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2013 की आपदा से बड़ा है कोरोना संकट? जानिए चारधाम यात्रा की चुनौतियां

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Published : Jun 21, 2020, 3:55 PM IST

उत्तराखंड में चारधाम यात्रा 30 जून से शुरू होने की उम्मीद जताई जा रही है. लेकिन, मौजूदा परिस्थितियां चारधाम यात्रा की चुनौतियों को बढ़ा रही हैं.

Challenges of Chardham Yatra
चारधाम यात्रा की चुनौतियां.

देहरादून: उत्तराखंड को देश के प्रमुख धार्मिक स्थलों वाले राज्यों में से एक माना जाता है. यहां प्रतिवर्ष लाखों लोग बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री यानी चारधाम यात्रा को आते हैं. इस बार कोरोना के कारण यात्रा आरंभ नहीं हो पाई है. त्रिवेंद्र सरकार ने चारधाम में अभी तक स्थानीय लोगों को ही दर्शन की अनुमति दी है. लेकिन अभी भी चारधाम यात्रा पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं.

प्रदेश के प्रसिद्ध धाम गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ, बदरीनाथ के कपाट खुलने के बाद ही चारधाम यात्रा का संचालन पूरी तरह से बंद है. अनलॉक-1 में मिली छूट के बाद उम्मीद जताई जा रही है कि 30 जून से चारधाम यात्रा की शुरुआत हो जाएगी. लेकिन मौजूदा परिस्थितियां और मॉनसून चारधाम यात्रा की चुनौतियों को बढ़ा रहे हैं.

उत्तराखंड में चारधाम यात्रा की चुनौतियां

उत्तराखंड सरकार की अनुमति मिलने के बाद नाम मात्र के स्थानीय लोग धामों में दर्शन-पूजन के लिए जा रहे हैं. क्योंकि लोग कोरोना वायरस के बढ़ते खतरे के बीच लोग डरे हुए हैं. ऐसे में बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि कोरोना का संकट उत्तराखंड में 2013 में आई भीषण आपदा से भी बड़ी है. 2013 की आपदा के बाद साल 2014 में 2 लाख 75 हजार श्रद्धालु चारधाम की यात्रा पर आए थे. लेकिन इस बार कोरोना संकट के देखते हुए कहा जा सकता है कि 2020 में श्रद्धालुओं की संख्या वर्ष 2014 में आने वाले श्रद्धालुओं से कम होगी.

ये भी पढ़ें: चारधाम यात्रा पकड़ेगी रफ्तार? कोरोना और मानसून के 'ग्रहण' से फीकी होगी इसबार

उत्तराखंड सरकार के प्रवक्ता मदन कौशिक का कहना है कि साल 2013 में आई भीषण आपदा सिर्फ केदारनाथ में आयी थी. लेकिन वर्तमान समय में कोरोना पूरे विश्व में बड़ा संकट लेकर आया है. उत्तराखंड में मुख्य रूप से चारधाम यात्रा प्रभावित हुई है और इन धाम के स्थानीय लोगों का मानना है कि चारधाम यात्रा को फिलहाल शुरू नहीं करना चाहिए. ऐसे में अब लोगों की नजरें 30 जून के बाद यात्रा शुरू करने को लेकर बनाई जा रही गाइडलाइन को लेकर है. हालांकि, यात्रा को शुरू करना किसी चुनौती से कम नहीं होगा. क्योंकि उत्तराखंड में जून अंत से बारिश शुरू हो जाती है. जिसके बाद यात्रियों की संख्या में खासी गिरावट आती है.

बीते वर्षों के आंकड़ों को देखें तो चारधाम यात्रा में सबसे अधिक श्रद्धालु मध्य अप्रैल से लेकर जून तक आते हैं. वर्ष 2019 में चारधाम यात्रा पर कुल 34 लाख 81 हजार श्रद्धालु आए थे. इन चारों धामों की यात्रा का हिन्दुओं में काफी महत्व है. माना जाता है कि इन चारधामों की यात्रा करने वाले श्रद्धालु के समस्त पाप धुल जाते हैं और आत्मा को जीवन-मृत्यु के बंधन से मुक्ति मिल जाती है.

