन की बात कही गई थी. माना गया कि कीड़ा जड़ी से शरीर को बेहद ताकत मिलती है और डोप टेस्ट के दौरान यह पकड़ में भी नहीं आता. यही नहीं कीड़ा जड़ी के लिए कई बार हिंसक घटनाएं भी हुई हैं और कई हत्याओं के चलते कीड़ा जड़ी दुनियाभर में चर्चाएं बटोरती रही है.

कीड़ा जड़ी के कलेक्शन में आ रही गिरावट: चीन के उच्च हिमालयी क्षेत्र में कीड़ा जड़ी के ज्यादा दोहन के चलते अब इसकी मौजूदगी काफी कम हो गई है. बताया जाता है कि करीब 30% तक की उपलब्धता में कमी आई है. इसलिए अब चीन भारत के उच्च हिमालयी क्षेत्र पर नजर बनाए हुए है. जानकारी के अनुसार इसकी कम होती उपलब्धता का असर उत्तराखंड पर भी है. माना जा रहा है कि बर्फबारी कम होने के चलते भी ऐसा हो रहा है. दरअसल, कीड़ा जड़ी अधिक बर्फबारी वाले सालों में अधिक मिलती है. ऐसे में पिछले कई सालों से कम बर्फबारी को भी इसके कम होने की वजह माना जा रहा है. अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ ने इस जड़ी को दुर्लभ घोषित किया है और इसके संरक्षण की भी जरूरत बताई है. माना जाता है कि अप्रैल मई और जून महीने में लोग उच्च हिमालय क्षेत्र में जाकर इसकी तलाश करते हैं.

डिमांड को देखते हुए प्रयोगशाला में भी हो रहा उत्पादन: कीड़ा जड़ी की दुनिया भर में भारी डिमांड और कीमत को देखते हुए अब इसका उत्पादन तमाम शहरों में भी लोग करने लगे हैं. जानकारी के अनुसार वियतनाम और थाईलैंड में आर्टिफिशियल कीड़ा जड़ी उगाने के लिए लोगों को जानकारी दी जाती है. जिसके बाद भारत में भी कई शहरों में लोग इसका चारदीवारी में भी उत्पादन कर रहे हैं. बताया जा रहा है कि हालांकि उच्च हिमालयी क्षेत्र में मिलने वाले कीड़ा जड़ी की तुलना में इसकी क्वालिटी बेहद कम होती है. लेकिन इसके बावजूद भी करीब ₹20 लाख प्रति किलो तक इसको बेचा जा रहा है.

उद्यान सचिव क्या बोले: वैसे तो कीड़ा जड़ी को लेकर उत्तराखंड सरकार का कभी भी स्पष्ट रवैया नहीं दिखाई दिया. लेकिन इसके बावजूद पूर्व में भेषज संघ को इसकी जिम्मेदारी दी गई थी. लेकिन इतनी ज्यादा कीमत में कीड़ा जड़ी को खरीद पाने में असमर्थ भेषज संघ ने इसको लेकर हाथ खड़े कर लिए. साल 2014 से लेकर 16 तक ही भेषज संघ इस क्षेत्र में काम कर सका. जानकारी के अनुसार इसके बाद 2020 में एक शासनादेश भी किया गया जिसमें ऑक्शन के दौरान डीएफओ कार्यालय से किसी भी व्यक्ति के द्वारा कलेक्ट की गई कीड़ा जड़ी को खरीदने का अधिकार दिया गया. उधर कीड़ा जड़ी को लेकर उद्यान सचिव बीवीआरसी पुरुषोत्तम कहते हैं कि संघ की तरफ से फिलहाल कीड़ा जड़ी को लेकर कलेक्शन नहीं किया जा रहा है. अभी इस पर भेषज संघ कोई काम नहीं कर रहा है.

उत्तराखंड की कीड़ा जड़ी के लिए बेचैन चीन

देहरादून: देवभूमि उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्रों में बेशुमार बेशकीमती जड़ी बूटियां का भंडार है. जिसका दोहन अब तेजी से होने लगा है. वहीं हिमालयन वियाग्रा के नाम से मशहूर कीड़ा जड़ी (Keeda Jadi in Uttarakhand) की काफी मांग है. इसे कई बीमारियों में रामबाण माना जाता है. इस कीड़ा जड़ी पर ड्रैगन की नजर बनी हुई है. ड्रैगन इस जड़ी बूटी को हासिल करने के लिए भारतीय सीमाओं में घुसपैठ तक करने लगा है. दरअसल, कीड़ा जड़ी की अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमत बेहद ज्यादा है और चीन में ही इसकी सबसे ज्यादा डिमांड भी है. देखिये रिपोर्ट.

