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उत्तराखंड में शोपीस बने ऑटोमेटिक वेदर स्टेशन के उपकरण, कैसे मिलेगी बारिश और मौसम की सटीक जानकारी

उत्तराखंड में हर साल मौसम कहर बरपाता है. इस समय मॉनसून सीजन भी चरम पर है, लेकिन सूबे के कई जिलों में ऑटोमेटिक वेदर स्टेशन और रेन गेज के उपकरण शोपीस बने हैं. जिसके चलते मौसम की सटीक जानकारी के लिए पड़ोसी जिलों की मदद ली जा रही है. हैरानी की बात ये है कि मौसम का पूर्वानुमान देने वाले ये यंत्र खराब मौसम की वजह से ठप पड़े हैं.

Automatic Weather Station
ऑटोमेटिक वेदर स्टेशन
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Published : Jul 31, 2023, 4:05 PM IST

देहरादूनः उत्तराखंड में हर साल आपदा कई लोगों की जान लील लेती है. हालांकि, आपदा को रोका तो नहीं जा सकता है, लेकिन इससे बचा जा सकता है. इससे बचाव के लिए मौसम विभाग का पूर्वानुमान काफी मददगार साबित होता है. लेकिन मौसम को मापने वाले यंत्र ही खराब हों तो पूर्वानुमान कैसे लगाया जा सकेगा. जी हां, सूबे में कई जगहों पर यंत्र ही खराब हैं. जिससे मौसम का सटीक अनुमान लगाना तो दूर की बात जानकारी भी नहीं मिल पा रही है.

Automatic Weather Station
देहरादून मौसम विज्ञान केंद्र

दरअसल, ऑटोमेटिक वेदर स्टेशन में बारिश, नमी और हवा को मापने वाले यंत्र ही खराब पड़े हुए हैं. आलम ये है कि जहां सबसे ज्यादा बारिश और तबाही होती है, वहां के यंत्र शोपीस बने हुए हैं. जिसमें चमोली, रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी जिले शामिल हैं. अब मौसम विज्ञान केंद्र देहरादून राज्य सरकार से सहायता मांग रहा है कि इन यंत्रों को जल्द से जल्द दुरुस्त करने में सहयोग किया जाए.

केदारनाथ त्रासदी के बाद लगाए गए थे ज्यादातर सिस्टमः केदारनाथ आपदा 2013 के बाद केंद्र सरकार ने राज्य सरकार के साथ मिलकर मौसम के पूर्वानुमान को लेकर बड़े स्तर पर काम किया था. इसी के तहत हर जिले में अलग-अलग जगहों पर वेदर मॉनिटरिंग स्टेशन बनाए और यंत्र स्थापित किए. इन स्टेशनों से बारिश, हवा, नमी, भूकंप इत्यादि का डाटा मौसम विज्ञान केंद्र तक पहुंचाने का काम किया जा रहा था, लेकिन कई स्टेशनों में ये यंत्र खराब पड़े हुए हैं.
ये भी पढ़ेंः चारधाम यात्रा में कैसे होगी मौसम की सटीक भविष्यवाणी? डॉप्लर रडार की खराबी बनी 'मुसीबत'

देहरादून मौसम विज्ञान केंद्र की मानें तो उत्तराखंड में 132 ऑटोमेटिक वेदर स्टेशन या वेदर मॉनिटरिंग स्टेशन बनाए गए हैं. इसके तहत अगर किसी भी जिले में बारिश होने की संभावना है तो इसकी जानकारी और फीडबैक मौसम विज्ञान केंद्र तक भेजा जाता है. जिसके आधार पर मौसम विज्ञान केंद्र, आपदा प्रबंधन विभाग से लेकर तमाम जिला प्रशासन और स्थानीय लोगों तक अलर्ट जारी करता है.

मौसम विज्ञान केंद्र इन वेदर स्टेशनों के पूर्वानुमान के तहत किस जगह पर कब और कितनी बारिश होगी, साथ ही कहां तेज हवाएं चलेंगी या ओलावृष्टि होगी, इसकी जानकारी मुहैया कराता है. लेकिन बीते कुछ दिनों से मौसम विज्ञान केंद्र के ऑटोमेटिक वेदर स्टेशन की मशीनें काम नहीं कर रही हैं.

