देहरादून: पहाड़ी प्रदेश उत्तराखंड में भी पड़ोसी राज्यों की तरह नशे का कारोबार तेजी से फल-फूल रहा है. आज स्थिति कुछ यह है कि बस्तियों में रहने वाले 8 से 10 साल के छोटे बच्चों के अलावा नामी कॉलेजों में पढ़ने वाले युवा भी नशीले पदार्थों के सेवन के आदी हो चुके हैं. इसे लेकर उत्तराखंड बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अध्यक्ष ऊषा नेगी ने भी चिंता जाहिर की है.
बता दें कि, राज्य गठन के 20 साल पूरे होने के बावजूद मद्य निषेध विभाग का गठन न होने के चलते प्रदेश में कई बच्चे और युवा नशे के चंगुल में फंस चुके हैं. इसका कोई सरकारी आंकड़ा नहीं है लेकिन इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ साइकोमेट्रिक काउंसलिंग के 2017 के आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में नशे का कारोबार 80 फीसदी तक फैल चुका है. हर साल इसमें तेजी से बढ़ोतरी देखने को मिल रही है.
ईटीवी भारत से बात करते हुए मनोवैज्ञानिक डॉ. मुकुल शर्मा ने बताया कि प्रदेश में नशे के कारोबारी मासूम बच्चों और युवाओं को अपना निशाना बना रहे हैं. इस मकड़जाल में फंसकर बच्चे और युवा तरह-तरह की आपराधिक गतिविधियों को अंजाम दे रहे हैं. ऐसे में यह जरूरी है कि सरकार अब इस समस्या को गंभीरता से ले और युवा पीढ़ी को नशे के जंजाल में फंसने से बचाए.
वहीं, नशे के जंजाल में फंस रहे बच्चों और युवाओं के संबंध में उत्तराखंड बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अध्यक्ष ऊषा नेगी का कहना है कि पिछले लंबे समय से बाल अधिकार संरक्षण आयोग प्रदेश के हर ब्लॉक और वार्ड में बाल संरक्षण समितियां गठित करने के प्रयास कर रहा है, जिसके माध्यम से ऐसे बच्चों और युवाओं पर नजर रखी जा सकेगी जो नशे के चंगुल में फंस चुके हैं या नशे के कारोबार को बढ़ाने में अपना सहयोग दे रहे हैं.
इसके अलावा बाल अधिकार संरक्षण आयोग की ओर से प्रदेश सरकार को भी प्रदेश के चयनित सरकारी अस्पतालों में नशा मुक्ति केंद्र खोले जाने का प्रस्ताव भेजा गया है, ताकि नशे के आदी हो चुके छोटे बच्चों और युवाओं को बेहतर इलाज मिल सके.
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ऊषा नेगी ने बताया कि सितंबर महीने के पहले सप्ताह में जिला अधिकारी देहरादून के अध्यक्षता में एक महत्वपूर्ण बैठक आयोजित की जाएगी, जिसमें ह्यूमन ट्रैफिकिंग, पुलिस और आबकारी विभाग के अधिकारी शामिल होंगे. इस बैठक में प्रदेश में नशे के कारोबार पर कैसे अंकुश लगाया जाए इस पर विचार विमर्श किया जाएगा.