ड्रैगन की घुसपैठ की वजह: चीन अपनी विस्तारवादी नीति और प्राकृतिक संपदाओं के दोहन को लेकर दुनिया भर में आलोचना झेलता रहा है. लेकिन इस बार बात एक ऐसी बहुमूल्य जड़ी की है, जिसके लिए उसने भारत में घुसपैठ करने तक की हिमाकत कर दी है. इंडो-पेसिफिक सेंटर फॉर स्ट्रैटेजिक कम्युनिकेशन यानी IPCSC की एक रिपोर्ट (IPCSC report on Chinese intrusion) के अनुसार चीन के सैनिकों का हाल ही में अरुणाचल के तवांग में घुसपैठ करने का कारण हिमालयन गोल्ड को चुराना भी था. इस रिपोर्ट ने उत्तराखंड के उन पहाड़ी क्षेत्रों के लिए चिंताएं बढ़ा दी हैं, जहां ये जड़ी बहुतायत मात्रा में मौजूद है.
पढ़ें-हिमालयी वियाग्रा पर मंडरा रहा खतरा, ये है वजह

रिपोर्ट में चीनी घुसपैठ का खुलासा: चीन के सैनिकों की भारत में घुसपैठ की कोशिशें करना कोई नई बात नहीं है. माना जाता है कि चीन अपनी विस्तारवादी नीति और भारत को उकसाने के इरादे से ऐसी हिमाकत करता है. लेकिन इस बार एक रिपोर्ट ने सभी को चौंका कर रख दिया है. इंडो-पेसिफिक सेंटर फॉर स्ट्रैटेजिक कम्युनिकेशन की रिपोर्ट ने अरुणाचल में चीनी घुसपैठ के पीछे का कारण कीड़ा जड़ी को बताया है. एक ऐसी जड़ी जो बेशकीमती है, और चीन में इसकी भारी डिमांड है. हैरानी की बात यह है कि हिमालयन गोल्ड के नाम से जानी जाने वाली ये जड़ी दक्षिण और पश्चिमी चीन के साथ उत्तराखंड में भी पाई जाती है. सभी जानते हैं कि उत्तराखंड का एक बड़ा भूभाग नेपाल और चीन से लगा हुआ है और ऐसे ही कुछ हिमालयी क्षेत्रों में कीड़ा जड़ी का भंडार भी है.

उत्तराखंड के सीमांत जिलों में पाई जाती है कीड़ा जड़ी: कीड़ा जड़ी उत्तराखंड में उत्तरकाशी, पिथौरागढ़, बागेश्वर, चंपावत और चमोली जनपदों में उच्च हिमालयी क्षेत्र में पाई जाती है. चिंता की बात यह है कि पिथौरागढ़ और चमोली दोनों ही जिले चीन से अंतरराष्ट्रीय सीमा साझा करते हैं. लिहाजा इन दोनों जिलों में चीनी सैनिकों की घुसपैठ की संभावनाएं बनी रहती हैं. चमोली के बाड़ाहोती में तो चीन के सैनिक कई बार घुसपैठ करने की कोशिश कर चुके हैं. उत्तराखंड का करीब 625 किलोमीटर का हिस्सा अंतरराष्ट्रीय सीमा से जुड़ा है. जिसमें करीब 350 किलोमीटर का हिस्सा अकेले चीन की सीमा से लगा हुआ है. 275 किलोमीटर क्षेत्र नेपाल की सीमा से जुड़ा है.
पढ़ें-पहाड़ों में कीड़ा जड़ी की जोरदार मांग, खोजने के लिए बर्फीले तूफान से हो रही 'जंग'

नेपाल से होती है तस्करी: खास बात यह है कि न केवल चीन से लगे हुए हिस्से पर चीनी सेना की घुसपैठ कीड़ा जड़ी को लेकर हो सकती है, बल्कि नेपाल से भी भारी मात्रा में इसकी तस्करी की खबरें सामने आती रहती हैं. इस लिहाज से देखा जाए तो उत्तराखंड के उच्च हिमालय में मौजूद यह बेशकीमती संपदा चीन के निशाने पर हो सकती है और उत्तराखंड के इन पहाड़ी क्षेत्रों से चीन कीड़ा जड़ी को चुराने की कोशिश कर सकता है. कीड़ा जड़ी को कई नामों से जाना जाता है, अंग्रेजी में इसे कैटरपिलर फंगस (Caterpillar fungus) कहते हैं तो नेपाल और चीन में इसे यार्सागुंबा के नाम से जाना जाता है. यही नहीं इसे भारत में कीड़ा जड़ी के साथ-साथ हिमालयन गोल्ड और हिमालयन वियाग्रा के नाम से भी पुकारा जाता है.