हैरानी की बात ये है कि मौसम की जानकारी देने वाले ये यंत्र खुद ही खराब मौसम की वजह से बंद होने की बात कही जा रही है. बताया जा रहा है कि पहाड़ी इलाकों में लगातार हो रही बारिश की वजह से कई जगहों के प्रोग्रामिंग स्टेशन पूरी तरह से बंद पड़ गए हैं. खासकर चमोली, रुद्रप्रयाग, बागेश्वर, उत्तरकाशी जिले में जो उपकरण लगे हैं, वो काम ही नहीं कर रहे हैं.
ये भी पढ़ेंः सवालों के घेरे में डॉप्लर रडार, सरखेत आपदा की जांच में बड़ा 'खुलासा'

अनुमान से जारी हो रहे आंकड़ेः आपको जानकर हैरानी होगी कि मौसम विज्ञान केंद्र आस पास के मौसम को मापने के लिए पड़ोसी जिलों या दूसरे सब स्टेशन का आंकड़ा लेकर अलर्ट जारी कर रहा है. अन्य स्टेशनों के आंकड़ों के आधार राज्य आपदा प्रबंधन तक जानकारी भेज रहा है.

उत्तराखंड मौसम विभाग के निदेशक विक्रम सिंह की मानें तो उत्तराखंड में करीब 10 फीसदी उपकरण फिलहाल खराब चल रहे हैं. ये सभी वो उपकरण हैं, जो ऊंचाई वाले इलाकों में लगे हुए हैं. हालांकि, कई जगहों पर बैटरी की दिक्कत है तो कहीं पर बारिश की वजह से नेटवर्क की दिक्कतें सामने आ रही हैं.

उनका ये भी कहना है कि विभाग दूसरे स्टेशन और रेन गेज से आंकड़े लेकर पूर्वानुमान जारी कर रहा है. मामले को लेकर संबंधित अधिकारियों को पत्र लिख दिया गया है. उम्मीद है कि जल्द ही ये उपकरण ठीक हो जाएंगे. मॉनसून सीजन भी चरम पर है और चारधाम यात्रा भी चल रही है. ऐसे में सभी सिस्टम का दुरुस्त होना बेहद जरूरी है. ताकि, मौसम की सटीक जानकारी सभी तक पहुंच सके.
ये भी पढ़ेंः Natural Calamity में मोबाइल टावर से बजेंगे अर्ली वार्निंग सायरन, फ्लड फोरकास्टिंग मॉडल के साथ आपदा मित्र हैं तैयार

खराब सिस्टम का खामियाजा भुगत चुका प्रदेशः इन यंत्रों का खराब होना काफी भारी भी पड़ जाता है. देहरादून के मालदेवता में जब भारी बारिश हुई थी, तब यह खुलासा हुआ था कि इस क्षेत्र में लगा मौसम मापने का सिस्टम काम ही नहीं कर रहा था. जिस वजह से बारिश का आकलन कोई नहीं कर पाया. जिसके चलते भारी तबाही हुई. सड़कें टूट गई तो कई घरों में मलबा घुसा. इतना ही नहीं क्षेत्र में पुल का एक बड़ा हिस्सा भी बह गया.

आपदा प्रबंधन विभाग बोला, 'हमारा कोई रोल नहीं': मामले को लेकर जब उत्तराखंड आपदा प्रबंधन विभाग के निदेशक पीयूष रौतेला से बात की तो उनका कहना था कि ये काम मौसम विभाग का है. उनका ही सिस्टम है तो ठीक भी वही करेंगे. उनके क्या सहयोग मांगा गया है, अगर वो उनके हिस्से का होगा तो मदद करेंगे, लेकिन जिसका विभाग है वो काम वही करेंगे. इसमें हमारा कोई रोल नहीं है.
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क्या होता है सिस्टमः ऑटोमेटिक वेदर स्टेशन वायुमंडलीय दबाव बताता है. साथ ही दिन और रात का तापमान कैसा है, इसकी भी जानकारी देता है. हवा की गति, दिशा और बारिश पर नजर रखता है. मौसम में नमी कैसी है और कितनी बारिश कब किस इलाके में होगी? ये जानकारी भी रखता है. ये यंत्र सोलर पावर से चलता है और अपनी बैटरी खुद ही चार्ज करता है. हर घंटे का आंकड़ा मौसम विभाग केंद्र तक पहुंचाता है.

