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जौनसार बावर: यहां एक महीने बाद मनाई जाती है बूढ़ी दीपावली, जानिए परंपरा

देशभर में मनाई जाने वाली दीपावली के ठीक एक माह बाद जनजाति क्षेत्र में पांच दिन की बूढ़ी दीपावली मनाने का रिवाज है.

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बूढ़ी दीपावली
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Published : Dec 15, 2020, 4:15 PM IST

विकासनगर: जौनसार बावर के जनजाति क्षेत्र में त्योहार मनाने की अगल ही पंरपरा है. यहां त्योहार मनाने का अंदाज और जगहों के जुदा है. जौनसार बावर में दीपावली के करीब एक महीने बाद बूढ़ी दीपावली मनाई जाती है. जिसे भीरूडी पर्व भी कहा जाता है. मंगलवार को जौनसार बावर के करीब 200 गांवों में बड़ी धूमधाम से भीरूडी पर्व का त्योहार मनाया गया.

यहां एक महीने बाद मनाई जाती है बूढ़ी दीपावली.

जनजाति क्षेत्र जौनसार-बावर में हर तीज-त्योहार मनाने का अंदाज हटकर है. भगवान श्रीराम के अयोध्या आगमन की खुशी में देशवासी हर साल हर्षोल्लास से प्रकाश पर्व दीपावली का जश्न धूमधाम से मनाते हैं, लेकिन देहरादून जनपद के सुदूरवर्ती जौनसार-बावर और पछवादून के बिन्हार क्षेत्र में ठीक इसके उलट एक माह बाद पहाड़ी बूढ़ी दीवाली परपंरागत तरीके से मनाई जाती है. पिछले महीने 14 नवंबर को देशभर में दीपावली का त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाया गया था, लेकिन जौनसार बाबर के करीब 200 गांवों दीपावली के करीब एक महीन बाद 14 दिसंबर को बूढ़ी दीपावली मनाई गई. यहां की दीवाली पूरे देश को प्रदूषणरहित दीवाली मनाने का संदेश भी देती है.

पढ़ें- लो जी आ गई हवा से पीने का पानी बनाने वाली मशीन, इतनी है कीमत

वहीं इस मौके पर देव को चिवडा व अखरोट का भोग लगाकर गांव के पंचायती आंगन में गांव के प्रत्येक परिवार द्वारा अखरोट एकत्रित किए गए. गांव के बाजगी द्वारा गेहूं एवं जौ से उगाई गई हरियाली जिसे देव पर्व भीरूडी पर सभी गांव के महिलाओं व पुरूषों को दी जाती है. सभी ग्रामीण देवता की सोने की हरियाली को कान पर रखते है. जिसे बहुत ही शुभ माना जाता है. इस दौरान सभी ग्रामीण हर्ष और उल्लास के साथ पंचायती आंगन में दिवाली के गीत व हारूल नृत्य कर इस उत्सव की परंपरा को निभाते हैं.

पानवा गांव के रूपराम राठौर ने बताया कि यह दीपावली जौनसार बावर में परंपरागत तरीके से मनाई जा रही है. प्रत्येक परिवार में विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाए जाते हैं और सभी गांव के लोग एक दूसरे को दावत के लिए बुलाते हैं. सर्वप्रथम घर में बने विभिन्न प्रकार के व्यंजनों को अपने इष्ट देवता को भोग लगाया जाता है. साथ ही गांव के पंचायती आंगन में गांव के मुखिया द्वारा अखरोट बिखेरने फेंकने से पहले इष्ट देवता को अखरोट का भोग लगाया जाता है. पंचायती आंगन में महिलाओं और पुरुषों को गांव के मुखिया द्वारा अखरोट बिखेरे जाते हैं. सभी लोग इसे अपने इष्ट देवता का प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं.

पहाड़ी बूढ़ी दीवाली मनाने की परंपरा

दीवाली मनाने के बाद पहाड़ में बूढ़ी दीवाली मनाने के पीछे लोगों के अपने अलग तर्क हैं. जनजाति क्षेत्र के बड़े-बुर्जुर्गों की माने तो पहाड़ के सुदूरवर्ती ग्रामीण इलाकों में भगवान श्रीराम के अयोध्या आगमन की सूचना देर से मिलने के कारण लोग एक माह बाद पहाड़ी बूढ़ी दीवाली मनाते हैं.

जबकि अधिकांश लोगों का मत है कि जौनसार-बावर व बिन्हार कृषि प्रधान क्षेत्र होने की वजह से यहां लोग खेतीबाड़ी के कामकाज में बहुत ज्यादा व्यस्त रहते हैं. जिस कारण वह इसके ठीक एक माह बाद बूढ़ी दीवाली का जश्न परपंरागत तरीके से मनाते हैं. यहां पहले पहले दिन छोटी दीवाली, दूसरे दिन रणदयाला, तीसरे दिन बड़ी दीवाली, चौथे दिन बिरुड़ी व पांचवें दिन जंदौई मेले के साथ दीवाली पर्व का समापन होता है.