वर्ष 2019 में चारधाम यात्रा पर आए यात्री

  • केदारनाथ धाम- 10 लाख
  • बदरीनाथ धाम- 12,44,993
  • गंगोत्री धाम- 5,30,334
  • यमुनोत्री धाम- 4,65,534
  • हेमकुंड साहिब- 2,40,133

कब शुरू हुई चारधाम यात्रा

पौराणिक मान्यता है कि 8वीं-9वीं सदी में आदिगुरु शंकराचार्य ने बदरीनाथ की खोज की थी. उन्होंने ही धार्मिक महत्व के इस स्थान को दोबारा बनाया था. बताया जाता है कि भगवान बदरीनाथ की मूर्ति यहां तप्त कुंड के पास एक गुफा में थी. 16वीं सदी में गढ़वाल के एक राजा ने इसे मौजूदा मंदिर में रखवाया था. केदारनाथ भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में एक है. देश-विदेश के श्रद्धालु चारधाम में श्रद्धापूर्वक जाते हैं.

चारधाम की स्थापना कैसे हुई

स्कंद पुराण के अनुसार गढ़वाल को केदारखंड कहा गया है. केदारनाथ का वर्णन महाभारत में भी है. महाभारत युद्ध के बाद पांडवों के केदारनाथ में दर्शन-पूजा करने का वर्णन होता है. माना जाता है कि 8वीं-9वीं सदी में आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा मौजूदा मंदिर को बनवाया था. बदरीनाथ मंदिर के बारे में भी स्कंद पुराण और विष्णु पुराण में वर्णन मिलता है. बदरीनाथ मंदिर के वैदिक काल भी मौजूद होने के बारे में पुराणों में वर्णन है.

गंगा को धरती पर लाने का श्रेय राजा भगीरथ को जाता है. 1790 से 1815 तक कुमाऊं-गढ़वाल पर गोरखा लोगों ने राज किया था. इसी दौरान गंगोत्री मंदिर का निर्माण गोरखा जनरल अमर सिंह थापा ने करवाया था. यमुनोत्री के असली मंदिर को जयपुर की महारानी गुलेरिया ने 19वीं सदी में बनवाया था. कुछ दस्तावेज इस ओर भी इशारा करते हैं कि पुराने मंदिर को टिहरी के महाराज प्रताप शाह ने बनवाया था. मौसम की मार के कारण पुराने मंदिर के टूटने पर मौजूदा मंदिर का निर्माण किया गया है.

देहरादून: उत्तराखंड को देश के प्रमुख धार्मिक स्थलों वाले राज्यों में से एक माना जाता है. यहां प्रतिवर्ष लाखों लोग बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री यानी चारधाम यात्रा को आते हैं. इस बार कोरोना के कारण यात्रा आरंभ नहीं हो पाई है. त्रिवेंद्र सरकार ने चारधाम में अभी तक स्थानीय लोगों को ही दर्शन की अनुमति दी है. लेकिन अभी भी चारधाम यात्रा पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं.

प्रदेश के प्रसिद्ध धाम गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ, बदरीनाथ के कपाट खुलने के बाद ही चारधाम यात्रा का संचालन पूरी तरह से बंद है. अनलॉक-1 में मिली छूट के बाद उम्मीद जताई जा रही है कि 30 जून से चारधाम यात्रा की शुरुआत हो जाएगी. लेकिन मौजूदा परिस्थितियां और मॉनसून चारधाम यात्रा की चुनौतियों को बढ़ा रहे हैं.

उत्तराखंड में चारधाम यात्रा की चुनौतियां

उत्तराखंड सरकार की अनुमति मिलने के बाद नाम मात्र के स्थानीय लोग धामों में दर्शन-पूजन के लिए जा रहे हैं. क्योंकि लोग कोरोना वायरस के बढ़ते खतरे के बीच लोग डरे हुए हैं. ऐसे में बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि कोरोना का संकट उत्तराखंड में 2013 में आई भीषण आपदा से भी बड़ी है. 2013 की आपदा के बाद साल 2014 में 2 लाख 75 हजार श्रद्धालु चारधाम की यात्रा पर आए थे. लेकिन इस बार कोरोना संकट के देखते हुए कहा जा सकता है कि 2020 में श्रद्धालुओं की संख्या वर्ष 2014 में आने वाले श्रद्धालुओं से कम होगी.