देहरादूनः उत्तराखंड में हर साल आपदा कई लोगों की जान लील लेती है. हालांकि, आपदा को रोका तो नहीं जा सकता है, लेकिन इससे बचा जा सकता है. इससे बचाव के लिए मौसम विभाग का पूर्वानुमान काफी मददगार साबित होता है. लेकिन मौसम को मापने वाले यंत्र ही खराब हों तो पूर्वानुमान कैसे लगाया जा सकेगा. जी हां, सूबे में कई जगहों पर यंत्र ही खराब हैं. जिससे मौसम का सटीक अनुमान लगाना तो दूर की बात जानकारी भी नहीं मिल पा रही है.

Automatic Weather Station
देहरादून मौसम विज्ञान केंद्र

दरअसल, ऑटोमेटिक वेदर स्टेशन में बारिश, नमी और हवा को मापने वाले यंत्र ही खराब पड़े हुए हैं. आलम ये है कि जहां सबसे ज्यादा बारिश और तबाही होती है, वहां के यंत्र शोपीस बने हुए हैं. जिसमें चमोली, रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी जिले शामिल हैं. अब मौसम विज्ञान केंद्र देहरादून राज्य सरकार से सहायता मांग रहा है कि इन यंत्रों को जल्द से जल्द दुरुस्त करने में सहयोग किया जाए.

केदारनाथ त्रासदी के बाद लगाए गए थे ज्यादातर सिस्टमः केदारनाथ आपदा 2013 के बाद केंद्र सरकार ने राज्य सरकार के साथ मिलकर मौसम के पूर्वानुमान को लेकर बड़े स्तर पर काम किया था. इसी के तहत हर जिले में अलग-अलग जगहों पर वेदर मॉनिटरिंग स्टेशन बनाए और यंत्र स्थापित किए. इन स्टेशनों से बारिश, हवा, नमी, भूकंप इत्यादि का डाटा मौसम विज्ञान केंद्र तक पहुंचाने का काम किया जा रहा था, लेकिन कई स्टेशनों में ये यंत्र खराब पड़े हुए हैं.
ये भी पढ़ेंः चारधाम यात्रा में कैसे होगी मौसम की सटीक भविष्यवाणी? डॉप्लर रडार की खराबी बनी 'मुसीबत'

देहरादून मौसम विज्ञान केंद्र की मानें तो उत्तराखंड में 132 ऑटोमेटिक वेदर स्टेशन या वेदर मॉनिटरिंग स्टेशन बनाए गए हैं. इसके तहत अगर किसी भी जिले में बारिश होने की संभावना है तो इसकी जानकारी और फीडबैक मौसम विज्ञान केंद्र तक भेजा जाता है. जिसके आधार पर मौसम विज्ञान केंद्र, आपदा प्रबंधन विभाग से लेकर तमाम जिला प्रशासन और स्थानीय लोगों तक अलर्ट जारी करता है.

मौसम विज्ञान केंद्र इन वेदर स्टेशनों के पूर्वानुमान के तहत किस जगह पर कब और कितनी बारिश होगी, साथ ही कहां तेज हवाएं चलेंगी या ओलावृष्टि होगी, इसकी जानकारी मुहैया कराता है. लेकिन बीते कुछ दिनों से मौसम विज्ञान केंद्र के ऑटोमेटिक वेदर स्टेशन की मशीनें काम नहीं कर रही हैं.