कीड़ा जड़ी की दो इंच होती है लंबाई: कीड़ा जड़ी उच्च हिमालय क्षेत्र में करीब 3500 मीटर से लेकर 5000 मीटर की ऊंचाई तक पर मिलती है. इसकी लंबाई करीब 2 इंच तक होती है और यह स्वाद में मीठी होती है. पश्चिमी और दक्षिणी चीन के साथ उत्तराखंड के उत्तरकाशी, चमोली बागेश्वर, चंपावत और पिथौरागढ़ के उच्च हिमालयी क्षेत्र में इसकी मौजूदगी मिलती है. यह आधा कीड़ा और आधा जड़ी के रूप में होता है. इसलिए इसे कीड़ा जड़ी कहते हैं. इस कीड़े की उम्र करीब 6 महीने की होती है जिस पर फंगस लगने के बाद जमीन के नीचे दम तोड़ देता है. उधर फंगस कीड़े के मुंह से निकलकर जमीन के बाहर बढ़ती है. इसी हिस्से को देखकर लोग इसे बाहर निकालते हैं. कीड़ा जड़ी में मौजूद प्रचुर मात्रा में प्रोटीन और कॉपर जैसे खनिज इसे कई बीमारियों के लिए मेडिसिनल रूप में उपयोगी बनाते हैं. इसके अलावा यौन शक्ति बढ़ाने और रोग वर्धक क्षमता बढ़ाने के लिए भी इसका महत्व माना जाता है. इन्हीं सभी खूबियों के कारण चीन को इसकी तलाश होती है और चीन में इसकी भारी डिमांड भी है.

क्या कह रहे जानकार: उत्तराखंड के कई जिलों में इसकी उपलब्धता रहती है. इनमें उत्तरकाशी, पिथौरागढ़, चमोली, चंपावत और बागेश्वर जिले शामिल हैं. सबसे ज्यादा पिथौरागढ़ जिले में इसकी उपलब्धता है और यहां कई गांवों की आर्थिकी भी इससे सीधे तौर पर जुड़ी हुई है. माना जाता है कि सीजन में कई गांव इसी की बदौलत अपनी रोजी-रोटी चलाते हैं. जाने-माने लेखक अनिल यादव की किताब कीड़ा जड़ी में इसके इतिहास और महत्व के बारे में भी बताया गया है. इस किताब के अनुसार चौदहवीं शताब्दी में तिब्बत में सबसे पहले इसका पता चला था. अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी कीमत करीब 30 लाख प्रति किलो तक आंकी गई है, जबकि उत्तराखंड में करीब 8 से 10 लाख रुपए प्रति किलो तक इसे बेचा जाता है.

सरकार की स्पष्ट नहीं नीति: राज्य सरकार की तरफ से इस बेशकीमती जड़ी-बूटी को लेकर कोई भी स्पष्ट नियम तय नहीं किया गया है. हालांकि भेषज संघ को इसके कलेक्शन की जिम्मेदारी दी गई थी, लेकिन स्पष्ट कार्ययोजना ना होने के कारण 2 साल कलेक्शन करने के बाद अब भेषज संघ ने भी इसको लेकर हाथ खड़े कर दिए हैं. पूर्व में पंचायतों के प्रधान और सरपंच के माध्यम से लोगों को इसके कलेक्शन के लिए अधिकृत किया जाता था. इसके बाद भेषज संघ इनसे कीड़ा जड़ी तय कीमतों पर लेता था. जबकि इसके बाद डीएफओ के जरिए इस कीड़ा जड़ी का ऑक्शन किया जाता था. लेकिन अभी व्यवस्था पूरी तरह से पटरी से उतरती हुई दिखाई देती है.

बेशकीमती जड़ी की हो रही तस्करी: एक तरफ चीन हिमालयन गोल्ड को पाने के लिए बेताब है तो दूसरी तरफ तस्करी के जरिए उत्तराखंड से कीड़ा जड़ी को बाहर ले जाया जा रहा है. इस बहुमूल्य संपदा को लेकर राज्य सरकार का कोई स्पष्ट नजरिया ना होने के कारण इस प्राकृतिक संपदा का बेतरतीब दोहन हो रहा है. लेखक अनिल यादव ने भी उत्तराखंड से स्मगलिंग हो रही कीड़ा जड़ी का जिक्र किया है. उधर वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत कहते हैं कि स्थानीय लोगों की मदद से यह कीड़ा जड़ी तस्करी के जरिए बाहर जा रही है और सरकार का इस पर कोई ध्यान नहीं है.

