मसूरी: दीपावली के एक महीने बाद जौनपुर ब्लॉक के कांडी गांव में दिवाली मनाई जाती है. इस दिन ग्रामीण पारंपरिक वाद्य यंत्रों के साथ नाग देवता की पूजा अर्चना कर बग्वाल त्योहार धूमधाम के साथ मनाते हैं. इस दौरान कांडी गांव के ग्रामीण घास का लंबी रस्सी बनाते हैं, जिसके बाद बुजुर्ग जवान और बच्चे इसे खींचते है.
इस वजह से यहां के लोग देर से मनाते हैं त्योहार
बग्वाल जौनपुर क्षेत्र का मशहूर त्योहार है जिसे ग्रामीणों और आसपास के क्षेत्र के लोग बड़ी धूमधाम के साथ मनाते हैं. इस दिन गांव के विशेष व्यंजन तैयार कर एक-दूसरे को परोसे जाते हैं. कहा जाता है कि भगवान रामचंद्र जी के वनवास से अयोध्या लौटने के बाद उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में करीब 1 महीने के बाद पता चला था, जिससे ग्रामीणों में खुशी की लहर दौड़ गई और वह इस दिन को ग्रामीण बग्वाल के रूप में मनाने लगे.
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तरह-तरह के पकवान से होता है मेहमानों का स्वागत
पौराणिक परंपरा का निर्वहन करते हुए उत्तराखंड के जौनपुर क्षेत्र के लोग ने बड़े हर्षोल्लास के साथ गढ़वाली बग्वाल महोत्सव मनाते हैं. इस मौके पर घरों में विशेष तरह के पकवान बनाए जाते हैं. वहीं, अपने सांस्कृतिक छटा को बिखेरते हुए नाच-गाने पर सभी गांव वाले जमकर थिरकते हुए नजर आते हैं. इस दिन चारापत्ती की लकड़ियों से भेलू इत्यादि बनाकर उसे दहन किया जाता है. गांव के सभी लोग एकत्रित होकर गढ़वाल की तांदी इत्यादि पर पारंपरिक नृत्य करते हैं.
पर्यटन को भी बढ़ावा
पर्वतीय इलाकों में पहाड़ के मुश्किल जीवन में जब तीज त्योहार के क्षण आते हैं, तो खेत-खलिहान भी थिरकने उठते हैं. बग्वाल यानी पहाड़ी दीपावली भी इसी का हिस्सा है. गांव में रात्रि में सभी लोग खेतों पर जमा होकर चीड़ की लकड़ियों से बनी मशाल को घुमाते नजर आते हैं. इस त्योहार के पारंपरिक स्वरूप को बचाए रखने की दिशा में क्षेत्र में बग्वाल कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है, जिससे स्थानीय लोगों के साथ पर्यटकों को भी अपनी संस्कृति से रूबरू कराया जा सके और क्षेत्र में पर्यटन को बढ़ावा मिल सके.