हैरानी की बात ये है कि मौसम की जानकारी देने वाले ये यंत्र खुद ही खराब मौसम की वजह से बंद होने की बात कही जा रही है. बताया जा रहा है कि पहाड़ी इलाकों में लगातार हो रही बारिश की वजह से कई जगहों के प्रोग्रामिंग स्टेशन पूरी तरह से बंद पड़ गए हैं. खासकर चमोली, रुद्रप्रयाग, बागेश्वर, उत्तरकाशी जिले में जो उपकरण लगे हैं, वो काम ही नहीं कर रहे हैं.
ये भी पढ़ेंः सवालों के घेरे में डॉप्लर रडार, सरखेत आपदा की जांच में बड़ा 'खुलासा'

अनुमान से जारी हो रहे आंकड़ेः आपको जानकर हैरानी होगी कि मौसम विज्ञान केंद्र आस पास के मौसम को मापने के लिए पड़ोसी जिलों या दूसरे सब स्टेशन का आंकड़ा लेकर अलर्ट जारी कर रहा है. अन्य स्टेशनों के आंकड़ों के आधार राज्य आपदा प्रबंधन तक जानकारी भेज रहा है.

उत्तराखंड मौसम विभाग के निदेशक विक्रम सिंह की मानें तो उत्तराखंड में करीब 10 फीसदी उपकरण फिलहाल खराब चल रहे हैं. ये सभी वो उपकरण हैं, जो ऊंचाई वाले इलाकों में लगे हुए हैं. हालांकि, कई जगहों पर बैटरी की दिक्कत है तो कहीं पर बारिश की वजह से नेटवर्क की दिक्कतें सामने आ रही हैं.

उनका ये भी कहना है कि विभाग दूसरे स्टेशन और रेन गेज से आंकड़े लेकर पूर्वानुमान जारी कर रहा है. मामले को लेकर संबंधित अधिकारियों को पत्र लिख दिया गया है. उम्मीद है कि जल्द ही ये उपकरण ठीक हो जाएंगे. मॉनसून सीजन भी चरम पर है और चारधाम यात्रा भी चल रही है. ऐसे में सभी सिस्टम का दुरुस्त होना बेहद जरूरी है. ताकि, मौसम की सटीक जानकारी सभी तक पहुंच सके.
ये भी पढ़ेंः Natural Calamity में मोबाइल टावर से बजेंगे अर्ली वार्निंग सायरन, फ्लड फोरकास्टिंग मॉडल के साथ आपदा मित्र हैं तैयार

खराब सिस्टम का खामियाजा भुगत चुका प्रदेशः इन यंत्रों का खराब होना काफी भारी भी पड़ जाता है. देहरादून के मालदेवता में जब भारी बारिश हुई थी, तब यह खुलासा हुआ था कि इस क्षेत्र में लगा मौसम मापने का सिस्टम काम ही नहीं कर रहा था. जिस वजह से बारिश का आकलन कोई नहीं कर पाया. जिसके चलते भारी तबाही हुई. सड़कें टूट गई तो कई घरों में मलबा घुसा. इतना ही नहीं क्षेत्र में पुल का एक बड़ा हिस्सा भी बह गया.

आपदा प्रबंधन विभाग बोला, 'हमारा कोई रोल नहीं': मामले को लेकर जब उत्तराखंड आपदा प्रबंधन विभाग के निदेशक पीयूष रौतेला से बात की तो उनका कहना था कि ये काम मौसम विभाग का है. उनका ही सिस्टम है तो ठीक भी वही करेंगे. उनके क्या सहयोग मांगा गया है, अगर वो उनके हिस्से का होगा तो मदद करेंगे, लेकिन जिसका विभाग है वो काम वही करेंगे. इसमें हमारा कोई रोल नहीं है.
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क्या होता है सिस्टमः ऑटोमेटिक वेदर स्टेशन वायुमंडलीय दबाव बताता है. साथ ही दिन और रात का तापमान कैसा है, इसकी भी जानकारी देता है. हवा की गति, दिशा और बारिश पर नजर रखता है. मौसम में नमी कैसी है और कितनी बारिश कब किस इलाके में होगी? ये जानकारी भी रखता है. ये यंत्र सोलर पावर से चलता है और अपनी बैटरी खुद ही चार्ज करता है. हर घंटे का आंकड़ा मौसम विभाग केंद्र तक पहुंचाता है.

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