देहरादून: उत्तराखंड विधानसभा बैकडोर भर्ती मामला (assembly backdoor recruitment case) मौजूदा वित्त मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल (Finance Minister Premchand Agarwal) का पीछा नहीं छोड़ रहा है. विधानसभा अध्यक्ष के बाहर होने की वजह से फिलहाल इस मामले में आगे क्या होगा यह कह पाना अभी थोड़ा मुश्किल दिख रहा है. विधानसभा बैकडोर भर्ती मामले में 60 से अधिक भर्तियां प्रेमचंद अग्रवाल (Finance Minister Premchand Agarwal) के समय पर कैसे हुई इस बात को लेकर विपक्ष तो विपक्ष साथ ही साथ सत्ता पक्ष के नेता भी सवाल खड़े कर रहे हैं. ऐसे में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी(Chief Minister Pushkar Singh Dhami) ने विधानसभा अध्यक्ष को इस मामले में एक पत्र लिखकर अनियमितता के खिलाफ कड़ा एक्शन लेने की बात कही है.
ऐसे में सवाल यह खड़ा होता है कि आखिरकार 70 विधायकों वाली विधानसभा में आखिरकार 500 कर्मचारियों से अधिक का क्या काम है? जबकि पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश में 400 से अधिक विधायक होते हुए भी कर्मचारियों की संख्या मात्र 700 है. यानी उत्तराखंड में 9 मंत्री हैं, उत्तर प्रदेश में 40 से अधिक मंत्री हैं. विधानसभा में 9 मंत्री कितना काम कर रहे होंगे? उत्तराखंड कितना बड़ा राज्य है? मंत्री कितने विधानसभा में बैठ रहे हैं? साल में विधानसभा कितने दिन चल रही है? यह बात किसी से छिपी नहीं है.
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एक आंकड़े के मुताबिक पूरे साल में विधानसभा सत्र की कार्यवाही 15 दिनों से अधिक नहीं चलती. पिछले 5 हफ्ते में अगर देखा जाए तो विधानसभा के अपने कार्यालय में मंत्री 2 दिन भी पूरा समय नहीं बिताते. ऐसे में 500 से अधिक कर्मचारी इस छोटी सी विधानसभा में आखिरकार कर क्या रहे होंगे? आखिरकार सत्ता के मद में रहे नेताओं ने कैसे उत्तराखंड के पैसों का दुरुपयोग किया कैसे अपनों को फायदा पहुंचाने के लिए नियम कायदे कानून ताक पर रख दिए यह उसका जीता जागता उदाहरण है ये भर्तियां हैं.
दूसरी ओर उत्तर प्रदेश जैसा बड़ा राज्य जिसने उत्तराखंड को जन्म दिया, यहां पुरानी विधानसभा और 400 से अधिक विधायक हैं. साथ-साथ 40 से अधिक मंत्री भी हैं. ऐसी विधानसभा में 700 कर्मचारी हैं, जो परमानेंट ड्यूटी करते हैं. ऐसे में सवाल यह खड़ा होता है आखिरकार उत्तराखंड में चंद मंत्री और चंद विधायकों के लिए 500 से अधिक कर्मचारियों की भर्ती करना कितना नियम अनुसार है.
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मौजूदा वित्त मंत्री और उस वक्त के विधानसभा अध्यक्ष रहे प्रेमचंद अग्रवाल लगातार इस मामले में अपनी सफाई देते हुए यह कह रहे हैं कि यह सब कुछ नियम अनुसार हुआ है. गोविंद सिंह कुंजवाल भी ये ही जवाब दे रहे हैं, मगर कोई ये बताने के लिए तैयार नहीं है की विधानसभा में इतने कर्मचारियों को रखने की आखिरकार क्या जरूरत पड़ी है. आखिरकार के 500 से अधिक कर्मचारी विधानसभा में क्या करते हैं इसका भी कोई जवाब नहीं है. हैरानी की बात तो यह भी है कि इनमें से कई कर्मचारियों को ना केवल मोटी तनख्वाह मिल रही है बल्कि सरकारी आवासों पर भी कर्मचारी डेरा डाले हुए हैं.