देहरादून: सत्ता में आते ही सत्ताधारी दल के नेता सरकार में एडजस्ट होने की कोशिशों में जुट जाते हैं. विधायक मंत्री बनने की तमन्ना तो पार्टी नेता दायित्वधारी तक पहुंचने की जुगत भिड़ाने में लगे रहते हैं. भाजपा में भी कुर्सी पाने की कुछ ऐसी ही दौड़ लंबे समय से नेता कर रहे हैं. हर बार सूची जारी होने की अटकलें तेज होती हैं और फिर एक नई तारीख पर आकर रुक जाती है. पिछले 4 सालों से नेताओं की यह उम्मीदें अब अधूरी ही रहने की संभावनाएं हैं. दरअसल कोरोना संक्रमण के चलते मंत्रिमंडल विस्तार या नए दायित्व धारियों की घोषणा होना मुमकिन नहीं है.
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इस बीच करीब दायित्वधारियों की 3 बड़ी सूची जारी की गई. इसमें भी जो रह गये उन्होंने भविष्य में समायोजित होने की उम्मीद पाले रखी. लेकिन अफसोस ये उनके ये सपने पूरे नहीं हो पाये. हालांकि अब पार्टी नेता कोरोना का तर्क देकर फिलहाल इस मामले से दूरी बना रहे हैं.
सीएम के पास 30 से ज्यादा विभाग
यूं तो कांग्रेस का इस बात से कोई खास लेना देना नहीं है, लेकिन कांग्रेस मंत्रिमंडल विस्तार न होने से विकास कार्यों को प्रभावित बता रही है. बता दें कि सरकार में तीन मंत्री पद खाली होने के बाद मुख्यमंत्री पर विभागों की जिम्मेदारी बढ़ गई है. प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के पास करीब 30 से ज्यादा छोटे-बड़े विभाग हैं. खास बात यह है कि सीएम त्रिवेंद्र पीडब्ल्यूडी, ऊर्जा, स्वास्थ्य, खाद्य आपूर्ति, गृह, वित्त विभाग, पेयजल जैसे बड़े विभागों को भी देख रहे हैं.
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विधायकों में सरकार को लेकर नाराजगी
भाजपा के ऐसे कई विधायक हैं जो पूर्व में कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं, जबकि कुछ ऐसे विधायक भी हैं जो तीसरी बार जीतकर विधानसभा पहुंचे हैं. ऐसे विधायकों की मंत्री पद की लालसा ज्यादा थी. मगर त्रिवेंद्र सरकार में उन्हें मौका नहीं दिया गया. जिसके कारण इन विधायकों में नाराजगी है. इसक अलावा सीएम त्रिवेंद्र की तरफ से मंत्रिमंडल विस्तार न होने के कारण अंदर खाने सीनियर विधायक भी मुंह बनाये बैठे हैं.
पद खाली रखने का सीएम त्रिवेंद्र को हुआ फायदा
सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने मंत्रिमंडल विस्तार को रोककर राजनीतिक फायदा भी लिया है. दरअसल, एक तरफ मंत्रिमंडल में जगह होने के चलते कई विधायक मंत्रिमंडल विस्तार में खुद के नंबर की सोच कर सीएम के खिलाफ बोलने से बचते रहे. दूसरी तरफ सीएम त्रिवेंद्र सिंह ने एक अनार सौ बीमार की कहावत पर अमल करते हुए कुछ विधायकों को मंत्री बनाने के बाद बाकी विधायकों के विरोध से भी खुद को बचाये रखने के लिए ये नीति अपनाई है.
चुनाव में पार्टी को नेताओं और कार्यकर्ताओं की नाराजगी से होना पड़ सकता है रूबरू
भले ही 5 साल विधायकों और कार्यकर्ताओं को कुर्सी न देकर उनके विरोध से सीएम त्रिवेंद्र बच गये हों, मगर आने वाले विधानसभा चुनाव में सरकार को कार्यकर्ताओं और नेताओं की नाराजगी झेलनी पड़ सकती है. त्रिवेंद्र सरकार को अब एक साल ही बचा है, ऐसे में अब पिछले 4 सालों से उम्मीदें बांधे नेताओं की आस भी टूट चुकी है.