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विधानसभा बैक डोर भर्ती: HC के आदेश के बाद सरकार ने साधी चुप्पी, आगे क्या? - कैबिनेट मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल

उत्तराखंड विधानसभा बैक डोर भर्ती (assembly backdoor recruitment case) मामले में कर्मचारियों को बर्खास्त कर वाहवाही लूटने वाली धामी सरकार हाईकोर्ट (Uttarakhand High Court) के आदेश के बाद बैकफुट पर आ गई है. ऐसे में विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी (Assembly Speaker Ritu Khanduri) की कार्रवाई सवालों के घेरे में है.

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Published : Oct 17, 2022, 8:13 PM IST

Updated : Oct 17, 2022, 8:53 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड की धामी सरकार ने विधानसभा में बैक डोर भर्ती (assembly backdoor recruitment case) को लेकर आनन-फानन में जांच कमेटी बैठाई. विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी (Assembly Speaker Ritu Khanduri) ने भी तुरंत कार्रवाई करते हुए 250 से अधिक कर्मचारियों को बर्खास्त कर दिया. लेकिन उत्तराखंड हाईकोर्ट (Uttarakhand High Court) ने सरकार और विधानसभा अध्यक्ष की कार्रवाई को बैकफुट पर धकेल दिया है.

दरअसल, विधानसभा बैक डोर भर्ती घोटाले के सामने आने के बाद उस वक्त कैबिनेट मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल (Cabinet Minister Prem Chand Aggarwal) पर सवाल खड़े हो रहे थे. सवाल इस बात पर खड़े हो रहे थे कि आखिरकार प्रेमचंद अग्रवाल के विधानसभा अध्यक्ष रहते हुए कैसे उन्होंने अपने लोगों को नियमों को ताक पर रखकर विधानसभा में भर्ती करवाया. सवाल इस बात पर भी खड़े हो रहे थे कि कैसे बीजेपी और कांग्रेस के नेताओं ने नियमों के विपरीत अपने परिजनों को विधानसभा में नियुक्ति दिलवाई थी.

विधानसभा बैक डोर भर्ती मामले में HC के आदेश के बाद सरकार ने साधी चुप्पी.
पढ़ें- विधानसभा भर्ती घोटाला: हरक बोले- उत्तराखंड का दुर्भाग्य है कि प्रेमचंद अभी भी मंत्री बने हैं

इसके बाद विधानसभा अध्यक्ष को पत्र लिखकर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस मामले में कार्रवाई करने का आग्रह किया था और एक महीने की जांच के बाद विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी ने भी तत्काल एक्शन ले लिया था. लेकिन हाईकोर्ट में न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की एकलपीठ ने विधानसभा सचिवालय से बर्खास्त किये गए 102 से अधिक कर्मचारियों की बर्खास्तगी आदेश के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए उनकी बर्खास्तगी के आदेश पर अग्रिम सुनवाई तक रोक लगा दी, साथ ही कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि ये कर्मचारी अपने पदों पर कार्य करते रहेंगे.

कोर्ट के इस आदेश के बाद सरकार बैकफुट पर आ गई है. जितना हल्ला बर्खास्तगी को लेकर हुआ उसके बाद सरकार ने भी इसका खूब प्रचार-प्रसार किया. लेकिन हाईकोर्ट ने राज्य सरकार की इस कार्रवाई को भी सिरे से खारिज कर दिया. आलम ये हुआ कि जिन लोगों की नियुक्तियां रद्द की गई थीं अब वो दोबारा से विधानसभा की उसी पोस्ट पर बैठकर काम कर रहे हैं.
पढ़ें- विधानसभा बैकडोर भर्ती मामला: HC ने कर्मचारियों की बर्खास्तगी के आदेश पर लगाई रोक

कोर्ट के आदेश के बाद ना तो सरकार की तरफ से अभी कोई बयान जारी हुआ है और ना ही इस पर किसी तरह की कोई चर्चा है. हालांकि, जानकार और कांग्रेस के नेता इस बात पर सवाल खड़े कर रहे हैं कि क्या ये सब कार्रवाई सिर्फ दिखावे के लिए की गई थी? कांग्रेस इस मामले में हमलावर है. कांग्रेस का कहना है कि ये कार्रवाई और तेजी इस बात का इशारा था कि कुछ ठीक से नहीं किया जा रहा है.

कांग्रेस प्रवक्ता गरिमा दसौनी कहती हैं कि इस मामले में कोर्ट ने जो भी निर्णय लिया है उसका स्वागत है. लेकिन सवाल ये है कि जिन लोगों ने नियम विरुद्ध काम किया, उनको क्यों अब तक आगे नहीं लाया गया. उनका सवाल है कि जो लोग अपने लोगों को नौकरी लगाकर चैन की नींद सो रहे हैं, उन पर कब एक्शन होगा? कांग्रेस ने कहा है कि ये बात पहले से ही मालूम थी कि इस मामले को कोर्ट में चैलेंज किया जा सकेगा. जितने दोषी नौकरी करने वाले हैं, उतने ही दोषी उनको नौकरी देने वाले भी हैं.

