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इस गांव में एक महीने बाद मनाते हैं दीपावली का त्योहार, जानिए वजह - festivals in mussoorie

मसूरी के जौनपुर ब्लॉक के कांडी गांव में पूरे देश में दीपावली का त्योहार मनाए जाने के ठीक एक महीने बाद मनाया जाता है. इस दिन पारंपरिक वाद्य यंत्रों के साथ नाग देवता की पूजा अर्चना कर बग्वाल त्योहार धूमधाम के साथ मनाया जाता है. आइये जानते हैं लोगों के विश्वास से जुड़ी इस खास त्योहार की कुछ दिलचस्प बातें.

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मसूरी में मनाया गया बग्वाल का त्योहार
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Published : Nov 28, 2019, 5:29 PM IST

मसूरी: दीपावली के एक महीने बाद जौनपुर ब्लॉक के कांडी गांव में दिवाली मनाई जाती है. इस दिन ग्रामीण पारंपरिक वाद्य यंत्रों के साथ नाग देवता की पूजा अर्चना कर बग्वाल त्योहार धूमधाम के साथ मनाते हैं. इस दौरान कांडी गांव के ग्रामीण घास का लंबी रस्सी बनाते हैं, जिसके बाद बुजुर्ग जवान और बच्चे इसे खींचते है.

इस वजह से यहां के लोग देर से मनाते हैं त्योहार
बग्वाल जौनपुर क्षेत्र का मशहूर त्योहार है जिसे ग्रामीणों और आसपास के क्षेत्र के लोग बड़ी धूमधाम के साथ मनाते हैं. इस दिन गांव के विशेष व्यंजन तैयार कर एक-दूसरे को परोसे जाते हैं. कहा जाता है कि भगवान रामचंद्र जी के वनवास से अयोध्या लौटने के बाद उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में करीब 1 महीने के बाद पता चला था, जिससे ग्रामीणों में खुशी की लहर दौड़ गई और वह इस दिन को ग्रामीण बग्वाल के रूप में मनाने लगे.

मसूरी में मनाया गया बग्वाल का त्योहार

पढ़ें- शुभ मुहूर्त के बाकी हैं केवल 9 दिन, इन तारीखों पर जोड़ सकते हैं 'पवित्र रिश्ता'

तरह-तरह के पकवान से होता है मेहमानों का स्वागत
पौराणिक परंपरा का निर्वहन करते हुए उत्तराखंड के जौनपुर क्षेत्र के लोग ने बड़े हर्षोल्लास के साथ गढ़वाली बग्वाल महोत्सव मनाते हैं. इस मौके पर घरों में विशेष तरह के पकवान बनाए जाते हैं. वहीं, अपने सांस्कृतिक छटा को बिखेरते हुए नाच-गाने पर सभी गांव वाले जमकर थिरकते हुए नजर आते हैं. इस दिन चारापत्ती की लकड़ियों से भेलू इत्यादि बनाकर उसे दहन किया जाता है. गांव के सभी लोग एकत्रित होकर गढ़वाल की तांदी इत्यादि पर पारंपरिक नृत्य करते हैं.

पर्यटन को भी बढ़ावा
पर्वतीय इलाकों में पहाड़ के मुश्किल जीवन में जब तीज त्योहार के क्षण आते हैं, तो खेत-खलिहान भी थिरकने उठते हैं. बग्वाल यानी पहाड़ी दीपावली भी इसी का हिस्सा है. गांव में रात्रि में सभी लोग खेतों पर जमा होकर चीड़ की लकड़ियों से बनी मशाल को घुमाते नजर आते हैं. इस त्योहार के पारंपरिक स्वरूप को बचाए रखने की दिशा में क्षेत्र में बग्वाल कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है, जिससे स्थानीय लोगों के साथ पर्यटकों को भी अपनी संस्कृति से रूबरू कराया जा सके और क्षेत्र में पर्यटन को बढ़ावा मिल सके.

मसूरी: दीपावली के एक महीने बाद जौनपुर ब्लॉक के कांडी गांव में दिवाली मनाई जाती है. इस दिन ग्रामीण पारंपरिक वाद्य यंत्रों के साथ नाग देवता की पूजा अर्चना कर बग्वाल त्योहार धूमधाम के साथ मनाते हैं. इस दौरान कांडी गांव के ग्रामीण घास का लंबी रस्सी बनाते हैं, जिसके बाद बुजुर्ग जवान और बच्चे इसे खींचते है.

इस वजह से यहां के लोग देर से मनाते हैं त्योहार
बग्वाल जौनपुर क्षेत्र का मशहूर त्योहार है जिसे ग्रामीणों और आसपास के क्षेत्र के लोग बड़ी धूमधाम के साथ मनाते हैं. इस दिन गांव के विशेष व्यंजन तैयार कर एक-दूसरे को परोसे जाते हैं. कहा जाता है कि भगवान रामचंद्र जी के वनवास से अयोध्या लौटने के बाद उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में करीब 1 महीने के बाद पता चला था, जिससे ग्रामीणों में खुशी की लहर दौड़ गई और वह इस दिन को ग्रामीण बग्वाल के रूप में मनाने लगे.