कीड़ा जड़ी कब आई चर्चाओं में: माना जाता है कि यूं तो 14वीं शताब्दी के बाद से ही कीड़ा जड़ी का परंपरागत रूप से तिब्बत और चीन में उपयोग होता रहा है लेकिन दुनिया भर में इसको लेकर तब चर्चाएं तेज हुई जब 1993 में चीन के कई एथलीट्स ने गोल्ड जीतकर सभी को चौंका दिया. बताया गया कि इसके बाद इनके कोच की तरफ से कीड़ा जड़ी के सेवन की बात कही गई थी. माना गया कि कीड़ा जड़ी से शरीर को बेहद ताकत मिलती है और डोप टेस्ट के दौरान यह पकड़ में भी नहीं आता. यही नहीं कीड़ा जड़ी के लिए कई बार हिंसक घटनाएं भी हुई हैं और कई हत्याओं के चलते कीड़ा जड़ी दुनियाभर में चर्चाएं बटोरती रही है.

कीड़ा जड़ी के कलेक्शन में आ रही गिरावट: चीन के उच्च हिमालयी क्षेत्र में कीड़ा जड़ी के ज्यादा दोहन के चलते अब इसकी मौजूदगी काफी कम हो गई है. बताया जाता है कि करीब 30% तक की उपलब्धता में कमी आई है. इसलिए अब चीन भारत के उच्च हिमालयी क्षेत्र पर नजर बनाए हुए है. जानकारी के अनुसार इसकी कम होती उपलब्धता का असर उत्तराखंड पर भी है. माना जा रहा है कि बर्फबारी कम होने के चलते भी ऐसा हो रहा है. दरअसल, कीड़ा जड़ी अधिक बर्फबारी वाले सालों में अधिक मिलती है. ऐसे में पिछले कई सालों से कम बर्फबारी को भी इसके कम होने की वजह माना जा रहा है. अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ ने इस जड़ी को दुर्लभ घोषित किया है और इसके संरक्षण की भी जरूरत बताई है. माना जाता है कि अप्रैल मई और जून महीने में लोग उच्च हिमालय क्षेत्र में जाकर इसकी तलाश करते हैं.

डिमांड को देखते हुए प्रयोगशाला में भी हो रहा उत्पादन: कीड़ा जड़ी की दुनिया भर में भारी डिमांड और कीमत को देखते हुए अब इसका उत्पादन तमाम शहरों में भी लोग करने लगे हैं. जानकारी के अनुसार वियतनाम और थाईलैंड में आर्टिफिशियल कीड़ा जड़ी उगाने के लिए लोगों को जानकारी दी जाती है. जिसके बाद भारत में भी कई शहरों में लोग इसका चारदीवारी में भी उत्पादन कर रहे हैं. बताया जा रहा है कि हालांकि उच्च हिमालयी क्षेत्र में मिलने वाले कीड़ा जड़ी की तुलना में इसकी क्वालिटी बेहद कम होती है. लेकिन इसके बावजूद भी करीब ₹20 लाख प्रति किलो तक इसको बेचा जा रहा है.

उद्यान सचिव क्या बोले: वैसे तो कीड़ा जड़ी को लेकर उत्तराखंड सरकार का कभी भी स्पष्ट रवैया नहीं दिखाई दिया. लेकिन इसके बावजूद पूर्व में भेषज संघ को इसकी जिम्मेदारी दी गई थी. लेकिन इतनी ज्यादा कीमत में कीड़ा जड़ी को खरीद पाने में असमर्थ भेषज संघ ने इसको लेकर हाथ खड़े कर लिए. साल 2014 से लेकर 16 तक ही भेषज संघ इस क्षेत्र में काम कर सका. जानकारी के अनुसार इसके बाद 2020 में एक शासनादेश भी किया गया जिसमें ऑक्शन के दौरान डीएफओ कार्यालय से किसी भी व्यक्ति के द्वारा कलेक्ट की गई कीड़ा जड़ी को खरीदने का अधिकार दिया गया. उधर कीड़ा जड़ी को लेकर उद्यान सचिव बीवीआरसी पुरुषोत्तम कहते हैं कि संघ की तरफ से फिलहाल कीड़ा जड़ी को लेकर कलेक्शन नहीं किया जा रहा है. अभी इस पर भेषज संघ कोई काम नहीं कर रहा है.

Last Updated : Jan 9, 2023, 9:50 AM IST
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