वहीं, इस मामले में वरिष्ठ पत्रकार गजेंद्र रावत कहते हैं कि सरकार और विधानसभा की कार्यवाही और जल्दबाजी ये बताती है कि कितनी ढीली तैयारी की गयी थी. कैसे कुछ लोगों को बख्शा गया और कुछ ही लोगों पर कार्रवाई की गई. वो कहते हैं कि ये निर्णय बताता है कि सरकार ने अपनी छवि चमकाने और सुधारने के लिए ये फैसला लिया जिसका नतीजा ये है कि कोर्ट ने विधानसभा अध्यक्ष और सरकार को बैकफुट पर लाकर खड़ा कर दिया है.
पढ़ें- 'यूपी पुलिस निर्दोष लोगों को पकड़ केस सॉल्व करती है', ACS गृह राधा रतूड़ी का सनसनीखेज बयान

रावत की मानें तो जिनके लिए कोई इंटरव्यू नहीं हुआ और कोई रिलीज जारी नहीं हुई, उनकी नियुक्ति देना और बाद में रद्द करना, ये नियम अनुसार नहीं हुआ. वो सरकार के इस निर्णय पर सवाल खड़े करते हुए कहते हैं कि सरकार को जिस तरह से अपने इस एक्शन की चर्चा करने की जल्दबाजी थी, उसी तरह अब कोर्ट आदेश के बाद सरकार क्या कर रही है ये भी सबको बताना चाहिए.

बीजेपी का जवाब: इस पूरे मामले पर बीजेपी प्रवक्ता वीरेंद्र सिंह कहते हैं कि जो कांग्रेस शासन काल में हुआ था, उसको ही आगे बढ़ाया गया था. अब जनता की मांग थी कि इस पूरे मामले की जांच होनी चाहिए इसलिए मुख्यमंत्री की सिफारिश के बाद विधानसभा अध्यक्ष ने इस पूरे मामले की जांच करवाई और जांच के बाद जो भी निर्णय हुआ वह सबके सामने है. बीजेपी फूंक-फूंक कर कदम रखते हुए कह रही है कि इस मामले में कोर्ट का जो भी निर्णय होगा उन्हें उम्मीद है जनता के पक्ष में ही होगा. और विधानसभा अध्यक्ष 4 महीनों के अंदर सरकार के साथ मिलकर इस पूरे मामले पर जवाब दाखिल करेगी.

देहरादून: उत्तराखंड की धामी सरकार ने विधानसभा में बैक डोर भर्ती (assembly backdoor recruitment case) को लेकर आनन-फानन में जांच कमेटी बैठाई. विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी (Assembly Speaker Ritu Khanduri) ने भी तुरंत कार्रवाई करते हुए 250 से अधिक कर्मचारियों को बर्खास्त कर दिया. लेकिन उत्तराखंड हाईकोर्ट (Uttarakhand High Court) ने सरकार और विधानसभा अध्यक्ष की कार्रवाई को बैकफुट पर धकेल दिया है.

दरअसल, विधानसभा बैक डोर भर्ती घोटाले के सामने आने के बाद उस वक्त कैबिनेट मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल (Cabinet Minister Prem Chand Aggarwal) पर सवाल खड़े हो रहे थे. सवाल इस बात पर खड़े हो रहे थे कि आखिरकार प्रेमचंद अग्रवाल के विधानसभा अध्यक्ष रहते हुए कैसे उन्होंने अपने लोगों को नियमों को ताक पर रखकर विधानसभा में भर्ती करवाया. सवाल इस बात पर भी खड़े हो रहे थे कि कैसे बीजेपी और कांग्रेस के नेताओं ने नियमों के विपरीत अपने परिजनों को विधानसभा में नियुक्ति दिलवाई थी.

विधानसभा बैक डोर भर्ती मामले में HC के आदेश के बाद सरकार ने साधी चुप्पी.
पढ़ें- विधानसभा भर्ती घोटाला: हरक बोले- उत्तराखंड का दुर्भाग्य है कि प्रेमचंद अभी भी मंत्री बने हैं

इसके बाद विधानसभा अध्यक्ष को पत्र लिखकर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस मामले में कार्रवाई करने का आग्रह किया था और एक महीने की जांच के बाद विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी ने भी तत्काल एक्शन ले लिया था. लेकिन हाईकोर्ट में न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की एकलपीठ ने विधानसभा सचिवालय से बर्खास्त किये गए 102 से अधिक कर्मचारियों की बर्खास्तगी आदेश के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए उनकी बर्खास्तगी के आदेश पर अग्रिम सुनवाई तक रोक लगा दी, साथ ही कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि ये कर्मचारी अपने पदों पर कार्य करते रहेंगे.