ये भी पढ़ें: चारधाम यात्रा पकड़ेगी रफ्तार? कोरोना और मानसून के 'ग्रहण' से फीकी होगी इसबार

उत्तराखंड सरकार के प्रवक्ता मदन कौशिक का कहना है कि साल 2013 में आई भीषण आपदा सिर्फ केदारनाथ में आयी थी. लेकिन वर्तमान समय में कोरोना पूरे विश्व में बड़ा संकट लेकर आया है. उत्तराखंड में मुख्य रूप से चारधाम यात्रा प्रभावित हुई है और इन धाम के स्थानीय लोगों का मानना है कि चारधाम यात्रा को फिलहाल शुरू नहीं करना चाहिए. ऐसे में अब लोगों की नजरें 30 जून के बाद यात्रा शुरू करने को लेकर बनाई जा रही गाइडलाइन को लेकर है. हालांकि, यात्रा को शुरू करना किसी चुनौती से कम नहीं होगा. क्योंकि उत्तराखंड में जून अंत से बारिश शुरू हो जाती है. जिसके बाद यात्रियों की संख्या में खासी गिरावट आती है.

बीते वर्षों के आंकड़ों को देखें तो चारधाम यात्रा में सबसे अधिक श्रद्धालु मध्य अप्रैल से लेकर जून तक आते हैं. वर्ष 2019 में चारधाम यात्रा पर कुल 34 लाख 81 हजार श्रद्धालु आए थे. इन चारों धामों की यात्रा का हिन्दुओं में काफी महत्व है. माना जाता है कि इन चारधामों की यात्रा करने वाले श्रद्धालु के समस्त पाप धुल जाते हैं और आत्मा को जीवन-मृत्यु के बंधन से मुक्ति मिल जाती है.

वर्ष 2019 में चारधाम यात्रा पर आए यात्री

  • केदारनाथ धाम- 10 लाख
  • बदरीनाथ धाम- 12,44,993
  • गंगोत्री धाम- 5,30,334
  • यमुनोत्री धाम- 4,65,534
  • हेमकुंड साहिब- 2,40,133

कब शुरू हुई चारधाम यात्रा

पौराणिक मान्यता है कि 8वीं-9वीं सदी में आदिगुरु शंकराचार्य ने बदरीनाथ की खोज की थी. उन्होंने ही धार्मिक महत्व के इस स्थान को दोबारा बनाया था. बताया जाता है कि भगवान बदरीनाथ की मूर्ति यहां तप्त कुंड के पास एक गुफा में थी. 16वीं सदी में गढ़वाल के एक राजा ने इसे मौजूदा मंदिर में रखवाया था. केदारनाथ भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में एक है. देश-विदेश के श्रद्धालु चारधाम में श्रद्धापूर्वक जाते हैं.

चारधाम की स्थापना कैसे हुई

स्कंद पुराण के अनुसार गढ़वाल को केदारखंड कहा गया है. केदारनाथ का वर्णन महाभारत में भी है. महाभारत युद्ध के बाद पांडवों के केदारनाथ में दर्शन-पूजा करने का वर्णन होता है. माना जाता है कि 8वीं-9वीं सदी में आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा मौजूदा मंदिर को बनवाया था. बदरीनाथ मंदिर के बारे में भी स्कंद पुराण और विष्णु पुराण में वर्णन मिलता है. बदरीनाथ मंदिर के वैदिक काल भी मौजूद होने के बारे में पुराणों में वर्णन है.

गंगा को धरती पर लाने का श्रेय राजा भगीरथ को जाता है. 1790 से 1815 तक कुमाऊं-गढ़वाल पर गोरखा लोगों ने राज किया था. इसी दौरान गंगोत्री मंदिर का निर्माण गोरखा जनरल अमर सिंह थापा ने करवाया था. यमुनोत्री के असली मंदिर को जयपुर की महारानी गुलेरिया ने 19वीं सदी में बनवाया था. कुछ दस्तावेज इस ओर भी इशारा करते हैं कि पुराने मंदिर को टिहरी के महाराज प्रताप शाह ने बनवाया था. मौसम की मार के कारण पुराने मंदिर के टूटने पर मौजूदा मंदिर का निर्माण किया गया है.

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