देहरादून: उत्तराखंड राज्य गठन को 20 साल पूरे हो चुके हैं. इन 20 सालों में जहां प्रदेश ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं तो वहीं वर्तमान स्थिति कुछ यह है कि विकास की तेज दौड़ के बीच साल दर साल प्रदेश में बेशकीमती कृषि भूमि को भी कम होती जा रही है. जिसकी तस्दीक खुद उत्तराखंड राजस्व परिषद के आंकड़े कर रहे हैं.
बता दें कि उत्तराखंड राजस्व परिषद से प्राप्त साल 2000-01 और साल 2018-19 के भूमि उपयोगिता के आंकड़ों पर गौर करें तो इसमें कृषि के अतिरिक्त अन्य उपयोग में लाई जा रही भूमि लगातार बढ़ रही है. जिसका सीधे तौर पर यह अर्थ निकलता है कि प्रदेश में कृषि भूमि कम होती जा रही है. साल 2000 से लेकर साल 2019 के बीच प्रदेश में 33 हजार हेक्टेयर से ज्यादा कृषि भूमि कम हो चुकी है.
उत्तराखंड राजस्व परिषद से साल 2000-01 और साल 2018- 19 के भूमि उपयोगिता के आंकड़े
जिला | जिला कृषि के अतिरिक्त 2018-19 | अन्य उपयोग में लाई जा रही भूमि(हेक्टेयर)2000-01 |
चमोली | 8046 | 16662 |
देहरादून | 22510 | 23260 |
हरिद्वार | 26340 | 31226 |
पौड़ी | 16041 | 17313 |
रुद्रप्रयाग | 2950 | 5641 |
टिहरी | 4885 | 7155 |
उत्तरकाशी | 5209 | 6007 |
अल्मोड़ा | 13181 | 12668 |
बागेश्वर | 4705 | 4886 |
चम्पावत | 4592 | 4625 |
नैनीताल | 9110 | 11148 |
पिथौरागढ़ | 10060 | 11512 |
उधमसिंह नगर | 24618 | 33604 |
कुल योग | 152247 | 185707 |
इन आंकड़ों को देखकर आपके जहन में भी जरूर यह सवाल उठ रहे होंगे कि आखिर प्रदेश में कृषि भूमि क्यों और किन कारणों से कम होती जा रही है ? इन सवालों का जवाब जानने के लिए ईटीवी भारत ने प्रदेश के जाने-माने पर्यावरणविद् कल्याण सिंह रावत से बात की. पर्यावरणविद कल्याण सिंह रावत के मुताबिक प्रदेश में कृषि भूमि के घटने के या फिर कम होने के कई कारण हैं.
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इसमें सबसे प्रमुख कारण प्रदेश के पहाड़ी इलाकों में किसानों की फसल पर जंगली जानवरों जैसे बंदर सूअर इत्यादि का हमला है. वहीं दूसरी तरफ एक प्रमुख कारण साल दर साल बढ़ती आबादी और सिंचाई की उचित व्यवस्था न होना भी है.
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पर्यावरणविद् कल्याण सिंह रावत बताते हैं कि प्रदेश में केवल 15% भूमि ही सिंचित है. इसके अलावा शेष बचे 85% भूमि असिंचित है. वहीं दूसरी तरफ प्रदेश में प्राकृतिक जल स्रोत भी सूख रहे हैं. जिसकी वजह से सिंचाई का बेहतर विकल्प ना मिलने की वजह से लोग खेती किसानी त्याग रहे हैं. वहीं, दूसरी तरफ जो किसान खेती किसानी कर भी रहे हैं उनकी फसलों को जंगली जानवर नष्ट कर रहे हैं. जिसकी वजह से कोई और विकल्प न होने के कारण लोग खेती किसानी छोड़कर अपनी जमीनों को किसी अन्य उपयोग में ला रहे हैं.
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बहरहाल, इस तरफ सरकार खेती किसानी को बढ़ावा देने की बातें करती है तो वहीं दूसरी तरफ प्रदेश की यह स्थिति वाकई में चिंताजनक है. ऐसे में जरूरत है कि सरकार प्रदेश में खेती किसानी को बढ़ावा देने के लिए उचित व्यवस्था करें. यानी जिस तरह हमारे प्राकृतिक जल स्रोत सूख रहे हैं, उसे ध्यान में रखते हुए प्राकृतिक जल स्रोतों को दोबारा जीवित किया जाए. साथ ही खेती किसानी के लिए सिंचाई की उचित व्यवस्था की जाए. शायद जब लोगों को खेती किसानी के लिए बेहतर व्यवस्था मिलेगी तभी एक बार फिर लोग दोबारा खेती किसानी से जुड़ने पर विचार करेंगे.