कोर्ट के इस आदेश के बाद सरकार बैकफुट पर आ गई है. जितना हल्ला बर्खास्तगी को लेकर हुआ उसके बाद सरकार ने भी इसका खूब प्रचार-प्रसार किया. लेकिन हाईकोर्ट ने राज्य सरकार की इस कार्रवाई को भी सिरे से खारिज कर दिया. आलम ये हुआ कि जिन लोगों की नियुक्तियां रद्द की गई थीं अब वो दोबारा से विधानसभा की उसी पोस्ट पर बैठकर काम कर रहे हैं.
पढ़ें- विधानसभा बैकडोर भर्ती मामला: HC ने कर्मचारियों की बर्खास्तगी के आदेश पर लगाई रोक

कोर्ट के आदेश के बाद ना तो सरकार की तरफ से अभी कोई बयान जारी हुआ है और ना ही इस पर किसी तरह की कोई चर्चा है. हालांकि, जानकार और कांग्रेस के नेता इस बात पर सवाल खड़े कर रहे हैं कि क्या ये सब कार्रवाई सिर्फ दिखावे के लिए की गई थी? कांग्रेस इस मामले में हमलावर है. कांग्रेस का कहना है कि ये कार्रवाई और तेजी इस बात का इशारा था कि कुछ ठीक से नहीं किया जा रहा है.

कांग्रेस प्रवक्ता गरिमा दसौनी कहती हैं कि इस मामले में कोर्ट ने जो भी निर्णय लिया है उसका स्वागत है. लेकिन सवाल ये है कि जिन लोगों ने नियम विरुद्ध काम किया, उनको क्यों अब तक आगे नहीं लाया गया. उनका सवाल है कि जो लोग अपने लोगों को नौकरी लगाकर चैन की नींद सो रहे हैं, उन पर कब एक्शन होगा? कांग्रेस ने कहा है कि ये बात पहले से ही मालूम थी कि इस मामले को कोर्ट में चैलेंज किया जा सकेगा. जितने दोषी नौकरी करने वाले हैं, उतने ही दोषी उनको नौकरी देने वाले भी हैं.

वहीं, इस मामले में वरिष्ठ पत्रकार गजेंद्र रावत कहते हैं कि सरकार और विधानसभा की कार्यवाही और जल्दबाजी ये बताती है कि कितनी ढीली तैयारी की गयी थी. कैसे कुछ लोगों को बख्शा गया और कुछ ही लोगों पर कार्रवाई की गई. वो कहते हैं कि ये निर्णय बताता है कि सरकार ने अपनी छवि चमकाने और सुधारने के लिए ये फैसला लिया जिसका नतीजा ये है कि कोर्ट ने विधानसभा अध्यक्ष और सरकार को बैकफुट पर लाकर खड़ा कर दिया है.
पढ़ें- 'यूपी पुलिस निर्दोष लोगों को पकड़ केस सॉल्व करती है', ACS गृह राधा रतूड़ी का सनसनीखेज बयान

रावत की मानें तो जिनके लिए कोई इंटरव्यू नहीं हुआ और कोई रिलीज जारी नहीं हुई, उनकी नियुक्ति देना और बाद में रद्द करना, ये नियम अनुसार नहीं हुआ. वो सरकार के इस निर्णय पर सवाल खड़े करते हुए कहते हैं कि सरकार को जिस तरह से अपने इस एक्शन की चर्चा करने की जल्दबाजी थी, उसी तरह अब कोर्ट आदेश के बाद सरकार क्या कर रही है ये भी सबको बताना चाहिए.

बीजेपी का जवाब: इस पूरे मामले पर बीजेपी प्रवक्ता वीरेंद्र सिंह कहते हैं कि जो कांग्रेस शासन काल में हुआ था, उसको ही आगे बढ़ाया गया था. अब जनता की मांग थी कि इस पूरे मामले की जांच होनी चाहिए इसलिए मुख्यमंत्री की सिफारिश के बाद विधानसभा अध्यक्ष ने इस पूरे मामले की जांच करवाई और जांच के बाद जो भी निर्णय हुआ वह सबके सामने है. बीजेपी फूंक-फूंक कर कदम रखते हुए कह रही है कि इस मामले में कोर्ट का जो भी निर्णय होगा उन्हें उम्मीद है जनता के पक्ष में ही होगा. और विधानसभा अध्यक्ष 4 महीनों के अंदर सरकार के साथ मिलकर इस पूरे मामले पर जवाब दाखिल करेगी.

Last Updated : Oct 17, 2022, 8:53 PM IST
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