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हरेला पर्व पर भाजपा चलाएगी 'Selfie with Tree' अभियान, बूथ स्तर पर होगा पौधरोपण

हरेला पर्व को खुशहाली और उन्नति का प्रतीक भी माना गया है. हरेला काटने से पहले कई तरह के पकवान बनाकर देवी-देवताओं को भोग लगाने के बाद उनकी पूजा की जाती है.

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भाजपा सेल्फी विद ट्री अभियान
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Published : Jul 16, 2021, 7:00 AM IST

देहरादून: हरेला पर्व उत्तराखंड की संस्कृति और विरासत में रचा बसा है. जिसका देवभूमि के लोगों के लिए खासा महत्व है, जो पर्यावरण संरक्षण के लिए भी जाना जाता है. वहीं हरेला पर्व के मौके पर भाजपा इस बार सेल्फी विद ट्री (Selfie with Tree) अभियान चला रही है, जिसमें प्रदेश के सभी 252 मंडलों में बूथ स्तर पर पौधरोपण अभियान किया जाएगा.

इस बार हरेला पर्व पर भाजपा सेल्फी विद ट्री अभियान के तहत प्रदेश के सभी 252 मंडलों के प्रत्येक बूथ स्तर पर पौधरोपण करेगी. साथ ही पार्टी ने कार्यकर्ता को पौधरोपण के अलावा रोपित पौधों के संरक्षण के भी निर्देश दिए हैं.

हरेला पर्व पर भाजपा चलाएगी 'Selfie with Tree' अभियान.

पढ़ें-पर्यावरण के संरक्षण का पर्व हरेला आज, जानिए इसका महत्व और परंपरा

भाजपा प्रवक्ता नवीन ठाकुर ने बताया कि हरेला पर्व भारतीय जनता पार्टी के छह अनिवार्य कार्यक्रमों में से एक है. जिसके तहत इस बार हरेला पर्व को एक अलग तरीके से मनाने का संकल्प लिया गया है और भाजपा कार्यकर्ताओं द्वारा लाखों की संख्या में पौधरोपण किया जाएगा. उन्होंने आगे कहा कि केवल पौधरोपण ही नहीं बल्कि रोपित पौधों का संरक्षण और संवर्धन भी किया जाएगा.

लोकपर्व 'हरेला' आस्था का प्रतीक: पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक उत्तराखंड को भगवान शिव का निवास स्थान भी माना जाता है. जिसके कारण हरेला पर्व भगवान शिव के विवाह की जयंती के रूप में भी मनाया जाता है. इस दिन भगवान शिव, माता पार्वती और उनके परिवार के सभी सदस्यों की मिट्टी से मूर्तियां बनाई जाती हैं.

जिन्हें प्राकृतिक रंगों से रंगा जाता है. कुमाऊं क्षेत्र में कई जगहों पर हरेला पर्व के दिन मेला भी लगता है.खास बात यह है कि हरेला पर्व पूरे साल में तीन बार अलग-अलग महीने (चैत्र, श्रावण और आषाढ़) में आता है. लेकिन श्रावण मास के पहले दिन पड़ने वाले हरेला का सबसे अधिक महत्व है. इस दिन भगवान शिव की विशेषकर पूजा की जाती है.

पढ़ें-वन अनुसंधान केंद्र ने बनाई तुलसी वाटिका, 24 किस्मों का हो रहा संरक्षण

पर्यावरण संरक्षण का संदेश: मान्यता है कि श्रावण मास में किसी भी वृक्ष की टहनी बिना जड़ के ही अगर जमीन में रोप दी जाय तो वह एक वृक्ष के रूप में ही बढ़ने लगता है. इसीलिए कई जगहों पर हरेला त्योहार के दिन विशेष रूप से फलदार वृक्ष लगाने का प्रचलन है, जो कि पर्यावरण के प्रति हमारी कर्तव्य निष्ठा और प्रकृति प्रेम को भी दर्शाता है. साथ ही यह त्योहार सामाजिक सद्भाव और सहयोग का पर्व है.

देहरादून: हरेला पर्व उत्तराखंड की संस्कृति और विरासत में रचा बसा है. जिसका देवभूमि के लोगों के लिए खासा महत्व है, जो पर्यावरण संरक्षण के लिए भी जाना जाता है. वहीं हरेला पर्व के मौके पर भाजपा इस बार सेल्फी विद ट्री (Selfie with Tree) अभियान चला रही है, जिसमें प्रदेश के सभी 252 मंडलों में बूथ स्तर पर पौधरोपण अभियान किया जाएगा.

इस बार हरेला पर्व पर भाजपा सेल्फी विद ट्री अभियान के तहत प्रदेश के सभी 252 मंडलों के प्रत्येक बूथ स्तर पर पौधरोपण करेगी. साथ ही पार्टी ने कार्यकर्ता को पौधरोपण के अलावा रोपित पौधों के संरक्षण के भी निर्देश दिए हैं.

हरेला पर्व पर भाजपा चलाएगी 'Selfie with Tree' अभियान.

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भाजपा प्रवक्ता नवीन ठाकुर ने बताया कि हरेला पर्व भारतीय जनता पार्टी के छह अनिवार्य कार्यक्रमों में से एक है. जिसके तहत इस बार हरेला पर्व को एक अलग तरीके से मनाने का संकल्प लिया गया है और भाजपा कार्यकर्ताओं द्वारा लाखों की संख्या में पौधरोपण किया जाएगा. उन्होंने आगे कहा कि केवल पौधरोपण ही नहीं बल्कि रोपित पौधों का संरक्षण और संवर्धन भी किया जाएगा.

लोकपर्व 'हरेला' आस्था का प्रतीक: पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक उत्तराखंड को भगवान शिव का निवास स्थान भी माना जाता है. जिसके कारण हरेला पर्व भगवान शिव के विवाह की जयंती के रूप में भी मनाया जाता है. इस दिन भगवान शिव, माता पार्वती और उनके परिवार के सभी सदस्यों की मिट्टी से मूर्तियां बनाई जाती हैं.

जिन्हें प्राकृतिक रंगों से रंगा जाता है. कुमाऊं क्षेत्र में कई जगहों पर हरेला पर्व के दिन मेला भी लगता है.खास बात यह है कि हरेला पर्व पूरे साल में तीन बार अलग-अलग महीने (चैत्र, श्रावण और आषाढ़) में आता है. लेकिन श्रावण मास के पहले दिन पड़ने वाले हरेला का सबसे अधिक महत्व है. इस दिन भगवान शिव की विशेषकर पूजा की जाती है.

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पर्यावरण संरक्षण का संदेश: मान्यता है कि श्रावण मास में किसी भी वृक्ष की टहनी बिना जड़ के ही अगर जमीन में रोप दी जाय तो वह एक वृक्ष के रूप में ही बढ़ने लगता है. इसीलिए कई जगहों पर हरेला त्योहार के दिन विशेष रूप से फलदार वृक्ष लगाने का प्रचलन है, जो कि पर्यावरण के प्रति हमारी कर्तव्य निष्ठा और प्रकृति प्रेम को भी दर्शाता है. साथ ही यह त्योहार सामाजिक सद्भाव और सहयोग का पर्व है.

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