देहरादून: अखिल भारतीय जाट जन जागृति संगठन ने 25 दिसंबर को महाराजा सूरजमल के बलिदान दिवस को शौर्य दिवस के रूप में बनाने का निर्णय लिया है. संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष परमेन्द्र सिंह ने बताया कि इस बार राजधानी देहरादून में महाराजा सूरजमल का बलिदान दिवस शौर्य दिवस के रूप में मनाया जाएगा. इसके लिए कार्यक्रम स्थल का चयन संगठन के प्रदेश अध्यक्ष चौधरी जगबीर सिंह करेंगे.
इसके साथ ही इसी दिन युवाओं में बढ़ती जा रही नशे की प्रवृत्ति रोकने के लिए जन जागरूकता अभियान चलाने की शुरुआत भी कर दी जाएगी. उन्होंने कहा कि युवाओं में बढ़ती नशे की लत शारीरिक नहीं बल्कि मानसिक बीमारी है. इस मानसिक बीमारी का निदान होना जरूरी है. ताकि भावी पीढ़ी को नशे के दलदल में जाने से रोका जा सके.
अखिल भारतीय जाट जन जागृति संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष का यह भी कहना है कि राजधानी देहरादून में अधिकतर नशा मुक्ति केंद्र दुकानों के समान चल रहे हैं. ऐसे में संगठन की ओर से नशा मुक्ति केंद्र संचालित किए जाएंगे जहां सभी सुविधाएं मौजूद रहेंगी. इसके साथ ही संगठन की ओर से चौधरी जितेंद्र सिंह को राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी और मुख्य प्रवक्ता की जिम्मेदारी भी सौंपी गई है.
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कौन थे महाराजा सूरजमल: महाराजा सूरजमल या सूजान सिंह (13 फरवरी 1707– 25 दिसम्बर 1763) राजस्थान के भरतपुर के हिंदू जाट राजा थे. उनका शासन जिन क्षेत्रों में था वे वर्तमान समय में भारत की राजधानी दिल्ली, उत्तर प्रदेश के आगरा, अलीगढ़, बुलन्दशहर, ग़ाज़ियाबाद, फ़िरोज़ाबाद, इटावा, हाथरस, एटा, मैनपुरी, मथुरा, मेरठ के साथ ही राजस्थान के भरतपुर, धौलपुर, अलवर, हरियाणा का गुरुग्राम, रोहतक, झज्जर, फरीदाबाद, रेवाड़ी, मेवात जिलों के अन्तर्गत हैं. महाराजा सूरजमल में वीरता, धीरता, गम्भीरता, उदारता, सतर्कता, दूरदर्शिता, सूझबूझ, चातुर्य और राजमर्मज्ञता का सुखद संगम सुशोभित था. मेल-मिलाप और सह-अस्तित्व तथा समावेशी सोच को आत्मसात करने वाली भारतीयता के वे सच्चे प्रतीक थे. महाराजा सूरजमल के समकालीन एक इतिहासकार ने उन्हें 'जाटों का प्लेटो' कहा है. इसी तरह एक आधुनिक इतिहासकार ने उनकी स्प्ष्ट दृष्टि और बुद्धिमत्ता को देखने हुए उनकी तुलना ओडिसस से की है.
महाराजा सूरजमल के नेतृत्व में जाटों ने आगरा नगर की रक्षा करने वाली मुगल सेना पर अधिकार कर कर लिया. 25 दिसम्बर 1763 ई. में दिल्ली के शाहदरा में मुगल सेना द्वारा घात लगाकर किए गए एक हमले में महाराजा सूरजमल वीरगति को प्राप्त हुए. कहा जाता है कि उनकी मृत्यु के समय उनके अपने किलों पर तैनात सैनिकों के अलावा, उनके पास 25,000 पैदल सेना और 15,000 घुड़सवारों की सेना थी.