मसूरी में मनाया गया बग्वाल का त्योहार

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तरह-तरह के पकवान से होता है मेहमानों का स्वागत
पौराणिक परंपरा का निर्वहन करते हुए उत्तराखंड के जौनपुर क्षेत्र के लोग ने बड़े हर्षोल्लास के साथ गढ़वाली बग्वाल महोत्सव मनाते हैं. इस मौके पर घरों में विशेष तरह के पकवान बनाए जाते हैं. वहीं, अपने सांस्कृतिक छटा को बिखेरते हुए नाच-गाने पर सभी गांव वाले जमकर थिरकते हुए नजर आते हैं. इस दिन चारापत्ती की लकड़ियों से भेलू इत्यादि बनाकर उसे दहन किया जाता है. गांव के सभी लोग एकत्रित होकर गढ़वाल की तांदी इत्यादि पर पारंपरिक नृत्य करते हैं.

पर्यटन को भी बढ़ावा
पर्वतीय इलाकों में पहाड़ के मुश्किल जीवन में जब तीज त्योहार के क्षण आते हैं, तो खेत-खलिहान भी थिरकने उठते हैं. बग्वाल यानी पहाड़ी दीपावली भी इसी का हिस्सा है. गांव में रात्रि में सभी लोग खेतों पर जमा होकर चीड़ की लकड़ियों से बनी मशाल को घुमाते नजर आते हैं. इस त्योहार के पारंपरिक स्वरूप को बचाए रखने की दिशा में क्षेत्र में बग्वाल कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है, जिससे स्थानीय लोगों के साथ पर्यटकों को भी अपनी संस्कृति से रूबरू कराया जा सके और क्षेत्र में पर्यटन को बढ़ावा मिल सके.

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मसूरी के पास जौनपुर ब्लाक के बंगलों की कांडी गांव में पारंपरिक वाद्य यंत्रों के साथ नाग देवता की पूजा अर्चना कर बग्वाल त्यौहार धूमधाम के साथ मनाया गया बंगलो की कांडी गांव के ग्रामीण ने सुबह घास का लंबा रस्सा बनाकर गांव के बुजुर्ग जवान और बच्चे खीचते हुए नजर आया माना जाता है कि जब भगवान राम वनवास से आए थे उसी उपलक्ष में भगवान बांध मनाई जाती है ग्रामीणों ने बताया कि बग्वाल जौनपुर क्षेत्र का मशहूर त्यौहार है जिसे ग्रामीणों और आसपास के क्षेत्र के लोग बड़ी धूमधाम के साथ मनाते हैं इस दिन गांव के विशेष व्यंजन तैयार किए गए और एक-दूसरे को परोसे गए उन्होंने बताया कि भगवान रामचंद्र जी के वनवास से अयोध्या लौटने के बाद उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में करीब 1 महीने के बाद पता चला था जिससे ग्रामीणों में खुशी की लहर दौड़ गई वह इस दिन को ग्रामीण बग्वाल के रूप में मनाते हुए पारंपरिक वेशभूषा में नजर आते हैं


Body:पौराणिक परंपरा का निर्वहन करते हुए उत्तराखंड के जौनपुर क्षेत्र के लोग ने बड़े हर्षोल्लास के साथ गढ़वाली बग्वाल महोत्सव मनाया इस मौके पर घरों में विशेष तरह के पकवान बनाए गए वहीं अपने सांस्कृतिक छटा को बिगड़ते हुए नाच गाने पर भी गांव वाले जम के थिरकते हुए नजर आए बग्वाल महोत्सव जौनपुर क्षेत्र के सभी ग्रामीण ग्रामीण ने पारंपरिक रूप से विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाए स्थानीय लोगों ने इसके लिए की जाने वाली तैयारी के बारे में जानकारी देते हुए बताएं इस दिन चारा पति की लकड़ियों से भेलू इत्यादि बनाकर उसे दहन किया जाता है वहीं गांव के सभी लोग एकत्रित होकर गढ़वाल की तांदी इत्यादि पर पारंपरिक नाच गाने का आयोजन करते हैं पारंपरिक त्यौहार बड़ी धूमधाम के साथ मनाया गया जिससे ग्रामीणों ने स्थानीय लोगों एवं पर्यटकों को के साथ गढ़वाली संगीत में झूमते हुए नजर आए


Conclusion:ग्रामीण सीमा सेमवाल और रतन सिंह पवार ने सभी क्षेत्रवासियों को बग्वाल की शुभकामनाएं देते हुए कहा कि पर्वतीय इलाकों में पहाड़ के मुश्किल जीवन मे जब तीज त्योहार के क्षण आते हैं तो खेत खलिहान भी थिरकने उठते हैं बग्वाल यानी पहाड़ी दीपावली भी इसी का हिस्सा है गांव में रात्रि में सभी लोग खेतों पर जमा होने के साथ ही वे लोग जो चीड़ की लकड़ियों से बनी मशाल को घुमाते नजर करते हैं उन्होंने कहा कि त्योहार के पारंपरिक स्वरूप को बचाए रखने की दिशा में क्षेत्र में बग्वाल कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिससे स्थानीय लोगों के साथ पर्यटकों को भी अपनी संस्कृति से रूबरू कराया गया जिससे क्षेत्र में पर्यटन को बढ़ावा मिल सके
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