विकासनगर: जौनसार बावर के जनजाति क्षेत्र में त्योहार मनाने की अगल ही पंरपरा है. यहां त्योहार मनाने का अंदाज और जगहों के जुदा है. जौनसार बावर में दीपावली के करीब एक महीने बाद बूढ़ी दीपावली मनाई जाती है. जिसे भीरूडी पर्व भी कहा जाता है. मंगलवार को जौनसार बावर के करीब 200 गांवों में बड़ी धूमधाम से भीरूडी पर्व का त्योहार मनाया गया.

यहां एक महीने बाद मनाई जाती है बूढ़ी दीपावली.

जनजाति क्षेत्र जौनसार-बावर में हर तीज-त्योहार मनाने का अंदाज हटकर है. भगवान श्रीराम के अयोध्या आगमन की खुशी में देशवासी हर साल हर्षोल्लास से प्रकाश पर्व दीपावली का जश्न धूमधाम से मनाते हैं, लेकिन देहरादून जनपद के सुदूरवर्ती जौनसार-बावर और पछवादून के बिन्हार क्षेत्र में ठीक इसके उलट एक माह बाद पहाड़ी बूढ़ी दीवाली परपंरागत तरीके से मनाई जाती है. पिछले महीने 14 नवंबर को देशभर में दीपावली का त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाया गया था, लेकिन जौनसार बाबर के करीब 200 गांवों दीपावली के करीब एक महीन बाद 14 दिसंबर को बूढ़ी दीपावली मनाई गई. यहां की दीवाली पूरे देश को प्रदूषणरहित दीवाली मनाने का संदेश भी देती है.

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वहीं इस मौके पर देव को चिवडा व अखरोट का भोग लगाकर गांव के पंचायती आंगन में गांव के प्रत्येक परिवार द्वारा अखरोट एकत्रित किए गए. गांव के बाजगी द्वारा गेहूं एवं जौ से उगाई गई हरियाली जिसे देव पर्व भीरूडी पर सभी गांव के महिलाओं व पुरूषों को दी जाती है. सभी ग्रामीण देवता की सोने की हरियाली को कान पर रखते है. जिसे बहुत ही शुभ माना जाता है. इस दौरान सभी ग्रामीण हर्ष और उल्लास के साथ पंचायती आंगन में दिवाली के गीत व हारूल नृत्य कर इस उत्सव की परंपरा को निभाते हैं.

पानवा गांव के रूपराम राठौर ने बताया कि यह दीपावली जौनसार बावर में परंपरागत तरीके से मनाई जा रही है. प्रत्येक परिवार में विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाए जाते हैं और सभी गांव के लोग एक दूसरे को दावत के लिए बुलाते हैं. सर्वप्रथम घर में बने विभिन्न प्रकार के व्यंजनों को अपने इष्ट देवता को भोग लगाया जाता है. साथ ही गांव के पंचायती आंगन में गांव के मुखिया द्वारा अखरोट बिखेरने फेंकने से पहले इष्ट देवता को अखरोट का भोग लगाया जाता है. पंचायती आंगन में महिलाओं और पुरुषों को गांव के मुखिया द्वारा अखरोट बिखेरे जाते हैं. सभी लोग इसे अपने इष्ट देवता का प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं.

पहाड़ी बूढ़ी दीवाली मनाने की परंपरा

दीवाली मनाने के बाद पहाड़ में बूढ़ी दीवाली मनाने के पीछे लोगों के अपने अलग तर्क हैं. जनजाति क्षेत्र के बड़े-बुर्जुर्गों की माने तो पहाड़ के सुदूरवर्ती ग्रामीण इलाकों में भगवान श्रीराम के अयोध्या आगमन की सूचना देर से मिलने के कारण लोग एक माह बाद पहाड़ी बूढ़ी दीवाली मनाते हैं.

जबकि अधिकांश लोगों का मत है कि जौनसार-बावर व बिन्हार कृषि प्रधान क्षेत्र होने की वजह से यहां लोग खेतीबाड़ी के कामकाज में बहुत ज्यादा व्यस्त रहते हैं. जिस कारण वह इसके ठीक एक माह बाद बूढ़ी दीवाली का जश्न परपंरागत तरीके से मनाते हैं. यहां पहले पहले दिन छोटी दीवाली, दूसरे दिन रणदयाला, तीसरे दिन बड़ी दीवाली, चौथे दिन बिरुड़ी व पांचवें दिन जंदौई मेले के साथ दीवाली पर्व का समापन होता है.

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