देहरादूनः मॉनसून सीजन आते ही उत्तराखंड में सबसे ज्यादा खतरा उन क्षेत्रों और आबादी को होता है जो नदियों के करीब निवास करती है. राजधानी देहरादून में भी कुछ नदियां हैं जिनके करीब बस्तियां तेजी से स्थापित हुई हैं और नदी में पानी का जलस्तर बढ़ने पर यहां रहने वाले लोगों में खौफ का माहौल पैदा हो जाता है. मॉनसून से पहले नदी के किनारे रहने वाली आबादी को ऐसे हालातों से बचाने के लिए रिवर ड्रेजिंग की व्यवस्था है. लेकिन खबर है कि इस बार जिला प्रशासन के ढुलमुल रवैया के कारण नदियों में रिवर ड्रेजिंग नहीं कराई जा सकी है.
पर्यावरणीय आपत्तियों के कारण प्रदेश की तमाम नदियों में खनन की गतिविधियों पर अक्सर रोक लगी रहती है. इन हालातों में नदियों में मलबा बढ़ जाता है और यह मॉनसून सीजन के दौरान नदियों के किनारे रहने वाली बस्तियों के लिए खतरनाक साबित होता है. देहरादून में रिस्पना, बिंदाल और सुसवा जैसी नदियां बहती है. इन नदियों के किनारे बड़ी संख्या में आबादी रह रही है. जाहिर है कि मॉनसून सीजन आने पर यहां रहने वाली आबादी भी भारी बारिश के दौरान खतरे की जद में होती है.
नदियों के किनारे रहने वाले लोगों को खतरे से बचाने के लिए जिला प्रशासन स्तर पर रिवर ड्रेजिंग की व्यवस्था होती है. लेकिन इस बार मॉनसून से पहले नदियों में रिवर ड्रेजिंग की प्रक्रिया को पूरा नहीं किया गया है. इससे भारी बारिश की स्थिति में नदी में पानी बढ़ने पर नदी में मौजूद मलबे के कारण जलस्तर पहले से भी ज्यादा ऊपर जा सकता है और नदियों किनारे रहने वाली आबादी के लिए खतरनाक हो सकता है.
इस मामले पर जब प्रभागीय वनाधिकारी नीतीश कुमार त्रिपाठी से ईटीवी भारत ने बात की तो उन्होंने कहा कि वह पिछले 10 दिनों से छुट्टी पर थे और उनको जो पत्र मिला है, उसमें रिवर ड्रेजिंग आरक्षित वन क्षेत्र में कराया जाना है या फिर उससे बाहर इसका कोई जिक्र नहीं है. लिहाजा वे अपर जिलाधिकारी से इसको लेकर स्थिति स्पष्ट करेंगे.
देहरादून में विभिन्न नदियों के किनारे पर 40 से ज्यादा कॉलोनी या बस्तियां मौजूद है. इसमें हजारों लोग निवास करते हैं. ऐसा नहीं है कि जिला प्रशासन को रिवर ड्रेजिंग का महत्व नहीं पता हो. साथ ही बरसात के दौरान नदियों के किनारे रहने वाले लोगों को होने वाले खतरे का भी जिला प्रशासन को पूरी जानकारी है. इसके बावजूद नदियों में लंबे समय से इसकी व्यवस्था क्यों नहीं की गई? इसका जवाब नहीं मिल पाया है.
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हालांकि, जिला प्रशासन के स्तर पर मॉनसून सीजन के दौरान अधिकारियों की तरफ से की गई तैयारियों का ब्यौरा जरूर बताया जा रहा है. अपर जिलाधिकारी केके मिश्रा कहते हैं कि मॉनसून को लेकर प्रशासन स्थितियों पर नजर बनाए हुए है. नदियों के किनारे रहने वाले लोगों को लेकर भी प्रशासन ने होमवर्क किया है. भारी बारिश होने की स्थिति में नदियों का जलस्तर बढ़ने पर जिला प्रशासन ऐसे लोगों को अति संवेदनशील क्षेत्रों से हटाने के लिए भी होमवर्क कर चुका है.
सरकारी सिस्टम में अक्सर लापरवाही के कई मामले सामने आते हैं. लेकिन जब बात लोगों की जान से जुड़े विषय की हो तो इस काम में तेजी की उम्मीद की जाती है. लेकिन यहां जो मामला सामने आया है, उसे लगता है कि किसी ना किसी स्तर पर इस मामले को लेकर हीला हवाली हुई है. इसीलिए देहरादून डीएफओ ईटीवी भारत के सवाल उठाने पर मामले का संज्ञान लेने की बात कह रहे हैं.
क्या है ड्रेजिंग नीतिः उत्तराखंड में रिवर ड्रेजिंग नीति साल 2021 में लाई गई. नीति का मकसद नदी के तल क्षेत्र में मलबे को साफ करना है. नीति द्वारा स्पष्ट दिया गया है कि बरसात के मौसम से पहले नदी में बेहद ज्यादा मात्रा में मलबा आरबीएमएस सिल्ट जमा होने की स्थिति में नदी के तट का कटान और जानमाल के साथ आबादी को क्षति पहुंचने की संभावना होती है. ऐसे में मलबा या सिल्ट को हटाने के लिए रिवर ड्रेजिंग नीति 2021 को लाया गया. हालांकि इससे पहले प्रदेश में रिवर ड्रेजिंग नीति 2020 में भी इन्हीं कामों के लिए बनाई गई थी.
लेकिन 2021 में रिवर ड्रेजिंग नीति के सभी आदेशों को अतिक्रमण करते हुए ऐसे मामलों के निस्तारण के लिए उत्तराखंड रिवर ड्रेजिंग नीति 2021 को स्वीकृति दी गई. बता दें कि रिवर ड्रेजिंग पॉलिसी में यह व्यवस्था की गई है कि जिस नदी का ड्रेजिंग किया जाना है,उसका पहले सर्वे किया जाएगा. साथ ही उतना ही खनन किया जाता है, जिससे नदी का बहाव दुरस्त हो सके.
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नीति में साफ तौर पर दिया गया कि ऐसी नदियों के चिन्हीकरण और सत्यापन के लिए जिलाधिकारी के स्तर से एसडीएम की अध्यक्षता में कमेटी गठित की जाएगी. यही नहींं, नीति में यह स्पष्ट किया गया है कि इसके लिए जिलाधिकारी के स्तर से दिसंबर तक सभी जरूरी औपचारिकताओं को पूरा करते हुए 30 जून तक इस काम को पूरा कराया जाना आवश्यक होगा. नदियों से मलबा निकालने को लेकर नीति में बताया गया है कि नदी के सतह से अधिकतम 3 मीटर की गहराई या ग्राउंड वाटर लेवल जो भी कम हो उसी स्थिति तक नदी से मलबा निकाला जा सकेगा.